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रामलला और मोदी की अग्निपरीक्षा: भारतीय गणतंत्र के लिए अयोध्या समारोह का क्या मतलब है?

Ram Mandir: हमें रामराज के लिए एक आसान रास्ता खोजने की जरूरत है जो आर्थिक पुनरुत्थान के अनुरूप सामाजिक सद्भाव प्रदर्शित करता हो.

माधवन नारायणन
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>अयोध्या में प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई.</p></div>
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अयोध्या में प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई.

(फोटो: विभूषिता सिंह/द क्विंट)

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उस महत्वाकांक्षी देश का क्या होगा जिसकी एक नजर हजारों साल पहले के गौरवशाली अतीत पर है और दूसरी नजर नई प्रौद्योगिकियों से भरे उभरते भविष्य पर है?

क्या यह देश समय के पार एक बड़ी छलांग लगाएगा? या यह देश विरासत और आधुनिकता के बीच उलझन का पीड़ित बनेगा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने हिंदू पुनर्जागरण या पुनरुत्थान के प्रतीक के रूप में आयोजित समारोह में भगवान राम की काले पत्थर की मूर्ति स्थापित करने और उसमें आध्यात्मिक जीवन फूंकने के बाद भारतीयों से विरासत और आधुनिकता के दो छोरों को अपनाने के लिए कहा.

यह मंदिर अपने आप में एक सावधानी से तराशा गया काम है जो अतीत और भविष्य को एक ही तह में ले जाता है और यह विकसित भारत (यानी इंडिया) के नए संस्करण के लिए मोदी की महत्वाकांक्षाओं का एक रूपक हो सकता है.

मंदिर वास्तुकला की नागर शैली में निर्मित एक शानदार तीन मंजिला संरचना में प्राचीन आंखों वाले "राम लला" (भगवान राम का बाल स्वरूप) दिव्य वैभव में खड़े हैं.

सैन्य हेलीकॉप्टरों द्वारा शहर में गुलाब की पंखुड़ियां बरसाने के साथ, अयोध्या वास्तव में वेटिकन का एक हिंदू संस्करण बन गया है. यह शहर अब सौर स्ट्रीट लाइटों और एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से समृद्ध है. अयोध्या नई प्रौद्योगिकियों और शक्तिशाली राज्य शक्ति द्वारा समर्थित है. एक निजी ट्रस्ट बनवाए गए मंदिर के आसपास एक अनुमान के मुताबिक 100,000 करोड़ का सरकारी फंड खर्च किया जा रहा है.

लेकिन इमारत एक चीज है और समाज दूसरा.

आधुनिक गणतंत्र को राम राज्य के रूप में देखना

अयोध्या में समारोहों के यजमान के रूप में अनुष्ठान आयोजित करने के बाद दिए गए मोदी के भाषण में भगवान राम के राष्ट्रीय चेतना का साधन होने और मानवीय मूल्यों-आदर्शों का भंडार होने का वादा हावी रहा.

अब, मोदी को 'राम लला से राम राज्य तक' की बात पर चलना होगा.

रामराज (राम का शासन) उस युग में ईमानदारी, सार्वजनिक जवाबदेही और त्रुटिहीन व्यक्तिगत आचरण में मिसाल माना जाता है जब राजाओं को देवताओं के रूप में पूजा जाता था. लेकिन औपनिवेशिक शासन के खंडहरों पर बने आधुनिक, लोकतांत्रिक गणराज्य में चीजें जटिल हो जाती हैं.
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राम के समय में विविधता और समानता बिल्कुल समकालीन मूल्य (युग धर्म) नहीं थे. मोदी की अयोध्या योजना और भाषणों में रामायण के सामाजिक विविधता के प्रतीकों के लिए सावधानीपूर्वक स्थान या संदर्भ तैयार किए गए हैं: नाविक निषादराज, आदिवासी महिला सबरी और वास्तव में महर्षि वाल्मिकी जिन्होंने पक्षी शिकारियों के समुदाय में पैदा होने के बाद रामायण लिखी थी.

लेकिन भगवान राम के समय में कोई इस्लाम या ईसाई धर्म नहीं था. राम लला ने वह स्थान लिया है जहां मात्र तीन दशक पहले एक आधुनिक, संवैधानिक गणराज्य में मोदी के साथियों द्वारा एक मुस्लिम मस्जिद की संरचना को अवैध रूप से ध्वस्त कर दिया गया था.

क्या 'मोदी मंत्र' आधुनिक समय में काम करेगा?

मोदी कहते हैं कि अब समय सिर्फ विजय का नहीं बल्कि विनय का भी है. महत्वाकांक्षाएं और विनम्रता शायद ही कभी साथ-साथ चलती हैं.

मोदी ने अपने भाषण के जरिए सामाजिक सद्भाव, मानवीय आदर्शों और विश्व-परिवार (वसुधैव कुटुंबकम) जैसे सभी पहलुओं को छुआ और इसकी वकालत की.

अब अपनी बात पर खरा उतरना बड़ी चुनौती है.

सत्तारूढ़ बीजेपी और उसके कार्यकर्ताओं, अधिकारियों और नीतियों को अब यह दिखाने के लिए अतिरिक्त प्रयास करना होगा कि सशक्त राष्ट्रवाद में मानवीय हृदय और उससे मिलती-जुलती ईमानदारी है.

कथनी की तुलना में करनी ज्यादा असरदार होती है. अब मोदी को यह प्रदर्शित करने की जरूरत है कि आधुनिक समय में सामाजिक सद्भाव कैसे हो सकता है.

हमारा मतलब सन्नाटे से या मासूम पीड़ितों की खामोशी से नहीं है, बल्कि 'बहुसंख्यकवादी' के रूप में आलोचना की शिकार सरकार पर भरोसा करने के लिए जीते गए लोगों की मुस्कुराती सहमति से है.

इसके लिए, मोदी को भगवान राम के आदर्शों का अनुकरण करने की बजाय अपने कार्यकर्ताओं से कुछ कड़ी बातचीत करने की जरूरत है जो अभी भी प्रतिशोध की जीत से उत्साहित हैं.

क्या राम राज्य मॉडल हमारे देश के लिए सही है?

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि मंदिर प्रतिष्ठा समारोह से ऐसा प्रतीत होता है जैसे भगवान राम का त्रेता युग वापस आ गया है.

यह काव्यात्मक लगता है. अफसोस, उनके जैसे लोगों को वर्तमान लौह युग यानी कलयुग में लोकतंत्र, समानता और विकास के साथ संघर्ष करना होगा.

"राम एक शाश्वत और वैश्विक आत्मा हैं," मोदी ने गरजते हुए कहा कि उन्होंने भविष्य के साथ भयावह, मिथक और किंवदंतियों से भरे अतीत को मिलाने की कोशिश की है जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सोशल-मीडिया-युक्त लोकतंत्र रोजमर्रा की वास्तविकता होगी.

चुनावी भाषणों से परे, हमें राम राज्य के लिए एक आसान रास्ता देखने की जरूरत है जो आर्थिक पुनरुत्थान के अनुरूप सामाजिक सद्भाव प्रदर्शित करता हो.

उत्तर रामायण में, राम की कहानी की अगली कड़ी में, भगवान की पत्नी सीता को अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ता है. जैसा कि उनके भक्त अनुयायियों ने देखा है, मोदी ने स्वयं शासक का स्थान ले लिया है. हालांकि, हमारे समय में उसे ही अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ता है. दुनिया देख रही है.

(लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार और टिप्पणीकार हैं, जिन्होंने रॉयटर्स, इकोनॉमिक टाइम्स, बिजनेस स्टैंडर्ड और हिंदुस्तान टाइम्स के लिए काम किया है. उनसे ट्विटर पर @madversity पर संपर्क किया जा सकता है. यह एक ओपिनियन आर्टिकल है और इसमें व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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