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मनीष सिसोदिया सीबीआई के शिकंजे में,क्या अकेले पड़ जाएंगे केजरीवाल?

Manish Sisodia: केजरीवाल को विक्टिम कार्ड खेलने में महारथ हासिल है. कई मौकों पर वह मोदी सरकार को छका चुके हैं.

आरती जेरथ
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद&nbsp;क्या अकेले पड़ जाएंगे केजरीवाल?</p></div>
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मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद क्या अकेले पड़ जाएंगे केजरीवाल?

(फोटो-क्विंट हिंदी)

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दिल्ली (Delhi) के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की सीबीआई गिरफ्तारी के साथ मोदी सरकार ने आम आदमी पार्टी के साथ अपनी जंग को अरविंद केजरीवाल की चौखट तक पहुंचा दिया है.

सिसोदिया की गिरफ्तारी AAP के बॉस के लिए जबरदस्त झटका है. सिसोदिया न सिर्फ दिल्ली सरकार में नंबर दो की कुर्सी पर हैं, बल्कि उनके पास करीब 18 पोर्टफोलियो हैं- जैसे वित्त, गृह, शिक्षा और पीडब्ल्यूडी. वह केजरीवाल के मुख्य सिपहसालार हैं, भरोसेमंद सियासी साथी हैं, और AAP की शोपीस शिक्षा नीति का चेहरा भी.

सिसोदिया केजरीवाल का कवच हैं और उनके बिना केजरीवाल के पास छिपने की कोई जगह नहीं. एडमिनिस्ट्रेटर के तौर पर उनकी क्षमता पर अब सवाल उठाना आसान है. दिल्ली सरकार पर केंद्र सरकार खुलकर बौछार करती है. चूंकि सिसोदिया जैसी ढाल नहीं, इसलिए केजरीवाल को इनका सामना अकेले ही करना होगा.

  • सिसोदिया की गिरफ्तारी आप के बॉस के लिए जबरदस्त झटका है. सिसोदिया न सिर्फ दिल्ली सरकार में नंबर दो की कुर्सी पर हैं, बल्कि उनके पास करीब 18 पोर्टफोलियो हैं और वह केजरीवाल के भरोसेमंद साथी हैं.

  • पंजाब में उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य के दिल्ली वाले मॉडल का वादा किया था लेकिन वह पूरा नहीं कर पाए. क्योंकि वहां कानून व्यवस्था की स्थिति खराब हुई है और खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह उभरकर आए हैं.

  • हालांकि सिसोदिया के बाद अगला शिकार केजरीवाल हो सकते हैं, लेकिन यह भी माना जा रहा है कि मोदी सरकार आप प्रमुख को सलाखों के पीछे नहीं भेजेगी.

  • केजरीवाल दिल्ली में अपना रुतबा दिखा चुके हैं. 2015 में एक छोटे से कार्यकाल के बाद उन्होंने जबरदस्त बहुमत से सरकार बनाई थी. इसी तरह 2017 में पंजाब विधानसभा चुनावों में नाकामी मिलने के बावजूद वह पिछले साल राज्य में सत्ता में लौटे हैं.

  • सिसोदिया की गिरफ्तारी ने एक शातिराना लड़ाई का बिगुल बजा दिया है. इसमें एक तरफ AAP और केजरीवाल हैं, और दूसरी तरफ BJP और CBI.

इसका नुकसान हो सकता है. जब सीबीआई ने सिसोदिया को हिरासत में लिया तब उन्होंने कहा था कि वह आठ से नौ महीने के लिए धरे जा सकते हैं. यानी केजरीवाल को अपने मैन फ्राइडे के बिना लंबे समय तक काम करना पड़ सकता है.

सिसोदिया के बिना केजरीवाल के लिए हालात गंभीर हैं

वैसे केजरीवाल पहले कभी इतने असुरक्षित नहीं थे. दिल्ली में उन्होंने अपना दाहिना हाथ खो दिया है जिसके चलते उन्हें शासन की रोजमर्रा की जिम्मेदारियों से मुक्ति मिली हुई थी. इसी की बनिस्पत वह राजनीति पर ध्यान केंद्रित कर सकते थे.

पंजाब में उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य के दिल्ली वाले मॉडल का वादा किया था लेकिन वह पूरा नहीं कर पाए. क्योंकि वहां कानून व्यवस्था की स्थिति खराब हुई है और खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह उभरकर आए हैं. इससे सुरक्षा संबंधी चिंताएं बढ़ी हैं, जोकि भारत-पाक सीमा पर अजनाला के एक पुलिस स्टेशन पर हुए हमले से साफ जाहिर होता है.

आने वाले महीनों में केजरीवाल का राजनीतिक सफर दो बातों पर निर्भर करेगा. एक यह है कि क्या सीबीआई शराब नीति घोटाले को सिसोदिया से जोड़कर पैसे के लेनदेन का पता लगाएगी और केजरीवाल पर दबाव बढ़ाने की कोशिश होगी.

दूसरा, क्या केजरीवाल ऐसा नेरेटिव गढ़ पाएंगे कि उन्हें और सिसोदिया को शिकार बनाया जा रहा है. इस तरह वह बता पाएंगे कि दिल्ली सरकार की पुरानी आबकारी नीति में कोई घोटाला नहीं है और सीबीआई की जांच का मुकाबला कर पाएंगे.

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क्या मोदी सरकार का अगला निशाना केजरीवाल हैं?

हालांकि सिसोदिया के बाद अगला शिकार केजरीवाल हो सकते हैं, लेकिन यह भी माना जा रहा है कि मोदी सरकार आप प्रमुख को सलाखों के पीछे नहीं भेजेगी. इस तरह केजरीवाल के इस दावे को हवा मिलेगी कि उन्हें निशाना बनाया जा रहा है और मोदी के गुस्से का शिकार होने के नाते सहानुभूति बटोरने का मौका भी मिलेगा.

यह भी माना जा रहा है कि मोदी सरकार के लिए यह बेहतर है कि केजरीवाल अधर में लटके रहें. इस तरह उन पर दबाव बनाना आसान होगा, और केंद्र सरकार के लिए यह आसान होगा कि वह नॉर्थ ब्लॉक से दिल्ली को अपनी उंगलियों पर नचा सके.

एक पेंच और है. केजरीवाल मोदी और बीजेपी के लिए सियासी मिल्कियत हैं, इसके बावजूद कि वह बीजेपी विरोधी हैं, और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी जैसे विपक्षी नेताओं के खास दोस्त.

जैसा कि हाल के गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों ने दिखाया है, केजरीवाल की कथित राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं कांग्रेस को कुचलकर बीजेपी को फायदा पहुंचाती हैं. मोदी के गढ़ में आप की मेहनत और इसके हाई-वोल्टेज कैंपेन ने विपक्षी वोटों को बांटा जिससे बीजेपी को भारी जीत मिली और कांग्रेस का पतन हो गया.

ऐसे में केंद्र केजरीवाल को खुद से दूर क्यों रखना चाहेगा? हालांकि केजरीवाल को जानने वालों का मानना है कि आप प्रमुख को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए. उनमें गजब का लचीलापन है और हताशा की गहराई से उबरने की काबलियत भी है.

क्या केजरीवाल इस झटके से उबरेंगे और अपने किले पर कब्जा जमाएंगे?

केजरीवाल दिल्ली में पहले ऐसा कर चुके हैं. 2015 में एक छोटे से कार्यकाल के बाद उन्होंने जबरदस्त बहुमत से सरकार बनाई थी. इसी तरह 2017 में पंजाब विधानसभा चुनावों में नाकामी मिलने के बावजूद वह पिछले साल राज्य में सत्ता में लौटे हैं.

उन्हें विक्टिम कार्ड खेलने में महारथ हासिल है. कई मौकों पर वह मोदी सरकार को छका चुके हैं, यह कहकर कि वह डेविड हैं, और केंद्र सरकार शैतान दैत्य गोलिएथ (बाइबल के मुताबिक, डेविड एक मासूम चरवाहा था, और गोलिएथ उसका ताकतवर दुश्मन). इस पूरे नेरेटिव ने केजरीवाल के लिए हमदर्दी पैदा की और राजधानी में अपनी स्थिति को मजबूत करने में मदद की.

सिसोदिया की गिरफ्तारी ने एक शातिराना लड़ाई का बिगुल बजा दिया है. इसमें एक तरफ आप और केजरीवाल हैं, और दूसरी तरफ बीजेपी और सीबीआई. यह लड़ाई और बढ़ेगी- चूंकि 2024 के लोकसभा चुनाव नजदीक हैं. इसमें बलि का बकरा बनेंगे दिल्ली और पंजाब के बाशिंदे जिन्हें ओछी राजनीति के चलते बदअमली और अव्यवस्था झेलनी पड़ेगी.

(आरती जेरथ दिल्ली में रहने वाली एक सीनियर जर्नलिस्ट है. उनका ट्विटर हैंडिल @AratiJ है. यह एक ओपनियिन पीस है और यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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