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राजस्थान राजभवन परिसर में वैसे तो महात्मा गांधी का बड़ा अच्छा भजन चल रहा है-'रघुपति राघव राजा राम...' लेकिन यहां से जो तस्वीर निकल कर आ रही है वो अच्छी नहीं है. हमारे देश में चाहे जो हो जाए, लोकतांत्रिक परंपराओं की जड़ें बड़ी मजबूत रही हैं. यहां हर संस्था अपना काम करती है, एक दूसरे के अधिकार क्षेत्र में दखल नहीं करती.अब आरोप लग रहा है कि उसी पर हमला हो रहा है.
तो राजस्थान में ऐसा हो क्या रहा है? सीएम गहलोत अपने विधायकों के साथ राजभवन के बाहर धरने पर बैठे. उनकी मांग है कि विधानसभा का सत्र बुलाइए और राज्यपाल मान नहीं रहे.
गहलोत ने कहा है- ''आम तौर पर विपक्ष मांग करता है कि सत्र बुलाया जाए, यहां सत्ता पक्ष बुलाने की मांग कर रहा है. समझ से परे है कि फिर भी राज्यपाल सत्र क्यों नहीं बुला रहे.'' कुल मिलाकर सियासी तौर शांत रहने वाले राजस्थान में स्थिति विस्फोटक हो गई है. गहलोत ने जिस तरफ इशारा किया है वो राजस्थान के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं. खासकर इस कोरोना काल में.
पूरे नॉर्थ इंडिया से राजस्थान की राजनीति अलग रही है. एक स्तर हमेशा से रहा है. गहलोत ने याद भी दिलाया है कि ''जब भैरों सिंह शेखावत की सरकार उनके साथी ही गिरा रहे थे, तब मैं खड़ा हुआ था कि ऐसा नहीं होना चाहिए.'' उनका इशारा भंवर लाल शर्मा की तरफ जो बीजेपी में रहते हुए बीजेपी की सरकार गिराना चाहते थे, वो भी तब जब शेखावत अमेरिका में इलाज करा रहे थे.
नियम के मुताबिक बागी विधायकों पर फैसला लेने का हक स्पीकर को है. उनके फैसले में कुछ गलत हो तो कोर्ट कचहरी का रास्ता खुला है. लेकिन राजस्थान में स्पीकर सीपी जोशी के कुछ फैसला लेने से पहले ही मामला हाईकोर्ट पहुंच गया. इसे भी अधिकारों का अतिक्रमण बताया जा रहा है. सीपी जोशी को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली है. कुल मिलाकर मामला सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के बीच झूल गया है.
दरअसल गहलोत की चिंता क्या है. उन्हें पता है कि हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और राजभवन में ये मामला जितना लटकेगा, उनकी सरकार की सांस उतनी ही अटकी रहेगी.
उधर कांग्रेस के 107 में से 19 बागी हटा दें तो उनके पास बचते हैं 88 विधायक.मौजूदा सियासी माहौल में निर्दलीय और छोटे दलों के 18 विधायकों का कभी भी पाला बदल लेना कोई बड़ी बात नहीं होगी.
अब राज्य में गहलोत की सरकार बचती है या नहीं, ये तो बाद में पता चलेगा लेकिन एक बात तो तय है कि सरकार बचाने-गिराने को लेकर जो कुछ हो रहा है वो लोकतांत्रिक प्रक्रिया और मूल्यों के लिए ठीक नहीं है.
अगर विधायकों की खरीद-फरोख्त के लीक ऑडियो टेप सही हैं तो स्थिति बेहद नाजुक है. सीधे केंद्रीय मंत्री पर आरोप लगा है. FIR हो चुकी है. बीजेपी सीबीआई जांच मांग रही है. कांग्रेस की सरकार सीबीआई को रोक रही है. कुल मिलाकर हर लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्था शक के घेरे में है. और ये पूरा तमाशा राजस्थान की 8 करोड़ जनता देख रही है. वो मूक दर्शक बनने को मजबूर है, जबकि सबसे बड़ी स्टेक होल्डर वही जनता है. सबसे बड़ी बात ये है कि राज्य पर मानव निर्मित ये 'संकट', कोरोना की प्राकृतिक आपदा के बीच आया है.
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Published: 24 Jul 2020,11:37 PM IST