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यह वह दौर है, जब कोई कह रहा है कि मैं सत्ता मिलने पर गरीबों को तय रकम दूंगा तो कोई कह रहा है कि मैं तो सरकारी योजनाओं का पैसा सीधे गरीबों-किसानों के खाते में डाल रहा हूं. अजीब बात है कि जिस पैसे को हमारे देश के नेता अपना बता कर दान करने के दावे-वादे कर रहे हैं, वह असल में आपके-हमारे यानी टैक्सपेयर्स के पैसे हैं.
लेकिन इसी दौर में एक इंसान ने अपनी मेहनत से कमाई दौलत में से 52,750 करोड़ और दान करने का ऐलान किया है. विप्रो के चेयरमैन अजीम प्रेमजी ने एक सपना देखा है, समाज को बेहतर बनाने का. इसे पूरा करने के लिए वह अब तक 1.45 लाख करोड़ रुपये दान कर चुके हैं.
पिछले हफ्ते बेन एंड कंपनी ने इंडियन फिलैंथ्रॉफी रिपोर्ट, 2019 जारी की थी. इसमें बताया गया है कि 2014 के बाद 10 करोड़ से अधिक की डोनेशन देने वालों में अकेले प्रेमजी का योगदान 80 पर्सेंट है. उन्हें हटा दें तो इस बीच डोनेशन की रकम में 4 पर्सेंट की गिरावट आई है, जबकि 2014 के बाद से 5 करोड़ डॉलर से अधिक संपत्ति वाले अमीरों की संख्या 12 पर्सेंट बढ़ी है.
73 साल के ‘अजीम दानवीर’ ने अंतरराष्ट्रीय गिविंग प्लेज ग्रुप को 2013 में एक लेटर लिखा था, जिसमें इस सवाल का जवाब है. वह इसमें लिखते हैं, ‘जब मैं बड़ा हो रहा था, तब मां का मेरी जिंदगी पर सबसे अधिक असर था.
वह डॉक्टर थीं, पर मेडिकल प्रैक्टिस नहीं करती थीं. उन्होंने अपनी जिंदगी के 50 साल मुंबई में सेरेब्रल पैलिसी और पोलियो के इलाज के लिए चैरिटेबल अस्पताल बनाने और उसे चलाने में लगाए थे. यह आसान काम नहीं था. अस्पताल के लिए फंड जुटाना तब बहुत मुश्किल था. इसके बावजूद उन्होंने हर चुनौती का सामना किया और अपने मकसद से कभी पीछे नहीं हटीं.’
गिविंग प्लेज की शुरुआत अमेरिका में 2010 में माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स और बर्कशायर हैथवे के चेयरमैन वॉरेन बफेट ने की थी. गेट्स 96 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ दुनिया के दूसरे और बफेट 82.5 अरब डॉलर के साथ दुनिया की तीसरे सबसे अमीर शख्स हैं.
बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन अब तक 51.6 अरब डॉलर दान कर चुका है. यह गेट्स की संपत्ति का 37 पर्सेंट है, जबकि बफेट ने अपनी 99 पर्सेंट संपत्ति गिविंग प्लेज के तहत दान की है. गेट्स और बफेट ने दुनिया के अरबपतियों को गिविंग प्लेज में शामिल होने का आह्वान किया था. वे इस सिलसिले में 2011 में भारत के दौरे पर भी आए थे.
अजीम प्रेमजी ने गिविंग प्लेज को ज्वाइन करते हुए वह लेटर लिखा था, जिसका ऊपर जिक्र किया गया है. उन्होंने इसमें लिखा था, ‘मैं गांधीजी के एक ट्रस्टीशिप में संपत्ति रखने और उसका इस्तेमाल समाज की बेहतरी करने के आइडिया से प्रभावित था.’
वैसे, संस्थान के जरिये फिलैंथ्रॉफी का इतिहास देश में काफी पुराना है. 1892 में समाजसेवा के लिए जेएन टाटा एंडॉमंट स्कीम शुरू की थी, जबकि सर दोराबजी टाटा ने 1932 में अपनी सारी संपत्ति टाटा ट्रस्ट के नाम कर दी थी. टाटा ग्रुप को आज जिस सम्मान की नजर से देखा जाता है, उसमें उसके आदर्शों और मूल्यों के साथ टाटा के ट्रस्टों की समाजसेवा का अहम योगदान है.
पिछले कुछ वर्षों में प्रेमजी के साथ कुछ अन्य भारतीय उद्योगपतियों ने भी अपनी संपत्ति का एक हिस्सा दान किया है. फोर्ब्स की दुनिया की अरबपतियों की लिस्ट में 82वें और भारत में 14.6 अरब डॉलर की नेट वर्थ के साथ तीसरे सबसे अमीर उद्योगपति शिव नादर हैं. एचसीएल ग्रुप के प्रमोटर शिव नादर ने 55.8 करोड़ डॉलर की संपत्ति दान की है.
दवा कंपनी बायोकॉन की संस्थापक और 3.5 अरब डॉलर की संपत्ति रखने वालीं किरण मजूमदार शॉ ने अपनी 75 पर्सेंट संपत्ति दान करने का वादा किया है. इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणि और उनकी पत्नी रोहिणी नीलेकणि भी 2.1 अरब डॉलर की संपत्ति में से 50 पर्सेंट दान कर चुके हैं, लेकिन 22.6 अरब डॉलर की नेट वर्थ के साथ दुनिया के 36वें और भारत के दूसरे सबसे अमीर इंसान प्रेमजी इनसे कहीं आगे हैं. उम्मीद है कि वह देश के दूसरे उद्योगपतियों के लिए भी प्रेरणा बनेंगे.
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Published: 16 Mar 2019,07:05 AM IST