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(पीएम की नोटबंदी को लोगों ने खूब सराहा है. इस पर उत्तरप्रदेश और अन्य राज्यों के चुनाव परिणामों से भी मुहर लग चुकी है. क्विंट के संपादकीय निदेशक संजय पुगलिया ने ये लेख 4 दिसंबर 2016 को लिखा था. यह लेख हाल में बेहद प्रासंगिक लगता है इसलिए हम इसे दोबारा छाप रहे हैं.)
किसी एक्शन फिल्म की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंटरवल से ऐन पहले स्क्रिप्ट में एक ट्विस्ट डाल दिया है. नोटबंदी का ऐलान कर वो ब्लैकमनी के दानव को लात-घूंसा से मारते दिखना चाहते हैं. यह सलीम-जावेद की स्क्रिप्ट जैसी सॉलिड लग रही है, लेकिन इसकी पैकेजिंग बिल्कुल अलग स्केल पर की गई है. दरअसल मोदी खुद को गरीबों के मसीहा की तरह पेश कर रहे हैं और इस मैसेज को लोगों तक पहुंचाने के लिए यह तरीका आजमाया गया है.
नोटबंदी मामले में अचानक आए इस ट्विस्ट को समझने के लिए लोग अपना सिर धुन रहे हैं, लेकिन मोदी को कम से कम राजनीतिक तौर पर इसका फायदा मिलता हुआ दिख रहा है. महाराष्ट्र और गुजरात में लोकल बॉडी इलेक्शन से तो यही संकेत मिलते हैं. वह भी तब, जब कहानी के प्लॉट में इस बदलाव से करोड़ों लोगों को बहुत तकलीफ हो रही है.
मोदी 30 महीने से सरकार चला रहे हैं. नोटबंदी से वह अमीर और भ्रष्ट लोगों को लाइन पर लाने का मैसेज दे रहे हैं, जो अभी तक सुधरे नहीं हैं. इसलिए गरीबों के सेनापति बनकर मोदी ने इन ‘लुटेरों’ के खिलाफ युद्ध छेड़ा है. आई बात समझ में?
देश में चुनावी लड़ाई का नतीजा तीन चीजों से तय होता है. इसमें से एक धर्म है. हालांकि इसकी अपील सीजनल यानी मौसमी होती है. मोदी ने बड़ी चालाकी से इसे राष्ट्रवाद और देशभक्ति से बदल डाला है. यह नेशनलिज्म एक्सक्लूसिव है. यह सबके लिए नहीं है और यहीं से यह धार्मिक एजेंडा को आगे बढ़ाता है.
चुनावी दंगल का एक और हथियार जाति है, जो शायद सबसे असरदार है. मोदी की पार्टी की ओबीसी और दलितों के बीच कम अपील है. रोहित वेमुला जैसे मामलों के चलते दलितों का एक वर्ग शायद उनसे दूर हो गया है. राजनीति नंबर गेम है और देश में दलितों की बड़ी आबादी है. इसकी काट कैसे निकाली जाए? इसलिए मोदी अमीर विरोधी और गरीब समर्थक इमेज गढ़ रहे हैं. गरीब-अमीर की इस लड़ाई में सेक्युलर, नॉन-सेक्युलर का लफड़ा भी नहीं है. मोदी के नोटबंदी प्रोजेक्ट का मर्म यही है.
बीजेपी नेताओं को लगता है कि लोगों के साथ हुए अन्याय की बात करने से राजनीति में फायदा होता है. तुर्की, ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका में इस मूड को देखने के बाद उन्हें देश में इसका मौका दिख रहा है.
लोग नोटबंदी को अच्छी स्कीम बता रहे हैं, शिकायत इसे लागू करने के तरीके को लेकर है. कई लोगों का यह भी कहना है कि मोदी की यह स्कीम एक गलती है, जिसकी इकोनॉमी को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. उनका कहना है कि इससे कालेधन का बनना नहीं रुकेगा और निचले स्तर पर करप्शन और बढ़ सकता है.
मोदी की नजर हर फीडबैक पर है. इसलिए स्कीम की शर्तों में बार-बार बदलाव हो रहे हैं. नोटबंदी के संभावित नुकसान की काट के लिए शायद वह 10 कदमों की प्लानिंग कर चुके होंगे, जिसकी अब उनसे उम्मीद करनी चाहिएः
ऐसी स्कीम के लिए फंड जुटाना आसान नहीं होगा, इसलिए नोटबंदी का मोदी ऐसा रिजल्ट चाहते हैं, जिससे वह कह सकें- हमारे पास 3 लाख करोड़ रुपये आए हैं, जिनसे लोन बांटा जाएगा. इससे बैंकों की फंडिंग की जा सकती है, सिस्टम में कैश पहले ही काफी बढ़ गया है. इससे लोन सस्ता होगा. नोटबंदी से जो कालाधन खत्म होगा, उसके एक हिस्से को बांटा जा सकता है, तो बाकी पैसों का इस्तेमाल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में हो सकता है.
मोदी इनकम डिस्क्लोजर स्कीम और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के कुछ दूसरे एक्शंस से एक लाख करोड़ के कालेधन की वसूली का भी दावा कर सकते हैं. वह कह सकते हैं कि यह तो बस शुरुआत है और कालेधन और करप्शन के खिलाफ उनका संघर्ष आखिरी सांस तक जारी रहेगा.
इससे बीजेपी के ट्रेडिशनल वोटर, ट्रेडर और मिडिल क्लास कुछ समय तक नाराज रह सकता है. मोदी भी यह बात जानते हैं. इसलिए इन लोगों कुछ टैक्स रिलीफ दी जा सकती है.
मोदी यह मैसेज देने में सफल रहे हैं कि उनका राज-काज बढ़िया चल रहा है. जनधन, स्वच्छ भारत, डिजिटल इंडिया जैसी फ्लैगशिप स्कीम से लेकर उज्ज्वला, जीएसटी, बैंकरप्सी कोड, बेनामी प्रॉपर्टी एक्ट तक, उन्होंने दिखा दिया है कि कंट्रोल उनके हाथों में है. पाकिस्तान के खिलाफ सरकार के सख्त रुख से भी लोग खुश हैं.
नोटबंदी से पहले इकोनॉमिक फ्रंट पर हालात सुधरने लगे थे. आम सोच यह है कि सरकार सही रास्ते पर है, हमें धीरज रखना होगा और उसे कुछ समय देना होगा. यह डिफेंसिव अप्रोच थी. अब आप एग्रेसिव कदमों के लिए तैयार हो जाइए.
मोदी हमेशा कैंपेन मोड में रहते हैं. उनका लक्ष्य सिर्फ सत्ता में काबिज रहना नहीं है. वह पन्ना दर पन्ना इतिहास का पहला ड्राफ्ट लिख रहे हैं. मोदी तय कर रहे हैं कि उन्हें कैसा नेता माना जाना चाहिए, किस तरह से याद किया जाएगा. वह देश के लोगों के दिलों पर राज करना चाहते हैं.
वह लोकसभा के साथ राज्यों के चुनाव कराना चाहते हैं. मकसद साफ है. मोदी अधिक से अधिक राज्यों में बीजेपी की सरकार चाहते हैं. उनकी पॉपुलैरिटी से इसमें मदद मिलेगी. चुनाव अलग-अलग होने पर बात नहीं बनेगी. वह इसके लिए संवैधानिक और सांस्थानिक सीमाओं को जहां तक संभव हो, धकेलने को तैयार हैं.
नोटबंदी से उन्होंने इंडिविजुअल राइट्स की सीमाओं को कहां तक स्ट्रैच किया जाए, इसकी जांच कर रहे हैं. उन्होंने सोच-समझकर इस मुश्किल प्रोजेक्ट को चुना है. वह देखना चाहते थे कि बिना वोट गंवाए किस हद तक लोगों की आदतें बदली जा सकती हैं. अगर वह इसके लिए कोई सिंपल या आम स्कीम चुनते, तो यह मैसेज देना मुश्किल होता. मोदी 130 करोड़ लोगों के दिलोदिमाग पर छा जाना चाहते थे. यह बहुत रिस्की और बड़ा दांव है. लेकिन बात जब गेम का लेवल बढ़ाने, पुराने रिकॉर्ड तोड़ने (इसमें उनके अपने रिकॉर्ड भी शामिल हैं) और दूसरों को गलत साबित करने की हो, तो मोदी को बहुत मजा आता है.
30 दिसंबर के बाद जब वह नोटबंदी के सफल होने का दावा करेंगे, तब आलोचकों को अपनी खिल्ली उड़ाए जाने के लिए तैयार रहना चाहिए. वह किसी आंकड़े के हवाले से देश के गरीबों के इतिहास बनाने का दावा कर सकते हैं.
मोदी समूची दुनिया को चकित करने जा रहे हैं. इस इंटरवल में उन्होंने गेम को नए लेवल पर पहुंचा दिया है. प्रॉब्लम सिर्फ एक है- अगर उनके नए ट्विस्ट से इकनॉमी को काफी नुकसान होता है, बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियां जाती हैं, तो कहानी का पूरा प्लॉट बिगड़ सकता है. अगला तीन महीना तय करेगा कि आगे की कहानी कैसे आगे बढ़ती है.
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(संजय पुगलिया क्विंट मीडिया के संपादकीय निदेशक हैं. उनका ट्विटर हैंडल है @sanjaypugalia)
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Published: 25 Nov 2016,06:29 PM IST