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(यह स्टोरी सबसे पहले 20 अक्टूबर 2019 को पब्लिश हुई थी. 22 जनवरी 2024 को अयोध्या के राम मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा होगी. ऐसे में इस स्टोरी को फिर से पब्लिश किया जा रहा है)
ग्रंथों की व्याख्या कई तरह से की जा सकती है. ग्रन्थों की कई कहानियों को अलग कर विभिन्न प्रकार से विश्लेषण किया जा सकता है, ताकि कहानी की समग्रता को बनाए रखते हुए विस्तृत काव्यात्मकता के जरिये कई मकसद पूरे किये जा सकें.
हालांकि रामायण मुख्य रूप से कोशल के राजकुमार राम के जीवन पर आधारित एक धार्मिक ग्रन्थ है. इसमें उनके 14 सालों के वनवास के दौरान जंगल में नाटकीय हालात में अलग-अलग शख्सियतों से मुलाकात, रावण के हाथों अगवा की गई पत्नी को पाने के लिए श्रीलंका पर चढ़ाई और अंत में जीत हासिल कर अयोध्या वापसी की तमाम कहानियों और राम के व्यक्तित्व के कई गूढ़ मायने और मतलब हैं.
भगवान के रूप में राम को नैतिकता का मापदंड माना गया. मर्यादा पुरुषोत्तम राम का चरित्र पूरी तरह दोषहीन, अच्छाइयों और पौरुष से भरपूर माना जाता है. उनकी शख्सियत में गौरव, बहादुरी और दया के गुण भरे हुए थे. इन गुणों ने सदियों तक विभिन्न भारतीय भाषाओं के कवियों और रचनात्मक लेखकों की कल्पना को परवान चढ़ाया. विभिन्न भाषाओं और शैलियों में उनकी कहानी की अलग-अलग प्रकार से व्याख्या की गई.
उर्दू के शायर भी इससे अछूते नहीं रहे. रामायण का विशाल हिस्सा गद्य और पद्य में उर्दू में लिखा गया. उर्दू शायरी का एक विशाल हिस्सा ग्रन्थ में वर्णित अलग-अलग कहानियों पर आधारित हैं. कहा जाता है कि मूल रूप से रामायण को वाल्मीकि ने लिखा था. वाल्मीकि रामायण में श्री राम और उनसे जुड़ी शख्सियत और घटनाओं का जिक्र किया गया है.
सदियों तक राम कथाओं पर आधारित कई काव्य लिखे गए. इनमें डॉक्टर मोहम्मद इकबाल की लिखी ‘राम’ उल्लेखनीय है. इसमें ‘राम-ए-हिन्द’ को बेहद प्यार और सम्मान दिया गया है. राम का नाम ही हिंद के वासियों के लिए सम्मान का प्रतीक है और हर भारतीय को इसपर गर्व है:
लबरेज है शराब-ए-हकीकत से जाम-ए-हिन्द
सब फलसफी है खित्ता-ए-मगरीब के राम-ए-हिन्द
(हिंद का प्याला हकीकत की शराब से भरपूर है
पश्चिम के तमाम दार्शनिकों पर हिन्द का राम भारी है)
जिंदगी की रुह था रूहानियत की शाम था
वो मुजस्सम रूप में इंसान का इरफान था
(वो जीवन की आत्मा थे, आध्यात्म की रोशनी थे
इंसान के रूप में वो ज्ञान का अवतार थे)
उर्दू शायरों में जफर अली खान का ‘श्री राम चन्दर’ भी उल्लेखनीय थे. वो एक मेधावी शायर थे जिनका नाम अब काल के गर्त में खो चुका है. अपने समय में उन्होंने मुल्क की नब्ज को समझा और कई विषयों पर लिखा. वो एक मशहूर उर्दू अखबार के सम्पादक थे. श्री राम चन्दर में उन्होंने राम के कई उत्कृष्ट गुणों और उनके जीवन से जुड़े संदेश का उल्लेख किया. उनका मानना था कि हिन्द की ‘संस्कृति’ सीता, लक्ष्मण और राम में गुंथी हुई है:
नक्श-ए तहजीब-ए हुनूद अभी नुमाया है अगर
तो वो सीता से है, लक्ष्मण से है और राम से है
(अगर हिन्द में संस्कृति की कोई निशानी है,
तो वो सीता, लक्ष्मण और राम के कारण है)
बृज नारायण चकबस्त का 'रामायण का एक सीन' उर्दू शेरो-शायरी में बहुत ही पसंद किए जाने वाले और अकसर उल्लेखित कामों में से एक है.
अवध इलाके में पनपी सोज और मरसिया परम्पराओं और कई लोक परम्पराओं में राम कथा से प्रेरित उनकी शायरी में एक बेटे की कल्पना का वर्णन है. वो सबका प्यारा और पूरी तरह ‘आदर्श’ बेटा है. गौरव और प्रतिबद्धता की जिम्मेदारियां निभाने के लिए निकलने से पहले वो अपनी मां से आशीर्वाद लेता है. अपने राजघराने से मां के आशीर्वाद के अलावा वो कुछ नहीं ले जाता. वो भरोसा देता है कि जब तक उसपर ईश्वर का आशीर्वाद बना रहेगा, तब तक वो जंगली माहौल में भी अपनी मां की उपस्थिति महसूस करता रहेगा.
उसका करम शरीक है तो गम नहीं
दास्तां-ए-दश्त दामन-ए-मादर से कम नहीं
(अगर ईश्वर का आशीर्वाद है तो उसे कोई दुख नहीं है
जंगल का माहौल भी मां की ममता से कम नहीं है)
रामायण की कुछ घटनाओं ने शायरों और रचनात्मक लेखकों की कल्पनाशीलता को दूसरों की तुलना में ज्यादा परवान चढ़ाया. मसलन, वनवास के दौरान अनजान जगहों पर भटकना और तरह-तरह की परेशानियां झेलना. इसी प्रकार रावण के हाथों सीता हरण, उसका 'लक्ष्मण-रेखा पार करना, ये संकेत देते हुए एक नारी के सम्मान को ठेस पहुंचाना कि अपहरण सिर्फ महिलाओं का ही होता है.
मुंशी बनवारी लाल शोला के 'सीता-हरण' में हमें घटनाओं का पारम्परिक वर्णन देखने को मिलता है:
इस कविता में फैसले लेने जैसा कोई लाग-लपेट नहीं. इस लिहाज से ये कविता काफी अहम है. कविता में घटनाओं का वर्णन भी बेहद गहन तरीके से की गई है
बाहर जो कुंडली से चलीं, धोखा खा गईं
रावण के चाल में, हैं महारानी आ गईं.
(जैसे ही महारानी लक्ष्मण रेखा से बाहर निकलीं,
रावण के बिछाए जाल में फंस गईं.)
रहबर जौनपुरी की कविता 'राम' में भी राम के कई गुणों का बखान किया गया है. मसलन, उनका शांतिप्रिय स्वभाव, विनम्रता और सच्चाई. कविता में बताया गया है कि इन्हीं कारणों से हिन्दुस्तान राम पर गर्व करता है.
रस्म-ओ-रिवाज-ए-राम से आरी हैं शार-पसंद
रावण की नीतियों के पुजारी हैं शार-पसंद
(जो शैतान को पसंद करते हैं वो राम की परम्परा से दूर रहते हैं
वो रावण की परम्पराओं की पूजा करते हैं)
अक्सर कम महत्त्वपूर्ण लोगों से जुड़ी छोटी कहानियां भी शायरों की कल्पना का हिस्सा बनती हैं. इनमें राजसी वैभव छोड़कर अपने पति और देवर के साथ वनवास झेलने वाली सीता प्रमुख हैं, लेकिन लक्ष्मण की पत्नी और सीता की छोटी बहन उर्मिला का क्या हुआ?
सीता की तरह वो भी अपने पति के साथ वनवास के लिए जाना चाहती थीं. लेकिन लक्ष्मण ने उन्हें घर पर रुककर बूढ़े माता-पिता की सेवा करने को कहा. उर्मिला पति की बात मान तो गईं, लेकिन उन्हें इसकी कितनी भारी कीमत चुकानी पड़ी? एक समकालिक कवि त्रिपुरारी 'उर्मिला' में उनकी अनसुनी कहानी सुनाते हैं. वो पूछते हैं कि क्या उर्मिला के बलिदान को कम करके आंका जा सकता है? रोजाना इस्तेमाल किये जाने वाले एक मुहावरे के जरिये वो स्वाभाविक तरीके से सवाल करते हैं. उन्हें आश्चर्य होता है कि हाड़-मांस की बनी एक युवती ने किस प्रकार 14 सालों तक पति से जुदा रहकर अपनी मानवीय शारीरिक जरूरतों पर काबू पाया होगा?
... मगर वो उर्मिला को छोड़कर भाई के पीछे चल पड़े
कोई तड़पती आरजू सी
उर्मिला के होंठ से गिरकर
कई टुकड़ों में नीचे फर्श पर बिखरी हुई थी...
ग्रंथो को कई एंगल से पढ़ा जा सकता है, राजनीतिक एंगल से भी. कैफी आजमी के 'दूसरा वनवास' में हुए मार्मिक और मर्मस्पर्शी, पर राजनीतिक वर्णन में ये साफ है. इसमें उस भारत का खत्म होना बताया गया है, जो अतीत में हुआ करता था. उस भारत में अलग-अलग विचारधाराओं के लोग एक साथ रहते थे, लेकिन 6 दिसम्बर 1992 की घटना से उसे गहरा आघात पहुंचा.
वनवास के बाद भगवान राम की घर वापसी को निजाम, अयोध्या के राजदरबार में रक्स-ए-दीवानी (मतवाला नृत्य) के रूप में देखते हैं. उनकी शायरी में इसकी तुलना अयोध्या में मस्जिद गिराए जाने के बाद सरजू नदी के तट पर बिखरे खून के साथ करना बिलकुल साफ है. उन्होंने अयोध्या में दूसरी बार नफरत की आग महसूस की होगी. इस नफरत के कारण ही उन्होंने सोचा होगा कि ये शहर उनका शहर नहीं हो सकता.
राम वनवास से जब लौट के घर में आए
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आए.
रक्स-ए-दीवानगी आंगन में जो देखा होग
छह दिसंबर को श्री राम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहां से मेरे घर में आए
जगमगाते थे जहां राम के कदमों के निशां
प्यार की कहकशां लेती थी अंगड़ाई जहां
मूढ़ नफरत के उसी रहगुजर में आए,
धर्म क्या उनका था, क्या जाति थी, ये जानता कौन
घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन
घर जलाने को मित्र लोग जो घर में आए
शाकाहारी थे मेरे दोस्त तुम्हारे खंजर
तुमने बाबर की तरफ फेंके थे सारे पत्थर
है मेरे सर की खता जख्म जो सर में आया
पांव सरजू में अभी राम ने धोए भी न थे
कि नजर आए वहां खून के गहरे धब्बे
पांव धोए बिना सरजू के किनारे से उठे
राम ये कहते हुए अपने दर से उठे
राजधानी की फिजां आई नहीं रास मुझे
छह दिसंबर को मिला दूसरा वनवास मुझे
(रक्षंदा जलील एक लेखक, अनुवादक और साहित्यिक इतिहासकार हैं. उनका लेखन साहित्य, संस्कृति और समाज पर रहा है. वो उर्दू की लोकप्रियता के लिए हिन्दुस्तानी आवाज नामक एक संगठन संचालित करती हैं. उन्हें @RakhshandaJalil पर ट्वीट किया जा सकता है. आर्टिकल में दिये गए विचार उनके निजी विचार हैं और इनसे द क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है.)
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Published: 19 Oct 2019,09:15 PM IST