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रोहित वेमुला घटना के बाद हैदराबाद यूनिवर्सिटी दे रहा नया इम्तेहान

हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी के 2 साल बाद वहां बहुत कुछ बदला नहीं है.

टी एस सुधीर
नजरिया
Published:
हैदराबाद यूनिवर्सिटी और रोहित वेमुला की प्रतीकात्मक तस्वीर 
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हैदराबाद यूनिवर्सिटी और रोहित वेमुला की प्रतीकात्मक तस्वीर 
(फोटो: हर्ष साहनी / The Quint)

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हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी के करीब 23 महीने बाद दिसंबर 2017 में एक और रोहित वेमुला का जन्म हुआ. रोहित ने सूसाइड नोट में अपने जन्म को एक बड़ा हादसा बताया था. नया ‘रोहित’ स्वर्गीय रोहित वेमुला के भाई राजा और उनकी पत्नी फातिमा की संतान है. एक रोहित के जाने और नए रोहित के आने के बीच बहुत कुछ बदला नहीं है.

फेसबुक पर दलित प्रोफेसर को ट्रोल किया गया

यूनिवर्सिटी में नया विवाद बीजेपी की छात्र इकाई एबीवीपी के नेता और इतिहास के पीएचडी स्टूडेंट करण पलसानिया के दलित प्रोफेसर के लक्ष्मीनारायण को फेसबुक पर गाली देने से खड़ा हुआ है. दरअसल, प्रोफेसर ने एक एग्जाम पेपर बनाया था, जिसमें दो सवाल ऐसे थे जो एनडीए सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए लग रहे थे. इनमें से एक ‘शिक्षा के भगवाकरण’ से जुड़ा था. पलसानिया ने अपनी फेसबुक पोस्ट में गाली देते हुए लिखा है -

“लक्ष्मीनारायण अब इस पर ज्ञान दे रहा है कि भगवाकरण क्या होता है. उसे तो अर्थशास्त्र की बुनियादी बातें भी पता नहीं हैं. भगवाकरण पर ज्ञान बांटने वाला लक्ष्मीनारायण ब्लैकमेलिंग ट्रिक्स की वजह से ही प्रोफेसर बन पाया.”
करण पलसानिया, पीएचडी स्टूडेंट
फेसबुक पोस्ट का स्क्रीनशॉट

यूनिवर्सिटी ने इस पोस्ट पर जवाब मांगने के लिए उन्हें 17 जनवरी को बुलाया था. विडंबना देखिए कि इसी तारीख को रोहित वेमुला की दूसरी बरसी थी. एबीवीपी वैसे तो पोस्ट में इस्तेमाल की गई भाषा का बचाव नहीं कर रही है, लेकिन उसने लक्ष्मीनारायण पर एकेडमिक प्रोसेस का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया है. वह उनसे माफी मांगने के लिए कह रही है. प्रोफेसर का कहना है कि जब फैकल्टी में किसी को उनके एग्जाम पेपर पर ऐतराज नहीं है, तब किसी और सब्जेक्ट का स्टूडेंट उन्हें कैसे गाली दे सकता है.

रोहित वेमुला की मौत के बाद यूनिवर्सिटी में चले आंदोलन में लक्ष्मीनारायण ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था, जो काफी हद तक बीजेपी-विरोधी आंदोलन था. हालिया विवाद से यह बात सामने आ गई है कि यूनिवर्सिटी पॉलिटिक्स और जाति के घालमेल से कैसे नफरत फैलाई जा रही है.

यूनिवर्सिटी की सफाई

एडमिनिस्ट्रेशन ने माना कि रोहित की खुदकुशी से यूनिवर्सिटी को शर्मसार होना पड़ा था, लेकिन उसका यह भी दावा है कि दो साल से जाति के जहर को कम करने की कोशिश की जा रही है. हैदराबाद यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ कम्युनिकेशन स्टडीज के प्रोफेसर विनोद पावराला ने कहा कि हम यह नहीं कह रहे हैं कि यह आदर्श संस्थान है, लेकिन मीडिया का हमें जाति के आधार पर भेदभाव करने वाले संस्थान के तौर पर पेश करना गलत था. उल्टा दलितों के आंदोलन से तो यह बात साबित होती है तो यहां हर किसी को बराबर स्पेस मिलता है. छात्रों और यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन के बीच अविश्वास दूर करने के लिए यहां एक व्यवस्था बनाई गई है. एक मेंटरिंग सिस्टम लागू किया गया है. इसमें हर छात्र के लिए एक फैकल्टी मेंबर को मेंटर बनाया गया है, जिनसे वह किसी भी समस्या को हल करने के लिए संपर्क कर सकता है.

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क्या यह सिस्टम काम करता है?

मास कम्युनिकेशन के एक छात्र शहाल ने कहा, ‘यह सिस्टम काम नहीं कर रहा है. यह सिर्फ दिखावा है.’ उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी यह नहीं समझ पा रही है कि मेंटरशिप सिस्टम से अविश्वास को खत्म नहीं किया जा सकता. कहा जा रहा है कि अधिकतर फैकल्टी क्लासरूम लेक्चर के अलावा किसी चीज से मतलब नहीं रखते. कई दलित या पूर्वोत्तर के छात्रों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, फैकल्टी मेंबर्स के लिए उन्हें समझना मुश्किल है.  रोहित वेमुला के साथ डी प्रशांत को भी दिसंबर 2015 में हॉस्टल से सस्पेंड किया गया था. इसके बाद दोनों को लंबे समय तक खुले में सोना पड़ा था. प्रशांत का कहना है कि पिछले दो साल में यूनिवर्सिटी में किसी भी तरह के आंदोलन को लेकर असहिष्णुता बढ़ी है. उन्होंने कहा, ‘कैंपस की निगरानी बढ़ा दी गई है. छात्रों को डराने की कोशिश हो रही है.’

कैंपस की दीवारों पर नारे लिखने की भी मनाही है. ऐसा लगता है कि यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन बदला ले रहा है.
उन्नीमाया, एमए इकनॉमिक्स के छात्र 

‘जाति जूता नहीं है, जिसे आप बाहर निकाल सकते हैं’

रोहित की मौत के बाद जो लोग आंदोलन में शामिल हुए थे, वे निराश हैं कि उसका कोई सार्थक नतीजा नहीं निकला. आज एक स्टूडेंट एक्टिविस्ट की जिंदगी यूनिवर्सिटी में और मुश्किल हो गई है. उन्नीमाया ने कहा कि हालांकि वेमुला आंदोलन हायर एजुकेशन में जातिगत भेदभाव की बात को सबके सामने लाने में सफल रहा. एक बात साफ है कि दो साल का वक्त जख्म भरने के लिए कम होता है. जातिगत भेदभाव को लेकर जागरूकता बढ़ी है, लेकिन इस बारे में फैकल्टी मेंबर्स को संवेदनशील बनाने में समय लगेगा. प्रोफेसर पावराला ने कहा, ‘जाति कोई जूता नहीं है, जिसे आप लैब के बाहर निकालकर आते हैं. कई दलित छात्र मुश्किल बैकग्राउंड से आते हैं, इसलिए आप उन पर सामान्य स्टैंडर्स लागू नहीं कर सकते. अगर किसी के ग्रेड्स खराब हैं या पढ़ाई उसके लिए बोझ बन गई है तो फैकल्टी को उसे सपोर्ट करना होगा.’ हम उम्मीद करते हैं कि इस नजरिये से बदलाव आएगा, लेकिन अभी तो यूनिवर्सिटी रोहित वेमुला की मौत के बाद सबसे मुश्किल घड़ी का सामना कर रही है.

ये भी पढ़ें- रिपोर्ट: रोहित वेमुला ने किसी मंत्री के दबाव में नहीं किया सुसाइड

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