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तमिलनाडु से तेलंगाना तक जब भी ED या CBI का एक्शन हुआ तो विपक्ष ने यही कहा कि केंद्र इन जांच एजेंसियों का इस्तेमाल बदले की राजनीति के लिए कर रहा है. लेकिन जब ऐन महाराष्ट्र चुनाव के पहले शरद पवार के खिलाफ कार्रवाई हुई तो उन्होंने इसका उलटा किया. MSCB घोटाले की FIR में नाम आने के 4 दिनों बाद ही आलम ये है कि ED बैकफुट पर नजर आ रहा है. अपने तो छोड़िए, पवार को विरोधियों का भी साथ मिलता नजर आ रहा है. पवार ने पासा कैसे पलटा, ये राजनीति के नौसिखियों के लिए सबक हो सकता है.
इस मराठा क्षत्रप की सियासी समझ का ही तकाजा है कि FIR में नाम आने के अगले ही दिन बाकायदा उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि वो बिना समन ED के सामने हाजिर होंगे और ये भी कि अगर वो जेल गए तो अच्छा अनुभव होगा. 27 सितंबर को जिस दिन शरद पवार को ED के दफ्तर जाना था, उस दिन नौबत ये आ गई कि ED को उन्हें ई-मेल कर कहना पड़ा कि आपको आने की जरूरत नहीं.
इससे पहले शरद पवार ने 26 सितंबर को ट्वीट कर अपने कार्यकर्ताओं से अपील की थी कि वो कानून को अपने हाथ में न लें...27 सितंबर को ED के दफ्तर पर जमा न हों. साथ में ये भी हिदायत दी कि NCP कार्यकर्ताओं के लिए मुंबई की जनता को परेशानी नहीं होनी चाहिए. लेकिन हुआ इसका उल्टा. 27 सितंबर को पूरे महाराष्ट्र से NCP के कार्यकर्ता भारी तादाद में मुंबई में जमा हुए. नतीजा ये कि टीवी चैनलों पर गायब दिखने वाला विपक्ष परदे पर छा गया.
जाहिर है ऐन चुनाव से पहले ED ने शरद पवार को विक्टिम हुड कार्ड खेलने का मौका दे दिया है. अभी तक जो नजर आ रहा है उसके हिसाब से ये विपक्ष के लिए ट्रंप कार्ड बनता नजर आ रहा है.
महाराष्ट्र चुनाव में शिवसेना और NCP में तलवारें खिंची हुई हैं. लेकिन शरद पवार के खिलाफ ED की कार्रवाई पर शिवसेना के संजय राउत ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा कि सरकार ने गलत समय पर गलत कार्रवाई की है
पैटर्न के मुताबिक सत्ताधारी दल और शिवसेना का नेरेटिव ये होना चाहिए था कि हमने विपक्ष में फैले भ्रष्टाचार पर वार किया है. लेकिन हो उल्टा रहा है. संजय राउत की बात से साफ है कि शरद पवार को ED के एक्शन का फायदा होता दिख रहा है.
ED की इस कार्रवाई ने कांग्रेस-NCP को भी और एकजुट होने का मौका दे दिया है. विधानसभा चुनावों से पहले महाराष्ट्र में इस सियासी हलचल का लहरें चुनाव नतीजों तक पहुंचे तो कोई ताज्जुबन नहीं होगा.
महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव घोटाला 2009 से 2011 के बीच में हुआ. उस वक्त महाराष्ट्र और केंद्र में एनसीपी सत्ता में थी,आरोपों के मुताबिक, महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव बैंक के डायरेक्टर ने बैंकिंग और आरबीआई के नियमों का उल्लंघन कर अपने करीबियों को करोड़ों रुपयों के लोन बांटे. घोटाला करीबन 25 हज़ार करोड़ का बताया जा रहा है,अजित पवार जो उस वक्त महाराष्ट्र के वित्त मंत्री थे और MSCB बैंक के डायरेक्टर भी थे. आरोप है कि शरद पवार एनसीपी के प्रमुख है और ये सब उनके कहने पर किया गया है. 2014 में पृथ्वीराज चव्हाण जब कांग्रेस-एनसीपी सरकार में सीएम थे तब उन्हें महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव बैंक में हो रही अनियमिता का पता चला. बैंक की डायरेक्टर बॉडी बर्खास्त की गई. 5 साल अब एक याचिका पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने FIR दर्ज करने के आदेश दिए. और अब fir हो गई.
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Published: 27 Sep 2019,02:20 PM IST