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रेप का डर दिखाना एक लंबी और गहरी साजिश का हिस्सा है

पिछले छह सालों में लगातार औरतों की देह को जंग का मैदान बनाया जा रहा है

माशा
नजरिया
Updated:
पिछले छह सालों में लगातार औरतों की देह को जंग का मैदान बनाया जा रहा है
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पिछले छह सालों में लगातार औरतों की देह को जंग का मैदान बनाया जा रहा है
(सांकेतिक फोटो: iStock)

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2016 में फ्रांस के कई शहरों में बुर्किनी को समुद्र तटों से प्रतिबंधित कर दिया गया था. बुर्किनी, मुसलमान औरतों के लिए बिकनी का रिप्लेसमेंट है. एक ऐसा टू पीस स्विमसूट जिसमें सिर्फ चेहरा, हाथ और पैर नजर आते हैं. फ्रांस में आतंकवादी हमलों के बाद पब्लिक प्लेस में मुसलमानों की मौजूदगी को कम करने के लिए यह प्रतिबंध लगाया गया था. धार्मिक विद्वेष का मूर्त रूप और इसे प्रदर्शित करने का एक तरीका था- औरतों की देह को किस तरह राजनीतिक इच्छा शक्ति को पूरा करने का माध्यम बनाया जाए.

दिल्ली चुनावों से ऐन पहले बीजेपी के नेताओं ने भी यही किया. परवेश वर्मा ने चिल्लाकर कहा- शाहीन बाग वाले कल आपकी बहू-बेटियों का बलात्कार करेंगे. तब प्रधानमंत्री और गृह मंत्री आपको बचाने नहीं आएंगे. इस बार बलात्कार को हथियार बनाया गया. बात औरतों की देह पर आ गई. वह ऐसी डिस्पोजेबल यानी सौंपने वाली वस्तु बन गई जिसके इर्द-गिर्द आप अपनी राजनीतिक संलाप चला सकते हैं.

शुरुआत लव जिहाद से

पिछले छह सालों में लगातार औरतों की देह को जंग का मैदान बनाया जा रहा है. 2014 में एक नई टर्म लव जिहाद ही ईजाद कर ली गई. कहा जाने लगा कि हिंदू लड़कियों को बरगला कर मुसलमान बना लिया जाता है और साजिशन खूबसूरत मुसलमान जवानों से उनका निकाह करा दिया जाता है. हिंदू लड़कियों पर डोरे डालने के लिए छबीले मुसलमान नौजवान मोटरसाइकिल लिए चक्कर काटते रहते हैं और हिंदू लड़कियां उनकी मर्दानगी पर रीझकर उनके झांसे में आ जाती हैं. यह भी कहा गया कि हिंदू लड़कियों को मुसलमान बनाकर फिर वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है. फिर उनके शरीर का हरेक अंग बेच दिया जाता है या उन्हें इस्लामिक स्टेट के हवाले कर दिया जाता है.

इस तरह इस पूरे मामले को देश की सुरक्षा से जोड़ा गया. केरल की हादिया उर्फ अखिला का मामला ऐसा ही था. एक बालिग लड़की के खुद के महजबी रुझान को बदलने और अपना वैवाहिक रिश्ता बनाने को दहशतगर्द साजिश का अंग माना गया. उसकी जांच के लिए NIA जैसी राष्ट्रीय एजेंसी लगाई गई. केरल में ऐसे कई मामले बनाए गए. यहां हिंदू लड़कियों को राजनीतिक शतरंज की मोहर बनाया गया. राष्ट्रीय स्तर पर हिंदू क्षोभ को भड़काया गया और उसका राजनीतिक लाभ उठाया गया.

लव जिहाद से इतर तीन तलाक में मुसलमान औरतों का इस्तेमाल किया गया. इसके लिए सरकार आनन-फानन में जो विधेयक लेकर आई, उसमें तमाम कमियां थीं. फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमान पुरुषों को घरेलू आतंक का पर्याय बनाया गया. इस तरह मुसलमान औरतों की देह की मदद से बीजेपी ने एक खौफनाक नरेटिव तैयार किया. जिसमें वह खुद एक रक्षक बनी रही और मुसलमान पुरुष भक्षक. मुसलमानों को लेकर एक गांठ इस देश की बहुसंख्या में है. वह कहीं भी हो सकती है. वह किसी भी नाम पर पड़ सकती है. इस तरह यह गांठ और मजबूत की गई.

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क्योंकि औरतों को कमोडिटी बनाया गया है

औरतों का शरीर एक कमोडिटी बना रहता है. बाजार उसके जरिए सामान बेचता है, राजनीतिज्ञ उसके जरिए चुनाव जीतते हैं, ताकतवर उसके जरिए वर्चस्व कायम करते हैं. यह ग्लोबल फेनोमेना है. जिस फ्रांस का उदाहरण ऊपर दिया गया है, वह कथाकथित सेक्युलर देश है.

इसी तरह दुनिया को व्यक्तिगत आजादी का पाठ पढ़ाने वाला अमेरिका लंबे समय से गर्भपात के मसले से जूझ रहा है. वहां के दक्षिणपंथी ईसाई नेता महिलाओं को गर्भपात की आजादी देने की खिलाफत करते हैं. खुद राष्ट्रपति ट्रंप भी गर्भपात के खिलाफ हैं.

सत्तर के दशक में अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात को लीगल बनाया था और तब से कंजरवेटिव्स उसकी आलोचना कर रहे हैं. यह उम्मीद जताई गई है कि गर्भपात 2020 में पूरी तरह बैन हो सकता है जोकि यह राष्ट्रपति की दोबारा जीत की चाबी भी है. वह खुद 24 जनवरी को वॉशिंगटन में हुई एंटी अबॉर्शन रैली में भी शिरकत कर चुके हैं. गर्भपात और प्रजनन का अधिकार भी तो औरत की देह से जुड़ा मामला ही है.

इस्लामोफोबिया कायम करने के लिए औरत की देह का इस्तेमाल

अगर अमेरिका में ट्रंप के लिए गर्भपात एक बड़ा मुद्दा है तो भारत में बीजेपी ने भी पिछले छह सालों में औरतों की देह को राजनीतिक डिस्कोर्स का हिस्सा बनाया है. प्रवेश वर्मा की टिप्पणी को आप इसी के मद्देनजर समझ सकते हैं. औरत के शरीर पर खतरा मंडरा रहा है, इसलिए आप मुसलमान पुरुषों से डरें. प्रवेश वर्मा कह गए और कहने से बहुत सारी बातें साधने की कोशिश की. ऐसी बातों से लोगों में फियर साइकोसिस या पैरानोया पैदा होता है. वे एक खास समुदाय से घबराते हैं. इस्लामोफोबिया तैयार हो जाता है.

यूं औरत की देह के इस्तेमाल पर 1937 में ब्रिटिश लेखक कैथरीन बर्डकिन ने एक उपन्यास लिखा था-स्वास्तिका नाइट. यह उपन्यास हिटलर के इस दावे पर आधारित था कि नाजीवाद हजारों साल तक कायम रहेगा. उपन्यास की कहानी सात सौ साल बाद की काल्पनिक दुनिया की थी. इसमें सभी औरते अलग, पिंजड़े नुमा जिलों में रहती हैं. उनके दिमाग में यह यकीन कायम है- एक उन्हें पुरुषों की कोई बात नहीं टालनी- चूंकि बलात्कार की अवधारण अब शेष नहीं है, दूसरा उन्हें अपने लड़कों को बिना किसी टालमटोल के सौंप देना है.

हालांकि यह एक काल्पनिक उपन्यास है, फिर भी इसमें औरतों से जुड़े विचार को बहुत से धार्मिक विश्वासों, मान्यताओं या संस्कृतियों का समर्थन मिला हुआ है. शुरुआत से विश्व के विभिन्न समाजों में औरतों का तरह-तरह से शोषण हुआ है. पुरुषों ने हिंसक तरीकों से औरतों को अनुशासित करने का तरीका अपनाया है. जैसा कि सूजन ब्राउनमिलर जैसी अमेरिकी फेमिनिस्ट कह चुकी हैं, बलात्कार सेक्स नहीं, असॉल्ट का मामला है. रेप कल्चर अधिकतर लोगों के दिलो-दिमाग में गहराई से समाया होता है. इसका इस्तेमाल राजनेता कुछ ऐसी ही टिप्पणियों से कर लेते हैं.

बीजेपी ने पिछले छह सालों में ऐसा ही नरेटिव गढ़ा है. आतंकवाद, पाकिस्तान, राष्ट्रीय सुरक्षा को हिंदू संस्कृति की रक्षा के साथ जोड़ कर साफ किया गया है कि हर जगह हिंदू मत तैयार किया जा रहा है. इसके लिए औरतों का इस्तेमाल कोई बड़ी बात नहीं. यह बात पिछले छह सालों में स्पष्ट हुई है और आने वाले दिनो में और निर्ममता से स्पष्ट होगी.

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Published: 08 Feb 2020,02:54 PM IST

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