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बिहार (Bihar) के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की तथाकथित अविश्वसनीयता और झुकाव के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है, लेखक के पास इसमें कुछ जोड़ने के लिए नहीं है. 2013 से वह राजनीतिक गुलाटी (Political Cartwheels) मार रहे हैं और कौन जानता है कि हमारे जैसे नश्वर लोगों को इसका दोबारा गवाह बनने का सौभाग्य मिलेगा.
इस बारे में भी बहुत कुछ लिखा जा चुका है कि वीकेंड पर नीतीश के ताजा यू-टर्न ने कैसे 'INDIA' गठबंधन को विनाशकारी झटका दिया है. सच कहूं तो, जून 2023 और सितंबर 2023 के बीच एक टिप्पणीकार के रूप में कुछ उत्साह के बाद, लेखक ने 2024 के लोकसभा युद्ध के लिए विपक्षी गठबंधन की संभावनाओं को तब छोड़ दिया था जब बीजेपी ने तीन प्रमुख राज्यों - छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, और राजस्थान के चुनावों में कांग्रेस को हराया था.
नरेंद्र मोदी को लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करने से रोकने के लिए INDIA गठबंधन के पास एकमात्र तरीका यह था कि कांग्रेस 2019 के चुनावों की तुलना में लगभग 200 सीटों पर बेहतर प्रदर्शन करे, जहां उसका बीजेपी के साथ मुकाबला है.
लेखकर 2022 से जिस बात को लेकर बहस करता रहा है, उस पर प्रकाश डालना चाहता है. भारत की राजनीतिक अर्थव्यवस्था का एक दिलचस्प पहलू जिसे बेहतर जानकार विश्लेषकों और पंडितों ने भी अजीब तरह से नजरअंदाज कर दिया है, वह यह है कि एक नेता किसी राज्य के भाग्य को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
मेरी किताब में एक 'अच्छा' राजनीतिक नेता नाटकीय होकर भी वास्तव में नागरिकों के जीवन स्तर और आय को ऐसे तरीके से सुधारता है जो स्थिर रहता है. इसके विपरीत, मेरी किताब में एक 'बुरा' नेता ऐसा करने में विफल रहता है. चूंकि अभी सुर्खियों के केंद्र में नीतीश कुमार हैं, तो आइए हम सुशासन बाबू और दो अन्य मुख्यमंत्रियों के प्रदर्शन पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिनका दो पड़ोसी राज्यों- पश्चिम बंगाल और ओडिशा में शासन है. यहां हम नीतीश कुमार, नवीन पटनायक और ममता बनर्जी के ट्रैक रिकॉर्ड की तुलना की बात कर रहे हैं.
वैचारिक रूप से बीजेपी से अलग होने के बावजूद, नीतीश कुमार की समता पार्टी और नवीन पटनायक की BJD, 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पहली बहुमत सरकार बनने के बाद NDA की सहयोगी बनी. कांग्रेस से अलग होकर क्षेत्रीय पार्टी बनाने की प्रक्रिया पूरी होने के कुछ समय बाद ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी भी साथ आई. तीनों को वाजपेयी कैबिनेट में अपेक्षाकृत महत्वपूर्ण विभाग दिए गए थे.
इन तीनों में से, नीतीश कुमार और ममता बनर्जी पहले ही बड़ी लड़ाई लड़कर वहां पहुंचे थे. आपातकाल के दौरान जय प्रकाश नारायण का समर्थन करने पर नीतीश कुमार जेल गये थे. आपातकाल के बाद, कोलकाता में नारायण को जब एक कार से ले जाया जा रहा था तो एक युवा कांग्रेस नेता के रूप में ममता विरोध प्रदर्शन कर रहीं थी और कार की बोनेट पर चढ़ गई थीं.
उन उथल-पुथल भरे दिनों में नवीन पटनायक क्या कर रहे थे? वो लुटियंस दिल्ली में एक सोशलिस्ट की जिंदगी जी रहे थे और महारानी गायत्री देवी और मिक जैगर जैसे लोगों के साथ पार्टी कर रहे थे. इन तीनों में से, नीतीश और ममता को ग्रासरूट पॉलिटिक्स का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है, जबकि नवीन को यह कहते हुए खारिज कर दिया जाता है कि वो गलती से राजनीति में आ गए.
अब तीनों को देखिए.
नवीन 2000 से, नीतीश 2005 से और ममता 2011 से मुख्यमंत्री हैं. तीनों अपने राज्यों में 'कद्दावर' नेता माने जाते हैं. लेकिन उन्होंने सामाजिक और भौतिक बुनियादी ढांचे, आय और जीवन स्तर के संदर्भ में नागरिकों को क्या दिया? इन मापदंडों के आधार पर, नीतीश कुमार पूरी तरह विफल हैं, ममता ने जितना करना चाहिए था उससे कहीं अधिक खराब काम किया है, जबकि नवीन को जबरदस्त सफलता मिली है.
नीतीश कुमार की असफलता को दर्शाने के लिए लेखक तीन डेटा प्वाइंट्स की बात कर रहे हैं. सदी की शुरुआत में बिहार की प्रति व्यक्ति आय ओडिशा की तुलना में थोड़ी कम थी, जबकि गरीबी अनुपात के मामले में दोनों के बीच कड़ा मुकाबला था. पश्चिम बंगाल दोनों से कहीं आगे था. 2024 में, ओडिशा की प्रति व्यक्ति आय पश्चिम बंगाल की तुलना में लगभग 20 प्रतिशत अधिक और नीतीश के नेतृत्व वाले बिहार की तुलना में तीन गुना अधिक होगी.
नीति आयोग की बहुआयामी गरीबी रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में गरीबी का अनुपात भारत में सबसे अधिक है. ओडिशा और पश्चिम बंगाल, दोनों मीलों आगे हैं और पश्चिम बंगाल थोड़ा बेहतर प्रदर्शन कर रहा है. लेकिन अगर औद्योगिकीकरण की विरासत वाले ग्रेटर कोलकाता को समीकरण से बाहर कर दिया जाए, तो ओडिशा ने बेहतर प्रदर्शन किया है. तीसरा और अंतिम डेटा प्वाइंट देखते है. दिसंबर 2023 में ओडिशा का प्रति व्यक्ति जीएसटी संग्रह पश्चिम बंगाल से दोगुना और बिहार से लगभग दस गुना था.
मेरे अनुसार, नीतीश कुमार की सबसे बड़ी विफलता (मुख्यमंत्री के रूप में उनके अंतिम कार्यकाल में) उनका बार-बार पलट जाना नहीं है; यह बिहार को गरीबी के अपमानजनक दलदल से निकालने में उनकी असमर्थता है. यह ममता दीदी के लिए भी एक चेतावनी होनी चाहिए.
चुनावी गणित को देखते हुए, वह 2026 में फिर से राज्य में जीत हासिल कर सकती हैं और कम से कम 2031 तक शासन कर सकती हैं. लेकिन उनकी विरासत क्या होगी?
(सुतानु गुरु सीवोटर फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)
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