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SPACs यानि स्पेशल पर्पस एक्विजिशन कंपनीज पहली पीढ़ी के उद्यमियों के लिए नई उम्मीद है. एक ही बार में SPACs उन्हें अरबों डॉलर, कई अच्छे निवेशक और जल्द ही अमेरिकी शेयर बाजार में लिस्टिंग दिला सकता है और इसके जरिए धन-दौलत और विकास के अगले चरण में तेजी से पहुंचने का रास्ता. ये एक सपने के सच होने जैसा लग रहा है, है ना? दुर्भाग्य से, जैसा कि भारत के पहली पीढ़ी के संस्थापकों के साथ हो चुका है, ये एक डरावने सपने में बदल सकता है. लेकिन खराब बातों को बाद के लिए छोड़ देते हैं और अच्छी खबर से शुरुआत करते हैं.
वे स्टॉक स्वैप के जरिए महंगी संपत्तियों की तलाश करते हैं. जैसे ही उन्हें एक “शिकार” का पता चलता है-उदाहरण के तौर पर SaaS(सॉफ्टवेयर एज ए सर्विस) में किसी तेजी से बढ़ती नई कंपनी या ई-कॉमर्स या इजरायल या भारत में रिन्यूएबल एनर्जी कंपनी-वो मौजूदा शेयर धारकों को नया स्टॉक जारी कर इस पर झपट्टा मार देते हैं. और इससे पहले कि आप SEC (सेक्युरिटीज एक्सचेंज कमीशन ऑफ अमेरिका) कह सकें वो SPAC गायब हो जाता है और अधिग्रहित संपत्ति लिस्ट हो जाती है.
आज, SPACs वाल स्ट्रीट में एक आकर्षक चीज है. पूरे 2020 के 83 अरब डॉलर के मुकाबले 2021 के पहले दो महीने में ही 90 अरब डॉलर के SPACs जुटाए गए हैं. कुछ बढ़िया सौदों-उदाहरण के तौर पर 3 अरब डॉलर में निकोला कॉर्प, एक ईवी स्टार्ट-अप, 800 मिलियन डॉलर में वर्जिन गैलेक्टिक, एक डिजटिल गेमिंग कंपनी ड्राफ्ट्सकिंग 2.7 अरब डॉलर में- से निवेशक उत्साहित हैं.
वही एक पुरानी समस्या है. भारत के नियम ग्लोबल फायनांस की संरचना में तेजी से हो रहे बदलाव के साथ बदलने में असफल हैं. इसके ऊपर ये कि हमारे रेगुलेटर्स (या उनकी क्षमता और मानसिक बनावट को देखते हुए मैं उन्हें “इंस्पेक्टर्स” कहूं) पुराने नियमों को पूरी तरह से और जोर-जबरदस्ती से लागू कराते हैं. पीड़ित को केस जीतने के लिए महंगी मुकदमेबाजी जीतनी होती है. इस बीच “इंस्पेक्टर कार्यालय” डराने-धमकाने, वसूली करने लग जाता है, बैक अकाउंट जब्त कर लिया जाता है. कर्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया जाता है और संपत्ति भी जब्त कर ली जाती है और आरोप साबित होने से पहले ही बेच भी दी जाती है. अगर आपको मेरी बात पर भरोसा नहीं है तो कैर्न एनर्जी नाम की एक कंपनी के बारे में गूगल सर्च कर लीजिए.
तो हमारे रेगुलेटर्स/इंस्पेक्टर्स कैसे SPAC के मौके को बर्बाद कर सकते हैं? समझाता हूं:
लिबरालाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) के तहत भारत के लोगों को हर साल विदेशी संपत्ति पर अधिकतम 250,000 डॉलर निवेश करने की अनुमति है. इसलिए, अगर ये नियम, जो आम लोगों के लिए हैं, एक पहली पीढ़ी के संस्थापक पर लागू होता है तो उसका क्रॉस बॉर्डर शेयर स्वैप असंभव होगा. उदाहरण के तौर पर, अगर वो एक अरब मूल्य वाली कंपनी की 10 फीसदी हिस्से की मालिक हैं तो वो 100 मिलियन डॉलर का शेयर पाने की हकदार है. लेकिन बिना सोचे समझे/जोर जबर्दस्ती लागू किया जाए तो उसे अपने जीवन भर की कमाई का सिर्फ 0.25 फीसदी हिस्सा ही मिल सकेगा. इस फैसले से होने वाले अन्याय की कल्पना कीजिए.
अगर आप LRS की समस्या से पार पा भी जाएं तो आपके सामने कैपिटल गेंस की बाधा आ खड़ी होगी. अगर विलय भारत के अंदर ही हो रहे थे, तो इसके लिए टैक्स देने की जरूरत नहीं थी. लेकिन चूंकि ये दो देशों का मामला है शेयर स्वैप को सेल-एंड-फ्रेस पर्चेज कॉन्ट्रैक्ट (बिक्री और फिर नई खरीदारी कॉनट्रैक्ट) के तौर पर लिया जाएगा. तो हमारी संस्थापक को कैपिटल गेंस टैक्स के लिए करीब-करीब 20 मिलियन डॉलर भरने पड़ेंगे. एक छोटा कदम जो टैक्स गणना के लिए एक SPACस्वैप को घरेलू विलय के तौर पर मान लेगा, इसका हल हो सकता है. लेकिन पिछली बार कब आपने हमारे “रेगुलेटरी इंस्पेक्टोरेट”को कुछ भी ‘छोटा कदम’ लेने से सहमत होते कब देखा था?
अंत में, राउंड ट्रिपिंग की “आपराधिक” कार्रवाई. चूंकि हमारी खाली हाथ संस्थापक ने एक विदेशी शेयर की “खरीद” के लिए एक स्थानीय संपत्ति “बेची” होगी जो एक भारतीय बिजनेस में फिर से निवेश की जाएगी (हां, एक साधारण क्रॉस बॉर्डर शेयर स्वैप को हमारे कानून निर्माता इतने गलत तरीके से भी समझ सकते हैं), वो राउंड टिपिंग की दोषी होगी और उसे जेल की सजा तक हो सकती है.
बस! ऐसी कई कमियां हैं जिनका हवाला दिया जा सकता है अगर मौजूदा नियम, जो घरेलू लेन-देन के लिए बनाई गए हैं, उन्हें पूरी तरह से, बिना सोचे समझे, बिना किसी उचित संदर्भ के क्रॉस बॉर्डर SPAC-स्वैप के इस आधुनिक फायनांसियल इनोवेशन पर लागू किया जाए. नेट नेट, ये चमक खत्म हो गई.
स्टार्ट-अप इंडिया, स्टैंड-अप इंडिया, डिजिटल इंडिया, आत्मनिर्भर इंडिया के प्रति पीएम मोदी की खालिस प्रतिबद्धता को देखते हुए मैं उन्हें कुछ छूट क्यों नहीं दे सकता? क्योंकि मैंने ये डरावना मंजर पहले भी देखा है, कैसे नौकरशाही ऐसे नियम लेकर आती है जो प्रधानमंत्री के हर आह्वान को खत्म कर देते हैं. मुझे हाल के इतिहास में ले जाने की इजाजत दीजिए.
सरकार का मानना था कि उसने भारत की पहली पीढ़ी के संस्थापकों को उनके अमेरिकी और चीन की पहली पीढ़ी के उद्यमियों की तरह नियमित और संतुलित बना दिया था. दुर्भाग्य से भव्य लगने वाले ये “प्रोत्साहन” अनैच्छिक, आधे-अधूरे, अतिसंवेदनसील और जमीन पर असर दिखा सकें इस लिहाज से काफी छोटे थे:
मार्क जुकरबर्ग की तरह चाहे आपकी इक्विटी पर 10 गुना वोटिंग हो जाए, जैसा कि एक रेगुलेटर ने मुझे समझाया, सरकारी सचिवों के एक समूह को ये प्रमाणित करना होगा कि आप “सही मायने में टेक सेवी” संगठन हैं जो नीतिगत छूट के योग्य है.
अगर, भगवान न करे, आपकी अलग रहने वाली पत्नी या भाई या सौतेली मां दौलतमंद हैं, तो आप पर रोक लगाई जा सकती है क्योंकि आपका नेट वर्थ “500 करोड़ से ज्यादा” हो सकता है. दुर्भाग्य से इसी तरह से एक प्रमोटर ग्रुप को कानूनी तौर पर परिभाषित किया गया है जिसमें पत्नी, भाई-बहन और माता-पिता शामिल हैं.
आप कंपनी में केवल “फुल टाइम” करते हुए ही अपने एसआर शेयर्स को रख सकते हैं-अगर आप कंपनी छोड़ते हैं, तो आपके शेयर खुद ब-खुद एक गुना वोटिंग राइट्स वाले साधारण शेयरों में बदल जाएंगे. इसी तरह अगर आप कोई दूसरी कंपनी खरीदते हैं उसके साथ विलय करते हैं या नियंत्रण खो देते हैं.
कई “कोट टेल” (छुपे) प्रावधान हैं जिसके तहत आपके एसआर शेयर्स के सिर्फ एक वोट होंगे, न कि 10 गुना जो आपको लगता है. और एक सनसेट क्लॉज भी है- लिस्टिंग के पांच साल बाद आपके एसआर शेयर्स अनिवार्य रूप से साधारण शेयर्स हो जाएंगे जब तक कि दूसरे शेयर होल्डर आपके विशेषाधिकार को बढ़ाने के लिए वोट न दें.
आप एसआर बेच नहीं सकते. जिस वक्त आप उसे ट्रांसफर करते हैं, वो साधारण शेयर बन जाते हैं, शुरुआत से. इसके अलावा, ये अमानवीय लगता है लेकिन जब आपकी मौत होती है, आपके परिवार को एसआर शेयर्स विरासत में नहीं मिलते हैं. अतिरिक्त वोटिंग का ये अधिकार आपके साथ ही चला जाता है.
दुर्भाग्य से, इसी तरह “बाबुओं” ने सुपीरियर राइट्स (एसआर) शेयर्स को खत्म कर दिया. अब उन्हें SPAC की चमक को बरबाद नहीं करने दें.
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