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Parliament Security Breach: 13 दिसंबर को दो युवकों ने संसद के दर्शक दीर्घा से लोकसभा में कूदकर भारतीय लोकतंत्र की पवित्र जगह पर हंगामा मचा दिया. आरोपियों को सदन में कलर स्मोक लहराते देखना बेहद डरावना था. सदन के अंदर तक जूते में धुआं फैलाने वाले कनस्तर छिपाकर लाने और उसे इस्तेमाल करने में आरोपी कामयाब रहे. यह कोई संयोग नहीं हो सकता क्योंकि यह सेंध 2001 संसद हमले की 23वीं बरसी पर लगी थी. सांसदों ने थोड़ी देर पहले ही उस हादसे में जान गंवाने वाले जवानों को सदनों में श्रद्धांजलि दी थी.
अभी तो फैक्ट यही है कि दोनों आरोपी लोकसभा के अंदर इस घटना को अंजाम देने के लिए एक कठोर सेक्योरिटी सिस्टम की कई परतों को भेदकर घुसे. इसमें कोई शक नहीं है कि यह एक बड़ी और गंभीर सुरक्षा चूक है. इसके लिए जवाबदेह एजेंसियों को बहुत से सवालों के जवाब देने होंगे.
सुरक्षा का पहला घेरा मेन गेट पर ही है, जहां किसी तरह की आवाजाही को कंट्रोल करने के लिए दिल्ली पुलिस और संसद के सुरक्षा कर्मचारी सिविल ड्रेस में तैनात रहते हैं. संसद भवन तक जाने के रास्ते पर लगातार कैमरों से निगरानी रखी जाती है. संसद भवन के पास भीड़ जमा होने से रोकने के लिए इलाके में धारा 144 स्थायी रूप से लागू रहती है.
सुरक्षा का दूसरा घेरा रिसेप्शन वाला एरिया है, जहां विजिटर्स की फिजिकल जांच की जाती है और संसद परिसर के गेट पर मेटल डिटेक्टरों से गुजरने के बाद, उन्हें जांच के एक और दौर, यानी अथॉरिटी लेटर और पहचान सत्यापन के लिए प्रवेश कराया जाता है.
रिसेप्शन पर भी संसद सुरक्षा कर्मचारी तैनात रहते हैं. रिसेप्शन पर सुरक्षा जांच के बाद, विजिटर्स को संसद परिसर के एक विशिष्ट स्थान जैसे संसद पुस्तकालय, संग्रहालय या फिर किसी सदन के लिए अथॉरिटी लेटर जारी किया जाता है.
सुरक्षा का तीसरा घेरा प्रत्येक सदन की विजिटर गैलरी के एंट्रीगेट पर है, जहां विजिटर्स की एक बार फिर फिजिकल जांच की जाती है और मेटल डिटेक्टरों से उनका टेस्ट किया जाता है .
आखिरी में सुरक्षा की चौथी परत यानि चौथा घेरा दर्शक दीर्घा में ही है, जहां विजिटर्स पर नजर रखने और उनकी किसी भी आपत्तिजनक हरकत को रोकने के लिए संसद सुरक्षा कर्मचारी और दिल्ली पुलिस के जवान सिविल ड्रेस में बैठे होते हैं. उनकी जिम्मेदारी होती है कि विजिटर्स पूरे समय अनुकूल व्यवहार करें. इसके अलावा संसद के अन्य कर्मचारियों की अतिरिक्त तैनाती होती है.
सुरक्षा व्यवस्था की कठोरता को देखते हुए, यह बेहद आश्चर्यजनक है कि आरोपी अपने जूते में कलर स्मोक का कनस्तर छिपाकर ले जाने में कामयाब रहे. अगर सुरक्षा कर्मचारी सतर्क रहते तो मेनगेट पर ही इसका पता लग जाना चाहिए था कि कनस्तर किसी मेटल का बना है या नहीं.
हालांकि, अगर कलर स्मोक का कवर प्लास्टिक का होता है तो, यह मेटल डिटेक्टरों की पकड़ से बच जाते हैं. लेकिन तथ्य यह है कि इन्हें जूतों में छिपाया गया था. इससे उनकी चाल-ढाल प्रभावित हुई होगी और कोई भी ट्रेंड सुरक्षा कर्मचारियों की बारीक या समझदारी वाली नजर में आ जाना चाहिए था.
दूसरी नाकामी दर्शक दीर्घा में तैनात सुरक्षाकर्मियों और अन्य स्टाफ की है. सुरक्षा दल को युवकों को गैलरी से कूदने से रोकने में सक्षम होना चाहिए था. यह सुरक्षा कर्मचारियों की तुरंत रिएक्ट करने की क्षमता पर सवाल उठाता है.
खास तौर पर खालिस्तानी वांटेड गुरपतवंत सिंह पन्नू ने कथित तौर पर 13 दिसंबर के आसपास संसद पर हमला करने की धमकी दी थी, ऐसे में संसद सुरक्षा कर्मचारियों और दिल्ली पुलिस के साथ-साथ खुफिया एजेंसियों को तैयार रहना चाहिए था.
कथित तौर पर, आरोपियों के लिए अथॉरिटी पास एक बीजेपी सांसद द्वारा जारी किया गया था. हालांकि एक सांसद के लिए संसद में आने के लिए अनुरोध करने वाले प्रत्येक व्यक्ति की पहचान को वेरिफाई करना मुश्किल है लेकिन इन मामलों में सांसदों के कर्मचारियों को अच्छी तरह से पड़ताल करने की जरूरत होती है. उम्मीद है कि पूछताछ में इस पहलू को ध्यान में रखा जाएगा.
कथित तौर पर इस बात पर भी चर्चा हो रही है कि संसद की सुरक्षा के लिए और अधिक फोर्स की तैनात की जाएगी. हालांकि पुराने और नए संसद परिसर, दोनों के लिए उनकी तैनाती को देखते हुए सिक्योरिटी फोर्स की जरूरतों की समीक्षा जरूरी है, लेकिन ऐसी सिक्योरिटी फोर्स की गुणवत्ता पर ध्यान देने की जरूरत है.
आने वाले वक्त में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ज्यादा सतर्क और एक्टिव बनाए रखने के लिए खास तौर पर ट्रेनिंग देने की जरूरत है.
कुछ समय बाद चीजें भुला दी जाती हैं और ऐसे अगले एपिसोड तक सब कुछ बस हमेशा की तरह चलता रहता है. उम्मीद है कि हम इस घटना से सही सबक लेंगे और इस तरह के नाकामी को रोकने के लिए जल्द से जल्द कोई ठोस उपाय करेंगे.
(संजीव कृष्ण सूद (रिटायर्ड) ने बीएसएफ के अतिरिक्त महानिदेशक के रूप में कार्य किया है और एसपीजी के साथ भी थे. उनका ट्विटर हैंडल @sood_2 हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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