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वीके पांडियन, एक दशक से भी ज्यादा समय से सबके पसंदीदा नवीन पटनायक के आंख और कान रहे हैं, जिन्होंने एक प्रमुख राज्य के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का ज्योति बसु का रिकॉर्ड तोड़ दिया है.
मूल रूप से पंजाब कैडर दिए जाने के बाद उन्हें 2002 में ओडिशा लाया गया, जहां उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत, नई सोच और गरीबों की मदद करने के सच्चे इरादे के चलते एक रॉक स्टार जैसा दर्जा हासिल किया.
परदे के पीछे शायद उनकी सबसे बड़ी कामयाबी वह शानदार पहल है, जिससे ओडिशा में हॉकी और दूसरे खेलों को बढ़ावा मिला. इसी वजह से ओडिशा में बहुत से लोग पांडियन की तारीफ करते हैं.
नवंबर 2023 में, उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और सत्तारूढ़ बीजू जनता दल के नेता के तौर पर पूर्णकालिक राजनीति में उतर गए. मौजूदा समय में पांडियन 5T के चेयरमैन हैं. 5T उनकी द्वारा ही लाई गई पहल है, जिसका बड़ा बदलाव देखा गया है. इसे नवीन पटनायक का सार्वजनिक रूप से समर्थन हासिल है.
#IndiatoBharat यात्रा में लेखक ने ओडिशा में दर्जनों लोगों से मुलाकात की. उनमें से तकरीबन सभी ने उस तरीके के खिलाफ नाराजगी जाहिर की, जिसमें उन्हें लगता है कि पांडियन ओडिशा के “असल” मुख्यमंत्री बन गए हैं. कुछ लोग इस चीज को खारिज करते हैं जबकि कई उनके प्रति नाराजगी जताते हैं.
शायद, सबसे ज्यादा नाखुश बीजेडी के नेता और कार्यकर्ता हैं, जिन्हें पांडियन की बात इसलिए माननी पड़ती है क्योंकि उन्हें निर्विवाद सुप्रीमो नवीन पटनायक का आशीर्वाद और समर्थन प्राप्त है.
नवीन पटनायक ने मार्च 2023 में आधिकारिक तौर पर “मो सरकार” या मेरी सरकार नाम से एक पहल शुरू की, जिसका मकसद राज्य भर के आम नागरिकों से बातचीत कर उनका नजरिया जानना था ताकि राज्य की अनगिनत कल्याणकारी योजनाओं (जो बेहद लोकप्रिय हैं) में और सुधार किया जा सके. आमतौर पर कोई भी उम्मीद करेगा कि यह काम सत्तारूढ़ दल के मंत्री, विधायक और नेता करेंगे.
इस घटना के बाद विवादों का तूफान खड़ा हो गया. हालांकि, किसी ने भी सामने आकर शिकायत नहीं की, लेकिन इस बात के साफ इशारे थे कि पार्टी के वरिष्ठ नेता अपमानित महसूस कर रहे थे और कई मीडिया रिपोर्ट इस चलन के बारे में बता रही थीं.
सरकार के समर्थक “ओडिशा के गरीब लोगों और नौजवानों के प्रति समर्पण" के लिए की गई पहल और पांडियन दोनों की तारीफ करते हैं, जबकि कई दूसरे लोगों ने निर्वाचित प्रतिनिधियों की बदकिस्मती की ओर इशारा करते हैं कि वे बेकार बैठे हैं और दूसरे दर्जे की भूमिका निभा रहे हैं जबकि एक अनिर्वाचित नौकरशाह “सुपर चीफ मिनिस्टर” जैसा बर्ताव कर रहा है.
राष्ट्रीय स्तर पर, BJP और BJD एक-दूसरे की आलोचना नहीं करते हैं, लेकिन BJP के राज्य-स्तर के कई नेता खुलेआम पांडियन को एक अनिर्वाचित तानाशाह कहकर उनकी आलोचना करते हैं, जो “उड़िया” लोगों की भावनाओं के साथ खेल रहा है और “उड़िया” गौरव को नुकसान पहुंचा रहा है. चूंकि प्रदेश की ज्यादातर मीडिया पटनायक सरकार के सामने नतमस्तक है, इसलिए पांडियन के खिलाफ ऐसी नाराजगी की खबरें नियमित रूप से नहीं मिल पाती हैं.
लेकिन विवाद की आंधी का असर तो हुआ. पांडियन को IAS से इस्तीफा देकर पूर्णकालिक राजनेता बनने के लिए मजबूर होना पड़ा.
मगर इससे आशंकाएं भी हैं.
पूर्व सांसद कांग्रेस नेता सौम्य रंजन पटनायक, जो निर्विवाद रूप से राज्य में सबसे सफल मीडिया हाउस चलाते हैं. पहले वह BJD में थे और कई सालों तक नवीन पटनायक के घनघोर समर्थक रहे. राज्य की राजनीति में पांडियन की भूमिका पर आलोचनात्मक लेख लिखने के फौरन बाद उनके मीडिया दफ्तरों पर छापा पड़ा. हालांकि, इन्हें अफवाहें भी कहा जा सकता है, लेकिन ज्यादातर लोगों का मानना है कि उन्हें प्रधान संपादक पद से इस्तीफा देने, खामोश रहने और अपनी बेटी को बागडोर सौंपने के लिए मजबूर किया गया. असल में ऐसा ही हुआ था.
पांडियन न तो लोकसभा और न ही विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि नवीन पटनायक लगातार छठा जनादेश हासिल करेंगे और फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे. हो सकता है कि पांडियन मानते हों और उम्मीद करते हों कि वह अब से 2029 के बीच “उत्तराधिकारी” की भूमिका में सेट हो जाएंगे. मगर लेखक को ऐसा अहसास हुआ कि पांडियन और उनकी बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के बीच खड़ा एक नाखुशगवार अचंभा उनका इंतजार कर रहा है.
(सुतानु गुरु CVoter फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और यह लेखक के अपने विचार हैं. द क्विंट इसके लिए जिम्मेदार नहीं है.)
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