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कोविड 19 महामारी के कारण छात्र गंभीर संकट में हैं. अपनी पढ़ाई के लिए काफी समय, मेहनत और पैसे खर्च करने के बाद उन्होंने ऐसी परिस्थितियों के कारण अपनी योजनाओं को बिखरते और भविष्य को अनिश्चितता में बदलते देखा है जो उनके नियंत्रण में नहीं हैं.
इनमें से कई छात्रों ने उचित रूप से प्रतिकूल परिस्थितियों और गरीबी की जंजीरों से खुद को मुक्त करने के लिए शिक्षा अर्जित करने के प्रति अपने लगन को एक सुरक्षित जरिया माना. महामारी और उसके साथ लॉकडाउन और उससे जुड़ी पाबंदियां उनके सपनों के लिए बड़ा झटका है.
ऐसी स्थिति के बाद छात्रों को उनके स्वास्थ्य और शैक्षणिक भविष्य के बीच चुनाव करने की भयंकर दुविधा में डालना उनके साथ और बड़ा मज़ाक होगा. शर्म की बात है कि सितंबर 2020 में परीक्षा केंद्रों में जाकर दी जाने वाली परीक्षा नेशनल एलिजिबिलिटी-कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET) और ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जाम (JEE) की तैयारी कर रहे बड़ी संख्या में छात्रों के सामने मौजूदा तौर पर यही विकल्प है.
NEET और JEE की परीक्षा अप्रैल और मई 2020 में होनी थी लेकिन तब से इसकी तारीख दो बार बढ़ाई जा चुकी है. इसका मतलब ये है कि जब भारत में कोविड के 50,000 मामले थे तो सरकार ने इतनी बड़ी परीक्षा को टालना बेहतर समझा लेकिन जब मामले 33 लाख के पार हो गए हैं तब हजारों छात्रों को परीक्षा केंद्रों पर इकट्ठा करने को बिल्कुल सही मान रही है.
ये तर्कहीन और खतरनाक है: कोविड 19 को लेकर वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि इस स्थिति में बड़े कार्यक्रम नहीं किए जाने चाहिए और सभी को भीड़-भाड़ से बचना चाहिए जिससे इस खतरनाक वायरस को फैलने की संभावना कम हो. इसलिए ये स्पष्ट है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के नाम पर NEET और JEE की परीक्षा सेंटर पर जाकर देना जरूरी नहीं होना चाहिए.
जुलाई में केरल इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर एंड मेडिकल (KEAM) की परीक्षा में भी छात्रों को सेंटर पर जाकर परीक्षा देनी थी, वहां इसके कारण कैसी अराजकता हुई थी वो हमने देखी है. मैंने परीक्षा के पहले केरल के मुख्यमंत्री, प्रशासन को संक्रमण के खतरे पर चिंता जताते हुए परीक्षा टालने को लेकर चिट्ठी लिखी थी. मेरे अनुरोध को नजरअंदाज किया गया और तबाही मच गई.
सोशल डिस्टेंसिंग लागू कराने की कोई कोशिश नहीं होने या आने वालों की संख्या पर कोई सीमा नहीं होने के कारण केरल में परीक्षा केंद्रों पर बड़ी संख्या में लोग (परीक्षा देने वाले और उऩके अभिभावक या साथ आने वाले) जुट गए जिसका परिणाम ये हुआ कि कोविड के मामलों में तेजी आ गई.
बहुत बड़े स्तर पर NEET और JEE की परीक्षाएं: करीब 25 लाख छात्रों का रजिस्ट्रेशन हो चुका है. यह एक बहुत ही खतरनाक स्थिति की तस्वीर पेश करता है, उससे भी बुरा जो KEAM की परीक्षा आयोजित करने के दौरान हुआ. NEET और JEE की परीक्षा सितंबर में नहीं होनी चाहिए. कम से कम इसे नवंबर या दीवाली के बाद तक टाला जाना चाहिए.
अगर आगे की ये तारीख भी व्यावहारिक नहीं है तो सरकार का ये कहना सही है कि छात्रों को पूरा एक शैक्षणिक साल बरबाद करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. ऐसी स्थिति में, मेरे विचार से, एक ही रास्ता है जो छात्रों और परीक्षक दोनों के लिए व्यावहारिक, सुरक्षित और सम्मानजनक है और वो है घर से परीक्षा देना. इससे छात्रों को अपने घर की सुरक्षा में परीक्षा देने की अनुमति होगी और वो परीक्षा केंद्रों में भीड़ जुटाने को मजबूर नहीं होंगे जिनमें कोविड 19 के सुपर स्प्रेडर बनने की काफी क्षमता है जैसा कि हमने देखा है.
जो भी छात्र जिस किसी भी कारण से घर से परीक्षा दे पाने में सक्षम न हो सरकार को उनके लिए ऑनलाइन टेस्टिंग सेंटर तैयार करने चाहिए. लेकिन ऐसे छात्रों की संख्या बहुत कम होने की संभावना है, इसलिए ऐसे सेंटर पर किसी संक्रमण के खतरे को खत्म करने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग के निर्देशों का पालन कराना आसान होगा.
स्वाभाविक रूप से परीक्षार्थी की शैक्षणिक योग्यता को सही-सही आंकने के लिए परीक्षा के स्वरूप को फिर से तैयार करना होगा जो इस खास परिस्थिति में उपयुक्त हो. छात्रों के घर में मौजूद किताबें, नोट्स और दूसरी चीजों की उपलब्धता देखते हुए इस परीक्षा को साधारण तौर पर होने वाली परीक्षा से अलग होना होगा. इस परीक्षा में मेमोरी बेस्ड नॉलेज टेस्ट, जो छात्रों की स्मरण शक्ति की क्षमता की जांच करती है, पर जोर देने के बजाए लॉजिक, सिंथेसिस और एनालिसिस की चुनौतियों की ओर बढ़ना होगा.
ये बड़ा बदलाव शायद परीक्षकों के लिए एक चुनौती होगी जिन्हें वही करने की आदत है जो वो सालों से करते आ रहे हैं. इससे छात्रों को भी परेशानी हो सकती है जिन्होंने हर साल की तरह की परीक्षा की तैय़ारी की है. लेकिन महामारी की अव्यवस्था में हम अपनी सभी धारणाओं पर सवाल उठाने को मजबूर हो रहे हैं और जीवन के लिए नए तरीके तैयार करने पड़ रहे हैं. ये ऐसी चुनौती है जिसका सामना हम सब को करना है और हमें खुद को इसके योग्य करना पड़ेगा.
बिना बदलाव के पहले जैसे चलते रहने में बहुत से खतरे और समस्याएं शामिल हैं और NEET और JEE जैसी परीक्षाओं के प्रबंधन का मामला निश्चित तौर पर ऐसा ही है.
विपक्ष के सात मुख्यमंत्री पहले ही परीक्षा कराए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर चुके हैं. इसी उद्देश्य को लेकर नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन (NSUI) के कार्यकर्ता भूख हड़ताल पर बैठे हैं. अगर सत्ताधारी पार्टी छात्र विरोधी नहीं दिखना चाहती है और अगर वो सच में य़ुवा भारतीयों के स्वास्थ्य की परवाह करती है तो उसे तर्क और विपक्ष को ज़रूर सुनना चाहिए.
जैसा कि महामारी के कहर के दौरान हुआ है, परीक्षा के प्रबंधन की पहेली का कोई सटीक समाधान नहीं है. हालांकि घर से परीक्षा देने की व्यवस्था ये सुनिश्चित करेगी कि अपने सपनों को पूरा करने के लिए जिन छात्रों ने कड़ी मेहनत की है, अंतिम समय में उनके स्वास्थ्य को लेकर कोई समझौता नहीं किया जाएगा.
सरकार को स्थिति की गंभीरता को समझते हुए उसके अनुसार खुद को अनुकूल बनाना चाहिए. महामारी के चरम पर परीक्षा सेंटर पर परीक्षा कराने के अदूरदर्शी और अविवेचित फैसले से सीखने की चाह रखने वालों के उज्ज्वल भविष्य का रास्ता बंद नहीं होना चाहिए.
हमें भारत के भविष्य निर्माताओं और नेताओं को हर हाल में सुरक्षित रखना होगा-उनके लिए और हमारे देश के लिए.
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