मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019मोहम्मद रफी और नौशाद: फिल्मी संगीत जगत के लिए ये जोड़ी किसी आशीर्वाद से कम नहीं

मोहम्मद रफी और नौशाद: फिल्मी संगीत जगत के लिए ये जोड़ी किसी आशीर्वाद से कम नहीं

Mohammad Rafi-Naushad के अधिकांश गीत शांति का गजब आनंद देते हैं.

दीपक महान
नजरिया
Updated:
<div class="paragraphs"><p>मोहम्मद रफी और नौशाद: फिल्मी संगीत जगत के लिए ये जोड़ी किसी आशीर्वाद से कम नहीं.</p></div>
i

मोहम्मद रफी और नौशाद: फिल्मी संगीत जगत के लिए ये जोड़ी किसी आशीर्वाद से कम नहीं.

(फोटो: द क्विंट)

advertisement

हाल ही में संपन्न फीफा विश्व कप ने इस कहावत को एक बार फिर सही साबित किया है कि आपसी विश्वास, सम्मान और सद्भाव, से महिमा वाला शिखर हासिल किया जा सकता है. मनोवैज्ञानिक भी इस बात पर जोर देते हैं कि ईमानदार पार्टनरशिप से सफलता स्वाभाविक तौर पर मिलती है.

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री तो अद्भुत साझेदारी की कहानियों से भरी हुई है, जिसने दुर्लभ प्रतिभाओं वाली सिनेमाई रचनाओं को प्रेरित किया. हालांकि, हेलेन केलर की कहावत भी है “अकेले हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते, लेकिन मिलकर बहुत ज्यादा कुछ कर सकते हैं." संगीतकार नौशाद और महान गायक मोहम्मद रफी की प्रतिभाशाली जोड़ी का फिल्म जगत में योगदान भी इसी बात की नजीर है.

सात सुरों को राग में पिरोना कोई आसान काम नहीं है. कई फिल्म संगीतकारों ने 1950 से 1970 तक हिंदी फिल्मों के सुनहरे युग में शानदार ढंग से अपने अपने तौर पर कहानियों के सौंदर्यशास्त्र में योगदान दिया, जिसमें रफी कॉमन डिनॉमिटर थे.

हालांकि, किसी एक को चमकीला सितारा बनाने में कई अलग अलग चीजों का योगदान होता है. संगीत की दुनिया में अलग अलग हिस्सेदारों यानि विभिन्न संगीतकारों के असाधारण काम से ही गजब का सुर निकल पाता है.. ऐसे में यह हैरान करने वाला है कि नौशाद-रफी की जोड़ी (गीतकार शकील बदायुनी की संगति में) ने धुनों का हैरान करने वाला आभा हासिल किया है. शायद इसलिए रफी और नौशाद, जिनका जन्मदिन भी आगे पीछे यानि 24 और 25 दिसंबर को पड़ता है, की शास्त्रीय निपुणता ने फिल्म के दृश्यों, दर्शकों और श्रोताओं को समान रूप से "मुक्त आनंद यानि निर्वाण" दिया है.  

फिल्म संगीत को मैजिकल हिट्स से सराबोर किया

फिल्मी संगीत जगत के लिए इन दोनों की जोड़ी किसी आशीर्वाद से कम नहीं.  1983 में चर्चगेट में जयदेव ने चाय पर बताया था कि ये दोनों एक दूसरे के किस तरह से पूरक थे. "हम दोनों, मुझे जीने दो, के म्यूजिक कंपोजर जयदेव ने बताया कि नौशाद ने पहले ही रफी की आवाज की असाधारण गहराई और रेंज को पकड़ लिया था. नौशाद रफी के करिश्माई सुर पकड़ने की क्षमता को जानते थे इसलिए वो तीन सप्तक पैमाने (थ्री ऑक्टेव स्केल) से भी परे जाकर जटिल धुन तैयार करते थे क्योंकि इस पर सिर्फ रफी ही गा सकते थे.” जयदेव ने आगे खुलासा किया कि

“दादा बर्मन, नौशाद, ओपी नैय्यर, रवि & शंकर जयकिशन सबने रफी को महिला हो या पुरुष सबमें सबसे ज्यादा उम्दा और काबिल प्लेबैक सिंगर माना. रफी की वर्सेलिटी, रेंज, आवाज की लचक और भावुकता अद्भुत थी और फिल्म इंडस्ट्री को इस बात के लिए नौशाद का कर्जदार होना चाहिए कि उन्होंने रफी जैसे महान गायक की सुर क्षमता को पहले ही समझ लिया.”

जयदेव इस बात में बहुत जोर से यकीन रखते थे कि “प्यासा, बैजू बावरा, हकीकत, गाइड, और हीर रांझा शायद वो असर नहीं छोड़ पाती अगर उनमें रफी की आवाज में गाने नहीं होते.”

रफी के समर्पण की सराहना करते हुए, जयदेव ने नौशाद को रफी की स्वर शक्ति को बढ़ाने और पार्श्व गायन की दुनिया में एक जबरदस्त संगीत निरंतरता की नींव रखने का श्रेय दिया.

वो शानदार जोड़ी जिसने हिंदी को बेस्ट प्लेबैक गाने दिए

मोहम्मद रफी ने अपनी गायकी से जादू बिखेरा, यह तो सालों पुराना सच है. चाहे वो प्रख्यात दिग्गजों के साथ काम करना रहा हो या कम प्रसिद्ध इकबाल कुरैशी और सरदार मलिक के साथ, रफी ने अपनी आत्मा को हर संगीत रचना के लिए समर्पित किया. पारिश्रमिक या व्यक्तिगत समीकरणों के बावजूद, रफी की कला के प्रति भक्ति ने कई शानदार सुरों को पैदा किया.

हालांकि विनम्र रफी हर संगीत निर्देशक को एक योग्य शिक्षक के तौर पर देखते थे, फिर भी, रफी का नौशाद की रचनाओं का  गायन एक शिष्य का "गुरु दक्षिणा" जैसा था. बहुत से लोग यह नहीं जानते हैं कि इस पवित्र रिश्ते ने पार्श्व गायन की कला को एक नया आयाम दिया.

यह आश्चर्य की बात नहीं है कि निपुण मन्ना डे ने रफी को "दुनिया का सबसे बेहतरीन पार्श्व गायक" बताया था. मन्ना डे बताते हैं कि “रफी सबके पसंदीदा थे, लेकिन नौशाद की धुनों की वजह से वो एक अलग ही स्तर पर पहुंचे.” मन्ना डे ने इसके लिए नौशाद का आभार और सम्मान जताया . डे का मानना था कि रफी के सुर को डिवाइन लेवल तक ले जाने में नौशाद की भी कड़ी मेहनत थी.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

आज एक ऐसे युग जब धड़ाधड़ संगीत तैयार होते हैं और जिनकी मेरिट सवालों के घेरे में रहते हैं, वैसे में कई लोगों के लिए नौशाद की प्रतिभा का मूल्यांकन करना या यह समझना कठिन है कि नौशाद ने छह दशकों की अवधि में लगभग सिर्फ एक हजार गाने क्यों बनाए! लेकिन अगर कला की अपनी कोई कहानी होती है और वो कुछ खुद बयां करती है तो यह  नौशाद की गहन मेहनत, और उनके शिल्प के प्रति समर्पण की गाथा ही है.

शायद इसलिए ही आज भी उनके गीतों को पसंद किया जाता है क्योंकि वो संगीत की संपूर्णता के लिए पूरी तरह समर्पित थे. यह एक ऐसा गुण था जो नौशाद ने अपने शिष्य को प्रदान किया, इस प्रकार, रफी को बेदाग सहजता के साथ मधुर गायन करने में मदद मिली.

मेंटर जब जिंदगी भर के लिए एक दूसरे के दोस्त बन गए

रफी-नौशाद की साझेदारी उस दिन शुरू हुई जब रफी नौशाद के पिता से एक सिफारिशी खत लेकर मिलने गए. उनके सरल व्यवहार से खुश होकर नौशाद ने फिल्म "पहले आप" के लिए रफी को अपने कोरस में जगह दी, लेकिन अपने असाधारण रूप से प्रतिभाशाली शिष्य के समर्पण और क्षमता को देखते हुए, वो उसे और मौका देने के लिए तैयार हो गए. चूंकि दोनों ही विनम्रता और शालीनता के प्रतीक थे और साथ ही उत्कृष्टता के लिए प्रतिबद्ध थे, दोनों ही जल्दी एक दूसरे के विश्वासपात्र बन गए. शानदार धुन बनाने के अलावा इनका और कोई धुन ही नहीं था.

जब आप सुनेंगे तो पाएंगे कि रफी-नौशाद के अधिकांश गीत शांति का गजब आनंद देते हैं. हालांकि रफी कभी-कभी दूसरे संगीतकारों की रिकॉर्डिंग में अपने काम और अभिव्यक्ति के लिए थोड़ी बहुत अपनी मर्जी की कर भी लेते थे लेकिन नौशाद के मामले में वो एक दम हिदायतों के पाबंद थे. अपने गुरु के आदेश के अनुसार प्रत्येक नोट को पूर्णता के साथ गाते थे.

उनके ब्लॉकबस्टर गाने, ओ दुनिया के रखवाले, मन तड़पत हरि दर्शन को आज, (दोनों ही बैजु बावरा से ) “ सुहानी रात ढल चुकी” (“दुलारी”), “ हुए हम जिनके लिए बर्बाद’ (“दीदार”), “ ओ दूर के मुसाफिर” (“उड़न खटोला ”) “ मधुवन में राधिका नाचे रे” (“कोहिनूर”) अपने समय के माइलस्टोन हैं. इसके लिए कई ऐसे गाने हैं जिनकी उतनी चर्चा नहीं होती लेकिन वो भी किसी हीरे से कम नहीं!

रफी-नौशाद की हर रचना में भारतीय परिवेश की एक अलग लय, रंग और अनुभूति है. ऐसा नहीं है कि अन्य संगीतकारों ने ऐसी झलक नहीं दी है, लेकिन उनकी रचनाओं ने पश्चिमी प्रभावों का ज्यादा जोर दिख जाता है जबकि नौशाद की धुनें भारतीय लोकाचार और परिवेश की ध्वनियों में डूबी हुई थीं. इसलिए “नैन लड़ जइहे” (गंगा जमुना), “नदिया में उठा है शोर  (“बाबुल”), “तेरी महफिल तेरा जलवा ” (सोहिनी माहीवाल”) और  “ऐ हुस्न जरा जाग” (“मेरे महबूब”) ने शास्त्रीय परंपराओं से समझौता किए बिना विविध शैलियों की हिट देने की जोड़ी की क्षमता को भी स्थापित किया.

आम आदमी की आवाज का प्रतिबिंब’

अमीन सयानी के मुताबिक, नौशाद "गिरते हुए बर्तनों की ध्वनि को भी ठीक से समझ सकते थे. " इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि "गाड़ी वाले गाड़ी धीरे हांक रे" या "दुख भरे दिन बीते रे भैया" (दोनों "मदर इंडिया") जैसे गीतों में ग्रामीण वाद्यों के उनके शानदार संयोजन के साथ-साथ कई ग्रामीण और लोक धुनों ने रफी को भारत में आम आदमी की आवाज बनने में मदद की.  

"संगीत के संतों" की यह साझेदारी रफी साहब के निधन के साथ ही समाप्त हो गई. यह सोचकर ही रूह कांप जाती है कि अगर वो उन्नत रिकॉर्डिंग मशीनें के दौर तक रह पाते तो वो क्या कुछ हासिल कर सकते थे. रफी साहब की याद में लिखे दोहों को याद करते हुए, नौशाद ने एक बार स्वीकार किया था कि "ओ दुनिया के रखवाले" को संगीतकारों और रफी साहब के लिए एक ही माइक्रोफोन के साथ रिकॉर्ड किया गया था.  

"कल्पना कीजिए कि जब उन्होंने सिंगल-ट्रैक रिकॉर्डिंग से ही इतना मंत्रमुग्ध कर दिया तो चार-ट्रैक ऑप्शन पर रफी ने क्या जादू बिखेरा होता." नौशाद ने बताया था कि सब उसकी प्रतिभा की दाद देते थे. रफी के ऑर्केस्ट्रा, संगीत नोटेशन और रिकॉर्डिंग सब फिल्म लोककथाओं का अब हिस्सा बन गई हैं.  

हालांकि, मेरे भीतर जो बात सबसे ज्यादा गूंजती है वो इस जोड़ी की दी हुई अलग अलग प्रार्थना गीत हैं. प्रार्थना गीत उनकी अमर विरासत है. जैसे अमर फिल्म का सिर्फ एक  प्रार्थना गीत "इंसाफ का मंदिर है ये" हमें यह विश्वास दिलाने के लिए काफी है कि भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को नष्ट करने के नापाक मंसूबे कभी कामयाब नहीं होंगे. रफी-नौशाद रचनाएं सभी नागरिकों के दिल और दिमाग में करुणा और विवेक को प्रेरित करने के लिए हैं. जब तक उनके गीत जीवित हैं और चल रहे हैं, एक बेहतर दुनिया की उम्मीद बची हुई है क्योंकि उनकी रचनाओं में लोगों को एकजुट करने की शक्ति है.  

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 26 Dec 2022,09:21 AM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT