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भारत में स्टार्टअप: दिखावे पर मत जाइए, कारोबार चमकाना है तो 3 बातें याद रखिए

भारत के यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स को प्रतिष्ठा बनाने पर ध्यान देने और 'इंपोस्टर ब्वॉय यानि ढोंगियों से’ बचने की जरूरत है

माधव नारायणन
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>प्रतीकात्मक फोटो</p></div>
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प्रतीकात्मक फोटो

(Photo: Erum Gour/The Quint)

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जब इन्फोसिस(Infosys) भारत से सॉफ्टवेयर सर्विस देने वाली एक विश्वस्तरीय भारतीय कंपनी बनी तब देश में मुश्किल से कुछ लोग ही थे जो ‘वेंचर कैपिटल’ शब्द से वाकिफ भी थे और 'यूनिकॉर्न' शब्द तो बिजनेस की दुनिया में छोड़िए सिर्फ कल्पनाओं और टिनटिन कॉमिक की दुनिया में जाने जाते थे. यहां तक कि 'स्टार्टअप' जैसे शब्द के अर्थ भी कुछ कुछ ही लोग समझ रहे थे. फिर भी 1980 के दशक की शुरुआत में बेंगलुरु से शुरू हुई यह कंपनी जल्द ही अरबों डॉलर की वैल्यूएशन वाली कंपनियों की श्रेणी में शामिल हो गईं, जिन्हें आजकल यूनिकॉर्न कहा जाता है. आज दशकों बाद, कुछ उठापटक के साथ भी ये कंपनी काफी दमदार बनी हुई है. या, आप कह सकते हैं कि किसी कंपनी का असफलताओं और अवसरों से निपटने का अंदाज उसे सही अर्थों में यूनिकॉर्न बनाता है.

ऐसे विचार मेरे दिमाग में तब आ रहे हैं जब भारत के बिलियन डॉलर वाले यूनिकॉर्न स्टार्टअप एक मुश्किल सच का सामना कर रहे हैं.

इनमें बहुत से स्टार्ट अप्स के भविष्य में होने वाली उनकी वैल्यू को देखते हुए यूनिकॉर्न का तमगा दिया गया है ताकि युवा स्टाफ में जोश जगाया जा सके और शानदार एग्जिट के लिए प्रेरित वेंचर निवेशकों को बढ़िया ऑफर दिए गए हैं. अगर शेक्सपियर के साहित्य से शब्द लेकर कहें तो ये आज के साइलॉक हैं: वो जितना पैसा नहीं देते, उतना महफिल लूटते हैं..

उनकी अपनी एक रणनीति है, जिसका अक्सर वो प्रचार करते हैं. वो है भविष्य का अधिग्रहण या आईपीओ लिस्टिंग के लिए तैयार करना. इससे वेंचर कैपिटल और फाउंडर दोनों ही धनवान हो जाते हैं.

सिकोइया की गुत्थी में है ज्ञान

इस महीने, वेंचर कैपिटल फंड सिकोइया कैपिटल (जिसने कभी Google को पैसा दिया था)ने भारत के यूनिकॉर्न इकोसिस्टम में एक नया तूफान खड़ा कर दिया, जब इसने घरेलू स्टार्टअप्स में कॉरपोरेट गवर्नेंस के मुद्दों पर सवाल खड़े किए.

जिन चार कंपनियों को इसने पैसे दिए, अगर सीधे समझें तो वो कंपनियां ईमानदारी को लेकर कटघरे में हैं. सिकोइया कैपिटल ने इन स्टार्टअप्स पर जानबूझकर फ्रॉड करने के बारे में बयान दिए. इन चार कंपनियों में से एक मशहूर भारत पे के कोफाउंडर अशनीर ग्रोवर भी हैं, जिन्हें अब इंपोस्टर ब्वॉय कहा जा सकता है. इस टर्म को मैंने खुद गढ़ा है.

यूनिकॉर्न का हनीमून पीरियड खत्म हो गया है और अब ये पूछना चाहिए कि जब सिलिकॉन वैली जैसा सिस्टम अगर भारत में चलाया जाता है तो फिर किसी कंपनी के कामयाब होने का फॉर्मूला क्या है.

अशनीर ग्रोवर से पहले राहुल यादव एक और उदाहरण है. राहुल के नाम को सिर्फ गूगल में खोजें तो राहुल यादव की पूरी कहानी सामने आ जाती है. किस तरह से वेंचर कैपिटल ने राहुल यादव को उनकी ही कंपनी से धकेल कर बाहर कर दिया था. वही IITIAN राहुल यादव जिसने भारत में घर खोजने के पुराने तरीके को पूरी तरह बदल दिया और क्रांतिकारी परिवर्तन किए.

एक प्रमुख एंजेल निवेशक में मुझे बातचीत के दरम्यान बताया था कि राहुल यादव ने वास्तव में उनसे कहा था कि उन्हें उम्मीद थी कि उनके स्टार्टअप का फेल होना लगभग नामुमकिन है. लेकिन वो गलत साबित हुए. दूसरे शब्दों में, उन्होंने आशा जताई थी कि निवेशकों के पैसे आने से उनको कंपनी से निकालना मुश्किल हो जाएगा, लेकिन उनका अंदाजा सरासर गलत निकला.

‘आपको पुरानी कहावत याद है ना ? अगर आप लाखों डॉलर कर्ज लेते हैं तो ये आपकी परेशानी बढ़ाता है ..लेकिन अगर आप बिलियन डॉलर कर्ज लेते हैं तो फिर ये बैंक की परेशानी है ?’

ग्रोवर और यादव के उदाहरण ये बताने के लिए काफी हैं कि कॉर्पोरेट अनियमितताएं और जोखिम अलग अलग तरीकों से आती हैं. जिस तरह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक नीरव मोदी या विजय माल्या को पैसा उधार देने की कीमत चुका रहे हैं, जो ब्रिटेन की मेहमाननवाज कानूनी व्यवस्था में मस्त अपना टाइम पास कर रहे हैं. सिकोइया जैसे वेंचर कैपिटल इस तरह के बिजनेस में "जोखिम" को महसूस कर रहे हैं जहां फाउंडर और कर्मचारी की प्रतिबद्धता ही सबसे ज्यादा एनर्जी और वैल्यू को संचालित करते हैं.

धंधेबाज और फ्रॉडस्टर वेंचर कैपिटल को घुमा रहे हैं

भारत की आबादी में जो बड़े परिवर्तन हो रहे हैं उसकी वजह से कुछ स्टार्टअप जो तकनीकी के जरिए स्थानीय मार्केट को बदल रहे हैं उन्हें यूनिकॉर्न का तमगा दे दिया जा रहा है. लेकिन इनमें से कुछ के पास ही इनोवेशन यानि कुछ नया करने या फिर ग्लोबल होने की महत्वकांक्षाएं हैं. इसकी वजह से यूनिकॉर्न अब एक बैंडवैगन बनकर रह गए हैं. इस बात से बेखबर वेंचर कैपिटल को भी फ्रॉडस्टर और धंधेबाज अपनी मर्जी से घुमा रहे हैं. भारत में फिलहाल 100 स्टार्टअप यूनिकॉर्न हैं जिनके पास सरकारी डाटा के हिसाब से 320 बिलियन डॉलर की संपत्ति है.

सिकोइया का सबके सामने शोर मचाना फाउंडर्स से लेकर रेगुलेटरों तक सभी के लिए ईमानदारी और पारदर्शिता के महत्व को समझने के लिए वेक अप कॉल जैसा है. एक ऐसी दुनिया जहां बहुत कुछ करने के वादे तो हैं पर प्रतिष्ठा के लिए खतरा भी है.

अब यहां पर इंफोसिस की बात करते हैं जिन्होंने अपने बिजनेस के लिए मंत्र दिया था “Powered by Imagination. Driven by Values” यानि ''कल्पनाशीलता से ऊर्जित, मूल्यों से संचालित''. आज के जोशीले और आत्ममुग्धित यूनिकॉर्न वाले स्टार्ट अप जिनका फोकस इंस्टाग्राम की रील पर ज्यादा है, उनको इंफोसिस के कोफाउंडर एन आर नारायण मूर्ति ‘बिग बोर अंकल‘ लग रहे होंगे लेकिन उनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है. नारायण मूर्ति उनके लिए एक अच्छी सीख की तरह हैं. ठीक उसी तरह इंफोएज के कोफाउंडर संजीव बिकचंदानी ने सिकोइया कैपिटल के हो-हल्ले के बाद कहा कि – गुड गवर्नेंस फाउंडर्स के दिमाग से शुरू होता है.

तीन बड़े Os महत्वपूर्ण

फिर भी कैरेक्टर और गवर्नेंस ही सबकुछ नहीं है. वो पिज्जा के बेस की तरह हैं, जहां आप यूनिकॉर्न टॉपिंग करते हैं. अगर आप चाहते हैं कि मैं यूनिकॉर्न के फैंसी शब्द ‘PIVOT’ से जिन्हें में स्ट्रैटजिकली जुगाड़ कहता हूं , से जरा हटकर कुछ अहम बातें बताऊं जिनपर किसी यूनिकॉर्न की कामयाबी टिकती है तो वो नीचे बताई गई 3 चीजें हैं. 3 O.

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ओरिएंटेशन (शुरुआत) : आप भारतीय बाजार में एक सफल वैश्विक उत्पाद ला सकते हैं ( उदाहरण के लिए पेटीएम और मोबाइल वॉलेट के बारे में सोचें), या आप एक सफल स्थानीय उत्पाद वैश्विक (सोचें ओला) ले सकते हैं. आपको अपनी क्षमता और सीमा दोनों को जानने की आवश्यकता है ताकि आप जितना चबा सकते हैं उससे अधिक न काटें, लेकिन जो आप चबाते हैं उसे अच्छी तरह से पचाएं.

ऑपरचुनिटी (अवसर) : आपको ये जानना चाहिए कि आपके कस्टमर, निवेशक, पार्टनर और नौकरी पेशा आखिर क्यों आपकी फिक्र करेंगे. आखिर आप उनके लिए कैसे फायदेमंद हैं क्योंकि आप अगर उनमें अपना फायदा देख रहे हैं तो वो भी अपना फायदा खोजेंगे. आपको ये भी समझना चाहिए किसी भी तरफ से खतरा हो सकता है.

ऑर्गेनाइजेशन (संगठन) :आप को ये जानना चाहिए कि आप जो कुछ कर रहे हैं वो क्यों कर रहे हैं और आपको क्या नहीं करना चाहिए और क्यों नहीं करना चाहिए. इसकी संरचना, फिलॉस्फी, लक्ष्य, वैल्यू और स्ट्रैटेजी की जानकारी सब साफ होनी चाहिए .

इन 3 Os पर एक किताब लिखी जा सकती है और इनोवेशन, स्केलिंग जो कि MBA में सिखाया जाता है उस पर भी बातें की जा सकती है पर ये 3Os सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है. जो किताबों यानि टेक्स्टबुक में पढ़ाया जाता है उसके हिसाब से दुनिया चलती नहीं है.

इन तीन बड़ी Os में किसी भी शॉर्ट टर्म कंपनी (स्टार्टअप) को लॉन्ग टर्म (इंस्टीट्यूशन ) में बदलने की क्षमता होती है.

ईमानदारी क्यों महत्वपूर्ण है ?

सफलताओं और असफलताओं पर केस स्टडी की कोई सीमा नहीं है क्योंकि ना मौके खत्म होते हैं, ना ही खतरे. इस महीने तक, फेसबुक को अभी भी मेटावर्स नामक एक नए पहाड़ पर चढ़ना है, और नेटफ्लिक्स को ग्राहकों की संख्या बढ़ाने की चुनौती का सामना करके अपनी स्केलिंग की फिक्र करनी है.

एक सफल यूनिकॉर्न वास्तव में परिवर्तन को नेविगेट करने की क्षमता है जहां कैरेक्टर से गवर्नेस के बारे में पता चलता है. तीन Os एक कंपास की तरह हैं जो गति, शैली या दिशा बदलने में मदद करता है, या यहां तक कि ‘टिके’ रहने में भी

प्रतिष्ठा, जो कि किसी भी ब्रांड का सबकुछ होता है. वो वास्तव में इन सब चीजों के साथ साथ वक्त पर ही आता है. वेंचर कैपिटल अक्सर फाउंडर्स और स्टार्टअप्स को लेकर अपना सकारात्मक रुख रखते हैं जो स्टार्ट अप या वेंचर कैपिटल जानते हैं कि कैसे रुकना है और कब बढ़ना है, और सबसे बढ़कर ये समझते हैं कि क्यों हर स्तरों पर ईमानदारी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है

मैं जानता हूं कि मोरल साइंस में रोमांच नहीं है, रेड फरारी जितनी तो बिल्कुल ही नहीं , उसका आधा भी नहीं पर, आंत्रप्रेन्योरशिप एक ऐसी दुनिया है जिसमें शीर्ष पर पहुंचने वाले अक्सर वैसे लोग होते हैं हैं जो फेरारी तो खरीद सकते हैं पर दिल दिमाग साधु जैसा रखते हैं.– बेशक लाइफ स्टाइल साधुओं वाली नहीं रहती पर मन से वो वैसे ही होते हैं...जरा इंफोसिस, बिल गेट्स, वारेन बफेट इनको देखिए और इनको समझिए .. यदि आप इस गेम को सही तरीके से खेलना जानते हैं तो बोरिंग भी बहुत रोमांचक हो सकता है.

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