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प्राचीन अंडमान और निकोबार द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी में 750 किलोमीटर के दायरे में फैला बेमिसाल और एकांत इलाका है, जिसका अपना ही विचित्र इतिहास है. सदियों तक दुनिया के लिए अनजान रहने के बाद ब्रिटिश शासकों ने 150 से अधिक बरस तक यहां कॉलोनियां बसाने का काम किया. इसके बाद यही काम जापानियों ने वर्ल्ड वार-2 के दौरान किया.
ये यहां के जंगलों के साथ गहराई के साथ जुड़े हैं और सीमित इलाके में रहते हुए बाहरी दुनिया से इनका कोई संपर्क नहीं है. इनमें से अधिकतर जनजातियां शिकारी समूहों की तरह हैं और मुख्यधारा से अलग ही रहना पसंद करते हैं.
मुझे 2013 से 2016 के बीच इन द्वीपों के प्रशासक के रूप में यहां की कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. मैंने अलग-अलग द्वीपों का व्यापक दौरा किया और सभी तरह के विचारों से संवाद स्थापित किया.
इसके बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि इन द्वीपों के रणनीतिक सुरक्षा जैसे मुख्यत: चार गुरुत्व केंद्र हैं. पहला, यहां बसने वाले और विकास को लेकर उनकी आकांक्षाएं. दूसरा, स्थानीय जनजातियां और वे जिस तरह से भी रहना चाहते हैं इसमें उनके अधिकार और उनके लिए संरक्षित स्थान. तीसरा, जीने का अधिकार और चौथा, पुरातन पर्यावरण, जो यहां मौजूद है.
यहां के लिए जरूरी ये है कि इन चार केंद्र बिन्दुओं के बीच संतुलन बनाकर रखना, न कि एक-दूसरे की कीमत पर इनमें से किसी भी व्यवस्था को बिगाड़ना. इन द्वीपों के चरित्र को संतुलित तरीके से सामने रखने के लिए इन्हें इस रूप में बांटकर पेश करना जरूरी है.
जब मैं इन द्वीपों का प्रशासक था, तब गहन विचार-विमर्श के बाद मेरी टीम ने इन जनजातियों में से एक, जारवाओं के साथ बातचीत का फैसला किया. लेकिन ऐसा मानवविज्ञानियों के सहयोग से हमारी इस सोच के बारे में इनकी राय जानने के बाद ही किया. ये वो मानवविज्ञानी थे, जो इन जनजातियों के साथ उनकी भाषा में संवाद कर सकते थे.
जारवा ट्राइबल रिजर्व में 400 से ज्यादा जारवा रहते हैं. ये दक्षिण और मध्य अंडमान के करीब एक हजार वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला है. इस जनजाति के अंदर एक वक्त में बाहरी लोगों को लेकर डर था, लेकिन साल गुजरने के दौरान ये चीजें कम हो गईं.
अंडमान ट्रंक रोड, जो कि राष्ट्रीय राजमार्ग है, इसी इलाके के बीच में से गुजरता है. इस राजमार्ग को लेकर कई एनजीओ ने सवाल उठाए और ट्राइबल टूरिज्म का आरोप लगाया. ये एनजीओ ऐसे टूरिस्ट के बायकाट के आह्वान की हद तक गए. यह आरोप पूरी तरह से सही नहीं था. हालांकि सच ये भी है कि आरक्षित क्षेत्रों के आसपास बसने वालों की ओर से कुछ गैरकानूनी काम करने के भी मामले सामने आए.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद एक वैकल्पिक समुद्री मार्ग भी वजूद में आया है और काम कर रहा है. साथ ही जनजाति से जुड़े नियमों, एएनपीएटीआर-1956 के उल्लंघन को गंभीर अपराध माना जाता है. हालांकि एक सच ये भी है कि इन अपराधों को लेकर अदालतों में सजा मिलने की स्थिति कमजोर ही रही है.
इन जनजातियों से मिलने और बात करने की मुहिम के तहत हमने सात-आठ बिन्दुओं को चिह्नित किया. महिलाएं उनके बच्चों के साथ एक निश्चित दिन मिलतीं और उनकी अपनी ‘ओगन’ भाषा में द्विभाषी लिपि पढ़ाई जाती थी. हमने उनकी गरिमा का पूरा खयाल रखा और इसके लिए एकदम शुरुआती स्तर का बार्टर सिस्टम भी शुरू किया गया. हमें आश्चर्य हुआ, जब उनके समुदाय की महिलाओं ने कपड़े मांगे. इस पर उन्हें कपड़े दिए गए. ये कपड़े समुदाय की महिलाएं सिर्फ सड़क पार करते हुए पहनती थीं.
हमने 2014 में अंडमान निकोबार ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एएनटीआरआई) की स्थापना भी की. इसकी मदद से हमें इन जनजातियों के लिए योजनाएं बनाने में आसानी हुई. सच तो ये है कि निकोबार के ही कई लोग इससे बेहद उत्साहित थे क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी विरासत, संस्कृति, रिवाज, भाषा और परंपराओं को आगे की पीढ़ी के लिए संरक्षित करने की जरूरत है.
1993 तक प्रशासन की कोशिश होती थी कि सेंटिनेलिज के साथ मित्रता की कोशिश की जाए, लेकिन ये प्रयास बेकार गए. 1993 से नीतियों में परिवर्तन किया गया और सेंटिनेलिज की इच्छा का सम्मान करने के लिए ‘हैंड्स ऑफ, बट आइज ऑन’ (हाथ पीछे रखने लेकिन आंखे खुली रखने) की पॉलिसी लाई गई.
इसका मतलब ये था कि अब हम समय-समय पर हेलिकॉप्टर से और समुद्र के रास्ते चीजों पर नजर रख सकते थे. हमारी ये नीति तब सही नजर आई, जब द्वीप के आसपास कई शिकारियों को गिरफ्तार किया गया.
हालांकि अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया गया है लेकिन उन लोगों पर उस कानून को लागू करना मुश्किल होगा, जो उसे समझते ही नहीं हैं और एक दुर्गम दुनिया में रहते हैं. और जो सिर्फ अवैध घुसपैठ के खिलाफ खुद को बचाने की कोशिश करते हैं.
इसी तरह का एक असमंजस जारवा को लेकर हुआ. एक बार एक रिपोर्ट ऐसी भी आई थी कि एक जारवा ने 5 माह के बच्चे की इस वजह से हत्या कर दी, क्योंकि शक था कि उसका जन्म एक बाहर से आए शख्स और जारवा महिला के अवैध रिश्ते से हुआ है. तब उस बाहर से आए व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन जारवा को लेकर हमारे पास कोई स्पष्टता नहीं थी.
जहां तक जानकारी उपलब्ध है, उसके मुताबिक सरकार ने 2022 तक के लिए ‘रिस्ट्रिक्टेड एरिया परमिट’ की व्यवस्था को 29 द्वीपों पर से उठा लिया है. इनमें से वो द्वीप भी शामिल हैं, जो पीवीटीजी के अधिवास हैं. इनके अलावा दक्षिण अंडमान के 3 और निकोबार जिले के 9 द्वीपों पर भी यही किया गया है.
हालांकि उत्तरी सेंटीनल द्वीप को शामिल करना तमाम तर्कों को बेमानी कर देता है और सबसे खास बात ये है कि कोई भी शक्तियां बिना उचित विश्लेषण और छानबीन के कुछ कर देने की जल्दी में थीं. ये निश्चित तौर पर अंडमान प्रशासन के नजरिये को महत्व नहीं देता, जिसे कि शीर्ष से थोपे गए फैसले को लेकर मूक दर्शक बनाकर नहीं रखा जा सकता.
किसी का मुद्दा ये नहीं है कि निकोबार द्वीपों को हमेशा के लिए प्रतिबंधित रहना चाहिए. लेकिन इसे खोलने का फैसला स्थानीय और जनजातीय परिषद की सहमति से एक प्रक्रिया के तहत होना चाहिए.
असल में मैंने अपने कार्यकाल के दौरान जनजातीय लीडर्स के साथ बात भी शुरू की थी, जिसकी मिली-जुली प्रतिक्रिया मुझे मिली थी. ऐसे में मैं कह सकता हूं कि इस दिशा में आहिस्ता-आहिस्ता और संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है. कोई भी निर्णय इस पर आधारित नहीं हो सकता है कि हमें इन द्वीपों को फुकेट या मकाओ में परिवर्तित करना है.
(रिटायर्ड जनरल लेफ्टिनेंट एके सिंह अंडमान निकोबार और पांडिचेरी के लेफ्टिनेंट गवर्नर रह चुके हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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Published: 28 Nov 2018,04:18 PM IST