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परमबीर सिंह का सस्पेंस: इतने बड़े अफसर का गायब होना कोई साजिश या मिलीभगत?

Parambir Singh विदेश भाग गए हैं या देश में ही कहीं छुपे हुए हैं?

सुजाता आनंदन
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>पूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर परम बीर सिंह</p></div>
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पूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर परम बीर सिंह

फोटो : Altered By The Quint

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एक सेवारत और उच्च स्तर का पुलिस अधिकारी कैसे गायब हो सकता है? लेकिन मुंबई पुलिस के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह (Param Bir Singh) के मामले में लगता है बिल्कुल ऐसा ही हुआ . परम बीर सिंह पर मुंबई के टॉप पुलिस अधिकारी के तौर पर काम करने के दौरान कई तरह की अवैध गतिविधियों में शामिल रहने का आरोप है.

परमबीर सिंह ने महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख पर पुलिस अधिकारियों को शहर के डांस बार और हुक्का पार्लर्स से “डोनेशन” लेने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया था.

जहां अनिल देशमुख ने इस आरोप से इनकार किया है और कहा कि उनके इसमें शामिल होने का कोई सबूत नहीं है, वहीं परमबीर सिंह की मुश्किलें और बढ़ गईं. खासकर जब यह बात सामने आई कि उनके करीबी पुलिस अधिकारी सचिन वाजे देश के मौजूदा राजनीतिक शासन के करीबी और एक नामी उद्योगपति के घर को उड़ाने की साजिश में शामिल हैं.

वाजे को नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी ने गिरफ्तार किया है और ये जांच भी काफी धीमी रफ्तार से चल रही है. लेकिन माना यह जा रहा है कि परमबीर सिंह निश्चित गिरफ्तारी से बचने के लिए लोगों की नजरों से दूर चले गए हैं.

लेकिन क्या परमबीर सिंह विदेश भाग गये हैं या वह जांचकर्ताओं के रडार से बचने के लिए देश के किसी दूरस्थ दुर्गम स्थान पर छिपे हैं?

“विदेश” भागने के कयास 

'परमबीर सिंह विदेश चले गए हैं' के कयास पर भरोसा करना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि सेवारत अधिकारियों के विदेश यात्रा को लेकर साफ प्रोटोकॉल हैं और सिंह जैसे किसी भी उच्च पद पर बैठे अधिकारी के लिए चोरी-छिपे देश के बाहर जाना असंभव होगा. इसके अलावा यह बात भी है कि विदेश में रहना काफी खर्चीला है जो एक सरकारी कर्मचारी के बस की बात नहीं है भले ही उस पर आय के ज्ञात स्रोतों से अलग खर्च करने के आरोप लगाए गए हों.

दूसरी बात यह है कि अगर वो सच में विदेश चले गए हैं तो ये उच्च पदों पर बैठे राजनीतिक नेताओं की मिलीभगत के बिना संभव नहीं हो सकता. लेकिन सिंह के सामने बड़ी दुविधा है- उनका वास्ता वैचारिक रूप से विरोधी दो सरकारों से पड़ा है- एक केंद्र में और दूसरी महाराष्ट्र में. पुणे और मुंबई पुलिस कमिश्नर रहते उन्होंने दोनों के साथ अच्छा समन्वय बनाए रखा था.

पुणे के पुलिस कमिश्नर रहने के दौरान उन्होंने उस समय के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की देख-रेख में भीमा-कोरेगांव मामले की जांच का नेतृत्व किया. महाविकास अघाड़ी की सरकार के दौरान मुंबई पुलिस कमिश्नर के तौर पर उन्होंने एक टीवी एंकर की गिरफ्तारी का नेतृत्व किया, जो उद्धव ठाकरे सरकार को निशाना बना रहे थे.

लेकिन अब, जब ये खबरें आ रही हैं कि वाजे ने एनआईए को सारी जानकारियां दे दी होंगी और जब गुजरात के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी संजीव भट और यूपी के पुलिस अधिकारी अमिताभ ठाकुर का उदाहरण उनके सामने है, सिंह को गिरफ्तारी से बचने और कुछ दिनों तक इंतजार करने की जरूरत थी. जब तक कि जांच अनिर्णायक साबित न हो जाता या वो एक या दूसरे सरकार से कोई सुरक्षा हासिल न कर लेते.

लेकिन स्कॉटलैंड यार्ड के बाद दूसरे नंबर पर मानी जाने वाली मुंबई पुलिस को चकमा देकर सिंह हवा हो गए. यह मुंबई पुलिस की अच्छी छवि नहीं पेश करता .
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हालांकि, ऐसी घटना पहले भी देखने को मिली है. 1980 के दशक में नारकोटिक्स ब्यूरो के प्रभारी और एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ड्रग्स का धंधा करने वालों और तस्करों के साथ मिलीभगत के आरोपों के बीच अचानक ही रातों-रात गायब हो गया.

कहा जाता है कि वो अमेरिका चला गया था, जहां उनका परिवार था लेकिन आज तक मुंबई पुलिस उसकी तलाश नहीं कर सकी है. लेकिन वो दौर इंटरनेट, स्मार्टफोन और सोशल मीडिया से पहले का था. जब लोग बिना ज्यादा कोशिश या कठिनाई के खुद को आसानी से छुपा सकते थे.

लेकिन ऐसा लगता है कि परमबीर सिंह हाई प्रोफाइल अधिकारी रहते हुए भी खुद को और परिवार को लोगों की नजरों से दूर रखा. केवल जब नौकरी के लिए जरूरी था तभी वो परिवार के साथ नजर आए. उनके बेटे और बेटी की शादी महाराष्ट्र के टॉप राजनीतिक परिवारों में हुई है और अलग-अलग राजनीतिक दलों के इन नेताओं से संरक्षण हासिल करना उनके लिए बहुत मुश्किल काम नहीं होगा.

साजिश, रहस्य, मिलीभगत और लापरवाही का कॉकटेल

लेकिन यह जरूरी नहीं है कि नजरों से दूर होने से लोग परमबीर सिंह को भूल जाएंगे. क्योंकि उनके खिलाफ, हथियारों और गोला बारूद की तस्करी/ खरीद बिक्री में शामिल होना, बेगुनाहों की हत्या की साजिश, आतंकवादियों से संभावित कनेक्शन आदि गंभीर आरोप हैं.

बहरहाल, अगर अधिकारी उनकी तलाश को लेकर गंभीर हैं तो उन्हें सिर्फ सभी इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लॉग बुक की जांच ही करनी होगी क्योंकि परमबीर सिंह अपने मौजूदा पासपोर्ट के बिना छुप कर यह यात्रा नहीं कर सकते थे.

अगर उन्होंने ट्रैक की जा सकने लायक अपने सभी डिवाइसों को बंद कर दिया है और इसके बदले में खुद को देश के किसी दूर-दराज वाले इलाके में बंद कर लिया है तो उनकी तलाश के लिए ज्यादा समय और बड़े स्तर पर राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत होगी.

मामले की धीमी चल रही जांच से उसी राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के संकेत मिलते हैं और यह भी कहा जा रहा कि परम बीर सिंह इस मुद्दे पर दोनों पक्षों के बीच सहमति बनने तक अंडरग्राउंड हो गए हैं. हालांकि इस मामले के एक और मुख्य किरदार, जो लगता है कि लोगों की नजरों से दूर हो गए हैं, वो अनिल देशमुख हैं.

हालांकि अनिल देशमुख को उनकी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार का संरक्षण प्राप्त है, जिन्होंने देशमुख को उस समय भी अकेला छोड़ने से इनकार कर दिया जब ये साफ हो गया था कि देशमुख को इस्तीफा देना ही होगा. देशमुख एक विधायक हैं लेकिन उन्हें एक सेवारत पुलिस अधिकारी की तरह प्रोटोकॉल का पालन नहीं करना होता है और उनके लिए लोगों की नजरों से दूर होना शायद आसान हो सकता है.

मामले की सच्चाई चाहे जो भी हो, ये साजिश, रहस्य, राजनीतिक षड्यंत्र और मिलीभगत और आपराधिक लापरवाही का एक मादक कॉकटेल है. इस बात की संभावना कम ही है कि हम जल्द ही इसकी तह तक पहुंच पाएंगे.

(सुजाता आनंदन एक पत्रकार हैं और 'हिंदू हृदय सम्राट: हाउ द शिवसेना चेंज्ड मुंबई फॉरएवर', 'महाराष्ट्र मैक्सिमस: द स्टेट, इट्स पीपल एंड पॉलिटिक्स' की लेखिका हैं. उनका ट्विटर हैंडल है @sujataanandan. यह एक ओपिनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)

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