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(स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी के भाषण पर एक नजरिया ये भी)
प्रधानमंत्री के स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में दो खास बातें सामने आई हैं:
मौजूदा समय में हम भारत के हाल के इतिहास में सबसे सटीक लम्हे से गुजर रहे हैं, और घरेलू व वैश्विक दोनों हालात देश के लिए 2047 तक एक विकसित अर्थव्यवस्था के तौर पर उभरने के लिए अनुकूल बन गए हैं.
अभी भी बहुत काम बाकी है और हम सभी, भारत के 1.4 अरब नागरिकों को एक साथ आना होगा, और ज्यादा मेहनत करनी होगी और मजबूत इरादे के साथ भारत को दुनिया की बड़ी इकोनॉमिक्स में से एक बनाना होगा.
जैसा कि प्रधानमंत्री ने जोर देकर हमसे कहा, अगर हम 2047 तक एक विकसित अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य को हासिल करने और उस मकसद के लिए राष्ट्रीय चरित्र का पुनर्निर्माण करने का संकल्प ते हैं, तो हम दो सदियों के औपनिवेशिक शोषण को सफलतापूर्वक पलट देंगे.
ब्रिटिश शासन के अधीन आने से पहले 1850 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी 18.5 फीसद थी. 2047 में एक विकसित अर्थव्यवस्था बनकर भारत अपनी हिस्सेदारी फिर से हासिल करने की राह पर होगा, जो दुनिया की आबादी में देश की हिस्सेदारी के स्तर के अनुसार होगी.
जैसा कि प्रधानमंत्री ने बताया, भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी बन चुका है और अगले पांच सालों में तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने की राह पर है. हालांकि, इस मामले में हमें यह बड़ी कामयाबी पाने के लिए दो चेतावनियों को ठीक से याद रखना होगा.
पहली, जब हम दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे, तब भी हमारी प्रति व्यक्ति औसत आय विश्व की प्रति व्यक्ति औसत आय के पांचवें हिस्से के आसपास होगी.
दूसरी, 2029 में चीनी और अमेरिकी इकोनॉमी शायद हमसे पांच गुना और सात गुना बड़ी होंगी. याद रखें कि 1990 में चीनी GDP 396 अरब डॉलर थी और भारत 326 अरब डॉलर की GDP के साथ ज्यादा पीछे नहीं था. आज चीन हमसे छह गुना बड़ा है. हमें यह पक्का करने के लिए राष्ट्रीय संकल्प और जीरो टॉलरेंस के साथ काम करना होगा ताकि आने वाले सालों में यह फर्क और न बढ़े.
बड़ी संख्या में महिला कामगारों को वर्कफोर्स में शामिल करने और उन्हें ड्रोन जैसे नवीनतम तकनीकी उपकरण से लैस करने से आने वाले सालों में हमारे वर्कफोर्स की गिनती और क्वालिटी दोनों में और इजाफा होगा. संतुलित क्षेत्रीय विकास को ध्यान में रखते हुए और हमारी नौजवान कामकाजी आबादी के दुनिया में सिर्फ सर्वश्रेष्ठ उत्पादन करने के पक्के इरादे के साथ महिलाओं की अगुवाई में होने वाला यह विकास भारत के लिए तेज, न्यायसंगत और सतत विकास लाएगा. विश्व समुदाय में सतत और न्यायसंगत विकास को हासिल करने की भारत की इस उड़ान में कोई “किंतु-परंतु” नहीं है.
इस संभावना ने भारत की विकास क्षमता में दुनिया का भरोसा बढ़ाया है. साथ ही, भारत की जनता भी अब और ज्यादा आश्वस्त है कि सरकार उनके कल्याण के लिए जी-जान से जुटी है. विश्व समुदाय और भारतीय नागरिकों के इस दोहरे भरोसे का नतीजा है कि भारत आज ग्लोबल साउथ की आवाज बनकर उभरा है और G-20 में दुनिया के ताकतवर देशों के बीच इसकी पोजिशन पहले से कहीं बेहतर हुई है. आगामी G-20 शिखर सम्मेलन के मेजबान के तौर पर भारत कुछ बड़े ग्लोबल रिफॉर्म एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है जो कार्बन फुटप्रिंट को कम करने और महिला सशक्तिकरण को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी हैं.
भारत को लेकर यह चौतरफा भरोसा सरकार की सुधार, काम पूरा करने और बदलाव के अपने वादे को कामयाबी से पूरा करने की क्षमता के परिणामस्वरूप आया है. प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि 2023 का भारत एक दशक पहले के भारत से काफी अलग है. बुनियादी ढांचे का विकास, डिजिटल कनेक्टिविटी, बिजली की उपलब्धता और क्वालिटी हेल्थकेयर और शिक्षा तक पहुंच सभी में कई गुना सुधार हुआ है.
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पिछले दस सालों में आम भारतीय अपनी आर्थिक हालत में काफी सुधार देख रहा है. यह 13.50 करोड़ से ज्यादा आबादी के गरीबी के दलदल से बाहर निकलने में साफ दिखाई देता है. मुद्रा लोन (Mudra loans) की मदद से 8 करोड़ जॉब्स पैदा हुए और किसानों को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर और यूरिया पर 10 लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी से जनकल्याण स्कीम्स बड़े दायरे में लोगों तक पहुंचीं. इसलिए प्रधानमंत्री का लोगों की जिंदगी में इस तरह के चौतरफा सुधार लाने का श्रेय लेना पूरी तरह सही है.
आने वाले दिनों में क्या होगा? प्रधानमंत्री ने कुछ नई स्कीम्स का ऐलान किया है जैसे कि विश्वकर्मा योजना (Vishwakarma Yojna) के तहत परंपरागत कारीगरों के लिए योजनाएं; दो करोड़ ग्रामीण महिलाओं को लखपति बनाने की योजना है; राज्यों को धनराशि का हस्तांतरण तीन गुना (बीते नौ सालों में 30 लाख रुपये से 100 लाख रुपये) कर आर्थिक संघवाद को और मजबूत किया गया है.
मेरे लिए, भाषण की सबसे आशाजनक और आशावादी बात प्रधानमंत्री द्वारा 2047 तक भारत को एक विकसित अर्थव्यवस्था बनाने के राष्ट्रीय संकल्प और कोशिश में आम नागरिकों को पूरी तरह भागीदार बनने के लिए बार-बार प्रेरित करना था. विकास एक बार जन आंदोलन बन गया तो फिर यह आगे ही बढ़ता जाएगा और इसे कोई रोक नहीं पाएगा. तब भारत की विकास यात्रा आगे की ओर बढ़ती ही जाएगी.
जहां तक मुमकिन है शासन को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने और हमारे आर्थिक ढांचे से भ्रष्टाचार और मुफ्तखोरी को जड़ से खत्म करने का वादा निश्चित रूप से विकास में लोगों की ज्यादा भागीदारी को आसान बनाएगा. इन वादों को जमीन पर उतारना और असल बदलाव अमल में लाना, 2047 तक भारत को एक विकसित अर्थव्यवस्था बनाने के सफर में असल इम्तेहान होगा.
(लेखक Pahle India Foundation के चेयरमैन और नीति आयोग के पूर्व वाइस चेयरमैन हैं. यह लेखक के निजी विचार हैं. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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