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सऊदी अरब के शहजादे मोहम्मद बिन सलमान के मंगलवार, यानि 19 फरवरी को दिल्ली आने की उम्मीद है. MBS नाम से मशहूर शहजादे मोहम्मद की ये पहली भारत यात्रा है. निश्चित रूप से इस यात्रा के दौरान नई दिल्ली आपसी सम्बंध मजबूत करने की कोशिश करेगा.
भारत आने के पहले MBS पाकिस्तान की संक्षिप्त यात्रा पर थे. पाकिस्तान ने इस यात्रा को हाल के वर्षों में सबसे महत्त्वपूर्ण आधिकारिक यात्रा करार दिया. MBS को खुश करने के लिए 21 बंदूकों की सलामी दी गई. बदले में MBS ने भी पाकिस्तान में 20 बिलियन डॉलर के भारी-भरकम निवेश का ऐलान किया.
उम्मीद है कि इस निवेश से विदेशी मुद्रा के अभाव से जूझ रही पाकिस्तान की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को सहारा मिलेगा. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान साल 2018 में सत्तासीन होने के बाद दो बार सऊदी अरब की यात्रा कर चुके हैं. लेकिन सऊदी शहजादे की पाकिस्तान यात्रा, पुलवामा हमले से उत्पन्न भारत-पाकिस्तान तनाव में दब गई, जिसकी जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली.
ये देखना महत्वपूर्ण होगा कि मोदी सरकार MBS को किस प्रकार विश्वास दिलाने में कामयाब रहती है, कि इस क्षेत्र में आतंकवादी गतिविधियों के मूल में पाकिस्तान है, और धार्मिक कट्टरपंथ दूर करने के उनके प्रयासों को पाकिस्तान में भारी रुकावटों का सामना करना पड़ेगा.
MBS अपने देश में उदारवादी और प्रगतिशील इस्लाम को प्रोत्साहन दे रहे हैं. धार्मिक आधुनिकीकरण की ये कोशिश इस मायने में काफी महत्त्वपूर्ण है, कि वैश्विक इस्लामिक जिहाद को अक्सर सऊदी अरब के वहाबी आंदोलन से जोड़कर देखा जाता है. इस्लाम की रूढ़िवादी और शुद्धतावादी व्याख्या के बाद अब वहाबी आंदोलन पर विशेषकर मुस्लिम देशों में कट्टरता और आतंकवाद को समर्थन देने के आरोप लगते रहे हैं. कई लोग इस सऊदी धार्मिक मत को मध्य-पूर्व में साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने के लिए वैचारिक इन्क्यूबेटर के रूप में देखते हैं.
चूंकि भारत, अफगान जिहाद और इस्लामिक आतंकवाद को पाकिस्तान के ‘संरक्षण’ पर अमेरिकी रजामंदी का दंश झेलता रहा है, लिहाजा भारत को निश्चित रूप से सऊदी अरब में धार्मिक आधुनिकीकरण की MBS की कोशिशों का समर्थन करना चाहिए.
भारत और सऊदी अरब, दोनों के लिए ही एक-दूसरे के लिए महत्त्वपूर्ण कई राजनीतिक और रणनीतिक मुद्दे हैं. चीन, अमेरिका और जापान के बाद रियाध, भारत का चौथा सबसे विशाल व्यापारिक सहयोगी है. इराक के बाद सऊदी अरब, भारत में दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश है. रियाध से भारत अपनी जरूरत का लगभग पांचवां हिस्सा तेल आयात करता है. एक विशाल अर्थव्यस्था के रूप में भारत, सऊदी अरब के विकास का अच्छा माध्यम बन सकता है.
भारत के साथ जुड़ाव और मजबूत रिश्ते बनाने को लेकर सऊदी अरब में एक आम सहमति है. भारत-सऊदी रिश्तों को धार देने में साल 2006 में गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में शाह अब्दुल्ला की भारत यात्रा का काफी योगदान रहा. उनकी यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच ‘Delhi Declaration’ समझौते ने स्पष्ट किया कि आतंकवाद के नासूर से लड़ने में “दोनों देशों की सरकारें निकटवर्ती और सक्रिय” सहयोग करेंगी. ये घोषणापत्र सऊदी अरब के किसी भी शासक द्वारा दस्तखत किया गया इस मुद्दे पर पहला द्विपक्षीय घोषणापत्र था. इसके बाद मक्का के ग्रैंड इमाम मार्च 2011 में पहली बार भारत यात्रा पर आए.
अप्रैल 2016 में मोदी की सऊदी अरब यात्रा ने दोनों देशों के बीच सहयोग को और प्रगाढ़ किया. शाह सलमान बिन अब्दुल्लाजिज अल सऊद के साथ मुलाकात में आर्थिक और सैन्य सहयोग पर समझौते किए गए. भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने फरवरी 2018 में जनाद्रियाह स्थित भारत पैवेलियन का उद्घाटन करने के लिए रियाध की यात्रा की. उसी महीने वित्त मंत्री अरुण जेटली भी 12वीं संयुक्त समिति की संयुक्त अध्यक्षता करने के लिए रियाध दौरे पर गए. अब तक भारत के प्रमुख सैन्य अकादमी में सऊदी सेना कैडेट के दो बैच को प्रशिक्षण दिया जा चुका है.
आतंकवाद और चरमपंथ का प्रसार भारत और सऊदी अरब – दोनों के लिए विशेष रूप से चिन्ता का विषय है. गौर करने योग्य बात है कि ISIS द्वारा साल 2014 में मोसुल में खलीफा का ऐलान करने के बाद सऊदी अरब पर आतंकवाद का नया खतरा मंडरा रहा है.
सऊदी सुरक्षा बलों पर कई आतंकी हमले हो चुके हैं. उदाहरण के लिए जेद्दा में अमेरिकी वाणिज्यिक दूतावास और मदीना मस्जिद पर हमला. ये आतंकी हमले 2003 से 2008 के बीच हुई आतंकी कार्रवाईयों से अलग थे, जब अल कायदा विदेशी इलाकों को निशाना बनाता था. इराक और सीरिया से दूर होने के बाद ISIS ने सऊदी सत्ता को गंभीर वैचारिक चुनौती दी है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता.
भारत के कई चरमपंथी और आतंकवादी गुटों के लिए खाड़ी क्षेत्र को अक्सर सुरक्षित माना जाता था. खाड़ी में प्रवासियों की भारी तादाद होने के कारण भारतीय उपमहाद्वीप से मुस्लिम समुदाय की लगातार यात्रा को सऊदी सुरक्षा एजेंसियां संदेह की निगाहों से नहीं देखती थीं. लेकिन आतंकवादी गुटों ने भारत में आतंकी गतिविधियों के वित्तपोषण के लिए आर्थिक गतिविधियों का इस्तेमाल करना शुरु कर दिया. सऊदी अरब की सुरक्षा एजेंसियों ने इस खतरे पर ध्यान दिया और ऐसे व्यक्तियों और गुटों के खिलाफ कार्रवाई शुरु कर दी.
सऊदी सरकार ने संदिग्ध आतंकियों को पकड़ने में लगातार भारत का साथ दिया है. रियाध ने साल 2012 में दो संदिग्ध आतंकियों को पकड़ने में नई दिल्ली की मदद की थी. दिसम्बर 2016 में सऊदी अरब ने नकली भारतीय करेंसी नोट छापने वाले गुट के सरगना को भारत प्रत्यर्पित किया था. अगस्त 2018 में लश्कर-ए-तैय्यबा (LeT) के एक संदिग्ध आतंकवादी को सऊदी अरब ने भारत प्रत्यर्पित किया, जिसे NIA ने गिरफ्तार किया.
अगर MBS अपनी सोच के अनुरूप चलते रहे, तो इसमें कोई शक नहीं कि एक दशक के बाद सऊदी समाज, अर्थव्यवस्था और राजनीति में भारी फर्क देखने को मिलेगा. सऊदी विजन 2030 के तहत अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्र नई ऊंचाईयां हासिल करेंगे, जिनमें निजीकरण को बढ़ावा मिलेगा और तेल पर निर्भरता कम होगी.
सऊदी शासन के प्रति भारत के नजरिये में काफी परिवर्तन आया है. दोनों के आपसी रिश्तों में सुरक्षा और आतंकवाद से लड़ाई को प्रमुख स्थान दिया गया है. निश्चित रूप से भारत-सऊदी अरब के रिश्तों का नया दौर नई दिल्ली और रियाध के राजनीतिक नेतृत्व में आपसी हितों के क्षेत्रों को प्रोत्साहन देने की इच्छाशक्ति का नतीजा है.
देखें वीडियो : सऊदी अरब की 18 साल की रहफ को अपने ही देश से खतरा क्यों?
(विनय कौड़ा, PhD, सरकार पटेल यूनिवर्सिटी ऑफ पुलिस, सिक्यूरिटी एंड क्रिमिनल जस्टिस के इंटरनेशनल अफेयर्स एंड सिक्यूरिटी स्टडीज विभाग, राजस्थान, भारत में सहायक प्रोफेसर हैं. वो जयपुर स्थित सेन्टर फॉर पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट स्टडीज में संयोजक पद पर भी तैनात हैं. उनके शोध के विषय भारत की पड़ोस नीति, विशेषकर पश्चिमी क्षेत्र में; अफगानिस्तान-पाकिस्तान सम्बंध; आतंकवाद और अलगाववाद निरोध; और कश्मीर समस्या का समाधान हैं.)
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Published: 19 Feb 2019,05:45 PM IST