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मैंने संसद में दहशत देखी: क्या सरकार अपने सांसदों की सुरक्षा की गारंटी दे सकती है?

Parliament Breach: संसदीय लोकतंत्र में सरकार की पहली जवाबदेही संसद के लिए है, न कि मीडिया के लिए - शशि थरूर

शशि थरूर
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>मैंने संसद में दहशत देखी: क्या सरकार अपने सांसदों की सुरक्षा की गारंटी दे सकती है?</p></div>
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मैंने संसद में दहशत देखी: क्या सरकार अपने सांसदों की सुरक्षा की गारंटी दे सकती है?

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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13 दिसंबर को लोकसभा में सुरक्षा में हुई चूक (Parliament Security Breach) से संसद में संकट पैदा हो गया है. इससे यह हुआ:

नए संसद भवन में बेहद अपर्याप्त सुरक्षा उपायों को उजागर कर दिया;

इसने री-डिजाइन किए गए परिसर के लेआउट और व्यवस्था के बारे में कई सांसदों की यहां शिफ्ट किए जाने को लेकर चिंताओं को ठोस रूप दे दिया है;

विपक्ष की तरफ से खड़े किए सवालों से गंभीर आपत्तियां जन्मी, जिसके नतीजे में घटना के अगले दिन गुरुवार को संसद के 14 सदस्यों को निलंबित कर दिया गया.

बुधवार दोपहर शून्यकाल में अपने संबोधन के बाद मैं लोकसभा चैंबर से निकल रहा था तभी शोरगुल सुनाई दिया. कोई दर्शक दीर्घा से लटका हुआ था और सदन के फर्श पर कूदने की कोशिश कर रहा था. एक मिनट के अंदर, वह टेबल पर उछल-कूद रहा था और अपने हाथ में पकड़ी अजीब सी चीज से हवा में पीला धुआं उड़ा रहा था. तभी एक और घुसपैठिया उससे आ मिला.

मैंने दरवाजे से एक लम्हे के लिए यह सब देखा, तभी मेरे पीछे घबराई हुई एक टीएमसी सांसद ने चिल्लाना शुरू कर दिया, “प्वॉइजन गैस!” मैंने सोचा कि अगर वह सही हैं तो सबसे समझदारी वाली बात यही होगी कि हमें बाहर निकल जाना चाहिए.

इस बीच सांसदों ने घुसपैठियों को दबोच लिया और उनकी धुनाई शुरू कर दी. एक हिम्मती सांसद, मेरे कांग्रेसी सहयोगी गुरजीत सिंह औजला ने एक घुसपैठिए से स्मोक कैनिस्टर छीन लिया, इस कोशिश में उनका हाथ झुलस गया और पीला रंग लग गया.

संसद में सुरक्षा में सेंध के बाद क्या हुआ?

यह घटनाक्रम चंद मिनटों तक चला, इन लोगों को (बाहर इनके दो साथियों के साथ) हिरासत में ले लिया गया और सदन स्थगित कर दिया गया. जब हम लंच के बाद दोबारा सदन में जुटे तो मैंने पोस्टल बिल पर, जिसको लेकर मेरी गंभीर आपत्तियां हैं, लोकसभा को संबोधित किया.

इस दौरान धुएं की तीखी गंध लगातार बसी हुई थी, और जैसे ही प्रमुख BJP वक्ता ने अपना जवाब खत्म किया, विपक्षी सांसदों ने सुबह की घटनाओं पर चर्चा की मांग की आवाज उठाई.

स्पीकर आसन से उठकर चले गए थे और उनकी जगह एक अंतरिम पीठासीन स्पीकर आसन पर थे, मगर स्पीकर फिर से वापस अपनी सीट पर बैठ गए थे, उन्होंने 4 बजे सभी फ्लोर लीडर्स के साथ बैठक का ऐलान किया और बहस को स्थगित कर दिया. 4 बजे तमाम विपक्षी नेताओं ने सुरक्षा मुद्दे पर बहस और गृह मंत्री के बयान की मांग की. मामले पर सहमति नहीं बनने पर सदन की कार्यवाही फिर स्थगित कर दी गई.

गुरुवार की सुबह हालात ने नकारात्मक मोड़ ले लिया. न तो प्रधानमंत्री और न ही गृह मंत्री दिखाई दे रहे थे; विपक्ष ने गृह मंत्री के बयान देने के लिए हंगामा करना शुरू कर दिया. रक्षा मंत्री की ओर से सदन को शांत करने के लिए कुछ कहा गया जो शोर में सुनाए नहीं दिया. हंगामे के बीच स्पीकर ने कई सांसदों को निलंबित कर दिया और सदन को फिर से स्थगित कर दिया.

गुरुवार दोपहर भी यही सिलसिला दोहराया गया

शाम तक 14 सांसदों को बाकी सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया.

अति उत्साह में 15वें सांसद को भी निलंबित कर दिया गया. यह थे DMK के एसआर पार्थिबन, जो सर्दी लगने की वजह से घर पर आराम कर रहे थे और जब उन्हें निलंबन के लिए “नेम” किया गया तो वे मौजूद भी नहीं थे. (बाद में शर्मिंदगी के साथ स्पीकर ने उनका निलंबन रद्द कर दिया.)

शुक्रवार की सुबह की शुरुआत एक बार फिर स्थगन के साथ हुई है. सवाल है कि हम किस तरफ बढ़ रहे हैं?

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गृह मंत्री के सुरक्षा संकट से बचने से रुकावट पैदा हो रही है

विपक्ष की मांगें पूरी तरह वाजिब हैं. सरकार का कहना है कि लोकसभा की व्यवस्था देखना गृह मंत्री की नहीं, स्पीकर की जिम्मेदारी है. यह बिल्कुल सही है, लेकिन दिल्ली पुलिस जिसके सात अधिकारियों को सुरक्षा में सेंध के मद्देनजर निलंबित कर दिया गया है, वह गृह मंत्री को रिपोर्ट करती है, स्पीकर को नहीं.

और गृह मंत्री इस मसले पर उस सदन की बजाय मीडिया में बयान जारी करने में मसरूफ हैं. संसदीय प्रणाली में सरकार की पहली जवाबदेही संसद के प्रति होती है. जब सत्र चल रहा हो तो प्रधानमंत्री और उनके मंत्रियों को खुद इसको संबोधित चाहिए, न कि मीडिया को.

भले ही केवल लोकसभा को यह बताने के लिए कि वह फिलहाल में प्रेस में क्या कह रहे हैं - गृह मंत्री का सदन में उपस्थित होने और वहां बोलने से इनकार करना मौजूदा विवाद के केंद्र में है. अगर वह बुधवार दोपहर या गुरुवार सुबह ऐसा कर देते तो विवाद सुलझ गया होता और संकट टल गया होता.

विपक्ष शीतकालीन सत्र में सदन के संचालन में पूरी तरह सहयोग के इरादे के साथ आया था और इस तथ्य से वाकिफ था कि महत्वपूर्ण कानूनों पर बहस की जरूरत है. हम हर बहस में सकारात्मक भावना से हिस्सा ले रहे थे. इसकी वजह सरकार का उन लोगों, जो इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, यानी सांसदों के साथ सुरक्षा के हालात पर चर्चा करने से इनकार करना है, जिसने हमें वहां पहुंचा दिया है, जहां हम हैं.

नई संसद भवन की बनावट चूक के पीछे एक बड़ी वजह है

नए संसद भवन की व्यवस्थाओं को लेकर पहले से काफी असंतोष है. बहुत सारे लोग एक ही एंट्री गेट का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे सांसद और भारी भीड़ अंदर के हॉल के दरवाजों और सदन की ओर जाने वाले रास्तों और सीढ़ियों पर कंधे से कंधा टकराती फिरती है. कुछ सांसदों का कहना था कि वे पुरानी संसद में हासिल विशिष्टता की भावना से महरूम हो गए हैं.

गुफानुमा नई इमारत एक विधायी सदन की गरिमा और गंभीरता दिखाने के बजाय एक कन्वेंशन हॉल की तरह दिखती है. एंट्री गेट पर भीड़ के जमावड़े ने सांसदों में असुरक्षा की भावना को और गहरा कर दिया है. दर्शक दीर्घा के सबसे निचले हिस्से की सदन से नजदीकी, और दर्शक दीर्घा और सदन के बीच किसी रुकावट की गैरमौजूदगी ने साफ तौर से सुरक्षा में सेंध का मौका मुहैया कराया.

तथ्य यह है कि घुसपैठिए BJP MP प्रताप सिम्हा के दस्तखत वाले पास पर आए थे, इससे सांसदों की चिंता बढ़ गई है. तथ्य यह है कि वे धुएं के स्मोक केनिस्टर्स अंदर तक लाने में कामयाब हुए. कोई और भी आसानी से उसी तरह ग्रेनेड, पिस्तौल या प्वॉइजन गैस ला सकता था. स्क्रीनिंग की क्वालिटी और ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों की संख्या दोनों में साफ तौर से कमी थी.

तथ्य यह है कि घुसपैठियों को रोकने और दबोचने वाले सुरक्षाकर्मी नहीं बल्कि सांसद थे, जो कई सांसदों के लिए फिक्र बढ़ाने वाला है. उनकी सुरक्षा के रखवाले कहां थे?

सरकार को तुरंत सांसदों को संबोधित करना चाहिए 

इनमें से कुछ मुद्दों पर फौरन ध्यान दिया गया है. छह गेट में से एक मकर द्वार अब सिर्फ सांसदों के लिए आरक्षित है; यहां तक कि उनके स्टाफ को भी दूसरे दरवाजे से दाखिल होना होगा. गैलरी में मेहमानों पर फौरी तौर पर रोक लगा दी गई है. कहा जा रहा है कि मेहमानों को फिर अंदर जाने की इजाजत देने से पहले ना टूटने वाले शीशे लगाए जाएंगे. सात पुलिस वालों को निलंबित कर दिया गया है. सुरक्षा की समीक्षा की जा रही है.

लेकिन आंदोलन करने वाले सांसद सबूत चाहते हैं कि सरकार इस मामले को पूरी गंभीरता से ले रही है. वे चाहते हैं कि उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए चर्चा की जाए और गृह मंत्री उसमें बोलें.

संसदीय लोकतंत्र में ये मामूली मांगें हैं, लेकिन इन्हें पूरा नहीं किया जा रहा है, और इसके बजाय इन मांगों को उठाने वालों को निलंबित किया जा रहा है, यह हमारे संसदीय लोकतंत्र की मौजूदा हालत का अफसोसनाक नजारा है.

(संयुक्त राष्ट्र के पूर्व अंडर-सेक्रेटरी-जनरल शशि थरूर कांग्रेस के सांसद और लेखक हैं. उनसे @ShashiTharoor पर संपर्क किया जा सकता है. यह लेखक के निजी विचार हैं. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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