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राहुल-लालू का मटन पकाना उन विचारों को मजबूत करता है, जो भारत को भारत बनाते हैं

बीजेपी के साथ समस्या यह है कि वे हिंदू धर्म को समरूप धर्म में बदलना चाहती है, जो कि वो नहीं है.

नंदिता हकसर
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>राहुल-लालू का मटन पकाना उन विचारों को मजबूत करता है, जो हमें एक राष्ट्र बनाते हैं</p></div>
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राहुल-लालू का मटन पकाना उन विचारों को मजबूत करता है, जो हमें एक राष्ट्र बनाते हैं

(फोटो-स्क्रीनग्रैब/Rahul Gandhi)

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लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) एक ऐसे राजनेता हैं, जिनका नाम सुनते ही चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. लालू, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के एक दिग्गज नेता हैं और संसद में अपने शानदार भाषणों के लिए जाने जाते हैं. धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने देश भर के लोगों का दिल जीत लिया है. लेकिन उनकी मुस्कान अक्सर ऊंचा मुकाम हासिल किए व्यक्तित्व की होती है और जिंदादिल होती है- यह एक ऐसी मुस्कान है जो अक्सर उच्च जाति और वर्ग के लोग उन लोगों के हिस्से में रखते हैं, जिन्हें वे 'अपनी तरह' के नहीं मानते हैं. वे अक्सर लालू को एक देहाती-गंवार के रूप में देखते रहे हैं.

लेकिन लालू ने बार-बार दिखाया है कि वह न केवल रेलवे मंत्री के तौर पर शानदार काम करने में सक्षम हैं, बल्कि उन्होंने कई बार अपने साहस का प्रदर्शन भी किया. लालू ने अक्टूबर 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा रोक दी थी और उन्हें गिरफ्तार किया था.

इन सबसे ऊपर वह एक अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं. उन्हें आपातकाल के दौरान गिरफ्तार किया गया था और जिस कानून के तहत लालू को जेल हुई थी, उसके सम्मान में उन्होंने अपनी बेटी का नाम मीसा (Maintenance of Internal Security Act-MISA) रखा था. मीसा अपने माता-पिता की नौ संतानों (7 बेटियां और 2 बेटे) में सबसे बड़ी हैं और राज्यसभा सदस्य हैं.

दिल्ली में मीसा भारती के घर पर ही सितंबर के पहले सप्ताह में लालू प्रसाद ने फूलों के बड़े गुलदस्ते के साथ राहुल गांधी का स्वागत किया था.

मेहमानों के लिए हिंदू संस्कृति की परंपराओं (अतिथि देवो भव) को ध्यान में रखते हुए, लालू ने अपने सम्मानित अतिथि के लिए पटना से सबसे अच्छा बकरे का गोश्त मंगवाया और उन्होंने कहा कि वह राहुल के लिए चंपारण मटन पकाएंगे.

बिल्कुल हिंदू परंपरा की तरह

इसमें कोई शक नहीं कि यह परंपरा से थोड़ा हटकर है क्योंकि आमतौर पर महिलाएं ही खाना बनाती हैं लेकिन कम से कम कश्मीरी पंडित परंपरा में, जिससे राहुल जुड़े हैं, सार्वजनिक अवसरों पर पुरुष खाना बनाते हैं.

राहुल गांधी ने तुरंत कहा कि वह लालू यादव से मटन पकाना सीखेंगे.

यह भी हिंदू संस्कृति के मुताबिक था, जो बड़ों के प्रति कर्तव्य और उनके सम्मान पर बहुत जोर देता है. महाभारत के युद्ध से पहले, युधिष्ठिर निहत्थे ही बड़ों का आशीर्वाद लेने जाते हैं, भले ही वे दूसरी तरफ हों.

मीसा मौजूद थीं, लेकिन राहुल को निर्देश लालू प्रसाद ने ही दिये और राहुल ने पूछा कि कितना मसाला डालें.

मटन पकाने के इस लम्हे का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ.

भारतीय राजनीतिक के इतिहास में यह एक सुखद लम्हा था, जब दो पुरुष खाना बना रहे थे जबकि एक महिला (एक बेटी) देख रही थी. सबसे अच्छी बात यह है कि दोनों पुरुषों में से कोई यह नहीं सोच रहा था कि उनका ऐसा करना जरा सी भी अलग बात थी. यह डिनर एक दिल छू लेने वाली बातचीत के साथ खत्म हुआ, जब राहुल ने अपनी बहन प्रियंका के लिए घर ले जाने के लिए कुछ मीट मांगा.

और फिर, BJP ने इस मौके पर बयानबाजी कर ही दी.

बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने सावन के महीने में गोश्त खाने को लेकर राहुल की निंदा करते हुए कहा कि

कोई भी सच्चा सनातनी इस पवित्र महीने में मीट खाने के बारे में सोच भी नहीं सकता.

संबित पात्रा ने भी इस पर बयानबाजी की और कहा कि मुझे समझ नहीं आ रहा कि जनेऊधारी ब्राह्मण राहुल गांधी ने सावन के पवित्र महीने में मटन कैसे खाया.

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शिवरात्रि पर घाटी से एक सबक

घाटी में कश्मीरी पंडित और हममें से जो कहीं और रहते हैं, वे पारंपरिक रूप से सूअर का मांस, गोमांस या चिकन नहीं खाते हैं, लेकिन हम मटन खाते हैं.

हमने पारंपरिक रूप से शिवरात्रि पर बकरे की कलेजी या खट्टी कलेजी खाई है.

मुझे वह लजीज डिश याद है, जिसे चाव से पकाया गया था और नाश्ते में परोसा गया था. हर शिवरात्रि पर, मैं खट्टी कलेजी की महक और स्वाद के लिए तरसती हूं, लेकिन अफसोस, परंपरा ज्यादा से ज्यादा धूमिल हो गई है या मेरे रिश्तेदार सोचते हैं कि शाकाहार ही असली हिंदू धर्म है और हम गोश्त खाने वाले ब्राह्मण बिल्कुल अलग हैं.

घाटी के कश्मीरी पंडितों द्वारा शिवरात्रि की सबसे शानदार बात कश्मीर की पहली महिला आईएएस अधिकारी सुधा कौल द्वारा की गई है. वह कहती हैं कि मांसाहारी होना जिंदा रहने की एक रणनीति थी और यह जीवन, प्रेम और खुशी के रूपक के रूप में हमारे मानस में गहराई से समाया हुआ है.

वह अपने परिवार द्वारा दिल्ली में मनाई गई एक शिवरात्रि के बारे में बताती हैं...

“मेरे सैनिक माता-पिता के साथ सर्दियों में रहने के बाद, मेरे दादा-दादी हर वसंत में छत के पंखों को पीछे छोड़कर मैदानी इलाकों को छोड़ घाटी चले जाते थे. वे ऐसा अपने घर पर शिवरात्रि मनाने की इच्छा से भी करते थे. एक साल, मेरे पिता (जो दिल्ली छावनी में ब्रिगेडियर के रूप में तैनात थे) ने अपने माता-पिता को इस लालच के साथ दिल्ली में ही रहने के लिए राजी किया कि उनके रेजिमेंटल पुजारी (एक संस्कृत विद्वान) ने शिवरात्रि के दिन आने का वादा किया था. उस बार सबसे लंबा पूजा प्रवचन हुआ और आखिरकार, हर किसी की भूख से राहत के लिए, प्रसाद मंगवाया गया. मेरी दादी गर्व से अपनी शिवरात्रि की थाली लेकर आईं और उसे गुरुजी के सामने परोसा. शाकाहारी पुजारी कच्ची मछली को देखते ही चौंक गए और फिर तुरंत खड़े हो गए. वे त्राहि, त्राहि, त्राहि चिल्लाने लगे और तेजी से पीछे हटने लगे. मेरी दादी बिल्कुल समझ नहीं पा रही थीं कि उन्होंने क्या गलत किया है? आखिरकार मेरी दादी और कश्मीरी हिंदुओं की पीढ़ी, पूरे कच्चे मेमने को पवित्र प्रसाद के रूप में देवी के मंदिर में ले गई थी. सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार हमारा मुस्लिम कसाई बिना काटे और अलग किए मेमने का फेफड़े, गुर्दा और कलेजी का एक टुकड़ा भेजता था. वह इस परंपरा को अच्छी तरह से जानता था और उसका सम्मान करता था."

हिंदू धर्म एकरूपी नहीं है

बेशक, अगर संबित पात्रा को राहुल गांधी का मजाक उड़ाना था, तो वह कह सकते थे कि एक कश्मीरी पंडित को प्याज और लहसुन नहीं खाना चाहिए - यह हमारे लिए मना है.

बीजेपी के साथ समस्या यह है कि वे हिंदू धर्म को समरूप धर्म में बदलना चाहती है, जो कि वो नहीं है. बीजेपी हिंदू धर्म को बिना सांस्कृतिक विविधता, समृद्ध रीति-रिवाजों और परंपराओं के देखना चाहती है, जबकि असल में ये ही भारत को भारत बनाते हैं.

जब राहुल गांधी ने लालू यादव से पूछा कि राजनीति में सीक्रेट मसाला क्या है, तो लालू ने जवाब दिया कि राजनीतिक मसाला संघर्ष है और अगर कोई अन्याय होता है, तो सच्चा राजनेता न्याय के लिए लड़ेगा. उन्होंने राहुल से यह भी कहा कि उनके माता-पिता और दादा-दादी ने देश को नया रास्ता दिखाया है.

फिर से एक नए रास्ते की जरूरत है.

अब चुनौती यह है कि पुराने राजनीतिक रेसिपी को नए भारत के लायक बनाने के लिए क्या नया मसाला डाला जा सकता है.

(नंदिता हक्सर एक मानवाधिकार वकील और पुरस्कार विजेता लेखिका हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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