मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019संडे व्यू: पहेली बना BRICS, परिवारवाद से भ्रष्टाचार- नामचीन लेखकों के लेखों का सार

संडे व्यू: पहेली बना BRICS, परिवारवाद से भ्रष्टाचार- नामचीन लेखकों के लेखों का सार

पढ़ें आज टीएन नाइनन, तवलीन सिंह, पवन के वर्मा, तवलीन सिंह, आसिम अली के विचारों का सार

क्विंट हिंदी
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>संडे व्यू: पहेली बनी BRICS, परिवारवाद से भ्रष्टाचार- नामचीन लेखकों के लेखों का सार</p></div>
i

संडे व्यू: पहेली बनी BRICS, परिवारवाद से भ्रष्टाचार- नामचीन लेखकों के लेखों का सार

क्विंट हिंदी

advertisement

पहेली बना ब्रिक्स

टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि बीती सदी में गोल्डमैन सैक्स के अर्थशास्त्रियों ने जो जुमला दिया था उसमें यह स्थापना दी गयी थी कि ब्राजील, रूस, भारत और चीन का संयुक्त आकार सदी के मध्य तक दुनिया की सर्वाधिक विकसित छह अर्थव्यवस्थाओं से अधिक हो जाएगा. एक दशक बाद ही यह विचार ध्वस्त हो गया.

चीन और भारत दुनिया शीर्ष पांच अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हैं. ब्राजील और रूस कुछ इस तरह पिछड़े कि रूस अब 10 अर्थव्यवस्थाओं में भी नहीं रह गया. प्रतिव्यक्ति आय के मामले में भारत तीन देशों के मुकाबले पीछे है.

नाइनन लिखते हैं कि 2001 में ये चारों देश दुनिया के सर्वाधिक बादी वाले छह देशों में शामिल थे और सर्वाधिक भूभाग वाले सात देशों में भी इनका स्थान था. भूभाग और जनांकिकीय तर्क ही ब्रिक्स के एक्रोनिम को वैधता प्रदान करता है. हालांकि, इस दौरान पाकिस्तान और नाइजीरिया की आबादी रूस और ब्राजील से अधिक हो गयी है.

ब्रिक्स की बैठकों से ब्रिक्स बैंक ही सामने आया लेकिन इससे भी अंतरराष्ट्रीय विकास फंडिंग में बहुत अधिक फर्क नहीं आया. समुद्र के अंदर ब्रिक्स केबल बिछाने पर भी चर्चा हुई. मगर, प्रगति अत्यंत धीमी रही. डॉलर का मुकाबला करने के लिए नयी मुद्रा व्यवस्था का भी प्रस्ताव परवान नहीं चढ़ पाया. अब ब्रिक्स में 40 देशों ने रुचि दिखलायी है लेकिन भारत चाहता है कि सदस्यता का मानक तय हो. चीन इस मंच का अपने कूटनीतिक मकसद के लिए उपयोग कर रहा है, यह भी सच है.

परिवारवाद से भ्रष्टाचार

तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि जब भी प्रधानमंत्री विपक्ष में परिवारवाद की बुराइयां गिनाते हैं ऊंची आवाज में, तो उनको याद दिलाया जाता है कि यह ‘बीमारी’ भारतीय जनता पार्टी में भी है. पिछले दिनों लालकिले से प्रधानमंत्री ने कहा कि एक परिवार द्वारा अपने ही परिवार का भला किया जा रहा है.

कैप्टन अमरिंदर सिंह से लेकर सिंधिया परिवार के कई सदस्यों तक के उदाहरण रखे गये, लेकिन इनमें से अभी तक की ऐसा व्यक्ति नहीं दिखा है जिसने एक पूरे राजनीतिक दल को निजी जायदाद बनाकर अपने वारिसों के हवाले किया हो. यह बहुत बड़ा फर्क है. असली वंशवाद तब देखने को मिलता है जब पूरा का पूरा राजनीतिक दल कोई राजनेता अपने वारिसों को सौंपता है.

लेखिका ने इंदिरा गांधी का उदाहरण रखा है जिन्होंने संजय गांधी को इमर्जेंसी के दौरान असीमित अधिकार दे दिए थे. संजय गांधी की मृत्यु के बाद राजीव गांधी को इंदिरा ने अपना उत्तराधिकारी बनाया. जब उनकी भी हत्या हो गयी तो कांग्रेस की पूरी कार्यकारिणी सोनिया गांधी के सामने नतमस्तक हुई कि वे पार्टी की बागडोर संभालें.

आगे चलकर सोनिया गांधी राजनीति में आयीं। कांग्रेस की नकल करके क्षेत्री राजनेता भी वंशवाद को अपनाने लगे, लेखिका ने वंशवादी राजनीतिज्ञों से बातचीत के आधार पर लिखा है कि राजनीति को कारोबार बना लिया गया है और इतना अकूत धन इतनी जल्दी किसी और कारोबार में नहीं आता.

अब सरपंच तक के स्तर पर परिवारवाद पहुंच चुका है. इस कारण भ्रष्टाचार का बोलबाला बढ़ा है. मोदी के दौर में फर्क इतना जरूर या है कि प्रधानमंत्री लाल किले के प्राचीर से इन चीजों को समाप्त करने की इच्छा जताते हैं.

क्यों होती है सांप्रदायिक हिंसा?

आसिम अली ने टेलीग्राफ में लिखा है कि भारतीय राजनीति की विशेष घटना के तौर पर सांप्रदायिक हिंसा रही है. बीते पांच दशको में देश के अलग-अलग हिस्सों में समय-समय पर सांप्रदायिक हिंसा फूटती रही है. हिन्दू-मुस्लिम हिंसा की इन घटनाओं को हिन्दी और अंग्रेजी ने लगातार जगह दी है.

जाति आधारित हिंसा के मुकाबले अधिक तरजीह दी है. समाजशास्त्री पियरे बॉर्ड्यू के हवाले से लेखक बताते हैं कि सांप्रदायिक हिंसा को गलत तरीके से समझा गया है और सत्ता, ज्ञान व वैधानिकता के दायरे में इसे समझने की जरूरत है. सांप्रदायिक हिंसा को गलत तरीके से मान्यता देने का उदाहरण इंदिरा युग है.

पॉल ब्रास के हवाले से आसिम अली लिखते हैं कि उत्तर भारत में प्रेस सीधे तौर पर दंगों के दौरान अफवाह फैलाने में शामिल रहता है. ‘द प्रॉडक्शन ऑफ हिंदू-मुस्लिम वायोलेंस कंटेम्प्ररी इंडिया’ में ब्रास लिखते हैं कि अंग्रेजी मीडिया अपने समकक्ष हिन्दी मीडिया की तरह इन दंगों में सहभागी नहीं होते. सांप्रदायिक दंगों को आम तौर पर ‘अल्पसंख्यक विरोधी’ के तौर पर समझ लिया जाता है.

‘राइटिंग इन वोट्स एंड वायोलेंस…’ में स्टीवन विलकिंसन सांप्रदायिक दंगे को चुनावी स्थिति मजबूत करने के लिए राजनीतिक कदम के तौर पर देखते हैं. विलकिंसन का मानना है कि बहुध्रुवीय चुनावी स्पर्धा में सांप्रदायक हिंसा घटती है.

ऐसा इसलिए होता है कि अल्पसंख्यकों को राजनीतिक संरक्षण मिलने के आसार अधिक बन जाते हैं. वे दाहरण देते हैं कि यूपी और बिहार में बहुध्रुवीय राजनीति में सांप्रदायिक दंगों पर नियंत्रण हुआ है.

गुड़गांव-मेवात में सांप्रदायिक हिंसा को होने दिया गया. यहां भारतीय जनता पार्टी का चुनावी गठबंधन संदिग्द हो चला है. पंजाबी खत्री-ब्राह्मण में बीजेपी की पैठ है और उन्हें सांप्रदायिक हिंसा की आवश्यकता नहीं है. जाट के इलाके भी सांप्रदायिक शांति के पक्ष में हैं. अहिरवाल क्षेत्र में अहीर और गुज्जर में वर्चस्व की लड़ाई है. इसलिए यहां स्थिति भिन्न है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

खड़गे के लिए परीक्षा की घड़ी

अदिति फडणीस ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि मपन्ना मल्लिकार्जुन खरगे स्वतंत्र भारत के इतिहास में दूसरे ऐसे नेता हैं जो लोकसभा और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष रहने के साथ-साथ एक राष्ट्रीय दल के अध्यक्ष रह चुके हैं. वे विपक्ष के पहले ऐसे नेता बन गये हैं जो लाल किले से प्रधानमंत्री के संबोधन के दौरान अनुपस्थित रहे. खराब स्वास्थ्य के कारण ऐसी स्थिति बनने के तर्क से बीजेपी सहमत नहीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि मल्लिकार्जुन खरगे का सम्मान कांग्रेस नहीं करती, बल्कि गांधी परिवार उनका अपमान करता है.

खरगे को इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में गुटीय संघर्ष को शांत कराने में सफलता हासिल की. खरगे 2014 से 2019 तक कांग्रेस की ओर से अपमान और अवमानना से जूझते रहे. ऐसी कई समितियां हैं जहां नेता प्रतिपक्ष की मौजूदगी आवश्यक है. मिसाल के तौर पर सीबीआई प्रमुख और सीवीसी का चयन आदि.

उन्होंने लोकपाल चुने जाने के लिए होने वाली बैठकों का बहिष्कार किया क्योंकि वहां उन्हें विशेष आमंत्रित के रूप में बुलाया गया था जिसके पास कोई अधिकार नहीं था. ऐसा इसलिए किया गया था कि उन्हें लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में चुना नहीं गया था. कांग्रेस में ऐसा कहने वाले लोग भी हैं कि खरगे को मौजूदा पद सोनिया गांधी की वजह से मिली है. आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में प्रत्याशी चयन, प्रचार की रणनीति और अन्य विपक्षी दलों के साथ बातचीत उनके लिए वास्तविक परीक्षा की घड़ी होगी.

रॉकी और रानी...में लैंगिक समानता की जोरदार वकालत

पवन के वर्मा ने हिन्दुस्तान टाइम्स में फिल्म रॉकी और रानी की प्रेम कहानी की समीक्षा लिखी है. लंबे समय बाद किसी फिल्म ने उन्हें प्रभावित किया. रणवीर सिंह और आलिया भट्ट की शानदार परफॉर्मेंस रही. रॉकी के रूप में रणवीर, दिल्ली के करोल बाग में एक अमीर पंजाबी परिवार में मिठाई कारोबारी के वंशज जिनके पास फेरारी है और बेहद खराब अंग्रेजी भी.

रानी के रूप में आलिया भट्ट शानदार रहीं. उनका भद्रलोक बंगाली परिवार बिल्कुल अलग है, शास्त्रीय संस्कृति से ओत-प्रोत है जिनके लिए अंग्रेजी और बंगाली एकसमान रूप से मातृभाषा है. धर्मेंद्र, जया बच्चन और शबाना आजमी की मौजूदगी भी शानदार रही.

पवन के वर्मा लिखते हैं कि ओटीटी के युग में बॉलीवुड की ओर भी दर्शक लौटे हैं. 70 के दशक में छात्र के रूप में हर हफ्ते फिल्म जाना, फिर साप्ताहिक अखबारों के लिए फिल्म समीक्षा के सिलसिले में फ़िल्में देखने सिनेमा हॉल जाने की घटनाओं के अतीत में लेखक जाते हैं. लैंगिक समानता विषय पर ‘रॉकी और रानी...’ पूरी तरह फोकस रही है और यह फिल्म सरकार के सभी प्रचार अभियानों की तुलना में इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर अधिक काम करती दिखी. स्त्री-पुरुष संबंधों में मुख्य शब्द ‘सम्मान’ है.

इसे किसी कठोर फॉर्मूले में नहीं बांधा जा सकता. काम के बोझ का बंटवारा भी कोई इलाज नहीं है. बहुत लंबे समय से प्रतिभाशाली भारतीयों की पीढ़ियों को सही लहजे और प्रवाह में अंग्रेजी बोलने की उनकी क्षमता या पश्चिमी टेबल शिष्टाचार और पोशाक के तौर-तरीको में उनकी निपुणता के आधार पर आंका जाता रहा है, लेकिन, धीरे-धीरे ये बाधाएं खत्म हो रही हैं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT