Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Literature Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019‘तेरे दर पर सनम चले आए…’ हिंदी सिनेमा के लिए गाने लिखने वाला पाकिस्तानी शायर

‘तेरे दर पर सनम चले आए…’ हिंदी सिनेमा के लिए गाने लिखने वाला पाकिस्तानी शायर

Qateel Shifai पाकिस्तान के सबसे लोकप्रिय शायरों और गीतकारों में शामिल थे.

मोहम्मद साकिब मज़ीद
साहित्य
Published:
<div class="paragraphs"><p>‘Tere Dar Par Sanam…’ हिंदी सिनेमा के लिए गाने लिखने वाला पाकिस्तानी शायर-Alfaaz</p></div>
i

‘Tere Dar Par Sanam…’ हिंदी सिनेमा के लिए गाने लिखने वाला पाकिस्तानी शायर-Alfaaz

(फोटो- क्विंट हिंदी/दीक्षा मल्होत्रा)

advertisement

अपने होठों पर सजाना चाहता हूं

आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूं

थक गया मैं करते करते याद तुझ को  

अब तुझे मैं याद आना चाहता हूं

ये लाइनें एक ऐसे शायर की कलम से निकली हैं, जिनकी पैदाइश ब्रिटिश भारत (British Indian) में हुई और बंटवारे के बाद वो पाकिस्तान (Pakistan) के हिस्से आए. लेकिन कहते हैं कि मोहब्बत और तहजीब की कोई हद या सरहद नहीं होती. ऐसा ही कतील शिफाई (Qateel Shifai) साहब की गजलें और नज्में कभी भी दोनों मुल्कों की सरहदों में बंधकर नही रहीं.

उर्दू शायर (Urdu Poet) और गीतकार कतील शिफाई का रूमानी अंदाज लोगों को खूब भाया. उन्होंने कई पाकिस्तानी और हिंदुस्तानी फिल्मों के लिए गाने लिखे. जगजीत सिंह (Jagjit Singh) और चित्रा सिंह (Chitra Singh) जैसे हिंदुस्तानी गायकों ने उन्हें आवाज दी. उन्होंने महेश भट्ट (Mahesh Bhatt) की निर्देशित फिल्म ‘फिर तेरी कहानी याद आई’ के लिए एक गाना लिखा, जिसको आप जरूर गुनगुनाते होंगे.

तेरे दर पर सनम चले आए

तू ना आया तो हम चले आए

बिन तेरे कोई आस भी ना रही

इतने तरसे कि प्यास भी ना रही

लड़खड़ाए क़दम चले आए

तेरे दर पर सनम चले आए

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

कतील साहब की कई ऐसी रूमानी ग़ज़लें हैं, जिससे पता चलता है कि वो रातों को जग कर लिखा करते थे. माशूका के नाम उनके कुछ शेर यूं हैं...  

तुम आ सको तो शब को बढ़ा दूं कुछ और भी  

अपने कहे में सुब्ह का तारा है इन दिनों  

हमें भी नींद आ जाएगी हम भी सो ही जाएंगे  

अभी कुछ बे-क़रारी है सितारो तुम तो सो जाओ  

कतील शिफाई साहब पाकिस्तान के सबसे लोकप्रिय शायरों और गीतकारों में शामिल थे. उन्होंने एक गजल लिखी, जिसका उन्वान है ‘गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते है’.

उनकी ये ग़ज़ल इतनी मशहूर हुई कि एक-एक शेर लोगों की ज़ुबां पर चढ़ गए और इस ग़ज़ल से उनकी शोहरत में और बुलंदी आई. ग़ज़ल के शेर कुछ इस तरह हैं.........

गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं  

हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं  

शम्अ' जिस आग में जलती है नुमाइश के लिए  

हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं  

ख़ुद-नुमाई तो नहीं शेवा-ए-अरबाब-ए-वफ़ा  

जिन को जलना हो वो आराम से जल जाते हैं  

साल 1919 में 24 दिसंबर को ब्रिटिश भारत के खैबर पुखतुंखुवा में जन्मे कतील साहब ने जिंदगी के उस पहलू को भी अपने अश’आर का हिस्सा बनाया, जो शायद हर जिंदादिल इंसान को महसूस करना ही पड़ता है. वो लिखते हैं...  

जब भी चाहें एक नई सूरत बना लेते हैं लोग

एक चेहरे पर कई चेहरे सजा लेते हैं लोग

मिल भी लेते हैं गले से अपने मतलब के लिए

आ पड़े मुश्किल तो नज़रें भी चुरा लेते हैं लोग

कतील शिफाई साहब के नाम का भी एक अलग किस्सा है. ‘कतील’ उनका तखल्लुस था और ‘शिफाई’ लफ्ज उन्होंने अपने उस्ताद हकीम मुहम्मद शिफा के सम्मान में अपने नाम के साथ जोड़ रखा था.

कतील शिफाई आम लोगों की आवाज बने. उन्होंने उन लोगों के दर्द को भी अपनी लेखनी का हिस्सा बनाया, जिन्हें आज भी दो वक्त की रोटी के लिए हाथ फैलाना पड़ता है. वो अपने एक शेर के जरिए बेहद आसान ज़ुबान में लोगों से गुहार लगातें हैं......

मुफ़लिस के बदन को भी है चादर की ज़रूरत,  

अब खुल के मज़ारों पे ये ऐलान किया जाए.

मुश्किलों भरी रही जिंदगी

क़तील शिफाई की जिंदगी बेहद मुश्किलों भरी रही. कम उम्र में उनके वालिद के गुजर जाने के बाद तालीम में खलल पड़ा, जिसके बाद उन्हें काफी जद्दोजहद करनी पड़ी. वो लिखते हैं...

दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह

फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह

मैनें तुझसे चांद सितारे कब मांगे

रौशन दिल बेदार नज़र दे या अल्लाह

इतनी दुश्वारियों के बावजूद कतील शिफाई की जिंदादिली कम न हुई. वो लिखते हैं-

जब भी आता है मिरा नाम तिरे नाम के साथ  

जाने क्यूँ लोग मिरे नाम से जल जाते हैं  

यूं लगे दोस्त तिरा मुझ से ख़फ़ा हो जाना  

जिस तरह फूल से ख़ुशबू का जुदा हो जाना

कुछ कह रही हैं आप के सीने की धड़कनें  

मेरा नहीं तो दिल का कहा मान जाइए  

राब्ता लाख सही काफ़िला-सालार के साथ,

हमको चलना है मगर वक्त की रफ़्तार के साथ

11 जुलाई 2001 को कतील साहब के सासों की रफ्तार थम गई और उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया लेकिन उनके जाने के बाद भी उनकी गजलें और नज्में उनके होने की गवाही देती हैं.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT