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सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्तियां नहीं हो रही हैं. स्थिति गंभीर है, मगर मसले का हल निकालने की बजाए न्यायपालिका और कार्यपालिका एक-दूसरे पर आरोप मढ़ रही है.
आश्चर्य है कि राष्ट्रपति चुप हैं, मुख्य न्यायाधीश चुप हैं और देश के प्रधानमंत्री चुप हैं. सभी दिल्ली में हैं. लुटियंस एरिया में हैं. चाहें तो एक कॉल पर एक-दूसरे से मिल सकते हैं, चाय पर चर्चा कर सकते हैं. क्या देशहित में ऐसा नहीं हो सकता?
हाईकोर्ट में नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम केंद्र सरकार से पूछ रही है और केंद्र सरकार कॉलेजियम पर कम सिफारिशें करने का इल्जाम लगा रही है. केवल सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में कुल मिलाकर 419 जजों की नियुक्ति होनी है, जिनमें सुप्रीम कोर्ट के 6 रिक्त पद शामिल हैं.
सिर्फ सुप्रीम कोर्ट की बात करें, तो यहां 18 दिसंबर तक 54,719 केस लंबित थे, जिनमें पांच साल से ज्यादा तक लंबित रहने वाले केसों की संख्या 15,929 थी. 10 साल से ज्यादा तक लंबित केसों की संख्या 1550 थी. यह जानकारी खुद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय कानून मंत्रालय को उपलब्ध कराई है, जो पब्लिक डोमेन में है.
कॉलेजियम की कई सिफारिशों पर केंद्र सरकार ने कोई निर्णय ही नहीं लिया है. यह गंभीर स्थिति है. अगर हम सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों के रिक्त पदों की बात करें, तो यहां स्वीकृत पद हैं 31 और सक्रिय न्यायाधीश हैं 25. न्यायाधीशों के 6 पद खाली हैं.
देश में 24 हाईकोर्ट हैं, जहां जजों के स्वीकृत पदों की संख्या 1079 हैं. मगर तैनात हैं महज 666 जज. 413 जजों की नियुक्ति की जानी है. यानी 38 फीसदी से ज्यादा न्यायाधीशों के पद खाली हैं. ऐसी क्या मजबूरी है कि देश में लंबित पड़े मामले बढ़ते जा रहे हैं, मगर जजों की नियुक्तियां नहीं हो रही हैं?
तेलंगाना और आंध्र प्रदेश, बॉम्बे, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, जम्मू-कश्मीर, मणिपुर, मेघालय के हाईकोर्ट की स्थिति ये है कि यहां चीफ जस्टिस भी एक्टिंग हैं. यानी इन 8 राज्यों में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की जानी है, मगर उस पर फैसला नहीं हो पा रहा है.
इधर हाईकोर्ट में लंबित मामलों की तादाद बढ़ती चली जा रही है. 24 में से 23 हाईकोर्ट में तकरीबन 37.47 लाख केस लंबित हैं. ये आंकड़े दिसंबर 2017 के हैं. छोटे राज्यों के हाईकोर्ट की स्थिति और भी खराब है. जजों की कमी के कारण मामलों की सुनवाई नहीं हो पा रही है. हाईकोर्ट के हर एक जज पर 5227 केस का बोझ है.
मणिपुर हाईकोर्ट से गुवाहाटी हाईकोर्ट में केस के ट्रांसफर की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 17 अप्रैल को पूर्वी राज्यों के हाईकोर्ट में पदों के रिक्त होने पर चिंता जताई थी. मणिपुर हाईकोर्ट में न्यायाधीश के 5 स्वीकृत पद हैं, लेकिन सिर्फ दो पदों पर न्यायाधीश हैं, 3 पद खाली हैं.
मेघालय में 4 न्यायाधीश होने चाहिए, लेकिन महज एक काम कर रहे हैं. त्रिपुरा में न्यायाधीशों के 4 रिक्त पद में 2 भरे हैं और 2 पद पर न्यायाधीशों की नियुक्ति का इंतजार है. देश में केवल सिक्किम ऐसा राज्य है, जहां स्वीकृत 3 पदों में तीनों पदों पर न्यायाधीश तैनात हैं.
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