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मोदी सरकार इथेनॉल को दे रही बढ़ावा: यह एक जरुरी लेकिन जोखिम भरा दांव है

मोदी सरकार पेट्रोलियम कच्चे तेल के आयात निर्भरता में अपने लक्ष्य के अनुसार कमी हासिल नहीं कर सकी. कम होने की जगह यह 10% बढ़ ही गयी है.

सुभाष चंद्र गर्ग
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>मोदी सरकार का इथेनॉल को बढ़ावा: एक जरुरी लेकिन जोखिम भरा दांव है</p></div>
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मोदी सरकार का इथेनॉल को बढ़ावा: एक जरुरी लेकिन जोखिम भरा दांव है

(फोटो: कामरान अख्तर/द क्विंट)

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पीएम मोदी की नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार, जब 2014 में सत्ता में आई थी, तो पेट्रोलियम कच्चे तेल के आयात पर भारत की हद से ज्यादा निर्भरता के बारे में चिंतित थी. भारत ने 2013-14 में 144 मिलियन टन कच्चे तेल का आयात किया था, जिसकी लागत 143 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी.

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रैल 2015 में भारत की आयात निर्भरता को 2014 में 77 प्रतिशत से घटाकर 2022 तक 67 प्रतिशत करने की कसम खाई थी. मोदी सरकार ने इथेनॉल के लिए मेगा पुश (2025-26 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत मिश्रण) इसी लक्ष्य को साधने के लिए शुरू किया था.

मोदी सरकार आयात निर्भरता में अपने लक्ष्य के अनुसार कमी हासिल नहीं कर सकी. इसके बजाय, आयात निर्भरता अब 10 प्रतिशत बढ़कर 87 प्रतिशत हो गई है.

मोदी सरकार के तहत इथेनॉल नीति में बड़ा बदलाव

इथेनॉल नीति कैसी रही है? इथेनॉल नीति और इसके प्रोत्साहन की वर्तमान स्थिति क्या है? क्या यह लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है या इसमें ऐसे जोखिम हैं जो इसे कमजोर कर सकते हैं?

इथेनॉल के साथ भारत के जुड़ाव को 2006 में औपचारिक नीतिगत आकार मिला, जब यूपीए सरकार ने तेल की कंपनियों (OMC) को जैव ईंधन (Bio-fuel) पर अपनाई गई नई राष्ट्रीय नीति (एनपीबी-2006) के हिस्से के रूप में 5 प्रतिशत इथेनॉल मिला पेट्रोल सप्लाई करने का निर्देश दिया. बाद में सरकार ने 2017 तक डीजल में बायो-डीजल और पेट्रोल में इथेनॉल के 20 प्रतिशत मिश्रण का लक्ष्य अपनाया.

हालांकि, इन निर्देशों और नीतियों को लागू कराने में कुछ खास नहीं हुआ. जून 2018 में मोदी सरकार ने एनपीबी-2018 को अपनाया, तो पेट्रोल में इथेनॉल मिश्रण केवल 2.0 प्रतिशत के आसपास था, जबकि डीजल में लगभग कुछ भी नहीं मिलाया गया था. मोदी सरकार ने 2030 की बदली गई समयसीमा के साथ इथेनॉल के लिए 20 प्रतिशत मिश्रण लक्ष्य और बायो-डीजल के लिए कम 5 प्रतिशत मिश्रण लक्ष्य अपनाया.

बड़ा अंतर मोदी सरकार की उस गंभीरता में था जिसके साथ वह इस नीति को लागू करने में लगी थी. सितंबर 2019 में, सरकार ने इथेनॉल प्रोडक्शन के लिए नए स्रोतों - चीनी और चीनी सिरप - को शामिल करने की अनुमति दी.

अगस्त 2020 में, सरकार ने रजिस्टर्ड इथेनॉल सप्लायर्स को 5 साल की सप्लाई के लिए खरीद आश्वासन देना शुरू किया था. सितंबर 2020 में, ओएमसी ने भंडारण सुविधाओं के निर्माण में निवेश के अलावा ऑफ-टेक गारंटी की पेशकश शुरू की. सरकार ने मिश्रण के लिए बने इथेनॉल पर जीएसटी दर को भी घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया था.

सरकार काफी आश्वस्त महसूस कर रही थी और इथेनॉल सप्लाई वर्ष (ESY) 2025-26 तक इथेनॉल-पेट्रोल सम्मिश्रण लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिए मई 2022 में एनपीबी-18 में संशोधन करके अपनी प्रतिबद्धता दिखाई.

सरकार ने उत्पादन स्रोतों और मूल्य प्रोत्साहनों में बदलाव किया

सरकार का अनुमान है कि 2025-26 तक 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण हासिल करने के लिए 1,000 करोड़ लीटर से कुछ ज्यादा इथेनॉल की जरुरत होगी. यह सुनिश्चित करने के लिए कि इतनी बड़ी मात्रा में इथेनॉल का प्रोडक्शन किया जा सके, सरकार ने आपूर्ति स्रोतों (सप्लाई सोर्सेज) में महत्वपूर्ण बदलाव किया.

भारत के एक प्रमुख चीनी अधिशेष उत्पादक (surplus producer) बनने का लाभ उठाते हुए, सरकार ने चीनी/गन्ने के रस से इथेनॉल उत्पादन की अनुमति देने का फैसला लिया, जिससे 5-6 मिलियन मीट्रिक टन चीनी के डायवर्जन से 300-350 करोड़ लीटर इथेनॉल प्राप्त होने की उम्मीद थी. सरकार ने भारतीय खाद्य निगम (FCI) के पास बढ़ते फ़ूड स्टोर से अतिरिक्त और मानव इस्तेमाल के लिए अनफिट फूड - चावल और गेहूं - के इस्तेमाल की अनुमति देने का भी निर्णय लिया गया.

इसके अलावा, सरकार ने कीमतें बढ़ाने की पेशकश करने का फैसला लिया. जिसने न केवल उत्पादित इथेनॉल के लिए अच्छी कीमतें मिली बल्कि विभिन्न सोर्सेज से प्राप्त इथेनॉल के लिए अलग-अलग कीमतें भी प्रदान कीं.

ईएसवाई 2018-19 के बाद से इथेनॉल की कीमतें आक्रामक रूप से बढ़ाई गईं, जब सी-हैवी गुड़ से प्राप्त इथेनॉल की एक्स-मिल कीमत 43.46 रुपये प्रति लीटर तय की गई थी. पहली बार, बी-हैवी गुड़/आंशिक गन्ने के रस से प्राप्त इथेनॉल के लिए 52.43 रुपये प्रति लीटर और 100 प्रतिशत गन्ने के रस के लिए 59.19 रुपये प्रति लीटर की एक अलग एक्स-मिल कीमत तय की गई थी.

ये कीमतें नियमित रूप से बढ़ाई गईं. वर्तमान ईएसवाई 2022-23 के लिए, सी-हैवी गुड़, बी-हैवी गुड़ और गन्ने के रस/चीनी/चीनी सिरप से इथेनॉल की कीमतें क्रमशः 49.41 रुपये, 60.73 रुपये और 65.61 रुपये प्रति लीटर हैं.

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2021-22 तक इथेनॉल उत्पादन में लगातार बढ़ोत्तरी हुई

इन सभी उपायों और प्रोत्साहनों का नतीजा ओएमसी को सप्लाई किए गए इथेनॉल की मात्रा में दिखाई दे रहा था.

ईएसवाई 2018-19 के लिए, ओएमसी को 188.57 करोड़ लीटर इथेनॉल की सप्लाई की गई थी. ईएसवाई 2019-20 में सप्लाई थोड़ी कम होकर 173.03 करोड़ लीटर हो गई, लेकिन ईएसवाई 2020-21 में तेजी से बढ़कर 302.30 करोड़ लीटर हो गई.

ईएसवाई 2021-22 में, ओएमसी द्वारा खरीदा गया इथेनॉल बढ़कर 433.6 करोड़ लीटर हो गया. इथेनॉल इंडस्ट्री ने प्रोडक्शन क्षमता के निर्माण में अभूतपूर्व प्रतिक्रिया दी है जो अब तक लगभग 1037 करोड़ लीटर तक बढ़ गई है.

इस साल सरकार लक्ष्य से चूक सकती है

चालू वर्ष – ESY2022-23 – के लिए इथेनॉल प्रोडक्शन का टारगेट 542 करोड़ लीटर निर्धारित किया गया था. यह चुनौतीपूर्ण साबित हुआ है.

चावल और गन्ने के कम प्रोडक्शन से प्रमुख स्रोत की सप्लाई बाधित होने का खतरा है. सरकार ने चीनी निर्यात कोटा कम करके और गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर इथेनॉल इंडस्ट्री की रक्षा करने की कोशिश की. इसके बावजूद एफसीआई को इथेनॉल उत्पादकों को अतिरिक्त चावल की सप्लाई रोकनी पड़ी.

ओएमसी ने इस साल के लिए लगभग 600 करोड़ लीटर इथेनॉल के लिए निविदाएं जारी की थीं. अगस्त के अंत तक करीब 415 करोड़ लीटर की सप्लाई की गई.

इथेनॉल आपूर्ति वर्ष 31 अक्टूबर को समाप्त हो गया है. अंतिम सप्लाई संख्या उपलब्ध नहीं है लेकिन लक्ष्य निश्चित रूप से चूक गया है.

जोखिम चीनी और चावल की उपलब्धता में है

भारत का इथेनॉल कार्यक्रम, सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए, अधिशेष गन्ना/चीनी और चावल उत्पादन पर आधारित है. सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली ऊंची कीमतें और सुनिश्चित खरीद इन फसलों को किसानों के लिए काफी आकर्षक बनाती है और ये उनके लिए बड़ी उपलब्धि हैं.

हालांकि, देश में गन्ना और चावल उत्पादन बढ़ाने की प्राकृतिक सीमाएं हैं. वर्षा की परिवर्तनशीलता सबसे बड़ा जोखिम है क्योंकि ये दोनों फसलें भारी मात्रा में पानी की खपत करती हैं. 2022-23 में कमी 'सामान्य से मासिक और अस्थायी वर्षा' में भारी अंतर के कारण है.

ये बदलाव समय-समय पर होते रहेंगे.

कठिन लक्ष्य छोड़ा जाए; अवसरवादी बनें

वर्तमान इथेनॉल प्रमोशन की रणनीति मौलिक रूप से जोखिम भरी है. यह निश्चित रूप से कठिन टारगेट बेस्ड एप्रोच के लिए सही नहीं है. सोर्सेज सप्लाई का बदलाव भी इथेनॉल उत्पादन की क्षमता निर्माण में निवेश को अव्यवहार्य बनाती है.

पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल पेट्रोलियम उत्पादों का केवल 4% है क्योंकि पेट्रोलियम उत्पादों में पेट्रोल की हिस्सेदारी केवल 20 प्रतिशत होती है. बायो-डीजल पर कोई प्रगति नहीं हुई है क्योंकि भारत में बायो-डीजल के उत्पादन के लिए अधिशेष आपूर्ति स्रोतों (surplus supply sources) का अभाव है. इथेनॉल उत्पादन को भी कठिन लक्ष्य बनाने का कोई मतलब नहीं है.

यह बेहतर होगा अगर इथेनॉल प्रमोशन स्ट्रेटेजी अवसरवादी रूप से उतना इथेनॉल उत्पादन करने के अर्थशास्त्र पर बनाई जाए, जितना उपलब्ध हो सकता है और इसके मुताबिक की जितना गन्ना और खाद्यान्न इस्तेमाल हो सकता है.

नीति का लक्ष्य ज्यादा गन्ना और चावल उत्पादन वाले वर्षों में ज्यादा इथेनॉल का उत्पादन करना, और कम/खराब उत्पादन वाले वर्षों में कम या बिल्कुल भी उत्पादन नहीं होना चाहिए.

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