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सोनम वांगचुक का 'जलवायु उपवास' भले ही खत्म हो गया, लेकिन लद्दाख के लिए 'जंग' जारी

सोनम वांगचुक ने 6 मार्च से 'जलवायु के लिए अनशन' शुरू किया था, जो अब खत्म हो गया है.

आकिब जावेद & जैद बिन शब्बीर
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>सोनम वांगचुक का 'जलवायु उपवास' भले ही खत्म हो गया हो पर संकल्प जारी है</p></div>
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सोनम वांगचुक का 'जलवायु उपवास' भले ही खत्म हो गया हो पर संकल्प जारी है

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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"एक पर्यावरणविद् के रूप में, मैं लद्दाख के नाजुक और संवेदनशील इकोसिस्टम को लेकर बहुत चिंतित हूं," मैग्सेसे पुरस्कार विजेता शिक्षाविद् सोनम वांगचुक ( Sonam Wangchuk) ने ये बातें कही हैं. सोनम वांगचुक ने हाल ही में लेह में अपना 21 दिनों से जारी भूख हड़ताल खत्म किया. उन्होंने लद्दाख के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग करते हुए, 6 मार्च से 'जलवायु उपवास' शुरू किया था.

26 मार्च को इस अनशन के अंतिम दिन, वांगचुक ने कहा कि लद्दाख के लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की अंतरात्मा को जगाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि वे लद्दाख में हिमालय के पहाड़ों के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए उचित कार्रवाई करें और अद्वितीय स्वदेशी जनजातीय संस्कृति को संरक्षित करें.

उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, "हम मोदी जी और अमित शाह जी को सिर्फ राजनेता के रूप में सोचना पसंद नहीं करते हैं, हम उन्हें स्टेट्समैन यानी राजनीतिज्ञ के रूप में सोचेंगे लेकिन इसके लिए उन्हें इस समस्या से प्रभावी ढंग से निपटने की क्षमता और दूरदर्शिता दिखानी होगी."

वांगचुक 'कोल्ड डेजर्ट' में एक निरंतर आंदोलन का चेहरा बन गए हैं, जहां लोग भूमि और नौकरी की समस्या को लेकर केंद्र सरकार का विरोध कर रहे हैं.

उन्होंने कहा "यहां पानी की हर बूंद महत्वपूर्ण है. लद्दाख बड़ी संख्या में लोगों का भार नहीं उठा सकता है. यह स्थानीय लोगों को शरणार्थी बना देगा और यहां तक ​​कि जो लोग आएंगे, उनके लिए भी स्थिति अच्छी नहीं होगी. हमारे लोगों के मन में हमारी भूमि और संस्कृति को लेकर यही डर है. इन पहाड़ों में लोग सदियों से रहते आ रहे हैं, अब इसके कमजोर होने का खतरा है और इसका टिका रहना मुश्किल है."

हालांकि, यह पहली बार नहीं था कि सोनम वांगचुक ने जलवायु परिवर्तन को लेकर अनशन किया था.

  • जनवरी 2023 में, उन्होंने लद्दाख में अपने संस्थान 'हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स' (HIAL) में -20 डिग्री सेल्सियस में पांच दिनों के लिए 'जलवायु उपवास' रखा था.

  • जून 2023 में, वांगचुक "लद्दाख की नाजुक इकोसिस्टम" को बचाने के लिए फिर से उन्होंने नौ दिनों तक भूख हड़ताल किया था.

लद्दाख की मांगों का पारिस्थितिक से संबंध

लद्दाख एक उच्च ऊंचाई पर स्थित रेगिस्तान है, जहां लगभग 3 लाख लोग रहते हैं. यह क्षेत्र अपनी कठोर जलवायु परिस्थितियों, दुर्लभ वनस्पति और सीमित जल संसाधनों के कारण पारिस्थितिक रूप से नाजुक माना जाता है. यहां के अधिकांश लोग आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं.

लद्दाख के लोगों की लंबे समय से इसे अलग राज्य बनाने की मांग थी. वे उम्मीद कर रहे थे कि संवैधानिक तौर पर इसे अलग राज्य का दर्जा मिल जाएगा लेकिन इस महीने की शुरुआत में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाली सरकार ने स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया.

5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के साथ उनकी जमीन और नौकरी के अधिकार छीन लिए गए और इस क्षेत्र को अन्य राज्यों के लोगों के लिए खोल दिया गया.

यह महसूस करते हुए कि केंद्र सरकार छठी अनुसूची का विस्तार करने के मूड में नहीं है, जो इस क्षेत्र की रक्षा करेगी और आदिवासी क्षेत्र को सीमित स्वायत्तता प्रदान करेगी, इंजीनियर से शैक्षिक सुधारक बने वांगचुक ने क्षेत्र की नाजुक इकोलॉजी की ओर ध्यान खींचने के लिए 2023 में "क्लाइमेट फास्ट" की घोषणा की.

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क्विंट हिंदी से बात करते हुए वांगचुक ने कहा कि जहां लद्दाख स्थित है, वहां ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर पिघल रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि मौसम के बदलते मिजाज के कारण बार-बार अचानक बाढ़, भूस्खलन और सूखा पड़ रहा है, जिससे क्षेत्र के कम आबादी वाले गांवों में रहने वाले लोगों के जीवन पर असर पड़ रहा है.

उन्होंने कहा, "हम हिमालय क्षेत्र के पहाड़ों को अंधाधुंध दोहन और खनन से बचाने के लिए विरोध कर रहे हैं, जो पहले ही उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और यहां तक ​​कि सिक्किम जैसे स्थानों पर कहर बरपा चुका है. ये सभी गतिविधियां अब लद्दाख को प्रभावित करने के लिए तैयार हैं."

लद्दाख को बचाने के लिए वांगचुक के अथक प्रयास: ग्रह का 'तीसरा ध्रुव'

हाल ही में, ग्लेशियर तेजी से घट रहे हैं और उत्तरी भारत के कई क्षेत्र उन पर निर्भर हैं.

वांगचुक ने कहा कि लद्दाख, जो एक व्यापक हिमनद सिस्टम का घर है, जिसे "ग्रह का तीसरा ध्रुव" कहा जाता है. यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दो अरब लोगों का पेट भरता है.

उन्होंने कहा...

"अगर इन क्षेत्रों में खनन उद्योग शुरू किए जाते हैं, तो न केवल स्थानीय समुदायों को नुकसान होगा, बल्कि पूरे उत्तरी भारतीय मैदानी इलाकों को पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा. इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि हम इन नाजुक क्षेत्रों को पानी के लिए सुरक्षित रखें."

वांगचुक ने कहा, "यह स्थानीय लोगों के लिए, यह उनके क्षेत्र, रीति-रिवाजों, संस्कृति और भूमि की रक्षा करने के बारे में है , ये सभी संविधान की छठी अनुसूची में निहित हैं, जैसा कि हमारे पूर्वजों ने 75 साल पहले स्थापित किया था."

2015 में, वांगचुक ने 'आइस स्तूप' का आविष्कार किया था, जो लद्दाख में जल संकट से निपटने के लिए पहाड़ी जलधाराओं को पाइप करके बनाया गया एक कृत्रिम ग्लेशियर था. अप्रैल-मई, जब खेती का सीजन चरम पर रहता है, उस समय आर्टिफिशियल ग्लेशियर ने पानी की कमी को दूर करने में काफी मदद की. तब से लेह के किसानों को ऐसे आइस स्तूपों से लाभ हुआ है.

वांगचुक के जीवन से प्रेरित बॉलीवुड फिल्म '3 इडियट्स' में एक कैरेक्टर भी रखा गया. इतना ही नहीं, 2021 में वांगचुक ने एक इको-फ्रेंडली सोलर ऊर्जा से बना एक गर्म टेंट बनाया था, जिसका उपयोग सेना के जवान लद्दाख क्षेत्र में सियाचिन और गलवान घाटी जैसे बेहद ठंडे स्थानों में कर सकते हैं.

छठी अनुसूची लद्दाख की पारिस्थिति को कैसे बचाएगी?

छठी अनुसूची को लागू करने के लिए, संविधान कहता है कि किसी क्षेत्र की आबादी में कम से कम 50 प्रतिशत आदिवासी समुदाय शामिल होने चाहिए, लद्दाख में करीब 97 फीसदी आबादी आदिवासी है.

वांगचुक ने बताया कि वे पहाड़ों की सुरक्षा के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, "अनुच्छेद 244 की छठी अनुसूची, जो इन क्षेत्रों, लोगों और उनकी संस्कृतियों को सुरक्षा प्रदान करती है, जहां वे यह निर्धारित कर सकते हैं कि इन स्थानों को दूसरों के हस्तक्षेप के बिना कैसे विकसित किया जाना चाहिए, इसे केंद्र शासित प्रदेश (UT) बनाए जाने से काफी समय पहले लद्दाख यही लंबे समय से मांग कर रहा है."

विशेष रूप से, छठी अनुसूची में ऐसे प्रावधान हैं, जो स्वदेशी जनजातियों को महत्वपूर्ण स्वायत्तता प्रदान करते हैं, जिससे विधायी और न्यायिक अधिकार के साथ स्वायत्त जिला परिषदों (ADCs) की स्थापना संभव हो पाती है. इन परिषदों को भूमि, वन, जल, कृषि, स्वास्थ्य, स्वच्छता, खनन और उससे आगे जैसे विभिन्न पहलुओं से संबंधित नियम बनाने का अधिकार है.

वांगचुक ने कहा, "यह हमारी आशा थी, जो बाद में अनिश्चितता में बदल गई. सरकार ने उदारतापूर्वक लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया, लेकिन वादा किया कि लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत सुरक्षित रखा जाएगा, लेकिन इसे पूरा नहीं किया."

उन्होंने आगे तर्क दिया कि अगर लद्दाख को बिना किसी सुरक्षा उपाय के सभी के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया गया, तो खनन कंपनियां आ जाएंगी. वांगचुक ने कहा, "हम अक्सर सुनते हैं कि वे पहाड़ों और घाटियों में जगह तलाश रहे हैं. लोगों को आशंका है कि बड़ी होटल चेन आएंगी, जिनमें से प्रत्येक में संभावित रूप से हजारों पर्यटक आएंगे, जो लद्दाख की शुष्क रेगिस्तानी पारिस्थितिकी के लिए खतरा पैदा करेंगे.

'बीजेपी को अपना वादा निभाना होगा'

वांगचुक ने कहा कि बीजेपी को अपना वादा पूरा करने की जरूरत है जो उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान "भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत लद्दाख की घोषणा" के संबंध में किया था.

"यह एक चेक देने जैसा है और अगर चेक बाउंस हो जाता है, तो हमें कोई परवाह नहीं है. इसलिए, इस वादे के साथ लद्दाख का क्या होगा, यह आने वाले सभी चुनावों में शेष भारत के लिए एक मिसाल कायम करेगा कि क्या नेता कुछ भी कह सकते हैं और बाद में भले ही इसे पूरा न करे और इससे बच भी जाए,''

(आकिब जावेद जम्मू-कश्मीर स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह जम्मू-कश्मीर से मानवाधिकार, राजनीति, उग्रवाद, व्यापार और अर्थव्यवस्था और जलवायु परिवर्तन पर रिपोर्टिंग करते रहे हैं. जैद बिन शब्बीर श्रीनगर स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

(यह एक ओपनियन पीस है और यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार हैं)

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