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पंकजा मुंडे (Pankaja Munde) फिर नाराज हैं. देखा जाए तो फिर शब्द का उपयोग करना गलत है, क्योंकि वे आज नहीं बल्कि 2014 से ही नाराज हैं. तब भारतीय जनता पार्टी (BJP) और शिवसेना (Shivsena) गठबंधन ने विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी. उस समय उन्होंने मुख्यमंत्री पद के लिए दावा किया था, लेकिन उनके दावे को कोई तवज्जो नहीं दी गई पर देवेंद्र फडणवीस (Devendra Phadanavis) के मंत्रिमंडल में केबिनेट मंत्री जरूर बनाया गया.
2014 के विधानसभा चुनाव के नतीजों के रुझान आना शुरू हुए थे, तभी एक इंटरव्यू में उन्होंने मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी घोषित कर दी थी. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि वे मुख्यमंत्री पद की दावेदार हैं और यह जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हैं. उनका कहना था कि इस समय प्रदेश बीजेपी में जितने भी नेता हैं, वे मेट्रो लीडर यानी शहरी क्षेत्रों के नेता हैं, जबकि वे (पंकजा) एक मात्र मास लीडर यानी आम जनता की नेता हैं.
उस समय महाराष्ट्र प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष देवेंद्र फडणवीस, एकनाथ खडसे (Eknath Khadase), विनोद तावडे (Vinod Tavade) और सुधीर मुनगंटीवार (Sudhir Mungattiwar) भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे. उनसे पूछा गया कि क्या उनकी दावेदारी में अनुभवहीनता आड़े नहीं आएगी तो पंकजा ने कहा था कि मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदार लोगों में से किसके पास अनुभव है?
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने के कुछ पहले 2 जून 2014 को पंकजा के पिता गोपीनाथ मुंडे (Gopinath Munde) का एक सड़क हादसे में निधन हो गया था.उस समय वे केंद्र में मंत्री थे और उसके पहले राज्य के उपमुख्यमंत्री रह चुके थे. अगर वे जीवित रहते तो मुख्यमंत्री पद पर सबसे सशक्त दावेदारी उन्हीं की होती और संभावना यही थी कि उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाया जाता.
पंकजा का कहना है कि उनके पिता सबसे लोकप्रिय नेता थे. उन्होंने अपने पिता के साथ जमीनी स्तर पर काम किया है और इस समय जिन लोगों को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताया जा रहा है, सबका दायरा उनके अपने जिले तक सीमित था. फडणवीस नागपुर, तावडे मुंबई, मुनगट्टीवार चन्द्रपुर जिले तक ही सीमित थे.
इसका निहितार्थ यही था कि यद्यपि गोपीनाथ मुंडे मुख्यमंत्री नहीं बन पाए थे, तो भी वे इस पद के सबसे प्रबल दावेदार थे इसलिए विरासत में पंकजा को मुख्यमंत्री बनाया जाए. लेकिन ऐसा हुआ नहीं और यही असली वजह है कि वे अपनी नाराजगी समय-समय पर जाहिर करती रहती हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के जन्मदिवस पर आयोजित कार्यक्रम में पंकजा मुंडे ने कहा था,
भाषण पर हंगामा होने के बाद अब पकंजा ने आरोप लगाया है कि उनके भाषण को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है. 28 सितंबर को अपना पूरा भाषण ट्विटर पर जारी करते हुए पंकजा ने कहा कि, "मेरे शब्दों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है. मेरे भाषण के आगे और पीछे की लाइनों पर भी गौर करना चाहिए."
पंकजा के बयान पर कई टिप्पणियां आई हैं. राज्य के वनमंत्री सुधीर मुनगंटीवार का कहना है कि पंकजा मुंडे के कहने का गलत अर्थ निकाला जा रहा है. उनके कहने का मतलब यह है कि, "मोदी ने वंशवाद समाप्त करने का निर्णय लिया है, लेकिन यदि मैं जनता के हृदय में हूं तो मैं निश्चित ही वंशवाद का प्रतीक नहीं हूं."
मुनगंटीवार ने किसी का नाम न लेते हुए कहा कि कई बार ऐसा होता है कि योग्यता न होते हुए भी मुख्यमंत्री का बेटा किसी पद पर जाता है और कभी राष्ट्रीय अध्यक्ष का लड़का अपात्र होते हुए भी उस पद पर जाने का कोशिश करता है. मुनगट्टीवार ने कहा कि मुझे ऐसा लगता है कि पंकजा मुंडे के बयान के पीछे भी यही भावना होगी.
पंकजा की बहन सांसद प्रीतम मुंडे (Preetam Munde) का कहना है कि पंकजा को एक बार फिर बीड़ जिले का पालक मंत्री मनाया जाना चाहिए, क्योंकि पहले जब वे पालक मंत्री थीं तो जिले के विकास में उन्होंने अच्छा काम किया था. पंकजा मुंडे इस वक्त विधानमंडल के किसी भी सदन में सदस्य नहीं है, लेकिन प्रीतम ने अप्रत्यक्ष रूप से इशारा किया है कि पंकजा को विधान परिषद का सदस्य बनाकर मंत्री बनाया जाना चाहिए.
पंकजा मुंडे के मामा और MNS नेता प्रकाश महाजन (Prakash Mahajan) का कहना है कि पंकजा को नीचा दिखाने के लिए बीजेपी में ही कुछ लोग काम कर रहे हैं. ये लोग पंकजा को बदनाम करने, उन्हें राजकीय दृष्टि से खत्म करने का एक सूत्रीय कार्यक्रम चला रहे हैं, पर वे लोग यह नहीं समझ रहे हैं कि अपने एक सहयोगी की राजनीतिक हत्या कर उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होगा.
बीजेपी से असंतुष्ट होकर पार्टी छोड़ने वाले एकनाथ खडसे का कहना है, "मुझे लगता है कि वे (पंकजा) मोदी को चुनौती दे नहीं सकती और उनके बयान का यह अर्थ भी नहीं निकाला जाना चाहिए. इसका कारण यह है कि वे पार्टी की निष्ठावान कार्यकर्ता हैं. यह सही है कि उन्होंने कई बार मोदी या पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बारे में अपनी नाराजगी जाहिर की है, लेकिन फिर भी वह पार्टी के लिए काम कर रही हैं."
मुंबई की पूर्व महापौर किशोरी पेडनेकर (Kishori Pendnekar) ने पंकजा की नाराजी को शिवसेना में हुई तोड़फोड़ से जोड़ा है. उनका कहना है कि पंकजा ने जो कुछ कहा है वह पार्टी कार्यकताओं की भावनाओं की अभिव्यक्ति है. पेडनेकर के अनुसार बीजेपी अपने बच्चे को बगल में रखकर दूसरे के बच्चे (शिवसेना एकनाथ शिंदे गुट) को हट्टा-कट्टा बनाने में जुटी है. पंकजा ने इसी बात पर निशाना साधा है.
पंकजा मुंडे ने कुछ समय पहले एक निजी खबरिया चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था, "नाराजगी वगैरह की बात बेकार है. मेरे नाराज होने का कोई कारण ही नहीं है. मैं इस विचार में पली-बढ़ी हूं कि मेरा रुठना या नाराज होना निजी बात है. इन्हें सार्वजनिक जीवन या राजनीतिक जीवन में सामने नहीं लाना चाहिए."
इसी महीने के शुरुआत में प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले (Chandrashekhar Bawankule) ने कहा था कि पंकजा मुंडे की नाराजगी की बात कपोल कल्पित है. वे पार्टी के लिए काम कर रही हैं और इस समय पार्टी की राष्ट्रीय सचिव होने के साथ-साथ मध्य प्रदेश की सहप्रभारी भी है. उन्होंने आज तक कभी भी बीजेपी या बीजेपी कार्यकर्ताओं के बारे में या बीजेपी की विचारधारा के को न पटने वाली कोई बात नहीं कही है.
गोपीनाथ मुंडे के परिवार में ही सत्ता संघर्ष चल रहा था. 2009 में चाचा गोपीनाथ मुंडे ने जब पंकजा को परली विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया तो उनके भतीजे धनंजय मुंडे (Dhanjay Munde) बीजेपी छोड़कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) में चले गए. तब से ही धनंजय और पंकजा के बीच छत्तीस का आकंड़ा है. 2019 के विधानसभा चुनाव में वे चचेरे भाई धनंजय मुंडे से चुनाव हार गयीं. धनंजय पहले बीजेपी संगठन में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम कर चुके थे.
बीजेपी सहित छोटे-बड़े, प्रादेशिक और क्षेत्रीय दल, चाहे वे उत्तर भारत के हों या दक्षिण भारत के अथवा पूर्वी भारत या पश्चिम भारत के हों, सभी वंशवाद की इस बीमारी से पीड़ित हैं. मुलायम सिंह (Mulayam singh), लालू प्रसाद (Lalu Prasad) से लेकर करुणानिधि (Karunanidhi) तक ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे.
राजगद्दी का सबसे पहला हक अपने बेटे या बेटी को मिलना चाहिए और अगर ऐसा न हो तो पार्टी या सत्ता परिवार से बाहर न जाए यही सोच वंशवाद को पोषित करती है और ऐसा न होने पर नाराजगी जाहिर की जाती है. ऐसी सोच के चलते परिवारवाद और वंशवाद से भारतीय राजनीति को मुक्त करना असंभव है.
(विष्णु गजानन पांडे महाराष्ट्र की सियासत पर लंबे समय से नजर रखते आए हैं. वे लोकमत पत्र समूह में रेजिडेंट एडिटर रह चुके हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं और उनसे दी क्विंट का सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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