मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019UAE में मंदिर का उद्घाटन कहीं से भी 'सांस्कृतिक गुलामी' से भारत की आजादी नहीं

UAE में मंदिर का उद्घाटन कहीं से भी 'सांस्कृतिक गुलामी' से भारत की आजादी नहीं

दुनिया भर में पहले से ही 1550 स्वामीनारायण मंदिर हैं, फिर मंदिर नंबर 1551 कैसे भारत को 'सांस्कृतिक गुलामी' से आजाद करा रहा?

रोहित खन्ना
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>UAE में मंदिर का उद्घाटन कहीं से भी 'सांस्कृतिक गुलामी' से भारत की आजादी नहीं</p></div>
i

UAE में मंदिर का उद्घाटन कहीं से भी 'सांस्कृतिक गुलामी' से भारत की आजादी नहीं

(Photo- Quint Hindi)

advertisement

अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन (Ram Mandir Inauguration) के बाद, प्रधान मंत्री मोदी को संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में बीएपीएस स्वामीनारायण मंदिर का उद्घाटन करते देखा गया. यह इवेंट बड़ी खबर बनी.

इसके साथ कई बीजेपी नेताओं और हिंदुत्व विचारकों का एडिटोरियल छपा या उन्होंने खुद सोशल मीडिया पर पोस्ट डाले- जिसमें दावा किया है कि यूएई में मंदिर का उद्घाटन भारत की 'संस्कृति गुलामी' से आजादी की शुरुआत है.

वाकई?

यह इस तथ्य से कैसे मेल खाता है कि दुनिया भर में पहले से ही 1550 स्वामीनारायण मंदिर हैं? दरअसल, प्रधानमंत्री ने यूएई में जिस मंदिर का उद्घाटन किया, वह महज मंदिर नंबर 1551 है. दुनिया भर में 3,850 स्वामीनारायण केंद्र भी हैं. साथ ही याद रखें कि यह कई हिंदू संप्रदायों में से सिर्फ एक है.

उदाहरण के लिए, दुनिया भर में 650 से अधिक इस्कॉन कृष्ण मंदिर हैं. साथ ही मुख्य रूप से दक्षिण भारतीय प्रवासियों के पुराने और हाल के शैव मंदिर पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में फैले हुए हैं. साथ ही जैन प्रवासी भी हैं, चाहे वह एंटवर्प के डायमंड डिस्ट्रिक्ट में हो या अमेरिका में. क्या आप जानते हैं कि पूरे अमेरिका में 100 से अधिक जैन मंदिर और सांस्कृतिक केंद्र हैं?

भारत का विशाल सांस्कृतिक फैलाव कोई हालिया घटना नहीं है

चलिए सिख प्रवासी के बारे में भी बात करें. केवल अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा में 600 से अधिक गुरुद्वारे हैं. दरअसल, संयुक्त अरब अमीरात में पहले से ही 7 गुरुद्वारे हैं!

फिजी से लेकर ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड तक, दक्षिण अफ्रीका में डरबन तक, तंजानिया में जांजीबार तक, त्रिनिदाद, सूरीनाम और कैरेबियन में गुयाना तक - सदियों से जहां भी भारतीय गए हैं, उन्होंने सचमुच अपनी 'संस्कृति' को अपने सूटकेस में रखा है और इसे गर्व से धारण किया. देसी रेस्तरां और कपड़े की दुकानें, मंदिर और गुरुद्वारे, भारतीय फिल्म संगीत से गूंजती देसी शादी - ये हमें बताते हैं कि दुनिया भर में सांस्कृतिक रूप से गौरवान्वित लाखों भारतीय हैं, और उन्हें अपने दिमाग को 'उपनिवेश मुक्त' करने के लिए किसी की आवश्यकता नहीं है.

और भारत का विशाल सांस्कृतिक फैलाव कोई हाल की घटना नहीं है. आपकी जानकारी के लिए - बहरीन का श्रीनाथजी मंदिर 200 वर्ष से अधिक पुराना है, और मस्कट का श्री शिव मंदिर 100 वर्ष से अधिक पुराना है.

सांस्कृतिक रूप से 'उपनिवेशीकरण' से दूर यह सब पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति की ताकत, प्रसार, स्वीकार्यता और भारत की वास्तविक विश्वव्यापी 'सॉफ्ट पावर' को दर्शाता है. यह दशकों पुराना है, और कुछ स्थानों पर तो सदियों पुराना है.

तो, वास्तव में अभी क्या चल रहा है? सीधे शब्दों में कहें तो, यह राजनीतिक स्पिन है - 2024 के चुनावों से पहले एक राजनीतिक कैंपेन है ताकि हिंदू वोटों को फिर से टारगेट किया जा सके. यूएई मंदिर के उद्घाटन को प्रधानमंत्री के लिए एक नियमित 'रिबन-काटो' कार्यक्रम के रूप में प्रस्तुत करने से इसमें मदद नहीं मिलती. जबकि वास्तव में यह 'रिबन-काटो' कार्यक्रम ही था.

इसलिए यह दिखाया जा रहा कि ऐसे प्रत्येक मंदिर का उद्घाटन भारतीय संस्कृति के 'उपनिवेशवाद से मुक्ति' का हिस्सा है. यह बहुसंख्यक उत्पीड़न की कहानी से भी अच्छी तरह मेल खाता है जिसे हिंदुत्व विचारकों द्वारा नियमित रूप से परोसा जाता है.

लेकिन सच यह है कि, जैसा कि हमने प्रदर्शित किया है, भारतीय संस्कृति न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में हमेशा जीवित रही है और फलती-फूलती रही है.

इस तर्क के अनुसार, भारतीय संस्कृति का 'उपनिवेशीकरण' तो बहुत पहले शुरू हो गया था

इसके अलावा, नए मंदिरों में प्रधान मंत्री का 'रिबन काटना' एक नया विचार प्रतीत होता है. लेकिन इसकी भी वजह है कि इससे पहले किसी अन्य भारतीय प्रधान मंत्री ने मंदिर के उद्घाटन पर अपना ध्यान केंद्रित क्यों नहीं किया है- हमारे संविधान में 'पंथनिरपेक्ष' शब्द के कारण. संविधान में यह शब्द होते हुए भी, मंदिरों का रिबन काटना एक ऐसा विकल्प है जिसका इस्तेमाल बीजेपी कर सकती है. धर्म और राजनीति का मेल, हिंदू पहचान और भारतीय पहचान को एक के रूप में ही स्थापित करना, बीजेपी की राजनीति के केंद्र में है. और इसलिए पार्टी मंदिर उद्घाटन को अच्छी तरह से स्वीकार कर सकती है. लेकिन यह दावा करना कि ये उद्घाटन भारतीय संस्कृति को 'उपनिवेशवाद से मुक्ति' दे रहे हैं... माफ कीजिए, यह बहुत पहले हो चुका है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

अच्छा, आप मैकडॉनल्ड्स के फेमस मैकआलू टिक्की बर्गर को देखिए. यह क्या दर्शाता है? यह एक बेहद लोकप्रिय फूड चेन की कहानी है, जो अमेरिकी 'सॉफ्ट कल्चर' का प्रतीक है. इसे भारत में सफल होने के लिए भारतीय स्वाद की जिद्दी और अपनी सांस्कृतिक को स्वीकार करना पड़ा और 30 साल पहले 'आलू टिक्की' बर्गर लाना पड़ा. यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि हम वास्तव में सांस्कृतिक रूप से कभी भी 'उपनिवेशित' नहीं हुए हैं.

आपका 10, डाउनिंग स्ट्रीट में दिवाली मनाने वाले इंग्लैंड के प्रधान मंत्री ऋषि सुनक के बारे में क्या कहना है? क्या इससे यह नहीं पता चलता कि पिछले कुछ समय से, भारतीय संस्कृति ने, वास्तव में, उपनिवेशवादियों को अपना उपनिवेश बना लिया है!

और फिर भी, 'हमारी' संस्कृति, 'उनकी' संस्कृति, या एक संस्कृति का दूसरे पर कब्जा... यह पूरी शब्दावली और बातचीत मुझे असहज करती है. सभ्यता संस्कृतियों या धर्मों की 'प्रतिस्पर्धा' नहीं है- चाहे आज दुनिया भर में अंधराष्ट्रवादी नेताओं और उनके फॉल्लोवर्स की तपिश बढ़ रही है, जो आक्रामक रूप से इसे उसी तरह पेश करते हैं.

मेरी समझ से, इसके लिए सही शब्द 'संश्लेषण' है

इतिहास का एक समझदार छात्र यह स्पष्ट रूप से जनता है कि भले ही सेनाएं आपस में भिड़ी हैं, लेकिन संस्कृतियां अक्सर नहीं टकराईं. एक-दूसरे के संपर्क में आने के बाद, उन्होंने एक-दूसरे का अध्ययन किया, एक-दूसरे से सीखा और खुद में कुछ गढ़ा (संश्लेषण).

जब अलेक्जेंडर/सिकंदर ने 332 ईसा पूर्व में मिस्र पर चढ़ाई की, तो यह समृद्ध मिस्र की संस्कृति पर ग्रीक या हेलेनिक संस्कृति की जीत का प्रतीक नहीं था. वास्तव में, हमने अलेक्जेंड्रिया शहर में इन दो महान संस्कृतियों का संश्लेषण देखा, जिसकी स्थापना सिकंदर ने वहां की थी. 323 ईसा पूर्व में अलेक्जेंडर की मृत्यु पर, उनके करीबी दोस्त और जनरल टॉलेमी ने फिरौन की पारंपरिक उपाधि धारण की, जिससे अगले 300 वर्षों तक मिस्र पर शासन करने वाले राजवंश की समाप्ति हुई, और धीरे-धीरे उनकी ग्रीक पहचान पूरी तरह से मिस्र की संस्कृति में विलीन हो गई.

ऐसे ही भारत में भी, दिल्ली में सल्तनत और मुगल शासन के सदियों के दौरान, हमने संस्कृतियों का 'संघर्ष' नहीं देखा. इसके बजाय, हमने समृद्ध गंगा-जमुनी 'तहजीब' का विकास देखा, जो एक वास्तविक संश्लेषित सांस्कृतिक परंपरा है जो आज तक कायम है.

अधिक आधुनिक उदाहरण के लिए, 'भांगड़ा-रेगे' को देखें, जो पंजाबी और जमैका संगीत संस्कृति का मिक्स है. यह भारत या कैरेबियन में नहीं, बल्कि ब्रिटेन में तैयार हुआ. यह ब्रिटेन में रहने वाले पूर्व उपनिवेशों के लोगों के लिए एक वास्तविक सांस्कृतिक मिश्रण बन गया है. जैसा होना चाहिए.

और आखिर में, स्वामीनारायण मंदिर को अपनाने के लिए संयुक्त अरब अमीरात के लोगों और अमीर की सराहना की जानी चाहिए. मैं इस पर दांव लगाने के लिए तैयार नहीं हूं कि भारत कब इसका एहसान चुकाएगा. भारत में क्या कहीं एक नई, भव्य मस्जिद बनेगी, जिसके उद्घाटन में मुख्य अतिथि यूएई के अमीर होंगे? 2024 के चुनावों के बीच बीजेपी के चुनावी वादों में से इसके एक होने की संभावना नहीं है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT