मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Pakistan में राजनीतिक,अनाज और अब आर्थिक संकट, क्या सरकार-आर्मी के पास इलाज है?

Pakistan में राजनीतिक,अनाज और अब आर्थिक संकट, क्या सरकार-आर्मी के पास इलाज है?

25 साल पहले पाकिस्तान का प्रति व्यक्ति GDP भारत की तुलना में 46% ज्यादा था, लेकिन अब यह 20% कम है. आखिर कहां चूके?

यूसुफ नज़र
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Pakistan: राजनीति,अनाज और अब आर्थिक संकट, क्या सरकार-सेना दिला सकती है राहत? </p></div>
i

Pakistan: राजनीति,अनाज और अब आर्थिक संकट, क्या सरकार-सेना दिला सकती है राहत?

(फोटो- क्विंट हिंदी)

advertisement

पाकिस्तान चौतरफा संकट (Pakistan Crisis) का सामना कर रहा है. शायद 1971 के बाद, जब बांग्लादेश युद्ध के बाद वो टूटा था, यह सबसे खराब आर्थिक दौर है. पाकिस्तानी सेना और सियासतदानों के लिए भारी संकट का वक्त है– साफ तौर पर किस दिशा में आगे बढ़ा जाए इसकी कमी दिखती है.

पिछले हफ्ते, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सेना प्रमुख सैयद असीम मुनीर ने सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात का दौरा किया. देश पर डिफॉल्ट का खतरा मंडराता देखते हुए उन्होंने इन देशों से मदद मांगी. पाकिस्तान में विदेशी मुद्रा भंडार नौ साल के निचले स्तर पर है. यह सिर्फ 4.3 बिलियन डॉलर है. पाकिस्तान के पास अभी एक महीने के इंपोर्ट का पेमेंट करने के लिए भी पर्याप्त पैसा नहीं है.

गहराता अनाज संकट और कैश की भारी किल्लत

पाकिस्तान काफी हद तक इंपोर्ट पर निर्भर देश है. बिगड़ते गेहूं संकट के कारण सामाजिक उपद्रव शुरू हो गए हैं. कथित तौर पर आटे के पैकेट को लेकर जनता लड़ रही है . ऐसे मामलों में कम से कम एक नागरिक की मौत हो गई है.

आर्थिक टिप्पणीकार आम तौर पर पाकिस्तान की इन परेशानियों की दो वजह बताते हैं. रेकरिंग अकाउंट डेफिसिट और फिस्कल घाटा. लेकिन पाकिस्तान का सबसे बड़ा मसला इसकी सेना, राजनीति, बिजनेस और भूस्वामियों का बौद्धिक दिवालियापन और अदूरदर्शिता है.

विलियम ईस्टरली ने 2001 के वर्ल्ड बैंक के एक केस स्टडी में पाकिस्तान की पॉलिटिकल इकोनॉमी को ग्रोथ के बिना वाला यानि ‘विकास का विरोधाभास’ बताया. हालांकि, पिछले 25 साल के दौरान ग्रोथ और भी लड़खड़ा गया है. दूसरे विकासशील देश, विशेष रूप से भारत और बांग्लादेश (चार्ट देखें) की तुलना में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में एक बड़ा अंतर दिखता है.

प्रति व्यक्ति जीडीपी में वार्षिक औसत वृद्धि दर

(इमेज: विभुशिता सिंह/द क्विंट)

आखिर ऐसा पतन क्यों आया ?

पच्चीस साल पहले, पाकिस्तान का प्रति व्यक्ति GDP भारत की तुलना में 46% अधिक था - और अब यह 20% कम है. आखिर कहां गड़बड़ी हुई ? पाकिस्तान में इस बात को बहुत कम लोग मानते हैं कि आखिर बर्लिन की दीवार के गिरने के बाद ग्लोबलाइजेशन की धारा जो पूरी दुनिया में चली उसका फायदा भारत, चीन और बांग्लादेश जैसे देशों ने जमकर उठाया, लेकिन पाकिस्तानी शासक के अभिजात वर्ग ने दुनिया को पुराने नजरिए से ही देखना जारी रखा. शीत युद्ध की मानसिकता वाले पाकिस्तान ने सोचा कि उसे विदेशी सहायता शीतयुद्ध की तरह मिलती रहेगी और जियोपॉलिटिक्स का फायदा उठाता रहेगा.

ऐसी ही गुमराह नीतियों का एक उदाहरण अफगानिस्तान है. यह किसी स्ट्रैटेजिक डिजास्टर से कम नहीं कि लगभग दो दशक तक तालिबान का समर्थन करने और अगस्त 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी का जश्न मनाया. इसे "गुलामी की जंजीरों को तोड़ने" के एक उदाहरण के रूप में बताया. इस वजह से पाकिस्तान खुद भी राजनयिक रूप से अलग-थलग पड़ गया. अफगानिस्तान से भी फायदा नहीं मिला.

अगर GDP का हिसाब किताब देखें तो पाकिस्तान का सैन्य खर्च दुनिया के टॉप 10 देशों के बराबर है. इसका टैक्स टू GDP रेश्यो लगभग 9% है जो कि दुनिया में सबसे कम है. इसे हर साल अधिक उधार लेना पड़ता है क्योंकि कर्ज चुकाने और सैन्य खर्च के बाद विकास पर खर्च करने के लिए बजट में पैसा नहीं बचता है.

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की एक रिपोर्ट के अनुसार, आर्मी प्रतिष्ठान देश के व्यावसायिक संस्थाओं का बड़ा समूह भी है जो देश में पब्लिक प्रोजेक्ट निर्माण में बड़ी भूमिका निभाते हैं.

कुछ राजनीतिक कार्यकर्ता पाकिस्तान को "प्लॉटिस्तान" कहते हैं. दरअसल बहुत सुविधाजनक टैक्स रिजीम होने के कारण पाकिस्तान में जमीन के प्लॉट की खरीद-बिक्री सबसे बढ़िया बिजनेस में से एक है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

पाकिस्तानी सेना के कारनामे और एक स्पष्ट आर्थिक विषमता

मलिक रियाज पाकिस्तान के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक हैं और बहरिया टाउन के मालिक हैं, जो देश की सबसे बड़ी प्राइवेट रियल एस्टेट डेवलपमेंट वाली कंपनी है.

रियाज ने मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विस में एक क्लर्क के रूप में करियर की शुरुआत की थी और सेना के सहयोग से एक मल्टीमिलिनेयर रियल एस्टेट डेवलपर बन गए. पिछले साल, स्थानीय मीडिया में एक ऑडियो टेप आ गया था और इस पर काफी बवाल भी मचा था. इसमें कथित तौर पर इमरान खान और आसिफ अली जरदारी के साथ रियाज के करीबी संबंधों की ओर इशारा किया गया था.

नवाज शरीफ के परिवार से भी रियाज के करीबी संबंध रहे हैं. लंदन में हाइड पार्क के सामने एक £50m हवेली सहित £190m से अधिक की संपत्ति उसके पास से यूके पुलिस ने "डर्टी मनी" जांच में समझौते के बाद जब्त की थी. रियाज ने यह हवेली नवाज शरीफ के बेटे हसन नवाज से 2016 में 4.25 करोड़ पाउंड में खरीदी थी.

मलिक रियाज पाकिस्तान की असली पॉलिटिकल इकोनॉमी का एक ऐसा वर्ल्ड है जहां सभी सरकारी संस्थान और अहम सियासी नेता अपने हित और वर्ग को बचाने के लिए एक दूसरे से सांठ-गांठ करके काम करते हैं. इसलिए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि पंजाब (पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत), जहां 120 मिलियन से अधिक की आबादी हैं, वहां भी भारत के 10 मिलियन लोगों की आबादी वाले चेन्नई शहर की तुलना में कम प्रॉपर्टी टैक्स हासिल कर पाता है.

बिना विकास के ग्रोथ: क्या गरीब पाकिस्तानी बचे रह सकते हैं ?

आखिर पाकिस्तानी गुजारा कैसे करते हैं? पाकिस्तान के सबसे गरीब 20% लोग रोजी रोटी के लिए बड़ा संघर्ष करते रहते हैं. UNDP की रिपोर्ट के अनुसार, "पाकिस्तान के सबसे गरीब 20% मानव विकास सूचकांक (HDI) मूल्य केवल 0.419 के साथ निम्न मानव विकास श्रेणी में आते हैं. यह इथियोपिया के HDI से कम है और इसकी तुलना चाड गणराज्य से की जा सकती है, जो वैश्विक HDI रैंकिंग में 189 देशों में 186वें स्थान पर है.

बड़ी संख्या में निम्न-आय और मध्यम-आय कैटेगरी वाले लोग विदेशों में रहने वाले अपने सगे संबंधियों की उदारता की वजह से अच्छे से गुजारा करने में सक्षम हैं. 2021 के एक आंकड़े के मुताबिक, विदेश से भेजे जाने वाले पैसे में सबसे ज्यादा पाकिस्तानियों का ही हिस्सा है.

पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद यानि GDP का यह 12.6 % हिस्सा है जबकि बांग्लादेश में यह आंकड़ा 6.5% और भारत में सिर्फ 3% है. इसलिए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि पाकिस्तान की 90% अर्थव्यवस्था लगातार कम बचत और निवेश स्तरों के साथ खपत से संचालित होती है.

क्या पाकिस्तान अब इकोनॉमी में कोई सुधार किए बिना विदेशी मदद और बाहर से भेजे जाने वाले पैसे पर ही बचा रह सकता है . पाकिस्तानी शासक वर्ग पर इस सवाल का जवाब देने का जो दबाव आज है वैसा पहले कभी नहीं रहा.

(लेखक पॉलिटिकल इकोनॉमी एक्सपर्ट और पूर्व-इक्विटी इन्वेस्टमेंट हेड हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और यहां लिखे गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Members Only
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT