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राजस्थान: सचिन पायलट के बाद अशोक गहलोत और खड़गे के लिए एक और संकट

राजस्थान संकट के समाधान को कोटे की समस्या ने और पेचीदा बना दिया है, क्या खड़गे इस अग्निपरीक्षा में सफल होंगे ?

राजन महान
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>राजस्थान में गहलोत बनाम पायलट</p></div>
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राजस्थान में गहलोत बनाम पायलट

फोटो: द क्विंट

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राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Rajasthan CM Ashok Gehlot) और उनके पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच जारी विवाद (Sachin Pilot) के जोर पकड़ने के साथ ही,  कोटा में आये नये मोड़ ने राजस्थान कांग्रेस के संकट को और गहरा दिया है. सालों से राज्य में पार्टी इकाई, शीर्ष नेतृत्व से लेकर छोटे पदों तक और मंत्री पद से जातीय समीकरणों तक, दो परस्पर विरोधी धड़ों में बंटी है, जो आपस में लड़ाई का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते.

ताजा लड़ाई के मूल में एक ऐसा मुद्दा है, जो अप्रत्याशित है. यह मुद्दा है, 2018 में पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार द्वारा नियमों में बदलाव के कारण अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कोटा में आयी विसंगतियां. ऐसा आरोप है कि इनकी वजह से पूर्व सैनिकों को ओबीसी कोटा पर हावी होने का मौका मिल गया है. इस बारे में शुरुआती सलाह भी एक असंभावित स्रोत - जाट नेता हरीश चौधरी की ओर से आयी है, जिन्हें आमतौर पर गहलोत का वफादार माना जाता है.

वरिष्ठ विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री-चौधरी पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हैं और पायलट के साथ दीर्घकालीन विवाद में हमेशा गहलोत के साथ खड़े रहे हैं. लेकिन पिछले हफ्ते जब राज्य कैबिनेट ने कोटे का मुद्दा लटका दिया तो चौधरी हताश हो गये.

कोटे का मुद्दा कैसे बना तकरार का बिंदु

अपनी इस निराशा पर प्रत्यक्ष रूप से कुछ बोलने की बजाय, चौधरी ने ट्विटर की शरण ली और पूछा, “मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, मैं स्तब्ध हूं;  आप क्या चाहते हैं?" उन्होंने आगे जोड़ा, "मैं ओबीसी को विश्वास दिलाता हूं कि इस मुद्दे पर जो भी लड़ाई लड़नी पड़ेगी, मैं लड़ूंगा."

दरअसल, चौधरी कोटे के इस मुद्दे पर काफी समय से परेशान हैं. इसी साल अगस्त में, जब ओबीसी आरक्षण संघर्ष समिति के बैनर तले विभिन्न  जातीय समूहों ने इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन किया था तो चौधरी, उनके पक्ष में बाड़मेर में धरने पर भी बैठे थे. हरीश चौधरी शक्तिशाली जाट समुदाय से हैं, जो अन्य ओबीसी समूहों के साथ 2018 की अधिसूचना को वापस लेने के लिए आंदोलन का नेतृत्व कर रहा है.

पिछली बीजेपी सरकार द्वारा जारी, 17 अप्रैल 2018 की अधिसूचना में कहा गया है, "पूर्व सैनिकों के लिए आरक्षण को होरीजोंटल आरक्षण माना जायेगा और उनसे संबंधित श्रेणी में समायोजित किया जायेगा."

पूर्व सैनिकों के लिए निर्धारित 12.5 प्रतिशत कोटा में यह एक महत्वपूर्ण बदलाव था. पहले यह कोटा एससी, एसटी और ओबीसी जैसे अन्य आरक्षणों से पूरी तरह अलग था. लेकिन इस सर्कुलर के बाद पूर्व सैनिक कोटा समग्र पात्रता के आधार पर सभी श्रेणियों में चलता है.

आरक्षण के घालमेल में भूतपूर्व सैनिकों की वजह से उपजा विवाद

चूंकि राजस्थान की 55 प्रतिशत आबादी अन्य पिछड़ा वर्ग से है और पूर्व सैनिकों का एक बड़ा हिस्सा इसी समूह से संबंधित है, ओबीसी कोटे का 21 प्रतिशत पूर्व रक्षाकर्मियों के हिस्से में आता है. ओबीसी नेताओं का दावा है कि अधिकतर पद अब पूर्व सैनिकों द्वारा ही भर दिये जाते हैं, जिससे लाखों युवाओं का नुकसान होता है.

चौधरी के अलावा कांग्रेस के कई अन्य विधायक भी आरक्षण के मुद्दे पर खफा हैं. पायलट के वफादार और युवा विधायक मुकेश भाकर ने ट्वीट किया- "अगर सरकार ओबीसी के हित में त्वरित फैसला नहीं लेती है तो सरकार और पार्टी के खिलाफ जो माहौल बनता है उसकी जिम्मेदारी मुख्यमंत्री की होगी. युवाओं को उनके अधिकार मिलना, मेरे लिए किसी भी पद से ज्यादा महत्वपूर्ण है." हेमाराम चौधरी, दिव्या मदेरणा और कृष्णा पूनिया जैसे अन्य जाट नेताओं ने भी गहलोत से इस मामले में जल्द ही कोई निर्णय लेने की अपील की है.

असल में, जाट लॉबी चाहती है कि पूर्व सैनिकों को महिला आरक्षण की तर्ज पर होरीजोंटल आरक्षण दिया जाये.  इसके लिए हरीश चौधरी ने यहां तक भी धमकी दी है कि अगर इस कोटे का मसला जल्दी नहीं सुलझाया गया तो वह गहलोत के खिलाफ आंदोलन करेंगे.
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इसके एकदम उलट, सैनिक कल्याण मंत्री राजेंद्र गुढ़ा के नेतृत्व में कांग्रेस के कई नेता पूर्व सैनिक कोटा में किसी भी तरह के बदलाव का कड़ा विरोध कर रहे हैं.

इसे रक्षा कर्मियों को समुदायों में बांटने की 'शर्मनाक' कोशिश बताते हुए गुढ़ा ने कहा कि, "मैं अपने पूर्व सैनिकों भाइयों को बताना चाहता हूं कि जिस दिन आपके अधिकारों पर कोई हमला किया जाएगा, मैं सरकार से बाहर हो जाऊंगा. मैं मुख्यमंत्री से कहना चाहता हूं कि अगर पूर्व सैनिकों के अधिकारों पर कोई हमला होता है तो मैं इस्तीफा दे दूंगा और ईंट से ईंट बजा दूंगा.

मंत्री गुढ़ा के अलावा, कांग्रेस के एक अन्य राजपूत नेता मानवेंद्र सिंह जसोल ने मुख्यमंत्री गहलोत को पत्र लिखकर पूर्व सैनिकों के लिए कोटे में किसी भी बदलाव की अनुमति नहीं देने का आग्रह किया है. सैनिक कल्याण सलाहकार समिति के अध्यक्ष के तौर पर जसोल का दावा है कि रक्षा कर्मियों के लिए कोटा 'संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों द्वारा समर्थित’ है और वह चाहते हैं कि गहलोत सरकार यह सुनिश्चित करे कि पूर्व सैनिकों के साथ कोई अन्याय न हो.

राज्य कांग्रेस में जाट और राजपूत नेताओं के एकदम विपरीत रुख के साथ, पूर्व सैनिकों को इस श्रेणी में शामिल करने से उत्पन्न ओबीसी कोटा में विसंगति एक बड़े संकट में बदल सकती है. राज्य सरकार के लिए परेशानी खड़ी करने के अलावा, यह राज्य के दो प्रमुख समुदायों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने का जोखिम बढ़ाता है.

जैसे-जैसे कोटा विवाद गहराया है, सीएम गहलोत ने रहस्यमयी ढंग से चुप्पी साध रखी है. हांलाकि, सितंबर में उन्होंने ओबीसी को आरक्षण की विसंगतियों को दूर करने का आश्वासन दिया था, जिसके कारण ओबीसी युवाओं को सरकारी नौकरी पाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. गहलोत ने यह भी ट्वीट किया कि "विभागीय और कानूनी राय लेकर इस मुद्दे का जल्द से जल्द समाधान किया जाएगा ताकि भर्तियां न्यायिक प्रक्रिया में न फंसें."

जैसे-जैसे संघर्ष बढ़ रहा है, गहलोत को उनके राजनीतिक जीवन के सबसे बुरे सपनों में से एक, 1999 में ओबीसी आरक्षण के लिए जाट आंदोलन की याद दिलायी जा सकती है, जिसने मुख्यमंत्री के रूप में पहले कार्यकाल में उनकी लोकप्रियता को कम किया और कांग्रेस को भारी नुकसान पहुंचाया था. 

भारत जोड़ो यात्रा और कांग्रेस के गुटों में मुटाव

गौरतलब है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के राजस्थान में प्रवेश से महज एक पखवाड़े पहले ही आरक्षण में कोटे का यह विवाद खड़ा हो गया. गहलोत समर्थक विधायकों ने जयपुर में 25 सितंबर को हुई कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) की बैठक का बहिष्कार करने के बाद राज्य इकाई में गुटबाजी शुरू कर दी है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सचिन पायलट को नेतृत्व की बागडोर न मिले.

इस विद्रोह के सूत्रधार होने के आरोपी गहलोत के तीन वफादारों को नोटिस देने के बावजूद, कांग्रेस आलाकमान ने कोई कार्रवाई नहीं की. इससे सचिन पायलट भड़क गये, जिन्होंने हाल ही में पार्टी नेतृत्व से राजस्थान में अनिर्णय के माहौल को समाप्त करने के लिए कहा.

कोटे की जटिल पहेली ने राजस्थान संकट के समाधान को और भी मुश्किल बना दिया है, जो अब नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और कांग्रेस हाई कमान के लिए एक अग्निपरीक्षा है. वो राजस्थान प्रभारी के पद से अजय माकन के इस्तीफे और गहलोत के वफादारों की सितंबर के विद्रोह से भी परेशान हैं, जिससे राज्य में कांग्रेस का संकट दिन पर दिन गहराता जा रहा है.

अगले साल राज्य में चुनाव होने वाले हैं, इसे देखते हुए कांग्रेस के लिए समय तेजी से निकल रहा है.  एक-दूसरे पर छींटाकशी करने वाले उदासीन नेता, अनिश्चिय की स्थिति वाला पार्टी कैडर, कोटा खींचतान और अनिश्चितता का माहौल, यकीनन चुनावी सफलता का नुस्खा तो नहीं है.

(लेखक अनुभवी पत्रकार और राजस्थान की राजनीति के एक्सपर्ट हैं. वे जयपुर में राजस्थान विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के प्रोफेसर भी रहे हैं. उनका ट्विटर हैंडल @rajanmahan है. यह एक ओपिनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)

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