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मुझे नहीं लगता कि 'एक्सपर्ट'– जिनमें सांसद, ब्यूरोक्रेट्स, अर्थशास्त्री, स्तंभकार और बड़े-बड़े एंकर शामिल हैं, नोटबंदी को ठीक से समझ पाए. सरकार की नोटबंदी की घोषणा के बाद जो कुछ भी हुआ है, उसको समझने में वो हमेशा एक कदम पीछे रहे हैं.
पीएम के ऐलान के 24 घंटे के भीतर ही मैंने लिखा था, कैसे पूरा पैसा दलालों और बेशर्म बैंक मैनेजरों (जिन्होंने 30-40 पर्सेंट कन्वर्जन चार्ज के साथ खुद को फायदा पहुंचाया है) की मदद से सारा कालाधन खजाने में सफेद बनकर वापस आ जाएगा. मैंने एक वैकल्पिक रास्ता भी सुझाया था, जिससे बगैर किसी परेशानी के और अच्छे नतीजों के साथ ऐसा हो सकता था. उसे अपनाने से सबका फायदा होता. हालांकि कुछ ऐसे लोगों ने उसकी आलोचना भी की, जो थ्योरी और आदर्शवादी ख्यालों में रहते हैं.
अगले 12 घंटों में, मतलब पीएम की करेंसी रद्द करने के 36 घंटे के बाद, मैंने 'विन विन' आइडिया में एक और 'विन' जोड़ दिया.
आम आदमी के लिए कोई परेशानी नहीं, सरकार के खजाने में जबरदस्त टैक्स कलेक्शन, दलालों की नई समांतर अर्थव्यवस्था खड़ा होने का कोई खतरा नहीं और अर्थव्यवस्था में मौजूद कैश का पूरी तरह से बदलाव.
अफसोस, सरकार ने समझने में 25 दिन लिए और वापस नए वीडीआईएस पर आ गए. लेकिन उस समय में, लगभग सभी काले कारनामे वाले अपना कमाल दिखा चुके थे. अगर उन लोगों ने इसे एकदम शुरुआत में किया होता, तो वो पूरा पैसा अपराधियों को फायदा पहुंचाने की जगह खजाने में जमा हुआ होता.
अब कुछ ताजा आंकड़े हमारे 'एक्सपर्ट' के लिए. कितना पैसा जमा होने पर हम कहेंगे कि पीएम मोदी की यह योजना सफल या फेल हुई? 10 लाख करोड़, 12 लाख करोड़ या 14 लाख करोड़? सरकार ने उम्मीद की थी कि लगभग 4 लाख करोड़ रुपये का 'ब्लैक कैश', स्कैम करने वाले बैंक अकाउंट में जमा नहीं कर पाएंगे और वह बर्बाद हो जाएगा. इसका मतलब होता कि इतनी बड़ी रकम विलेन से छिनकर हीरो के वापस आ सकती थी, जिसे गरीबों के कल्याण में खर्च किया जा सकता था.
लेकिन रुकिए, बैंकों में अब तक 11 लाख करोड़ रुपये आ चुके हैं, जबकि अभी 4 हफ्ते बाकी हैं. क्या नोटबंदी फ्लॉप हो गई है? एक्सपर्ट के सामने यही सवाल है.
मैं सभी 'एक्सपर्ट' से माफी चाहता हूं, लेकिन यह सवाल अब बेमानी, बेवकूफी भरा और गैरजरूरी है. क्यों?
इसका मतलब है कि पूरे 15 लाख करोड़ रुपये वापस आ जाएंगे.
तो अब नोटबंदी को पास या फेल बताने का कौन-सा पैमाना होगा? अगर यह बर्बाद हुआ काला कैश नहीं है, तो नया मापदंड क्या है? सच में आसान है. समझने के लिए ये दो पॉइंट देखिए:
1. नए वीडीआईएस के तहत पैनल टैक्स के तौर पर जमा की गई राशि
2. चार साल में जीरो पर्सेंट के साथ जमा की गई राशि
जितनी ज्यादा राशि, उतना ही सक्सेसफुल यह रहा. अगर यही स्कीम नोटबंदी के ऐलान के साथ ही लाई गई होती, तो यह राशि रिकॉर्ड तोड़ने वाली हो सकती थी. लेकिन अब पता नहीं, क्योंकि काले घोड़े तो अस्तबल से बाहर हो गए हैं.
तो हमारे 'एक्सपर्ट' के लिए, जो अभी भी इस बात से उत्साहित हैं कि 11 लाख करोड़ आ गए हैं, अभी 4 हफ्ते बाकी हैं तो क्या?
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