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नागालैंड डॉग मीट बैन: ‘वो’ Vs ‘हम’ की मानसिकता को मिल सकती है हवा

कुत्ते के मीट पर प्रतिबंध लागू कैसे होगा?

जयंत कालिता
नजरिया
Published:
कुत्ते के मीट पर प्रतिबंध लागू कैसे होगा?
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कुत्ते के मीट पर प्रतिबंध लागू कैसे होगा?
(फोटो: iStock/Altered by quint)

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नागालैंड सरकार ने कुत्तों का आयत और कुत्तों के मीट की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है. सरकार ने ये फैसला एनिमल राइट्स एक्टिविस्टों की आपत्ति के बाद उठाया है. कुत्ते का मीट नागालैंड, मणिपुर और मिजोरम के कई हिस्सों में खाया जाता है.

'लिबरल' लोगों के एक धड़े ने ट्विटर पर नागालैंड सरकार के इस कदम की सराहना की. लेकिन पूरे विवाद में जिस सवाल को नहीं उठाया गया, वो था खाना चुनने की आजादी.

महाराष्ट्र में बीफ बैन पर मुंबई के एक वकील हरेश जगतियानी ने लिखा था, "खाना चुनने का अधिकार, निजता के अधिकार का एक पहलू है, जो कि जीने के अधिकार का हिस्सा है."

'वो' बनाम 'हम' की डिबेट

परेशान करने वाली बात ये है कि मेनलैंड इंडिया के तथाकथित लिबरल नॉर्थईस्ट के मामले में कंजर्वेटिव रवैया अपनाते हैं. नॉर्थईस्ट देश का सबसे ज्यादा एथनिक रूप से विविध क्षेत्रों में से एक है.

और ये रवैया मुख्य तौर पर उनके इस क्षेत्र की जटिलताओं को न समझने की वजह से पैदा होता है. ये जटिलताएं इस क्षेत्र के इतिहास, भूगोल, खाने के तरीकों, सांस्कृतिक प्रथाओं, प्रथा और रिवाजों की वजह से है.  

ये उस समय भी साफ हुआ था जब कई लिबरल लोगों ने असम में NRC के मुद्दे को CAA से जोड़ दिया था. NRC/CAA की पूरी बहस में असम के लोगों और पूरे नॉर्थईस्ट को गलत तरीके से देखा गया और ये सब कुछ एक गलत कैंपेन की वजह से हुआ.

कुत्ते के मीट के मामले में भी यही ट्रेंड देखने को मिल रहा है, जहां लिबरल लोगों का एक सेक्शन सांस्कृतिक खाने के तरीके पर बैन चाहता है क्योंकि उसे आपत्ति है. ये एक गलत ट्रेंड है और इसकी वजह से 'वो' बनाम 'हम' की मानसिकता पनप सकती है और समुदायों के बीच तनाव हो सकता है.

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कुत्ते के मीट पर प्रतिबंध लागू कैसे होगा?

नागालैंड में कुत्ते के मीट पर बैन की मांग करने वालों में दिल्ली स्थित नॉन-प्रॉफिट संगठन Federation of Indian Animal Protection Organisations (FIAPO) भी शामिल है.

जो इस प्रतिबंध को समर्थन दे रहे हैं, शायद उनमें से कई लोगों को ये नहीं पता कि संविधान के अनुच्छेद 371 (A) के तहत ‘नागा लोगों के धार्मिक और सामाजिक प्रथाओं’, ‘नागा लोगों के रिवाजों कानून और प्रक्रिया’, जैसे कई मामलों में नागालैंड को भारतीय कानूनों से छूट मिली हुई है. राज्य की विधानसभा के पास इसमें बदलाव करने की ताकत है लेकिन इस तरह के किसी भी बैन को पास करने में दिक्कत आएगी.  

जाहिर तौर पर नागालैंड के स्थानीय समुदाय नाराज हैं, जो इस प्रतिबंध को उनके खाने के तरीकों में दखलंदाजी के तौर पर देखते हैं. नागालैंड की सबसे बड़ी ट्राइबल बॉडी नागा होहो के पूर्व अध्यक्ष चुबा ओजुकुम ने एक अखबार से कहा, "जहां एक समुदाय के खाने के तरीकों की बात हो, ऐसा नियम लागू करना ठीक नहीं."

सवाल ये है कि सरकार इसे लागू किस तरह करने की सोच रही है क्योंकि जो लोग कुत्ते का मीट खाते हैं वो ऐसा हजारों सालों से कर रहे हैं और जरूरी नहीं कि वो ये नियम मान ही लें.
चुबा ओजुकुम

नागालैंड सरकार ने जो किया है वो एक तरह से बिना सोचे लिया हुआ फैसला है, क्योंकि कोई कानून नहीं है जो कुत्ते के मीट को खाने पर प्रतिबंध लगाता हो.

कुत्ते के मीट से ज्यादा ये विवाद नॉर्थईस्ट भारत के बारे में

आजादी के 73 साल बाद भी मुख्यधारा की सोच नॉर्थईस्ट भारत के बारे में 'अनोखी धरती' और 'अजीब खाने के तरीकों' जैसी धारणाओं से तय होती है. इसके लिए बॉलीवुड फिल्में और दूसरे तरह के मास मीडिया के सूत्र जिम्मेदार हैं, जिन्होंने इस क्षेत्र की छवि बिगाड़ी है.

इस वजह से नॉर्थईस्ट और बाकी के भारत के बीच कम्युनिकेशन गैप है. मीडिया में भी नॉर्थईस्ट से ज्यादा कश्मीर को अटेंशन मिलता है, जबकि दोनों जगहों की दिक्कतें (मिलिटेंसी और विकास का न होना) लगभग एक जैसी हैं.  

इसका उदाहरण ये है कि नॉर्थईस्ट के बाहर कुछ ही लोगों ने इंटरनेट पर बाढ़ प्रभावित असम के बारे में कुछ लिखा था, न ही इन लोगों को AFSPA बढ़ जाने से कोई चिंता होती है.

(जयंत कालिता वरिष्ठ पत्रकार हैं और दिल्ली स्थित लेखक हैं. वो नॉर्थईस्ट के मुद्दों पर लिखते हैं. ये एक ओपिनियन आर्टिकल है और इसमें व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. क्विंट हिंदी न उनका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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