advertisement
राहुल गांधी ने घोषणा की है कि अगर कांग्रेस पार्टी चुनाव में जीतकर आती है तो करीब 25 करोड़ लोगों को सालाना 72 हजार रुपए देगी. इस से बीजेपी हक्की-बक्की रह गई है. उसके प्रवक्ता जोर-जोर से चिल्ला रहे हैं. 'देखो मम्मी उसने मेरी गेंद चुरा ली'.
पर अब राहुल गांधी ने पासा पलट दिया, ये कह के कि तुम सेर तो मैं सवा सेर. चुनाव के समय इस तरह के दांव पेंच का होना स्वभाविक है, अब ये चुनाव के समय इस तरह के दांव पेंच का होना स्वभाविक है. अब ये देखा होगा कि बीजेपी क्या करती है.
क्या पॉलिटिकली इसका फायदा कांग्रेस को होगा? मैं मानता हूं कि होगा तो भी बहुत काम क्योंकि अब राजनीतिक दलों पर से जनता का विश्वास उठ गया है. जनता इसे महज जुमला मानेगी और वोट मोदी या गैर-मोदी के बेसिस पर ही देगी.
एक जायज सवाल जो सभी के मन में उठ रहा है कि भाई पैसा कहां से आएगा. राजस्व में तो चलते खर्चों के लिए पैसा नहीं है, तो फिर ये एक्स्ट्रा 3 लाख 50 हजार करोड़ कौन देखा? और इस से ये सवाल भी उठता है कि इस घोषणा को किस नजरिया से देखना चाहिए? क्या पॉलिटिक्स और इकनॉमिक्स के सिवाय कोई और नजरिया भी है क्या?
बहुत लोगों के मन में अब ये शंका पैदा हो रही है कि इस खर्चे के लिए पैसा जुटाने के लिए अगली सरकार, जिसकी भी हो, टैक्स बढ़ाएगी. पर ऐसा कुछ नहीं होगा.
जहां तक इनडायरेक्ट टैक्स का सवाल है, वो अब सारे जीसएटी के तहत आते हैं और उनके साथ छेड़खानी करने से कोई कुछ ज्यादा नहीं मिलेगा. रही डायरेक्ट टैक्स की बात यहां भी रेट्स को बढ़ाना नामुमकिन है. हां, नए टैक्स की बात, जैसे गिफ्ट टैक्स और सुपर रिच टैक्स. ये जरूर लाए जा सकते हैं, पर उनका असर सिर्फ सुपर रिच पर पड़ेगा.
हम आसानी से 5 फीसदी तक जा सकते हैं और किसी के कान में जूं तक नहीं रेंगेगी. ये 3 फीसदी की चट्टान हमने अपने गले में खुद डाल ली है. दूसरी बात ये है कि जैसे-जैसे इकनॉमकि एक्टिविटी, जिसे नोटबंदी और जीएसटी ने बहुत कम कर दिया था. बढ़ती है, इनडायरेक्ट टैक्स भी बढ़ेंगे. ये MNREGA के साथ भी हुआ था. 14 साल पहले 40 हजार करोड़ॉ एक बहुत बड़ी रकम लगती थी, लेकिन अब नहीं.
साफ-साफ सार ये है कि पॉलिटिकली इसका लाभ कुछ ज्यादा नहीं होगा, सोशली ये एक सही कदम है, और इकनॉमिकली इसके लिए राशि जुटाया जा सकता है. अब आगे क्या होता है, चुनाव के नतीजे पर निर्भर है. परंतु एक बात निश्चित है, यूनिवर्सल बेसिक इनकम अब हो कर रहेगी. ये एक अच्छी बात है क्योंकि इसके बगैर सोशल अनरेस्ट बहुत बढ़ सकती है जिसका नुकसान 3 लाख 50 हजार करोड़ से कहीं ज्यादा हो सकता है.
(लेखक आर्थिक-राजनीतिक मुद्दों पर लिखने वाले वरिष्ठ स्तंभकार हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined