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पाकिस्तान के अस्पताल की छत पर लाशों की ढेर का क्या है राज? ऐसा पहली बार नहीं हुआ

Pakistan को जब तक पश्चिम बिना सवाल किए पैसा और हथियार देता रहेगा, यह सिलसिला नहीं थमेगा.

फ्रांसेस्का मैरिनो
नजरिया
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<div class="paragraphs"><p>क्राइम सीन का प्रतीकात्मक फोटो&nbsp;</p></div>
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क्राइम सीन का प्रतीकात्मक फोटो 

(फोटो: iStock)

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चौंकाने वाली, ग्राफिक इमेज पूरे वेब पर मौजूद थीं. पाकिस्तान (Pakistan) के मुल्तान में निश्तार अस्पताल की छत पर लाशों के ढेर लगे हुए हैं. ये तस्वीरें नाजी जर्मनी के ऑशविट्ज की त्रासदी की याद दिलाती हैं, जिन्हें मित्र देशों ने यातना शिविरों में देखा था. इन तस्वीरों ने पाकिस्तान और पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया.

इस मामले की आधिकारिक जांच शुरू कर दी गई और इसके लिए छह सदस्यीय आयोग का गठन किया गया. इस पर अस्पताल का जवाब था, "ये अज्ञात शव हैं जिन्हें पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए निश्तार मेडिकल यूनिवर्सिटी मुल्तान को सौंप दिया है और अगर जरूरी हुआ तो एमबीबीएस स्टूडेंट्स को पढ़ाने के लिए इनका इस्तेमाल किया जा सकता है."

सूत्रों के मुताबिक, निश्तार अस्पताल की छत पर अब भी दर्जनों शव सड़ रहे हैं. दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर खबरें चल रही हैं कि मानव शरीर के सैकड़ों अंग छत से बरामद किए गए हैं, जिन्हें पाकिस्तान के जियो न्यूज ने भी कवर किया है. किसी भी सरकारी अधिकारी ने अभी तक शवों की संख्या की पुष्टि या खंडन नहीं किया है.

पाकिस्तान में लाशें लगातार मिल रही हैं

जब लाशें पूरी तरह से सड़ जाती हैं तो मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए इन शवों से हड्डियों को निकाला जाता है. जबकि उन्हें हमेशा ठीक से दफनाया जाता है, फिर भी यह तय किया जाना बाकी है कि शवों को कैसे संरक्षित किया जाए और क्या मेडिकल स्टडी और इम्तहान के लिए सचमुच 500 शवों की जरूरत है, वगैरह.

किसी ने या बहुत कम लोगों ने असली सवाल पूछने की हिम्मत की कि ये शव कहां से आए और ये लोग कौन थे. और पहला जवाब जो कई लोगों के जेहन में आया, वह शायद यह था कि ये शव लापता बलूच या सिंधी, या पश्तून लोगों के हो सकते हैं.

इससे पहले लाहौर में सैकड़ों शव मिले थे जिन्हें इधि फाउंडेशन ने दफनाया था. दुखद यह है कि फाउंडेशन को उन शवों का डीएनए टेस्ट कराने से बार-बार मना किया गया था.

और हाल ही में पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग (HRCP) ने कहा था कि कराची में लापता बलूच मर्दों के क्षत-विक्षत शवों को लगातार डंप किया जा रहा है. उसने यह भी कहा था कि लापता लोगों की लाशों की कोई जांच पड़ताल नहीं की गई, वह इस बात की निंदा करता है. "हालांकि कराची में ऐसे क्षत-विक्षत शवों का मिलना कोई असामान्य बात नहीं है. लेकिन यह गंभीर चिंता का विषय है कि हाल ही के महीनों में कराची में उन मर्दों की लाशें लगातार मिल रही हैं जो बलूचिस्तान से गायब हुए हैं. हां, पहचान के लिए उनकी जेबों में उनके नाम लिखी पर्चियां जरूरी मिल जाती हैं.”

पिछले कई सालों में पूरे बलूचिस्तान में कई सामूहिक कब्रें मिली हैं, बलूचिस्तान के एक्टिविस्ट्स, पत्रकारों या राजनीतिक विरोधियों को गायब कर, उनकी हत्या करना और फिर उन्हें कराची या सिंध में फेंकना, पिछले कुछ वक्त से बहुत सामान्य बात हो गई है. इसी तरह सिंध से गायब होने वाले लोगों को बलूचिस्तान या पंजाब में मारकर फेंक दिया जाता है.
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बलूचिस्तान में गुमशुदा मामलों की बढ़ती संख्या

सेना और इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) या उनके प्रॉक्सी क्रिमिनल दस्तों के चलते पाकिस्तान में 'गायब' होने वाले लोगों की संख्या हर साल लगातार बढ़ रही है.

एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार,

"किसी का गायब हो जाना, आतंक फैलाने का एक खतरनाक तरीका है जोकि न केवल व्यक्तियों और परिवारों पर, बल्कि पूरे समाज पर हमला करता है. यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत यह एक अपराध है, और नागरिक समाज पर सुनियोजित तरीके से हमला करने के लिए ऐसा किया जाता है, तो यह मानवता के साथ किया जाना वाला अपराध माना जाता है."

यह भी कहा गया कि पाकिस्तान ने 17 अप्रैल, 2008 को इंटरनेशनल कॉवेनेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स (आईसीसीपीआर) पर दस्तखत और 23 जून, 2010 को इसकी पुष्टि की है.

इस तरह पाकिस्तान ICCPR से बंधा हुआ है, खासकर अनुच्छेद 7, 9, और 17 से, जो यातना को प्रतिबंधित करता है, स्वतंत्रता और सुरक्षा के अधिकार की रक्षा करता है, मनमानी गिरफ्तारी या हिरासत से बचाता है, और प्राइवेसी, परिवार या घर के साथ मनमाने या गैरकानूनी हस्तक्षेप को रोकता है. इसके अलावा 17 अप्रैल 2008 को पाकिस्तान ने कन्वेंशन अगेंस्ट टॉर्चर एंड अदर क्रुअल इनह्यूमन ऑर डिग्रेडिंग ट्रीटमेंट ऑर पनिशमेंट (यातना और अन्य क्रूर अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या सजा) (यूएनकैट) पर भी दस्तखत किए हैं और 23 जून, 2010 उसकी भी पुष्टि की है.

पाकिस्तान नरसंहार के अपराधों से कैसे बच गया?

नतीजतन, राज्य को यातना, या दूसरी क्रूरताओं, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार से अपने सभी नागरिकों की रक्षा करनी होगी. इसमें कोई अपवाद नहीं होना चाहिए. जैसे लोगों का लापता होना, या उसके साथ बुरा बर्ताव, अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है, चूंकि पाकिस्तान इन कानूनों के पालन के लिए बाध्य है. लेकिन अपने ही लोगों के नरसंहार के अपराध के लिए इस्लामाबाद को जिम्मेदार ठहराने की कोई कोशिश नहीं की गई.

इसके बजाय अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पाकिस्तान को जवाबदेह नहीं ठहराया, एमनेस्टी की रिपोर्ट के बाद संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने पाकिस्तान से सिर्फ ‘सिफारिशें’ कीं और उसे ‘सलाह’ दी. पाकिस्तान के प्रति पश्चिम के दोतरफा धुर विरोधी रवैये के चलते ऐसा हुआ है.

हाल का उदाहरण देखिए. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन ने प्रेस वार्ता के समय कहा, “मुझे लगता है कि शायद दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक है पाकिस्तान. उसके पास परमाणु हथियार हैं लेकिन कोई सुसंगति नहीं है." जबकि अमेरिकी विदेश विभाग ने कुछ ही समय पहले करीब 450 मिलियन डॉलर के सौदे के साथ पाकिस्तान को एफ-16 एयरक्राफ्ट अपग्रेडेशन उपकरणों की बिक्री को मंजूरी दी थी.

असल में पश्चिम को इस 'परमाणु खतरे' का डर होना चाहिए या यह खौफ सताना चाहिए कि कहीं ये हथियार इस्लामाबाद में मौजूद आतंकी समूहों के हाथ न लग जाएं. अमेरिका और इटली सहित पश्चिम के कई देश एक दूसरे को उकसाते रहे हैं कि वे पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसी को लाड़ लड़ाते रहें. रियायती कीमतों पर हथियार बेचते रहें और भ्रष्ट, तानाशाह, नरसंहार करने वाले शासनों पर दौलत लुटाते रहें.

एफ-16 का सौदा हो चुका है, जबकि उसी दिन पाकिस्तान दुनिया भर के देशों से पैसा मांग रहा था (याचना करते हुए, और धमकी देते हुए भी) कि उसके एक तिहाई हिस्से में बाढ़ ने कहर मचाया है. पाकिस्तान के पास हथियारों के लिए पैसा है, लेकिन लगता है कि अपने ही नागरिकों के लिए नहीं. वह एक अच्छी आपदा प्रबंधन अथॉरिटी बनाने के लिए भी कंगाल है, जबकि 2012 में उसे इतनी दौलत और मदद मिली थी कि वह दस सालों तक उससे अपना जीर्णोद्धार कर सकता था- बदतर स्थितियों में भी. छत पर पड़े शवों की खबरें मीडिया से तो पहले ही गायब हो चुकी हैं लेकिन ये लापता लोग अब पाकिस्तान में 'खबर' भी नहीं रहे.

फिर से कहना होगा, इस्लामाबाद को हथियार बेचना और बिना शर्त उसे पैसा देते रहना, अच्छा विचार नहीं. अगर हम चाहते हैं कि कब्रों या छतों पर लाशों के ढेर न लगते रहें. ऐसी लाशें, जिनके कोई नाम या चेहरे नहीं- जबकि उनके परिवार वाले उनकी वापसी का इंतजार कर रहे हैं. लाशों की ऐसी फौज, कहीं असल फौज से बड़ी न हो जाए.

(फ्रांसेस्का मैरिनो एक पत्रकार और दक्षिण एशिया एक्सपर्ट हैं, जिन्होंने B Natale के साथ Apocalypse Pakistan’ लिखा है. उनकी लेटेस्ट किताब Balochistan — Bruised, Battered and Bloodied’ है. वह @francescam63 पर ट्वीट करती हैं. यह एक ओपिनियन है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट उनके विचारों को न तो समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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