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मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक पैंतरा बदल रही है. नहीं तो वो उन नेताओं के साथ नरमी क्यों बरत रही है, जिनका कभी वो "घाटी को अस्थिर करने के लिए... विदेशी शक्तियों के साथ मिलकर काम कर रहे गुपकर गैंग" कहकर मजाक बनाती थी... पहला कॉल सबसे अलग और अड़ियल विरोधी महबूबा मुफ्ती को किया गया था, जिनके चाचा को भी उसी वक्त कैद से रिहा कर दिया गया- ऐसे जैसे कि सरकार तुष्टिकरण के अपने नए मूड को दिखाने की कोशिश कर रही हो. मुझे लगता है कि सरकार खुद को एक मुश्किल राजनीतिक स्थिति में फंसी महसूस कर रही है.
इन्हीं सब का पहला परिणाम ये हो सकता है कि पाकिस्तान से शांति की बातें हो रही हैं. दूसरा और अधिक महत्वपूर्ण परिणाम, जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को फिर से शुरू करना हो सकता है. इसे चाहे किसी भी राजनीतिक ताकतों की वजह से प्रस्तावित किया गया हो, ये प्रधानमंत्री मोदी की स्वागत योग्य पहल है. लेकिन इसके बाद पूरी तरह से ईमानदारी से काम होना चाहिए, कहने का मतलब है कि ये सिर्फ दिखावे के लिए नहीं होना चाहिए.
परिसीमन को सभी, यहां तक कि कट्टर विरोधियों के इनपुट के साथ बड़े स्तर पर करने की जरूरत है - ये ऐसा नहीं दिखे चुनावी परिणाम को अपने पक्ष में करने के लिए "धांधली" हो रही है. इसके बाद पूर्ण राज्य का दर्जा देने की जरूरत है, न कि दिल्ली में तैयार किए गए संक्षिप्त संस्करण की तरह. आखिर में, चुनाव पूरी तरह से स्वतंत्र और निष्पक्ष होने चाहिए, जिससे घाटी में "वैध" रूप में स्वीकार की जाने वाली सरकार बने. अगर ये सभी चीजें राजनीतिक रूप से ईमानदार और प्रत्यक्ष तरीके से होतीं हैं, तो प्रधानमंत्री मोदी हाल-फिलहाल में कम हो रही अंतरराष्ट्रीय ख्याति का एक हिस्सा फिर से पा सकते हैं.
दूसरी लहर के शांत होने के पहले ही सरकार ने लोगों को 'एकदम नजदीकी तीसरी लहर' के बारे में चेतावनी देना शुरू कर दिया है .यहां तक कि उसके लिए लगभग 6-7 सप्ताह की निश्चित तारीख भी तय कर दी गयी है. इस अजीब और अटकलबाजी पर आधारित दावे का समर्थन करने के लिए कोई वैज्ञानिक मॉडल सामने नहीं रखा गया. इस भविष्यवाणी के जवाब में यह दावा किया जा रहा है कि "यह पूरी तरह से अनुमान है और भविष्यवाणी करना असंभव है". सच कहूं तो सरकार का 'सावधान रहें तीसरी लहर का सामना करना पड़ेगा' जैसी चेतावनी लोगों को घर के अंदर रहने, मास्क पहनने और भीड़ ना इकट्ठा करने के लिए एक SOS की तरह है.
भविष्यवाणी के लिए 3 वेरिएबल का जटिल अलजेब्रिक इक्वेशन है. X वह रेट है जिससे लोगों का वैक्सीनेशन हो रहा है, जिसके जुलाई में बढ़कर 44 लाख प्रतिदिन होने का अनुमान है. Y पिछले संक्रमणों के आधार पर ऑफिशियल पॉजिटिविटी रेट है, जो वर्तमान में 4% से कम है .लेकिन चूंकि हमारे डेटा की 100% शुद्धता संदिग्ध है. इसलिए Y के साथ Z के रूप में एडजेस्टमेंट फैक्टर जोड़ना आवश्यक है ,यानी आधिकारिक डेटा से छूटे संक्रमणों की संख्या को इंडिकेट करने वाला सीरोप्रेवेलेंस. X को छोड़कर हमें अलग-अलग स्टडी और सर्वे में आए Y और Z के विभिन्न आंकड़ों में ज्यादा भरोसा नहीं है. इसलिए X,Y,Z के किसी भी जटिल इक्वेशन को हल करना असंभव होगा.
वैक्सीनेशन को लेकर चीन ने इस हफ्ते एक शानदार उदाहरण पेश किया. उसने एक अरब वैक्सीन डोज का टारगेट पूरा कर लिया. कुछ महीने पहले तक वैक्सीनेशन को लेकर संघर्ष कर रहे चीन की इस उपलब्धि पर कुछ लोग यकीन नहीं कर पा रहे. अमेरिका में राष्ट्रपति बाइडेन के कुर्सी संभालने के बाद यहां 30 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन डोज लगाई गईं. इसके अलावा यूके में भले ही पूरी आबादी की संख्या ज्यादा नहीं है, लेकिन फिर भी यहां 80 फीसदी से ज्यादा वयस्कों को कोरोना की एक डोज लगाई जा चुकी है. जो कि शानदार प्रदर्शन है.
शिवसेना विधायक ने उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर ये क्यों कहा कि उन्हें मौजूदा गठबंधन से निकलकर फिर से पीएम मोदी के साथ गठबंधन कर लेना चाहिए. इसके पीछे क्या राजनीति है? कुछ दिन पहले पीएम मोदी की उद्धव ठाकरे से आमने-सामने बातचीत भी हो चुकी है. इस घटना के बाद महाविकास अघाड़ी गठबंधन के सबसे कमजोर घटक दल कांग्रेस में खलबली मची हुई है. लेकिन कांग्रेस का ये डर सही नहीं है.
ऐसे में नए सिरे से गठबंधन हो सकता है और बीजेपी अपने आप को सीमित कर सकती है और शिवसेना को ज्यादा जगह दे सकती है. इसके बाद कांग्रेस को फिर से एनसीपी के साथ 50-50 डील करनी पड़ सकती है. उसके बाद कांग्रेस अपनी स्थिति मजबूत करने में कितनी कामयाब होती है तो उसके जंग करने के अंदाज पर निर्भर करेगा. जो भी हो लेकिन इस रास्ते पर कांग्रेस को खुद को फिर से तराशने का मौका होगा. दूसरे विकल्प में उसका कमजोर होना तय है.
बिटकॉइन पर प्रतिबंध की वकालत करने वाले हर भारतीय अधिकारी को मयामी भेज दिया जाना चाहिए. नहीं, पुरस्कार के रूप में नहीं, बल्कि पब्लिक क्रिप्टो एक्टिविस्ट मेयर फ्रांसिस सुआरेज से मिलने के लिए, जो बीजिंग के प्रतिबंध के कारण घर छोड़ने वाले चीनी बिटकॉइन माइनर्स का स्वागत कर रहे हैं. चीन में दुनिया के आधे से ज्यादा बिटकॉइन माइनर्स हैं, जो अब माइग्रेट करना चाहते हैं.
सुआरेज स्थानीय अर्थव्यवस्था में रोजगार पैदा करने के लिए दूसरे प्रोत्साहनों जैसे टैक्स रियायतों, इंफ्रास्ट्रक्चर की छूट और आसान नियमों के बारे में भी सोच रहे हैं. और देखिए कि हम भारत में क्या कर रहे हैं, बिटकॉइन पर प्रतिबंध लगाने के बारे में सोच रहे हैं. हमेशा की तरह, हम पीछे रहना पसंद करते हैं.
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Published: 21 Jun 2021,10:42 PM IST