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संसद का एक और सत्र नाकामयाब रहा. बुधवार को शीतकालीन सत्र (Parliament Winter Session) का समापन हो गया, नियत दिन से एक दिन पहले सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया. लेकिन चार हफ्ते से भी कम समय में भारत के विधायी लोकतंत्र की एक दुखद तस्वीर सामने आ गई.
शीतकालीन सत्र के दौरान ऐसा एक दिन भी नहीं बीता, जब बड़ी संख्या में सांसद सदन के दोनों सदनों के वेल में जमा नहीं हुए.
सत्र में पहले दिन से कई मुद्दों पर विरोध शुरू हो गए थे. सबसे पहले राज्यसभा से 12 विपक्षी सांसदों को निलंबित करने का असाधारण फैसला किया गया- यह आरोप लगाकर कि पिछले (मानसून) सत्र में उन्होंने नियमों का उल्लंघन किया था. उस कार्रवाई, जिसकी वैधता पर बहस की जा सकती है- की वजह से कड़वाहट पैदा हुई, जो आखिर तक चली. सत्र के समापन और सदन के स्थगन तक. निलंबित सांसद 22 दिनों तक महात्मा गांधी की मूर्ति के नीचे बैठकर सत्याग्रह करते रहे और दोनों सदनों के सांसदों ने उनसे एकजुटता दिखाई.
दोनों मुद्दों पर सरकार अड़ी रही. उसे सदन में हंगामा बर्दाश्त था, विपक्ष के सवालों के जवाब देना नहीं.
राज्यसभा में विपक्ष ने तर्क देकर यह आरोप लगाया कि 12 सांसदों के अभूतपूर्व निलंबन की वजह यह थी कि, बकौल तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद डेरेक ओ ब्रायन, “बहुमत का निर्माण” किया जा सके. राज्यसभा में विपक्ष के नेता (एलओपी) मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि वहां राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के 118 सांसद हैं, और विपक्ष के 120, इसलिए सांसदों को निलंबित किया गया ताकि सरकार के रास्ते में कोई अड़चन न रहे.
सरकार ने कहा कि सभी निलंबित सांसदों को माफी मांगनी पड़ेगी. खड़गे ने इच्छा जताई कि वह सभी निलंबित सांसदों की तरफ से सामूहिक रूप से खेद जताना चाहते हैं, लेकिन इस पेशकश को बीजेपी ने ठुकरा दिया. वह जिद करती रही कि हर सांसद व्यक्तिगत रूप से माफी मांगे.
लेकिन इन आंकड़ों से यह नहीं पता चलता कि सरकार ने संसदीय प्रक्रिया और उसकी मूल भावना, दोनों का किस तरह मजाक बनाया है. बिल्स पर किसी भी तरह की गंभीर बहस या चर्चा नहीं हो रही. उसे पेश किया जा रहा है, और आनन-फानन में पास किया जा रहा है.
इसमें विवादास्पद चुनाव कानून (संशोधन) बिल, 2021 भी शामिल है, जोकि मतदाता सूचियों को वोटर्स के आधार नंबरों से लिंक करने की कोशिश करता है.
कांग्रेस ने कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाने की कोशिश की- बढ़ती कीमतें, बेरोजगारी, वैक्सीनेशन और चीन की सीमा पर संकट, लेकिन सभी को खारिज कर दिया गया. यहां तक कि संसद के दोनों सदनों में कृषि कानून रिपील बिल भी बिना बहस के पास कर दिया गया, इसके बावजूद कि विपक्ष सरकार से यह सवाल करने का मौका मांगता रहा कि पहले उसने इन कानूनों को क्यों थोपा और अब इसे वापस क्यों ले रही है. क्या 14 महीने के विरोध प्रदर्शन में 750 किसानों की मौत की कोई जवाबदेही नहीं है.
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में संसद विचार-विमर्श का मंच नहीं रह गई. संसद में विधायी कामकाज का सत्यानाश हो गया है.पिछले साल कोविड-19 महामारी का मतलब यह था कि सरकार ने शीतकालीन सत्र आयोजित ही नहीं किया. इस साल का बजट सत्र पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के चलते संक्षिप्त रहा.
हंगामे के चलते वह कीमती समय बर्बाद हो गया, जिसमें सांसद कार्यपालिका को जवाबदेह ठहरा सकते हैं. प्रश्नकाल का 60% से भी ज्यादा समय बेकार चला गया. बाकी का 40% समय बहुमत के प्रति श्रद्धा रखने वाले सांसदों के सवालों को समर्पित कर दिया गया. चूंकि विपक्ष विरोध कर रहा था और अध्यक्ष शोरगुल के बीच प्रश्नकाल करते रहे.
सरकार खुद भी अपने लेजिसलेटिव एजेंडा के लिए संसद का भरपूर इस्तेमाल नहीं कर पाई. क्रिप्टोकरंसी और आधिकारिक डिजिटल करंसी का रेगुलेशन बिल, 2021, जिसका इरादा निजी क्रिप्टोकरंसियों को बैन करना था, पर चर्चा ही नहीं हुई. कई इकोनॉमिक बिल्स पेश ही नहीं किए गए जिनमें से एक सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों के निजीकरण से संबंधित था.
राज्यसभा में जिनके फैसले के बाद निलंबन का विरोध शुरू हुआ था, वह सभापति, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडु ने खेद प्रकट करते हुए कहा, "कि सदन ने अपनी क्षमता से बहुत कम काम किया" और आत्मविश्लेषण की अपील की. विपक्ष ने अपना कर्तव्य निभाया.उसने धरने वाली जगह भारतीय संविधान की प्रस्तावना पढ़ी और कहा कि इस “पवित्र किताब” की आत्मा को सरकार ने कुचल कर रख दिया है.
लोकसभा और राज्यसभा, दोनों अपना नियत काम नहीं कर रहीं- ये काम विचार-विमर्श, बहस, कानून निर्माण और सरकार को जवाबदेह बनाना है.
इस सुधार के बिना, संसद का नया भवन सिर्फ ईंटों की इमारत बनकर रह जाएगा. लोकतंत्र के जनक महापुरुषों के सपनों और आकांक्षाओं का एक खोखला ताबूत जो इसे प्रजातंत्र का मंदिर बनाना चाहते थे.
(लेखक कांग्रेस के सांसद हैं और संयुक्त राष्ट्र के अंडर सेक्रेटरी रहे हैं. उनका ट्विटर हैंडिल @ShashiTharoor. है. यह एक ओपिनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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Published: 24 Dec 2021,02:35 PM IST