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ये जो इंडिया है ना, यहां देर है, अंधेर नहीं
असंवैधानिक... मनमाना... एकपक्षीय
इन कठोर शब्दों का प्रयोग करते हुए, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी 2024 को चुनावी बांड योजना (Electoral Bond) को रद्द कर दिया.
जैसा कि द क्विंट ने अप्रैल 2018 में आपको बताया था कि कैसे हर इलेक्टोरल बॉन्ड में एक खास नंबर छिपा होता है, जिससे मोदी सरकार हर पॉलिटिकल डोनर की पहचान कर सकती थी.
द क्विंट की स्टोरी ने तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली के इस दावे को खारिज कर दिया कि यह योजना दानकर्ता की गुमनामी की गारंटी देगी, जिससे दानदाताओं को नकद दान के बजाय चुनावी बांड चुनने की अनुमति मिलेगी, जिससे चुनावों में 'काला धन' कम होगा.
हालांकि, हमने दिखाया कि छिपी हुए नंबर से सरकार को यह देखने की अनुमति मिली कि कौन अपने राजनीतिक विरोधियों को दान दे रहा है. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि दान का बड़ा हिस्सा बीजेपी को गया. सुप्रीम कोर्ट ने भी काले धन पर अंकुश लगाने के सरकार के मूल दावे को खारिज कर दिया है.
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) डोनर का नाम उन एजेंसियों के साथ शेयर करने के लिए बाध्य थी, जो सरकार के लिए काम करती हैं. लेकिन आम जनता को नहीं पता था कि किसने चंदा दिया? किस पार्टी को दिया? कितना पैसा दिया? क्या पिछले दरवाजे से सौदा हुआ?
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कॉर्पोरेट दान पर सीमाएं हटाना और साथ ही उन्हें अपारदर्शी रखना 'असंवैधानिक' था.
कोर्ट ने भी बिल्कुल सही कहा कि अज्ञात व्यावसायिक हितों से इस तरह का असीमित दान 'स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत' और लोकतंत्र के बुनियादी 'एक व्यक्ति एक वोट के मूल्य' का उल्लंघन है. और इसलिए, राजनीतिक फंडिंग में पूर्ण पारदर्शिता की वापसी के लिए कड़ी मेहनत करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने SBI को निर्देश दिया है कि वह चुनावी बांड योजना के लॉन्च के बाद से सभी राजनीतिक दानदाताओं के नाम भारत के चुनाव आयोग के साथ, खरीद की तारीख, खरीदी गई राशि और प्रत्येक मामले में लाभार्थी पार्टी के नाम के साझा करे.
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 13 मार्च 2024 तक यह जानकारी सार्वजनिक करने का भी आदेश दिया है.
हमारे नेता 16 हजार करोड़ रुपए कमा चुके हैं. इसमें सबसे ज्यादा पैसे 50% बीजेपी के पास गए हैं.
वित्तीय वर्ष 2022-23 के अंत तक उपलब्ध पार्टी-वार आंकड़े बताते हैं कि योजना की शुरुआत के बाद से इस योजना के माध्यम से आने वाले 12,000 करोड़ रुपये में से 6,500 करोड़ रुपये से अधिक बीजेपी के पास गए, जो कुल राशि का 55 प्रतिशत से अधिक है. कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस (TMC) को लगभग 1,000 करोड़ रुपये पर मिले हैं, जबकि अन्य पार्टियों को बहुत कम राशि मिली है.
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