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Odisha: नवीन पटनायक 'नौकरशाह-वजीर' पांडियन के सहारे सैकड़ों साल पुराना इतिहास दोहरा रहे हैं

वीके पांडियन 27 नवंबर को पटनायक और पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति में आधिकारिक तौर पर BJD में शामिल हो गए

माधवन नारायणन
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>नवीन पटनायक और वीके पांडियन </p></div>
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नवीन पटनायक और वीके पांडियन

(फोटो: चेतन भाकुनी/द क्विंट)

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(यह आर्टिकल मूल रूप से 27 अक्टूबर को प्रकाशित हुआ था. वीके पांडियन के 27 नवंबर को आधिकारिक तौर पर बीजू जनता दल में शामिल होने के बाद इसे अपडेट करके फिर से प्रकाशित किया गया है.)

क्या बीजू जनता दल के नवीन पटनायक (Naveen Patnaik) के नेतृत्व में ओडिशा में एक बार फिर इतिहास दोहराया जा रहा है?

इस सवाल का सीधा जवाब "हां" हो सकता है, लेकिन 77 वर्षीय नवीन पटनायक के लंबे समय तक निजी सचिव रहे नौकरशाह वीके पांडियन को IAS छोड़ने के एक दिन बाद ही महत्वपूर्ण कैबिनेट रैंक पद पर नियुक्त करने का एक और दिलचस्प इतिहास सामने है. वीके पांडियन 27 नवंबर को आधिकारिक तौर पर बीजेडी में शामिल हो गए.

पश्चिमी शिक्षा प्राप्त और और बीजू पटनायक के बेटे नवीन पटनायक की छवि तटीय राज्य उड़ीसा के आधुनिक इतिहास में बहुत बड़ी है. उन्होंने पिछले बहुत समय से पांडियन को अपना पसंदीदा लेफ्टिनेंट बना लिया है.

इस नौकरशाह ने एक ऐसे राज्य के राजनीतिक और आर्थिक पुनरुत्थान में मदद की है जो चक्रवातों, मिसाइल लॉन्चस, अद्भुत मंदिरों और कछुओं के घोंसले के लिए ज्यादा चर्चा में है.

सिविल सर्वेंट से बड़ा एक वजीर

कार्तिकेयन पांडियन- 2000 बैच के इस IAS अधिकारी का नाम तमिलनाडु के एक प्राचीन राजा के नाम जैसा लगता है. भले ही नाम उस इरादे से न रखा गया हो.

किसी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर एक हिस्टॉरीकल फैंटसी सीरीज के लिए ये कंटेंट का आइडिया हो सकता है. पांडियन की कैबिनेट रैंक पद पर नियुक्ति ने 913 साल पहले हुए एक युद्ध की यादें ताजा कर दी हैं. उस समय एक तमिल राजा ने उस जगह पर आक्रमण किया था जिसे तब कलिंग कहा जाता था- ये ओडिशा का ही दूसरा नाम है.

लेकिन पहले कुछ दिलचस्प हकीकत देखते हैं.

ये पिछले कुछ समय से ओडिशा का सबसे छिपा हुआ रहस्य रहा है कि पांडियन, पटनायक के लिए शो चला रहे हैं. पांडियन की रहस्यमय, अलग-थलग शैली के पीछे एक तेज दिमाग छिपा है और इससे भी महत्वपूर्ण ये है कि वो एक ऐसे व्यक्ति हैं जो कई क्षेत्रीय और वास्तव में राष्ट्रीय नेताओं की दिखावटी चाल से आकर्षित नहीं होते हैं.

पांडियन ने 2002 में गरीबी से जूझ रहे कालाहांडी जिले में एक सिविल सेवा अधिकारी के रूप में शुरुआत की और किसानों के लिए एक चैंपियन के रूप में अपनी पहचान बनाई. स्थानीय तौर पर कहा जाता है कि उन्होंने मुख्यमंत्री को सत्ता संघर्ष से उबरने और उनके पिता के नाम पर बीजू जनता दल को एक निर्णायक राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित करने में मदद की.

यदि भुवनेश्वर से कही जा रही बातों पर भरोसी किया जाए तो मुख्यमंत्री का भरोसा जीतने वाले नौकरशाह के रूप में, पांडियन एक सिविल सेवक से आगे बढ़कर एक महान वजीर रहे हैं.

इसलिए इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि उन्होंने इस हफ्ते IAS से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली, ताकि उन्हें सीएम की 5-T (पारदर्शिता, प्रौद्योगिकी, टीमवर्क, समय और परिवर्तन) पहल और नबीन ओडिशा (न्यू ओडिशा) का अध्यक्ष नॉमिनेट किया जा सके. ये काफी हद तक सीएम के पहले नाम से काफी मिलता-जुलता है.

आप 5T में छठा T जोड़ सकते हैं: तमिलनाडु, जो कि पांडियन का जन्म राज्य है.

एक असंभावित हस्तक्षेपकर्ता के रूप में पांडियन ने कुछ इतिहास रचा है. वो मुख्यमंत्री के फेवरेट लेफ्टिनेंट बनने के लिए प्रतिस्पर्धी राजनेताओं पर भारी पड़ रहे हैं.

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क्या हम इतिहास को खुद को दोहराते देख रहे हैं?

जिसे अब ओडिशा राज्य कहा जाता है, वो ब्रिटिश शासन के दौरान मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा हुआ करता था. ज्यादा दिलचस्प बात ये है कि एक पांडियन उस राज्य में ये विरोधाभास ला रहे हैं जिस पर चोल वंश के राजा ने दो बार हमला किया था.

कुलोथुंगा चोल ने अपने अभियान के दूसरे चरण में 1110 ईसवीं में एक बड़े युद्ध के बाद कलिंग को चोल साम्राज्य का हिस्सा बना दिया. इसके बाद ओडिशा तमिल साम्राज्य का एक जागीरदार राज्य बन गया. एक पल्लव लेफ्टिनेंट ने चोल सम्राट को कलिंग पर कब्जा करने में मदद की थी.

मार्शल तमिल कविता की एक शैली 'परानी' सैन्य विजय की प्रशंसा करती है, उसमें कलिंगथुपरानी नाम की एक प्रसिद्ध गाथागीत है. इसे कलिंग युद्ध में चोल की जीत के लिए एक श्रद्धांजलि मानते हैं. स्थानीय राजा अनंतवर्मन चोदगंगा अपनी जान बचाने के लिए भाग गए थे, इसके बाद आक्रमणकारियों ने कलिंग को खूब लूटा.

लेकिन हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि एक तमिल अब कलिंग के समकालीन शासक (नवीन पटनायक) का पसंदीदा बन गया है. आखिरकार, पांडियन और चोल, दोनों तमिल शासक वंश एक सहस्राब्दी पहले दुश्मन थे और उनकी प्रतिद्वंद्विता इस साल की मणि रत्नम फिल्म, पोन्नियिन सेलवन (PS 1 और 2) में दिखाई गई है. "कल्कि" कृष्णमूर्ति द्वारा लिखित महाकाव्य पर आधारित ये फिल्म दो भागों में बनी है.

वी के पांडियन मदुरै से हैं, जो पांडियन साम्राज्य का केंद्र. इसी साम्राज्य ने चोलों पर कब्जा कर लिया था.

क्या हम इतिहास की एक अवास्तविक पुनरावृत्ति देख रहे हैं, जहां कार्तिकेय पांडियन प्रतिद्वंद्वी चोल के खिलाफ कलिंग शासक की सहायता में खड़े हैं? हम इसे कल्पना के आधार पर लिखने वाला फैंटसी राइटर्स पर छोड़ देंगे, लेकिन जो स्पष्ट है वो ये कि 5T (जिसके प्रमुख पांडियन हैं) एक खनिज और संस्कृति से समृद्ध, लेकिन आर्थिक रूप से पिछड़े तटीय राज्य को वैश्विक स्तर पर दक्षिणी भारत के उच्च रैंक वाले राज्य में शामिल करने का जरिया है.

ये खेल अब सैकड़ों हाथियों और तलवार चलाने वाले योद्धाओं की लड़ाई के बारे में नहीं है, बल्कि ये एक ऐसी लड़ाई है जिसमें प्रौद्योगिकी और लोकतंत्र से नए युग में जीत होती हैं. पांडियन ने पटनायक के लिए उसी तरह नेतृत्व किया, जिस तरह पल्लव राजा करुणाकर थोंडईमन ने कलिंग में चोलों की ओर से एक सेना का नेतृत्व किया था.

अगले साल का विधानसभा चुनाव दिलचस्प होना चाहिए, क्योंकि पटनायक 23 साल से सीएम की सीट पर हैं.

न तो चक्रवात और न ही पार्टी को चुनौती देने वालों की राजनीतिक साजिशें, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मजबूत बीजेपी या जुझारू कांग्रेस, पटनायक के शासन को ध्वस्त करने में कामयाब रही है.

पांडियन की नई नियुक्ति के साथ आधुनिक युग का बिगुल बज गया है.

(लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार और टिप्पणीकार हैं, जिन्होंने रॉयटर्स, इकोनॉमिक टाइम्स, बिजनेस स्टैंडर्ड और हिंदुस्तान टाइम्स के लिए काम किया है. उनका X हैंडल @madversity है. ये एक ओपिनियन पीस है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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