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चुनाव से पहले गरीबी के आंकड़े और नीति आयोग का मोदी सरकार को 'मदद का हाथ'

ये जो इंडिया है ना, यहां सिर्फ एक महीने में गरीबी 11 प्रतिशत से गिरकर पांच प्रतिशत हो गई

रोहित खन्ना
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>चुनाव से पहले गरीबी के आंकड़े और नीति आयोग का मोदी सरकार को 'मदद का हाथ'</p></div>
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चुनाव से पहले गरीबी के आंकड़े और नीति आयोग का मोदी सरकार को 'मदद का हाथ'

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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"ये जो इंडिया है ना", यहां सिर्फ एक महीने में गरीबी 11 फीसदी से गिरकर पांच फीसदी हो गई!

क्या यह कोई चमत्कार हो सकता है? नहीं.

क्या यह संभव भी है? नहीं.

तो, क्या यह सच है? बिल्कुल नहीं.

जनवरी 2024 में, नीति आयोग के एक चर्चा पत्र में स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर जैसे कई मापदंडों पर विचार करते हुए भारत में 'बहु-आयामी गरीबी' को 11.3 प्रतिशत रखा गया था. 'सरकार समर्थित' मीडिया द्वारा इसे विधिवत प्रचारित किया गया कि पिछले 10 साल में 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया है, और गरीबी 2013-14 में 29 प्रतिशत से गिरकर 2022-23 में 11.28 प्रतिशत हो गई है.

लेकिन इससे भी अधिक चौंकाने वाले दावे आने वाले थे.

एक महीने बाद, नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने दावा किया कि गरीबी वास्तव में और कम हो गई है और केवल पांच प्रतिशत पर है. उनका दावा 2022-23 में आयोजित और हाल ही में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) द्वारा प्रकाशित घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) को पढ़ने पर आधारित था

लेकिन आइए इस दावे को समझते हैं. HCES भारत के सबसे गरीब पांच प्रतिशत की आय प्रतिदिन 46 रुपये, सबसे गरीब 10 प्रतिशत की आय 59 रुपये प्रतिदिन और सबसे गरीब 20 प्रतिशत की आय 70 रुपये प्रतिदिन रखता है.

मोदी सरकार की 'मजबूरी'

आज, आलू 14 रुपये किलो, प्याज 40 रुपये किलो, दूध 30 रुपये आधा लीटर, जिसमें केवल नमक, आटा (गेहूं का आटा), चावल और खाना पकाने की तेल- जो कि आवश्यक चीजें हैं, इसकी कीमतें मिला लें को क्या हम सचमुच मानते हैं कि प्रतिदिन 70 रुपये कमाने वाला कोई व्यक्ति इतना भी खर्च कर सकता है?

नहीं, उस स्थिति में, क्या ऐसा व्यक्ति अत्यधिक गरीब नहीं है?

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तो, नीति आयोग गरीबी का कौन सा पैमाना इस्तेमाल कर रहा है? या क्या सीईओ 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने राजनीतिक आकाओं को अच्छा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं? शायद. लेकिन, क्या यही उसका काम है? नहीं, वास्तव में, काम वर्तमान के बारे में एक ईमानदार दर्पण रखना है और उसका उपयोग भविष्य की योजना बनाने में करना है. इसलिए इसके पिछले अवतार का नाम - 'योजना' आयोग रखा गया.

आज सरकार 81 करोड़ से ज्यादा लोगों को हर महीने पांच किलो मुफ्त अनाज देती है. यह भारत की जनसंख्या का 57 प्रतिशत है. और इसे पांच साल के लिए बढ़ाना बीजेपी के सबसे बड़े चुनावी वादों में से एक है. इसे जनता के लिए मीडिया ब्लिट्ज में 'मोदी सरकार की गारंटी' के रूप में पैक किया जा रहा है.

यह कहना सच्चाई के करीब हो सकता है कि यह वास्तव में एक मजबूरी है. यह भारत की वास्तविक भूख और गरीबी के स्तर की एक शांत स्वीकृति है.

गरीबी एक बड़ी चुनौती है, जिसे कम करने में कई साल लगेंगे. सरकार गरीबी की मार के खिलाफ अपनी छोटी लेकिन कड़ी मेहनत से हासिल की गई वार्षिक सफलताओं का दावा कर सकती है. इसके बजाय, वह आंकड़ों का सहारा लेकर यह दावा करने पर आमादा है कि गरीबी से पूरी तरह निपटा जा चुका है.

हम यह दिखावा करके कि गरीबी खत्म हो गई है, अपने सबसे गरीब साथी नागरिकों का अनादर करते हैं

क्या आपको ये तस्वीरें याद हैं? जब डोनाल्ड ट्रंप ने 2020 में अहमदाबाद का दौरा किया तो भारत की गरीबी को 'छिपाने' के लिए दीवारें बनाई गईं. इससे पहले भी, हमारे शहरी गरीबों को 'छिपाने' के लिए हरी स्क्रीनें लगाई गई थीं, जब 2017 में जापानी पीएम शिंजो आबे ने अहमदाबाद का दौरा किया था. वहीं, सितंबर 2023 में जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान दिल्ली की झुग्गियों को छुपाने के लिए हरी स्क्रीन फिर से सामने आईं.

हमारी वास्तविकता से इनकार नीति आयोग के गरीबी दूर करने के अनाड़ी दावों में एक बार फिर सामने आ रहा है.

इसके बजाय, आइए नीति आयोग से पूछें - भारत में 5 वर्ष से कम उम्र के 67 प्रतिशत बच्चे और 15 से 50 साल की आयु के बीच की 57 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से पीड़ित क्यों हैं? उत्तर है गरीबी. 15.4 करोड़ श्रमिक, यानी भारत की 11 प्रतिशत आबादी, आज भी मनरेगा योजना के तहत पंजीकृत क्यों हैं? जवाब है गरीबी.

श्रम अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा, सुब्रमण्यम के पांच प्रतिशत दावे पर सवाल उठाते हुए बताते हैं कि 2019 के बाद से छह करोड़ लोग गैर-कृषि क्षेत्र से वापस कृषि क्षेत्र में चले गए हैं. पांच करोड़ लोग अवैतनिक पारिवारिक श्रम में लौट आए हैं. मुख्यतः क्योंकि 2016 के बाद से विनिर्माण नौकरियों में गिरावट आई है. यह सब मजदूरी में गिरावट का कारण बनता है, जो फिर से गरीबी का कारण बनता है.

तो क्या ये सभी आंकड़े बताते हैं कि भारत में गरीबी पांच प्रतिशत है? पक्का नहीं.

हम यह कैसे दिखावा कर सकते हैं कि गरीबी गायब हो गई है क्योंकि चुनाव जीतना है? हम अपने सबसे गरीब साथी नागरिकों का यह दिखावा करके उनका अनादर कैसे कर सकते हैं कि उनका कोई अस्तित्व ही नहीं है?

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