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J&K में पाकिस्तान तोड़ रहा सीजफायर,'बच्चे स्कूल नहीं जा रहे,किसान फसल नहीं काट सकते'

पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा रात भर की गई गोलाबारी के बाद एलओसी के किनारे रहने वाले लोगों में फिर डर बैठ गया है.

आकिब जावेद
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>पाकिस्तान सीजफायर उल्लंघन: गाजा में तबाही के बीच सीमा पार तनाव बढ़ा, भुगत रही जनता</p></div>
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पाकिस्तान सीजफायर उल्लंघन: गाजा में तबाही के बीच सीमा पार तनाव बढ़ा, भुगत रही जनता

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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26 अक्टूबर को रात के लगभग 8 बजे, देव राज चौधरी अपना खाना खाने की तैयारी कर रहे थे, तभी उन्होंने अचानक एक जोरदार विस्फोट की आवाज सुनी. इसके बाद पाकिस्तान के रेंजर्स ने जम्मू के आरएस पुरा सेक्टर के साई कलां गांव में गोले बरसाए.

चौधरी ने द क्विंट को बताया, "शुरुआत में 10 मिनट से अधिक समय तक भारी गोलीबारी हुई." उन्होंने कहा, "सीमा पार से गोलीबारी तड़के तीन बजे तक जारी रहा."

आरएस पुरा सेक्टर जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के करीब है और पाकिस्तान से नजदीक होने के कारण अक्सर भारी गोलीबारी होती है. जैसे ही सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने हमले का जवाब दिया, ग्रामीण सुरक्षित स्थानों की ओर भागने लगे.

देव राज चौधरी सरपंच (ग्राम प्रधान) हैं. उन्होंने ने कहा, "गोलीबारी से पूरा गांव आतंकित हो गया है."

युद्धविराम / सीज फायर

25 फरवरी 2021 को पहली बार भारत और पाकिस्तान के सैन्य संचालन महानिदेशकों (डीजीएमओ) के बीच हुई बैठक में युद्धविराम पर निर्णय लिया गया था.

इस समझौते से सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को राहत मिली, जिससे उन्हें खेती और स्कूली शिक्षा जैसी गतिविधियां फिर से शुरू करने का मौका मिला, जो सीमा पार गोलीबारी से गंभीर रूप से प्रभावित हुई थीं. बिना किसी डर के शादियां हुईं.

हालांकि, हाल ही में युद्धविराम टूट गया, जिससे निवासियों में डर फिर से पैदा हो गया. विशेष रूप से, यह अक्टूबर में इसी क्षेत्र में सीज-फायर उल्लंघन की दूसरी घटना है, इसी महीने की 17 तारीख को पाकिस्तान रेंजर्स की गोलीबारी के कारण दो बीएसएफ जवान घायल हो गए थे.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तानी रेंजर्स ने जम्मू के अरनिया सेक्टर के आरएस पुरा इलाके में कई भारतीय चौकियों पर बिना उकसावे के हमला किया, जिसमें बीएसएफ के दो जवान और चार नागरिक घायल हो गए.

जवानों ने गोलीबारी का तुरंत जवाब दिया. बीएसएफ के एक प्रवक्ता ने कहा, "रात करीब 8 बजे, अरनिया इलाके में बीएसएफ चौकियों पर पाकिस्तान रेंजर्स द्वारा अकारण गोलीबारी शुरू कर दी गई, जिसका बीएसएफ जवानों ने जवाब दिया."

फिर लौटी दहशत

पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा रात भर की गई गोलाबारी के बाद एलओसी के किनारे रहने वाले लोगों में फिर डर बैठ गया है. हालांकि गोलीबारी कुछ इलाकों तक ही सीमित रही, लेकिन केंद्र शासित प्रदेश (UT) में LOC के अन्य क्षेत्रों में रहने वाले लोग इस गोलीबारी के बाद चिंतित हैं.

आरएस पुरा सेक्टर के ग्रामीण अपनी जान बचाने के लिए सरकार द्वारा निर्मित भूमिगत बंकरों की ओर भागे. भारत पाकिस्तान के साथ 3,323 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है, जिसमें 221 किलोमीटर अंतरराष्ट्रीय सीमा और 740 किलोमीटर जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों में नियंत्रण रेखा (एलओसी) शामिल है.

चौधरी ने कहा कि विस्फोट की वजह से उनकी फसल (धान) पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है, जबकि लोग इसकी कटाई की तैयारी कर रहे थे. साई कलां गांव में ओमप्रकाश नौडियाल के घर पर एक मोर्टार शेल गिरा, जिससे घर को काफी नुकसान पहुंचा है.

चौधरी ने कहा, "गोला नौडियाल की रसोई में गिरा, लेकिन सौभाग्य से उनका परिवार घर के बाहर था." उन्होंने कहा कि पूरे गांव को सरकार द्वारा बनाए गए भूमिगत बंकरों में रात बितानी पड़ी.

बीजेपी की नेतृत्व वाली सरकार ने मार्च 2018 में 415.73 करोड़ रुपये की लागत से जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती निवासियों के लिए 14,460 बंकरों के निर्माण को मंजूरी दी थी. हालांकि, पांच साल से अधिक समय बीत चुका है, और बंकर अभी तक नहीं बने हैं. एलओसी के पास कई गांवों में इसका निर्माण किया जाना है.

त्रेवा गांव की सरपंच बलबीर कौर ने द क्विंट को बताया कि, “कई बंकर बिना माउंटी के हैं इसलिए वे सुरक्षित नहीं हैं. जबकि कई अन्य बंकर अभी भी निर्माणाधीन हैं."

हालांकि उन्होंने कहा कि सरकार ने 20,000 से अधिक आबादी वाली पांच पंचायतों में छह से अधिक सामुदायिक बंकरों का निर्माण किया है. उन्होंने कहा, "लोगों ने बंकरों में शरण ली और अपनी जान बचाई." कौर ने आगे कहा कि इस झड़प के कारण उनके गांव में पांच से अधिक घर तबाह हो गए.

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इजरायल गाजा फैक्टर

संघर्ष विराम का उल्लंघन ऐसे समय में हुआ जब इजराइल-गाजा संघर्ष के बाद जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बल अलर्ट पर थे.

25 अक्टूबर को, श्रीनगर में शीर्ष सुरक्षा एजेंसियों ने सुरक्षा प्रोटोकॉल की अच्छे से जांच परख की. श्रीनगर में आयोजित एक बैठक में नए सुरक्षा ढांचे पर चर्चा की गई, जिसमें संभावित विरोध प्रदर्शनों को दबाने पर प्राथमिक जोर दिया गया.

एक प्रेस रीलीज के अनुसार, मध्य पूर्व में चल रहे संकट के मद्देनजर केंद्र शासित प्रदेश में सुरक्षा को लेकर रणनीति बनाने के लिए सुरक्षा समीक्षा बैठक आयोजित की गई थी.

प्रेस रीलीज में कहा गया, “…केंद्र शासित प्रदेश में मौजूदा सुरक्षा स्थिति से संबंधित कई पहलुओं पर चर्चा की गई. बैठक में डीजीपी जम्मू-कश्मीर, चिनार कोर कमांडर और सेना, राज्य प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों के अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए. मध्य पूर्व की स्थिति पर विचार-विमर्श किया गया. सर्दियों के मौसम की शुरुआत के संबंध में क्षेत्र में सुरक्षा की बारीकियों पर भी चर्चा हुई.”

दरअसल घाटी में आमतौर पर संघर्ष के दौरान गाजा के पक्ष में सड़कों पर विरोध प्रदर्शन देखने को मिलते हैं.

अधिकारियों ने शीर्ष अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारूक को श्रीनगर के डाउनटाउन जामिया मस्जिद में शुक्रवार की नमाज का नेतृत्व करने से रोक दिया है. सड़क पर विरोध प्रदर्शन की वापसी के डर से, अधिकारियों द्वारा साप्ताहिक नमाज के लिए मस्जिद को भी बंद कर दिया गया था.

इसी तरह, शीर्ष शिया धर्मगुरु आगा सैयद मोहम्मद हादी कश्मीरी को भी प्रशासन ने लगातार दूसरे शुक्रवार को नजरबंद कर दिया है.

गांव वालों को भुगतना पड़ता है खामियाजा

नियंत्रण रेखा के किनारे रहने वाले निवासियों को सीमा पार से गोलाबारी का खामियाजा भुगतना पड़ता है, सीमा पर झड़पों में सैकड़ों नागरिकों की जान चली जाती है.

  • 2018 में संघर्ष विराम उल्लंघन की 2,140 से अधिक घटनाएं हुईं

  • 2019 में यह संख्या बढ़कर 3,479 हो गई

  • 2020 में 5,133 घटनाओं के साथ संघर्ष विराम उल्लंघन अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया.

  • हालांकि, युद्धविराम के बाद 2021 में यह संख्या गिरकर 664 हो गई.

चौधरी ने कहा कि, “लोग युद्ध की कीमत चुका रहे हैं. हमारे बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं. किसान फसल नहीं काट सकते. पिछले दो दिनों से हर कोई डर में जी रहा है.”

(आकिब जावेद श्रीनगर स्थित पत्रकार हैं. वह @AuqibJaveed के नाम से ट्वीट करते हैं. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो उसका समर्थन करता है और न ही उसके लिए जिम्मेदार है.)

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