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Rahul Gandhi In UK: राजनीतिक विचारों से अलग मैंने यूके में एक अलग राहुल को देखा

जब विश्व भर में लोकतंत्र चरमरा रहा था तब राहुल गांधी ने भारत को वैश्विक लोकतंत्र की सर्वाइवल स्टेज के केंद्र में रखा

नबनीता सरकार
नजरिया
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<div class="paragraphs"><p>राहुल गांधी ने भारत को वैश्विक लोकतंत्र की सर्वाइवल स्टेज के केंद्र में रखा</p></div>
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राहुल गांधी ने भारत को वैश्विक लोकतंत्र की सर्वाइवल स्टेज के केंद्र में रखा

फोटो : कमरान अख्तर / द क्विंट

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"नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान"- ये वे टैगलाइन है, जो भारत जोड़ो यात्रा से जुड़ी हुई है, यह यात्रा के दौरान ही सामने आई थी. यह लाइन कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने न तो सोची थी और न ही गढ़ी थी. ब्रिटेन (यूके) की अपनी सप्ताह भर की यात्रा के दौरान ब्रिटिश संसद में सांसदों, हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्यों, शिक्षाविदों और नीति निर्माताओं को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने खुलासा किया कि था कि एक समर्थक था, जो भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी के चारों ओर बनाए गए घेरे में लगातार एंट्री करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन वो सफल नहीं हो पा रहा था, उसकी कोशिश और दृढ़ता को देखते हुए राहुल ने उसे अपने साथ बुला लिया.

राहुल गांधी के सामने खड़े होकर, उसने राहुल की तरफ उंगली से पाॅइंट आउट करते हुए कहा कि “मुझे मालूम है तुम क्या रहे हो. तुम नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोल रहे हो." जैसा कि SRK की भाषा में कहा जाता है "आम आदमी की ताकत को कभी कम मत समझो. (Never underestimate the power of the common man.)"

राहुल गांधी की इंग्लैंड आउटरीच

यूके यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने शुरुआती कुछ दिन जहां कैंब्रिज विश्वविद्यालय में (अकादमिक क्षेत्र में) एक फेलो के तौर पर बिताए वहीं आखिरी के तीन दिनों में मीडिया, भारतीय प्रवासी (इंडियन डायसपोरा) या बौद्धिकों, शिक्षाविदों, नीति निर्माताओं और ब्रिटिश सांसदों के साथ सार्वजनिक मेलजोल किया और प्रतिष्ठित चैथम हाउस में उनका आखिरी संवाद हुआ.

2018 में लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स (London School of Economics) में उनके संवाद सत्र के दौरान मेरी उनसे मुलाकात हुई थी, जहां राजनीतिक विचारों से इतर मैंने एक बिल्कुल ही अलग राहुल गांधी को देखा. वे बौद्धिक दृढ़ता और तर्क का प्रदर्शन करते हैं. भले ही आप उन्हें लेबल करते हैं, लेकिन वे काफी असहज प्रश्नों का भी जवाब देने में संकोच नहीं करते हैं. उनकी बॉडी लैंग्वेज पूरी तरह से रिलैक्स्ड बनी हुई थी और बीच-बीच में उनका सेंस ऑफ ह्यूमर दिखाई दे रहा था.

एक बात जिसने मुझे प्रभावित किया वह यह थी कि राहुल गांधी ने तब भारत को वैश्विक लोकतंत्र की सर्वाइवल स्टेज के केंद्र में रखा, जब दुनिया भर में लोकतंत्र चरमरा रहा था. भारत के लिए वैश्विक दृष्टिकोण रखने वालों के लिए, यह भारत को देखने का एक नया और ऊर्जा से भरपूर दृढ़ तरीका है.

कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के जज बिजनेस स्कूल में ब्रिंगिंग एन इंडियन पर्सपेक्टिव पर बात करते हुए राहुल गांधी ने कहा-

"भारतीय लोकतंत्र लोगों के हितों के लिए है. यह अब तक का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, क्योंकि कम से कम 50 फीसदी ऐसे लोग जो लोकतांत्रिक स्थान में रहते हैं, वे भारत में रहते हैं. इसलिए, भारतीय लोकतंत्र का संरक्षण और बचाव केवल भारत के बारे में ही नहीं है. दरअसल यह इस ग्रह पर लोकतांत्रिक ढांचे और लोकतांत्रिक प्रणाली की रक्षा करने के बारे में है."

ओह! यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. इसने मुझे फिर से यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि भारतीय लोकतंत्र वैश्विक लोकतंत्र के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है?

जब मुझे उनके साथ बात करने का अवसर मिला, तब मैंने उनसे पूछा कि जैसा कि आप कह रहे हैं कि मीडिया सहित भारत में संस्थाएं विफल हो रही हैं, ऐसे में विपक्ष जमीनी स्तर पर लोकतंत्र के बुनियादी ढांचे को पुनर्संतुलित और रीसेट करने के लिए कैसी योजना बना रहा है. उन्होंने कहा

"जब आप बोल रही थीं, तब मैं इसके बारे में सोच रहा था. लोग भारत और उसके लोकतंत्र के पैमाने को नहीं समझते हैं, इसलिए, अगर यूरोप में लोकतंत्र अचानक गायब हो जाए तो आप कैसे प्रतिक्रिया देंगे, आप चौंक जाएंगे और आप कहेंगे कि यह लोकतंत्र के लिए एक बड़ा झटका है. अगर यूरोप से साढ़े तीन गुना आकार का कोई ढांचा अचानक गैर-लोकतांत्रिक हो जाए तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? यह पहले ही घटित हो चुका है और ऐसा कुछ नहीं है, जो भविष्य में घटित होगा, यह पहले ही हो चुका है, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई है. हम बात कर रहे हैं यूरोप, अमेरिका की और यही वो चीज है जो मुझे हिलाकर रख देती है. बेशक, उसके कई कारण हैं जैसे व्यापार आदि, लेकिन भारतीय लोकतंत्र में सबसे ज्यादा महत्व लोकहित में दिया जाता है."
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राहुल गांधी ने आगे कहा कि "सच कहूं तो, विपक्ष वह लड़ाई लड़ रहा है. यह सिर्फ एक भारतीय लड़ाई नहीं है, बल्कि यह कहीं अधिक महत्वपूर्ण लड़ाई है, क्योंकि इसमें दुनिया की लोकतांत्रिक आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा शामिल है."

उन्होंने कहा "विपक्ष ने एक समावेशी दृष्टिकोण रखा है और बातचीत कर रहा है. और मुझे भरोसा है कि आगे जाकर हमें कुछ बहुत दिलचस्प हासिल होगा. मैं बहुत आशावादी हूं."

'राहुल की निडर प्रतिबद्धता'

भारत में कुछ वर्गों द्वारा 'विदेशी धरती पर भारत को बदनाम करने' को लेकर राहुल गांधी की तीखी आलोचना की गई, लेकिन इसके वावजूद भी उन्होंने 'बीजेपी-आरएसएस द्वारा लोकतांत्रिक संस्थानों को नष्ट करने' के अपने तीखे हमले पर धीमा नहीं किया. यह उनकी एक ऐसी टिप्पणी है जो उन्होंने हर सार्वजनिक संवाद में की थी. हालांकि यह उनके राजनीतिक विचारों के बारे में नहीं है, लेकिन इसे उनकी निडर प्रतिबद्धता के चश्मे से देखा जाना चाहिए.

'भारत को बदनाम करने' के बारे में जब सवाल किया गया तो राहुल गांधी ने कहा "मुझे याद है कि पिछली बार जब प्रधानमंत्री विदेश आए थे और यह घोषणा की थी कि आजादी के 70 साल में कुछ नहीं किया गया. मुझे याद है कि उन्होंने कहा था कि हमने 10 साल का एक दशक खो दिया है. उन्होंने कहा कि भारत में बेहिसाब भ्रष्टाचार है. यह सब प्रधानमंत्री ने विदेश में कहा था." इसके बाद आगे बात करते हुए गांधी ने सवाल करते हुए कहा कि "मैंने कभी भी अपने देश का अपमान नहीं किया. मैं ऐसा कभी नहीं करूंगा. लेकिन जब वह कहते हैं कि 70 साल में कुछ नहीं हुआ, तो क्या यह हर भारतीय का अपमान नहीं है?"

मैं यहां एक और बात जोड़ना चाहूंगी कि अपने सभी संवाद के दौरान, 'भारत को बदनाम करने' पर किए गए सवाल के जवाब में विदेश में प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणियों का उल्लेख करने के अलावा, राहुल गांधी ने एक बार भी मिस्टर मोदी या किसी कैबिनेट सदस्य के खिलाफ कोई व्यक्तिगत हमला नहीं किया. एक राजनेता के तौर पर उनके पास सरकार, बीजेपी और आरएसएस की आलोचना करने का अधिकार है, लेकिन उन्होंने व्यक्तिगत हमलों से बचने की गरिमा को बनाए रखा, जो वास्तव में सराहनीय रहा.

बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री (India: the Modi Question) आने के कुछ समय बाद ही उनकी यह यूके दौरा हुआ. इस डॉक्यूमेंट्री की वजह से भारत में जमकर हंगामा हुआ, ऐसे में यह अपरिहार्य था कि राहुल गांधी से इसके बारे में पूछा जाएगा. राहुल गांधी ने कहा,
भारत में हर जगह आवाज को दबाया-कुचला जा रहा है, इसका एक उदाहरण बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री है. अगर बीबीसी सरकार के खिलाफ लिखना बंद कर दे, तो क्या सब कुछ पहले जैसा सामान्य हो जाएगा?” "पत्रकारों (भारत में) को डराया जाता है, उन पर हमला किया जाता है, उन्हें धमकाया जाता है और वहीं सरकार की पैरवी करने वाले पत्रकारों को पुरस्कृत किया जाता है."

इसी तरह, यूक्रेन युद्ध से जुड़े सवालों से वे नहीं बच सके. उन्होंने भारत की विदेश नीति का समर्थन करते हुए स्पष्ट किया कि रूस का मूल सिद्धांत यह था कि 'हम पश्चिम के साथ आपके संबंधों को स्वीकार नहीं करते हैं, इसलिए हम आपकी सीमाओं को चुनौती देंगे और बदलेंगे.' उन्होंने कहा कि यही मानसिकता चीन की भी है. "चीन नहीं चाहता है कि हम अमेरिका के साथ संबंध रखें, इसलिए यह हमें धमकी देता है." और 'हमारे क्षेत्र के 2000 किमी पर कब्जा कर लेता है.' मेरे लिए स्वीकार करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन मैं उनकी परिपक्वता, विचारों की स्पष्टता, सिद्धांतों और भारत के प्रति प्रतिबद्धता को स्पष्ट रूप से देख सकता हूं.

यह काफी आश्चर्य की बात रही कि भारत में आलोचनाओं और अक्सर अपशब्दों का सामना करने के बावजूद, भारत के प्रति उनका (राहुल का) गहरा विश्वास बना हुआ है. यहां तक कि उन्होंने भारत में तानाशाही (authoritarianism) पर एक सवाल का जोरदार जवाब देते हुए कहा कि 'यह हमारी समस्या है, यह हमारी आंतरिक बात है और इसका समाधान हम ही से निकलेगा.'

अपने कैम्ब्रिज लेक्चर के दौरान अमेरिका और चीन और उनके उत्पादन के तरीकों की तुलना करते हुए: (अमेरिका में एक लोकतांत्रिक सिस्टम है जबकि चीन में तानाशाही है) उन्होंने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक सिस्टम के भीतर उत्पादन को फिर से स्थापित करेगा.

पार्लियामेंट में अपनी बात रखते हुए राहुल गांधी ने कहा, "इस उथल-पुथल भरे अशांत समय में हम उस दौर से गुजर रहे हैं, जहां हमारी संरचनाओं पर हमला किया जा रहा है अगर हम इस दौर को संभाल लेते हैं तो भारत का भविष्य बहुत अच्छा है. मुझे लगता है कि भारत के पास जबरदस्त आर्थिक क्षमता है, इसके अलावा भारत के पास चीजों को देखने के एक विशेष नजरिया भी है, यह अन्य लोगों को एक अहिंसक और उदार दृष्टिकोण के बारे में अवगत करा सकता है. ऐसे में मुझे लगता है कि 21वीं सदी में ये बहुत शक्तिशाली चीजें हैं, जहां आप हिंसा में वृद्धि देख रहे हैं, जहां लोग एक-दूसरे को नहीं सुन रहे हैं, देश एक-दूसरे को नहीं सुन रहे हैं."

"आवाजों को कुचलने या दबाने के इस उथल-पुथल भरे चरण को छोड़कर, जिससे हम लड़ रहे हैं और मुझे भरोसा है कि हम इसमें जीतेंगे. मैं इस बात को लेकर काफी आशावादी हूं कि भारत के लिए एक मजबूत जगह पर है."

"हमारे देश के डीएनए में है कि हम स्नेह और प्यार करने वाले हैं."

(नबनीता सरकार लंदन में रहने वाली एक सीनियर जर्निलिस्ट हैं. उनके ट्विटर हैंडल @sircarnabanita पर संपर्क किया जा सकता है. यह एक राय है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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