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महिलाओं के खिलाफ होने वाली ऑनलाइन हिंसा और उत्पीड़न एक बड़ी समस्या बन चुकी है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े पहले ही बता चुके है कि यौन उत्पीड़न और बलात्कार के मामलों में ज्यादातर अभियुक्त परिचित या रिश्तेदार ही होते हैं. अब ऑनलाइन एब्यूज पर किया गया सर्वे भी बता रहा है कि महिलाओं को एब्यूज करने वाले सबसे ज्यादा उनके अपने नजदीकी होते हैं.
पूरी दुनिया के साथ ही भारत भी इंटरनेट क्रांति के दौर में है. इस समय हर चौथा भारतीय सोशल मीडिया से जुड़ा है और यह संख्या तेजी से बढ़ रही है. इनमें महिलाओं की खासी संख्या है. सोशल मीडिया अपने साथ ढेर सारी सुविधाएं और अच्छी चीजों के साथ कुछ बुराइयां भी लेकर आया है. ऑनलाइन हिंसा और एब्यूज उनमें से प्रमुख है.
सर्वे बताते हैं कि ऑनलाइन हिंसा और एब्यूज की ज्यादातर शिकार महिलाएं हैं. मिसाल के तौर पर, गार्डियन अखबार ने विश्लेषण करके बताया कि ब्रिटेन में जिन 10 पत्रकारों को सबसे ज्यादा ऑनलाइन एब्यूज किया गया, उनमें से आठ महिलाएं और 2 अश्वेत पुरुष थे.
भारत में होने वाला कोई सर्वे भी ऐसे ही नतीजे लेकर आएगा. भारत में जहां ज्यादातर गालियां महिला रिश्तेदारों या महिलाओं की देह को लेकर दी जाती है, वहां ऑनलाइन गालियों के मामले में भी केंद्र में महिलाओं और उनकी देह का होना ही स्वाभाविक है.
साइबर गुंडागर्दी से समाज के किसी भी तबके की महिला प्रभावित हो सकती है. केंद्रीय मंत्री से लेकर सोशलाइट और टीवी एंकर से लेकर अभिनेत्री और आम लड़की, कोई भी साइबर बुलिंग का शिकार बन सकती है. इसके उदाहरण हमारे आसपास बिखरे पड़े हैं.
नारीवादी महिलाओं को गालियों का सामना ज्यादा करना पड़ता है. गाली-गलौज या निजी मामलों पर टिप्पणियों की महिलाओं पर पहली प्रतिक्रिया अक्सर यह होती है कि वे अपना एकाउंट या तो बंद कर देती हैं या सोशल मीडिया से ही दूर चली जाती हैं. यह एक तरह के गालीबाजों की जीत है क्योंकि वे दरअसल यही चाहते भी हैं.
साइबर बुलिंग कई तरीके से की जाती है. इसमें महिलाओं की तस्वीरों से छेड़छाड़, गाली-गलौज, धमकी, ब्लैकमेलिंग, फेक प्रोफाइल बनाकर अभद्र सामग्री डालने से लेकर, स्पाई कैम से उतारी गई तस्वीरों और वीडियो को वायरल करना तथा अश्लील मैसेज तक शामिल हैं. साइबर बुलिंग ऐसे तो पुरुषों के साथ भी हो सकती है, लेकिन महिलाओं के साथ यह अधिक होती है.
हालांकि ऑनलाइन हिंसा और एब्यूज का हमेशा कोई राजनीतिक, धार्मिक या जातीय परिप्रेक्ष्य नहीं होता. न ही ऐसा है कि सिर्फ इन विषयों पर लिखने-बोलने वालों को परेशान किया जाता है. विमेंस ऐड की चीफ एक्जिक्यूटिव पॉली नेत के मुताबिक, ऑनलाइन एब्यूज और डोमेस्टिक वायलेंस के बीच की कड़ी की अक्सर अनदेखी की जाती है. ऑनलाइन हैरासमेंट,साइबर बुलिंग और रियल लाइफ में महिलाओं के खिलाफ हिंसा में एक संबंध है.
ऑनलाइन हैरासमेंट भी डोमेस्टिक वायलेंस के व्यापक दायरे का ही एक हिस्सा है और इस स्त्रीद्वेष को चुनौती देने की जरूरत है.
यह आंकड़ा बहुत महत्वपूर्ण है कि महिलाओं के एक्स पार्टनर ऑनलाइन एब्यूज और साइबर बुलिंग में आगे हैं. दरअसल, पार्टनर्स के पास एक दूसरे के ढेर सारे डिजिटल फुलप्रिंट रह जाते हैं. इसलिए पुराने चैट के स्क्रीन शॉट या किसी संवेदनशील जानकारी का इस्तेमाल करके महिलाओं को परेशान किया जाता है. इस मायने में ये, फेसलेस लोगों की साइबर बुलिंग से ज्यादा खतरनाक है. फेसलेस लोगों की अनदेखी करना आसान है. लेकिन परिचित लोग निजी जानकारियां सार्वजनिक करके ज्यादा नुकसान कर सकते हैं.
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने महिलाओं के ह्यूमन राइट्स पर खतरे को इन्वेस्टीगेट करने के लिए 18 से 55 साल की उम्र की 504 महिलाओं से ऑनलाइन पोल से साइबर एब्यूज के बारे में पूछा. सर्वे में पाया गया कि हर पांच में से एक महिला सोशल मीडिया पर एब्यूज से प्रभावित है. वहीं, 18-24 साल की उम्र की महिलाएं ज्यादा एब्यूज की शिकार हुईं.
इस उम्र के समूह में 37% महिलाओं ने कहा कि वो ऑनलाइन एब्यूज और हैरासमेंट का शिकार हुई हैं. इस सर्वे से भी इस बात की पुष्टि हुई कि साइबर एब्यूज करने वालों में परिचित लोगों की संख्या अच्छी-खासी (27%) है.
साइबर बुलिंग किसी महिला को न सिर्फ मानसिक रूप से तोड़ सकती है, बल्कि उसे शारीरिक और आर्थिक नुकसान भी पहुंचा सकती है. इस बारे में किए गए सर्वे का नतीजा है कि एब्यूज की वजह से मनोवैज्ञानिक वेल बीइंग पर असर पड़ता है.
एमनस्टी के सर्वे में तो एक-तिहाई महिलाओं ने बताया कि साइबर बुलिंग के कारण वे अपनी सुरक्षा को खतरा महसूस करती हैं. आधी से अधिक महिलाओं ने तनाव, मानसिक अवसाद और अचानक चौंक जाने जैसी समस्याओं का जिक्र किया. लगभग दो-तिहाई महिलाओं ने नींद न आने की शिकायत की. सर्वे में शामिल हर पांच में से एक महिला को लगता है कि इस वजह से उनकी नौकरी पर बुरा असर पड़ा है.
साइबर क्राइम नए जमाने का अपराध है और हमारी पुलिस, जांच एजेंसियां और न्यायिक संस्थाएं इनसे निपटने के लिए तैयार नहीं है. आईटी एक्ट की धारा 66 ए के तहत साइबर बुलिंग के खिलाफ कार्रवाई मुमकिन थी. लेकिन यह धारा इतनी ढीली-ढाली थी कि इसके दायरे में आने से विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बाधित हो रही थी. इसलिए इस धारा को हटा दिया गया है.
अभी ऐसे मामले आईपीसी की धाराओं के तहत निपटाए जा रहे हैं. महिला और बाल विकास मंत्रालय ने महिलाओं के अश्लील चित्रण से संबंधित 1986 के कानून को संशोधित करने के लिए प्रस्ताव रखा है, जिसमें सोशल मीडिया और सब्सक्रिप्शन के जरिए इंटरनेट पर देखी जाने वाली सामग्री को भी शामिल किया जाना है.
प्रस्तावित कानून में 2 लाख रुपए जुर्माना और तीन साल की कैद का प्रावधान है. अगर ऐसा हुआ, तो कानूनी एजेंसियों को महिलाओं के खिलाफ होने वाले ऑनलाइन उत्पीड़न को रोकने का एक नया जरिया मिल जाएगा.
(लेखिका भारतीय सूचना सेवा में अधिकारी हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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