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बिहार में सत्ता हाथ से निकलने के बाद पहली बार बीजेपी नेता और गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) दो दिन के दौरे पर बिहार आ रहे हैं. मुस्लिम बाहुल्य कहे जाने वाले सीमांचल में जुमा यानी कि शुक्रवार को अमित शाह पूर्णिया के रंगभूमि मैदान पहुंचेंगे और फिर शनिवार को किशनगंज में रैली करेंगे. सीमांचल की धरती से मिशन 2024 यानी आने वाले लोकसभा चुनाव का शंखनाद माना जा रहा है.
लेकिन सवाल है कि अमित शाह मिशन 2024 की शुरुआत सीमांचल से क्यों कर रहे हैं? क्यों हिंदुत्व कार्ड चलने वाली बीजेपी मुस्लिम बाहुल्य सीमांचल पर फोकस कर रही है?
दरअसल, बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 विधानसभा चुनाव को देखते हुए अभी से अपनी जमीन तैयार करने में जुट गई है. नीतीश कुमार से अलग होने के बाद अमित शाह सीमांचल क्यों आ रहे हैं इस सवाल के जवाब को हम कुछ प्वाइंट में समझते हैं.
राजनीतिक जानकार ये मानते हैं कि बिहार में जबतक बीजेपी नीतीश कुमार के साथ सत्ता में थी तबतक अपने कई मंसूबों को पूरा नहीं कर सकी. जैसे कि न अपना मुख्यमंत्री बना सकी, न ही हिंदुत्व के एजेंडे को मुखर होकर सामने रख सकी. यही वजह है कि नीतीश कुमार से अलग होते ही बीजेपी के नेता नीतीश को हिंदू विरोधी बताने लगे. इसका उदाहरण आपको गया के विष्णुपद मंदिर मामले में मिल जाएगा, जब बिहार सरकार के मंत्री इसराइल मंसूरी सीएम नीतीश कुमार के साथ विष्णुपद मंदिर गए थे और इसके बाद बिहार में राजनीतिक बवाल मच गया था.
यही नहीं बिहार बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर संजय जायसवाल ने तो नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव पर पॉपूलर फ्रंट और इंडिया (PFI) से साठगांठ कर सरकार बनाने का आरोप लगाया था. दरअसल, पिछले कुछ वक्त से पीएफआई टेरर फंडिंग मामले में नेशनल इंवेसेटिगेशन एजेंसी (NIA) के निशाने पर है.
ऐसे में नीतीश से अलग होने के बाद बीजेपी के पास अब अपने हिंदुत्व के एजेंडे के सहारे वोटर को रिझाने का मौका है.
अगर राजनीतिक जमीन की बात करें तो सीमांचल इलाके में चार लोकसभा सीट आती है. पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज. 2019 के चुनाव में बीजेपी के हाथ इस क्षेत्र में एक सीट अररिया लगी थी. बाकी कि दो सीट कटिहार और पूर्णिया नीतीश कुमार की JDU के हिस्से में गई थी. हालांकि ये दोनों ही सीटें बीजेपी की मानी जाती रही हैं. लेकिन गठबंधन में नीतीश ने अपने उम्मीदवार वहां से उतारे थे. इसके अलावा किशनगंज सीट से कांग्रेस को जीत मिली थी.
अगर 2015 विधानसभा चुनाव को देखें तो कांग्रेस ने सीमांचल से 9 सीट जीती थीं. जेडीयू को 6, बीजेपी को 6 और आरजेडी को 3 सीटें मिली थीं.
ऐसे में बीजेपी सीमांचल में अपने दम पर अपनी जमीन तलाश रही है. इसके अलावा सीमांचल के किशनगंज से बीजेपी के नेता शाहनवाज हुसैन सांसद रह चुके हैं, और पिछले कुछ वक्त से बिहार में वो सक्रिय हैं. नीतीश सरकार में उन्हें मंत्री भी बनाया गया था. मतलब साफ है बीजेपी हर तरह से सीमांचल मजबूत करना चाह रही है.
दरअसल, सीमांचल में मुस्लिमों की बड़ी आबादी है, 24 सीटों में से आधी से ज्यादा सीटों पर मुसलमानों की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है. बीजेपी लगातार इस इलाके में बढ़ती आबादी, बांग्लादेशी घुसपैठिये और रोहिंग्या का मुद्दा उठा रही है.
नीतीश से अलग होने के बाद बीजेपी के नेता लगातार सीमांचल के अररिया और किशनगंज में बढ़ती आबादी का दावा कर रहे हैं. अभी हाल ही में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा था कि भारत में सबसे अधिक बच्चे बिहार के अररिया और किशनगंज में पैदा होते हैं.
वहीं केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने महागठबंधन सरकार को घेरते हुए कहा था कि वे सीमांचल क्षेत्र में रह रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या मुसलमानों को अपना वोट बैंक समझते हैं.
अब अमित शाह के इस दौरे के सहारे बीजेपी सीमांचल में जनसंख्या और घुसपैठ का मुद्दा उठाकर बिहार के बाकी हिस्सों में खासकर बहुसंख्यक वोटरों को संदेश देना चाहएगी.
बता दें कि अमित शाह की यात्रा से पहले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और RJD अध्यक्ष लालू यादव कह चुके हैं कि ये लोग लड़ाने आ रहे हैं. लालू यादव ने कहा,
वहीं तेजस्वी यादव ने बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा देने की बात उठाई. तेजस्वी ने कहा,
अमित शाह के दौरे को देखते हुए महागठबंधन ने भी सीमांचल में रैली के जवाब में रैली करने की रणनीति बनाई है. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा है कि महागठबंधन भी दशहरे के बाद रैली करेगा. मतलब साफ है अमित शाह की रैली के सहारे बीजेपी एक तीर से कई निशाना लगा रही है, चाहे विपक्षियों में खलबली मचाना हो या फिर बिहार और खासकर हिंदू वोटरों को छिटकने से रोकना और अपनी जमीन तलाशना हो.
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