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लाइट-कैमरा-एक्शन.. MP पेशाब कांड और पीड़ित के पांव पखारते शिवराज- ऐसे धुलेगा दाग?

MP Urination Case: मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की संवेदना और विनम्रता पर संदेह करना उचित नहीं होगा. लेकिन...

अरुण दीक्षित
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>MP पेशाब कांड और पीड़ित के पांव पखारते शिवराज</p></div>
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MP पेशाब कांड और पीड़ित के पांव पखारते शिवराज

(फोटो- Altered By Quint Hindi)

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MP Urination Case: फिल्म की शूटिंग के समय आमतौर पर डायरेक्टर बोलता है - लाइट..कैमरा.. एक्शन! मध्य प्रदेश में यहां बस यही नहीं कहा गया. बाकी सब कुछ स्क्रिप्ट के हिसाब से ही हुआ. चूंकि शो को तत्काल एयर किया गया, इसलिए सब ने देख भी लिया. बाकी काम चारणों ने किया.

मीडिया तत्काल स्तुतिगान में जुट गया. चैनलों पर दिखाने को तो बढ़िया विजुअल थे. लेकिन प्रिंट में भी इतना शानदार शब्द चित्रण किया गया कि पाठकों के दिल पिघल गए.

बात ही ऐसी ही थी. होना भी यही था. आप ठीक समझ रहे हैं. मैं बात कर रहा हूं मध्य प्रदेश के सीधी जिले के कुबरी गांव के दशमत कोल की. वही दशमत जो पिछले तीन दिन से दुनिया भर में मीडिया की सुर्खियों में बने हुए हैं. कल तक उनका वह वीडियो मीडिया में चल रहा था जिसमें एक युवा BJP नेता पूरी दबंगई के साथ उनके ऊपर आराम से पेशाब कर रहा है. बेचारा दशमत अपना बचाव करने की स्थिति में भी नहीं था. लेकिन गुरुवार को उसका जो वीडियो मीडिया को दिया गया उसमें वह मुख्यमंत्री निवास में एक शानदार कुर्सी पर बैठा हुआ है. राज्य के मुखिया शिवराज सिंह चौहान एक परात में उनके पांव रख कर उन्हें धीरे धीरे पखार रहे हैं! मुख्यमंत्री ने दशमत के पांव की धोवन को अपने ललाट से भी लगाया.

मुख्यमंत्री से अपने पांव पखरवाने के बाद दशमत को कैसा महसूस हुआ यह तो पता नहीं लेकिन मुख्यमंत्री ने जो कहा वह पढ़ लीजिए.

"दशमत के साथ जो हुआ उससे मेरा मन बहुत व्यथित है. मैं उसके लिए माफी मांगता हूं. जनता मेरे लिए भगवान है. दशमत आज से मेरे दोस्त हैं. वे मेरे सुदामा हैं. मुख्यमंत्री ने कैमरे के सामने दशमत से उनके कामकाज के बारे में पूछा. उनकी पत्नी से फोन पर बात भी की.

बाद में मुख्यमंत्री दशमत को उस पार्क में ले गए जहां वे रोज किसी न किसी के साथ एक पेड़ लगाते हैं. आज का पेड़ उन्होंने दशमत के साथ लगाया. उन्होंने पांव धोने से लेकर पेड़ लगाने की घटना तक को अपने ट्वीटर हैंडल से वीडियो के साथ ट्वीट भी किया.

मीडिया में स्तुतिगान

इसके बाद मीडिया में जो स्तुतिगान शुरू हुआ वह अगले कुछ दिन जारी रह सकता है. क्योंकि आज मीडिया तो चाभी वाले खिलौने की तरह बन गया है. जितनी चाभी भर जायेगी उतना चलेगा.

अब बात दशमत कोल की. सीधी की मंडी में हम्माली का काम करने वाले दशमत का एक वीडियो करीब 5 दिन पहले सोशल मीडिया में आया था. तीन दिन पहले वह सार्वजनिक हुआ. उस वीडियो में दशमत असहाय बैठा हुआ है. एक युवक मुंह में सिगरेट दबाए हुए उस पर पेशाब कर रहा है. बताया गया कि पेशाब करने वाला युवक स्थानीय बीजेपी विधायक का प्रतिनिधि रह चुका है. वह युवा मोर्चे में पदाधिकारी भी रहा है.

इसके बाद हंगामा मच गया. विपक्ष हमलावर हुआ और सरकार घिर गई. मुख्यमंत्री ने आनन फानन में ट्वीट किया कि आरोपी को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून/एनएसए में बंद करेंगे. उसके घर पर बुलडोजर चलाने का भी ऐलान हुआ. उधर विधायक ने सब तथ्यों को किनारे करते हुए कहा कि पेशाब करने वाला युवक उनका प्रतिनिधि नहीं है. हां वे उसे जानते हैं. बीजेपी ने भी बयान जारी कर दिया कि आरोपी उसका सदस्य नहीं है. यह अलग बात है कि मीडिया में सबूत तैर रहे थे.

इस बीच दशमत का एक हलफनामा भी मीडिया तक पहुंचाया गया, जिसमें कहा गया था कि आरोपी से उसका कोई लेना देना नहीं है. साथ ही यह भी कहा गया कि वीडियो काफी पुराना है.

लेकिन तब तक पूरी दुनियां में दशमत का वीडियो पहुंच चुका था. इसी वजह से सरकार ने आरोपी को न केवल गिरफ्तार कराया बल्कि उसके घर का कुछ हिस्सा भी गिरवा दिया.

यह सब करने के बाद गुरुवार को मुख्यमंत्री ने दशमत को भोपाल अपने सरकारी निवास पर बुला कर कैमरे के सामने उसके पांव धोए. पांव की धोवन को माथे से लगाया. फिर साथ बैठाकर खाना भी खाया. बाद में पेड़ भी साथ में लगाया. सब कुछ कैमरे के सामने हुआ.

एक ओर इस मामले को कृष्ण और सुदामा से जोड़ने वाले मुख्यमंत्री चर्चा में हैं तो दूसरी तरफ यह सवाल भी तैर रहा है कि क्या वे सचमुच व्यथित हैं और इसी ग्लानि में उन्होंने अपनी ही पार्टी के एक कार्यकर्ता द्वारा मूत्र से नहलाए गए दशमत के पांव पखेरे हैं! या फिर चार महीने बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटरों के छिटकने के डर ने यह सब कराया है ?

मुख्यमंत्री की संवेदना और विनम्रता पर संदेह करना उचित नहीं होगा! क्योंकि पिछले 17 सालों में उन्होंने प्रदेश में जो कुछ किया है उसकी मिसाल दी जाती रही है. लेकिन यह भी संयोग है कि इन 17 सालों में प्रदेश में वह सब भी हुआ है जिसकी मिसाल पहले कभी देखने को नहीं मिली थी.

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चुनाव और आदिवासी आंकड़ें

एक नजर राज्य से जुड़े आदिवासी आंकड़ों पर डालते हैं. एमपी में करीब डेढ़ करोड़ आदिवासी हैं. विधानसभा की 230 सीटों में से 47 उनके लिए रिजर्व हैं. लोकसभा की 29 में से 6 सीटें भी आदिवासियों के लिए हैं. राज्य में आदिवासी वोटर करीब 90 सीटों पर निर्णायक स्थिति में हैं.

यही वजह है कि बीजेपी पिछले कई महीनों से आदिवासियों को रिझाने की मुहिम चला रही है. खुद प्रधानमंत्री मध्यप्रदेश के कई दौरे कर चुके हैं. राज्य सरकार ने राज्य 89 ब्लॉक में पेसा कानून लागू किया है.

आदिवासियों के जननायक बिरसा मुंडा और टंट्या भील को लेकर बड़ी बड़ी घोषणाएं की गई हैं. पीएम मोदी 1 जुलाई को शहडोल के दौरे पर आए थे. हालांकि उनके दौरे की घोषित वजह आदिवासियों के स्वास्थ्य की चिंता बताई गई थी. लेकिन वास्तव में वे आदिवासियों को बीजेपी से जोड़े रखने की मुहिम के तहत ही आए थे. आगे भी इसी उद्देश्य से उनके दौरे होंगे.

जो दशमत कोल आज दुनिया भर में चर्चा में है, उसके कोल समुदाय को बीजेपी से जोड़ने के लिए भी बीजेपी की डबल इंजन वाली सरकार लगी हुई है. करीब 4 महीने पहले शबरी जयंती के मौके पर राज्य सरकार ने कोल महाकुंभ का आयोजन किया था. उस महाकुंभ में गृहमंत्री अमित शाह आए थे. उन्होंने मंच से कोल समुदाय को यह बताया था कि उनकी पार्टी ने एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बनाया है. उनसे बड़ा आदिवासी हितैषी कोई और नहीं है.

डबल इंजन की सरकार की कई योजनाएं आदिवासियों के लिए चल रही हैं. लेकिन एक सच यह भी है कि आदिवासियों पर अत्याचार में मध्यप्रदेश देश में सबसे आगे है. यह बात भी सरकारी आंकड़े ही बताते हैं.

एक तथ्य और. 2018 के चुनाव में बीजेपी शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में चुनाव लड़ी थी. तब उसकी हार हो गई थी. आंकड़ों से यह भी प्रमाणित हुआ था कि आदिवासी इलाकों में उसे पर्याप्त समर्थन नहीं मिला था. हालांकि बाद में लोकसभा में बीजेपी 29 में से 28 सीटें जीती. लेकिन विधानसभा की हार वह पचा नहीं पाई थी. सवा साल बाद ही कांग्रेस में हुए कथित विद्रोह की वजह से उसने फिर सरकार बना ली. शिवराज सिंह को ही इस सरकार की कमान दी गई. हालांकि कांग्रेस आज भी कहती है कि उसके विधायकों को खरीद कर बीजेपी ने सरकार बनाई थी.

शिवराज सिंह सीएम की कुर्सी पर करीब 17 साल पूरे कर चुके हैं. कई रिकॉर्ड उनके नाम दर्ज हो गए हैं. इन रिकॉर्ड में व्यापम और खनन जैसे बड़े घोटाले भी शामिल हैं. कांग्रेस घोटालों की एक लंबी फेहरिस्त लेकर घूम रही है. जमीनी खबरें भी अच्छी नहीं हैं. इस वजह से बीजेपी पूरी ताकत झोंक रही है. खाली खजाने को कर्ज लेकर भर रही और दोनों हाथ लुटा रही है.

पेशाब कांड शिवराज सरकार के लिए बड़ा झटका

ऐसे में दशमत कोल के साथ हुई इस घटना के सामने आने के बाद उसे बड़ा झटका लगा है. दशमत का वीडियो दुनिया में घूमता हुआ आदिवासियों के मजरों और टोलों तक पहुंच गया है. पहले से ही आदिवासियों पर अत्याचार के मामले में कटघरे में चल रहे शिवराज के लिए यह बहुत बड़ा झटका है.

सरकार की छवि ठीक करने के साथ साथ अब आदिवासी वोटरों को साधना उनके लिए बड़ी चुनौती है. इसी का सामना करने के लिए उन्होंने दशमत को घर बुलाकर उसके पांव पखारे हैं. धोवन को माथे से लगाया है. साथ ही पूरी दुनिया को दिखाया है. जिस पानी को वे माथे से लगा रहे थे, उसमें वे आदिवासी मतदाताओं की छवि देख रहे होंगे.

सीधी और दशमत के वीडियो को लेकर दो बातें और. वीडियो सामने आने के बाद यह कहा गया कि यह डेढ़ साल पुराना है. सवाल यह है कि क्या सरकार का सूचना तंत्र इतना कमजोर है कि एक आदिवासी के साथ हुई वीभत्स घटना की खबर उस तक नहीं पहुंची? अगर ऐसा है तो फिर सरकार के होने पर ही सवालिया निशान लग जाता है.

दूसरी बात यह की विंध्य क्षेत्र में इस तरह की घटनाएं रोज होती हैं. आदिवासी अक्सर अत्याचार के शिकार होते रहते हैं. इस इलाके में बैगा,कोल और गोंड आदिवासी रहते हैं. बैगा ज्यादातर जंगलों में हैं. जबकि कोल गांवों के आसपास बसे हुए हैं. वे ज्यादातर खेती करते हैं. गोंड आदिवासी इन दोनों से आगे हैं. उनकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत है.

इस इलाके के लोग क्रांतिकारी बंता बैगा के किस्से आज भी सुनाते हैं. 1967 के अकाल के समय बंता बैगा में कुठली फोड़ आंदोलन चला कर जमीदारों के घरों का अनाज गरीबों में बांट दिया था. बंता बैगा का गांव दशमत कोल के गांव से ज्यादा दूर नहीं है.

दशमत पर मूत्र स्नान का वीडियो पूरे एमपी में घूम रहा है. इससे उपज रहे आक्रोश की भनक मुख्यमंत्री को है. इसीलिए उन्होंने कैमरे पर दशमत को अपना सखा सुदामा बनाया है. लेकिन उनकी यह कोशिश वास्तव में फलदाई साबित होगी इसमें संदेह है. पांव धोने से सरकार के माथे पर लगा कलंक धुलता नजर नहीं आ रहा है.

बीजेपी का एक कमजोर पक्ष यह भी है कि आज एमपी में उसके पास एक सर्वमान्य आदिवासी नेता नहीं है. राज्य के आदिवासी भी यह जानते हैं. अब उनकी जागरूकता का डर भी बीजेपी को परेशान कर रहा है. देखना यह होगा कि अगले चार महीने में बीजेपी क्या क्या करती है. अभी तो उसे दशमत के पांवों में भगवान दिखाई दे रहे हैं.

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