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राम मंदिर जमीन खरीद में घोटाले का आरोप,ट्रस्ट को दिखाने चाहिए सबूत

''राम मंदिर जमीन घोटाला'', G7 समिट और सॉवरिन बॉन्ड पर द क्विंट के एडिटर इन चीफ राघव बहल की राय

राघव बहल
नजरिया
Updated:
<div class="paragraphs"><p>Raghav's take Ram temple land purchase Allegations</p></div>
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Raghav's take Ram temple land purchase Allegations

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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हम सभी का मानना था कि विवादित बाबरी मस्जिद को गिराये जाने के लगभग तीन दशक बाद 5 जजों की पीठ के व्यापक फैसले ने आखिरकार उस अयोध्या संकट के गरम मुद्दे को शांत कर दिया है. सिविल सोसाइटी के कई ग्रुप इस सर्वसम्मति वाले फैसले से नाखुश थे, लेकिन उन्होंने भी इसे स्वीकार कर लिया कि क्योंकि बदले में सांप्रदायिक शांति मिलनी थी.

लेकिन अयोध्या भ्रष्टाचार के एक अजीबोगरीब आरोप के साथ फिर से विवादों के बीच है. कहा जा रहा है कि जमीन का एक टुकड़ा कई साल पहले दो करोड़ में "खरीदा"गया था लेकिन सौदा पूरा नहीं हुआ. फिर अचानक उस भूमि को कुछ मिनटों के अंदर दो बार बेचा गया. पहले पुराना सौदा पूरा किया गया और कुछ ही मिनटों के अंदर उसी जमीन को 18.50 करोड़, यानी लगभग 9 गुने दाम में मंदिर के ट्रस्ट को बेच दिया गया. हां 10 मिनट के अंदर दाम में 9 गुना का इजाफा. दोनों लेन-देन से जुड़े लोग एक ही थे, जिनका संबंध बीजेपी और मंदिर के ट्रस्ट से है. विपक्ष अब "भगवान राम के नाम पर लूट" का नारा लगा रहा है. ट्रस्ट ने आरोप को खारिज करते हुए कहा कि ये दो लेनदेन हैं और सैद्धांतिक रूप से कई वर्षों का अंतर है लेकिन दोनों लेनदेन चंद मिनट के फासले पर किये गये (अब इसे कोई टाइम ट्रेवल समझा जाए?)

अब मेरा प्वाइंट बड़ा सरल है. मंदिर ट्रस्ट द्वारा बचाव में दिया जा रहा तर्क दरअसल फैक्ट का मामला है, मतलब अगर "पुराने" लेन-देन के असली दस्तावेज या रिकॉर्ड मौजूद हैं तो इसे सार्वजनिक किया जाये और ताकि सब संतुष्ट हो जाएं,अन्यथा लोगों को यह संदेह होता रहेगा कि 'मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम' या उनकी पवित्रता को एक बदसूरत घोटाले में घसीटा गया.

बोलने की आजादी पर G7 में बड़ी बातें और देश की सच्चाई

भारत ने बड़ी ही बहादुरी से जी -7 "ओपन सोसाइटीज स्टेटमेंट" पर हस्ताक्षर किए हैं, जो "ऑनलाइन या ऑफलाइन दोनों ही जगहों पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, को एक ऐसी स्वतंत्रता के रूप में देखता है जो लोकतंत्र की रक्षा करता है और लोगों को भय और उत्पीड़न से मुक्त करने में मदद करता है.''

लेकिन ये भी याद रखना होगा कि फ्री वर्ल्ड में सबसे ज्यादा इंटरनेट शटडाउन का खराब रिकॉर्ड भारत का ही है और फ्री स्पीच के समर्थकों से आए दिन टकराव होते रहता है. मुझे लगता है कि भारत की वास्तविक स्थिति पीएम मोदी के भाषण में छिपी हुई थी और ये ज्वाइंट स्टेटमेंट के खिलाफ एक तरह का नोट था-

"साइबरस्पेस को लोकतांत्रिक मूल्यों को आगे बढ़ाने की जगह होनी चाहिए न कि उन्हें दबाने की... (मैं समझता हूं) ये चिंता कि...खुले समाज पर गलत जानकारी और साइबर अटैक का ज्यादा शिकार होने का खतरा है.."

इससे पहले भारत के विदेश मंत्री ने कहा था कि हमें 'फेक न्यूज और डिजिटल छलकपट से सावधान रहना चाहिए.' साफ है कि 'ओपन सोसाइटीज स्टेटमेंट' के लिए भारत के समर्थन में कई शर्ते हैं.

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G7 समिट और चीन को लेकर भारत की दुविधा

जिस तरह से G-7 समिट से चीन को दूर रखा गया है इससे भारत के सामने एक और भ्रम की स्थिति बनेगी. राष्ट्रपति बाइडेन ने ऐलान किया है कि अमेरिका फिर से दुनिया का नेतृत्व करने वाली भूमिका में लौटेगा, इसके लिए बाइडेन चीन पर अलग-अलग तरह से हमला कर रहे हैं- इसमें मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ बर्ताव, हॉन्ग-कॉन्ग की स्वायत्तता का मुद्दा, ताइवान की खाड़ी में युद्ध की धमकियों के मुद्दे शामिल हैं. इस मामले में एक और मोड़ ये है कि अमेरिका कोविड-19 संक्रमण के मामले में चीन की संदिग्ध भूमिका की जांच भी करा रहा है.

साफ है कि 2008 में जन्मा बहुध्रुवीय विश्व, अब फिर से दो-ध्रुवीय विश्व की तरफ बढ़ रहा है. इसमें दो गुट साफ दिखते हैं- 'पश्चिमी/लोकतांत्रित अमेरिकी गुट' और 'अधिनायकवादी चीन/रूस गुट'.

जाहिर है कि दोनों की लड़ाई में भारत न इधर रहेगा, ना उधर. भले ही हमारे ज्यादा हित अमेरिका के साथ सध रहे हों, लेकिन हमारी रूस के साथ पुरानी दोस्ती रही है, उसकी रक्षा करना भी जरूरी है. वहीं चीन भी मजबूत मिलिट्री और आर्थिक रूप से मजबूत पड़ोसी है. चीन की भारत के साथ करीब 4000 किलोमीटर की विवादित सीमा है. हम किसी भी गुट के पक्ष में ज्यादा नहीं झुक सकते हैं, वहीं हमारी 'गुट निरपेक्ष' की नीति विश्व राजनीति में खो जाने वाला रास्ता है. आसान शब्दों में कहें तो भारत के लिए ये तलवार की नोंक पर चलने जैसा होगा.

पीएनबी हाउसिंग टेकओवर में सब नहीं चंगा सी!

कार्लाइल ग्रुप पीएनबी हाउसिंग बैंक का टेकओवर कर रहा है, जब ये खबर आई तो मैंने खुशी जाहिर की थी कि ये पब्लिक सेक्टर प्राइवेटाइजेशन का मॉडल हो सकता है क्योंकि इससे सरकार और जनता की संपत्ति बढ़ती है. हालांकि तब मैंने कहा था कि शर्त ये है कि इस टेकओवर के लिए हर कानून का ईमानदारी के साथ पालन किया गया हो. अब कुछ रिपोर्ट सामने आई हैं कि पीएनबी हाउसिंग बोर्ड के ज्यादातर डायरेक्टर्स के कार्लाइल के साथ किसी तरह का मूल या फिर संदिग्ध लेन-देन हैं. अब मैं इस बात की बारिकियों में नहीं जाऊंगा कि किस तरह के रिश्तों को हितों का टकराव कहा जाता है और किसे नहीं. असली फैक्ट ये है कि सीजर की पत्नी की तरह सभी डायरेक्टर्स को संदेह के परे होना चाहिए.

खासतौर पर तब, जब पीएनबी हाउसिंग एक प्राइवेट कंपनी नहीं है, बल्कि ये मुख्य तौर पर टैक्सपेयर्स के पैसे से बनी है. इसलिए चूंकि इस मामले को शेयर होल्डर्स के वोट के लिए रखा जाना है, मैं कार्लाइल से अपील करता हूं कि वो इस वोटिंग से दूर रहे. अगर बाकी के शेयर होल्डर कार्लाइल की दखलअंदाजी के बिना इस सौदे को मंजूरी देते हैं तो डायरेक्टर पूरी तरह सही साबित हो जाएंगे.

अब तो सॉवरिन बॉन्ड लाओ सरकार

आखिरकार, भारत का फॉरेन रिजर्व एक्सचेंज $ 600 बिलियन से ज्यादा हो चुका है. क्या हम अभी भी $ 10 बिलियन के सॉवरिन इंडिया डॉलर बॉन्ड जारी करने से झिझकेंगे? हर बार जब मैंने इसकी वकालत की है, आलोचकों ने मेरी ये कहते हुए जमकर खिलाफत की है कि ' नहीं, भारत जैसा देश जो हमेशा ट्रेड डेफिसिट में रहा है उसके लिए ये बहुत ज्यादा फॉरेन एक्सचेंज रिस्क है'. लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? हम सिर्फ $ 10 बिलियन जुटाने की बात कर रहे हैं, जो कि हमारे फॉरेन करेंसी रिजर्व का 60वां हिस्सा है. इतना ही नहीं हमारे पास कई तरह के स्थाई सोर्स हैं जिनसे फॉरेक्स आ रहा है, जैसे कि भारतीय सालाना करीब $ 80 बिलियन भेजते हैं और एफडीआई इनफ्लो $ 40-50 बिलियन सालाना पर स्थिर रहता है. ये दोनों के रुकने का कोई खतरा नजर नहीं आता है. क्या हम अभी भी रिस्क न लेने की आदत को जारी रखना चाहते हैं? अगर हां,तो ये तर्कहीन है

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Published: 14 Jun 2021,10:01 PM IST

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