advertisement
करन थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि कांग्रेस ने 5 अप्रैल को जो घोषणापत्र लोकसभा चुनाव के लिए जारी किया है, उसमें संविधान की रक्षा के तहत कुछ महत्वपूर्ण वादे किए गए हैं. इसमें कहा गया है, “हम वादा करते हैं कि संसद के दोनों सदन एक साल में 100 दिन के लिए मिलेंगे.” इससे हमारे लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को सही मायने में वास्तविकता मिलेगी. 16वीं लोकसभा में केवल 1615 घंटे काम हुए जो पूर्णकालिक लोकसभाओं के औसत से 40% कम है. 15वें सदन में 26% कानून 30 मिनट से कम समय में पारित किए गये. केवल 25% बिल समितियों को भेजे गये जबकि 14वीं और 16वीं लोकसभा में 71% और 60% थे. साल में 100 दिन सदन बैठे तो समस्या का समाधान करने में काफी मदद मिलेगी.
करन थापर दूसरे वादे की चर्चा करते हैं- “हम वादा करते हैं कि सप्ताह में एक दिन प्रत्येक सदन में विपक्षी बेंच द्वारा सुझाए गए एजेंडे पर चर्चा के लिए समर्पित होगा.” इसका मतलब यह है कि जीएसटी और मूल्य वृद्धि, पेगासस और राफेल, चीनी घुसपैठ और चुनावी बॉन्ड जैसे विषयों पर बहस होगी जिन पर सरकार ने चर्चा करने से इनकार कर दिया है. सरकार की अड़ियल अनिच्छा के गिर्द यह अत्यंत जरूरी रास्ता है. इससे संसदीय बहस संपूर्ण और सार्थक होगी. तीसरे वादे में लिखा है- “हम वादा करते हैं कि दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों को किसी भी राजनीतिक दल से अपना संबंध तोड़ना होगा.” वर्तमान में स्पीकर पार्टी के सदस्य बने रहते हैं.
लेखक एक उपाय जोड़ना चाहते हैं कि अगर कोई मौजूदा अध्यक्ष दोबारा चुनाव के लिए खड़ा होता है तो उसे निर्विरोध चुना जाना चाहिए. ब्रिटेन में यही प्रथा है और यह पदधारी की तटस्थता की गारंटी देती है. लेखक का सुझाव है कि पीएम के प्रश्नकाल की प्रथा भी शुरू करने का वादा करना चाहिए. एक निश्चित दिन पर आधे घंटे का समय जब पीएम कम से कम आधा दर्जन मुद्दों सहित विपरीत बेंचों के सवालों का जवाब दें. ब्रिटेन में यह पीएम-क्यू के रूप में प्रचलन में है.
कांग्रेस ऐसी व्यवस्था पर वादा करने में क्या इसलिए चुप है कि वह नरेंद्र मोदी के हमले का सामना करने में कतरा रही है?
पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि बीजेपी ने 30 मार्च को अपनी घोषणापत्र समिति का गठन किया और कांग्रेस ने 5 अप्रैल को अपना घोषणापत्र जारी कर दिया. तुलना का अवसर नहीं है क्योंकि हाथ में सिर्फ एक घोषणापत्र है. लोग जानने को उत्सुक हैं कि क्या बीजेपी संविधान का पालन करेगी या इसमें आमूलचूल परिवर्तन करेगी.
एक राष्ट्र एक चुनाव, समान नागरिक संहिता, नागरिकता संशोधन अधिनियम और ऐसे ही विभाजनकारी विचारों से यह सवाल पैदा हुआ है. कांग्रेस देशव्यापी सामाजिक आर्थिक और जातीय जनगणना कराएगी. वह आरक्षण पर पचास फीसदी की सीमा हटाने के लिए संविधान में संशोधन करेगी.
आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए दस फीसदी आरक्षण का प्रावधान नौकरियों और शैक्षणिक संस्थान में जारी रहेगा. हर किसी को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है. बहुसंख्यकवाद या अधिनायकवाद के लिए कोई जगह नहीं है.
चिदंबरम ने लिखा है कि कांग्रेस ने केंद्र सरकार की नौकरियों में तीस लाख रिक्तियों को भरने, प्रशिक्षण पाने का अधिकार अधिनियम पारित करने, कॉरपोरेट जगत के लिए रोजगार से जुड़ी प्रोत्साहन योजना लागू करने का वादा कांग्रेस ने किया है. इससे नई नौकरियां पैदा होंगी. स्टार्ट अप को बढ़ावा देने के लिए फंड ऑफ फंड्स योजना स्थापित होंगी. हर गरीब परिवार को एक लाख रुपये देने की महालक्ष्मी योजना, मनरेगा के तहत 400 रुपये की दैनिक मजदूरी, महिला बैंक का पुनरोद्धार, केंद्रीय सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण जैसे वादे कांग्रेस ने किए हैं. महिलाओं के लिए ये घोषणाएं उत्साहजनक हैं.
तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि जब चुनाव आता है तो वह हिसाब करती हैं कि पिछले पांच साल में अच्छा क्या हुआ है देश के लिए, हमारे-आपके लिए. इन दो चीजों के बारे में सोच कर हमको तय करना है कि वोट अबकी बार किसको देना है. हिसाब करने के लिए राजस्थान, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के दौरे किए. यूपी में दिखा कि हवाई अड्डा अभी तक वही पुराना सा है. सोचा था कि उत्तर प्रदेश भी वही पुराना होगा. हैरान हुई जब सड़कें इतनी अच्छी देखीं कि गाड़ी भीतर तक जा सकी. हैरान हुई देखकर कि अब सरकारी स्कूल, निजी स्कूल जैसे दिखने लगे हैं. स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में पता चला कि ‘सीरियस’ होने पर लखनऊ जाना पड़ता है लेकिन निजी अस्पताल काफी खुल गये हैं. कई गांवों में नल से जल वाली योजना पूरी हो चुकी है.
तवलीन सिंह लिखती हैं कि ऐसा नहीं है कि लखनऊ अब पेरिस या लंदन बन गया है लेकिन परिवर्तन जरूर आया है. कुछ अच्छा और कुछ बुरा भी. पुराने शहर को अगर थोड़ा और चमकाया जाए तो पर्यटन से जो कमाई जोधपुर के लोग करते हैं वैसा लखनऊ के लोग भी कर सकेंगे. जोधपुर के मुकाबले लखनऊ में ज्यादा परिवर्तन नजर आया. कानून व्यवस्था के बारे में पता चला कि अब पहले की तरह पुलिस के हाथ बंधे नहीं होते. हिंदुओं और मुसलमानों में गहरी खाई बन चुकी है. हिंदुओं का कहना है कि मुसलमानों की नजर में शरीअत सबसे ऊपर है और हिंदुओं की नजरों में संविधान सबसे ऊपर. मुसलमानों की नजर में मंदिर निर्माण और मंदिर-मस्जिदों के विवादों से ‘इस्लाम खतरे में है’.
लेखिका का कहना है कि जो भी जीतकर लोकसभा में आएंगे उनको गहराई से सोचना होगा कि भाईचारा दोबारा कैसे कायम हो. आम मतदाताओं से बातचीत से पता चला कि संविधान और लोकतंत्र को लेकर जो चिंता दिल्ली और मुंबई के राजनीतिक पंडितों में हैं आम लोगों में नहीं है.
गोपाल कृष्ण गांधी ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लोकसभा चुनाव की पूर्व संध्या पर पहले आम चुनाव की याद दिलायी है. अक्टूबर 1951 और फरवरी 1952 के बीच भारत में हुए पहले आम चुनाव में हर वह व्यक्ति वोटर बना था जिसकी उम्र 21 से ज्यादा थी. धर्म, जाति, शिक्षा, दौलत जैसी कोई बाधा नहीं थी. 36 करोड़ लोगों के लिए इस पहले आम चुनाव में 17.6 करोड़ मतदाता थे. अमिट स्याही का उपयोग पहली बार मतदाताओं की तर्जनी पर हुआ था ताकि एक ही व्यक्ति दोबारा मतदान न कर सके. पेपर बैलेट से ईवीएम तक बढ़ जाने के बावजूद आज भी उंगलियों पर स्याही लगाने की परंपरा कायम है. मिर्जापुर के दो भाइयों छोटे खलीकुज्जमां (1889-1973) और सलीमुज्जमां सिद्दीकी (1897-1994) इस अमिट स्याही के जनक थे.
गोपाल कृष्ण गांधी बताते हैं कि खलीकुज्जमां मुस्लिम लीग के अग्रणी नेता थे तो सलीमुज्जमां सिद्दीकी रसायन विज्ञान अनुसंधान क्षेत्र से जुड़े थे. भारतीय वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद में एक केमिस्ट के रूप में काम करने वाले सिद्दीकी से संस्था के महानिदेशक शांति स्वरूप भटनागर ने संपर्क किया. वे स्वयं भी केमिस्ट थे. उन्होंने सिल्वर क्लोराइड का एक घोल भेजा और जानना चाहा कि भारत के पहले चुनाव में अमिट स्याही के रूप में इसका इस्तेमाल हो सकता है या नहीं. सिद्दीकी ने इसमें सिल्वर ब्रोमाइड मिलाया. इसी दिशा में काम करते हुए उन्होंने 1951-52 में उपयोग के लिए अमिट स्याही बनाने में कामयाबी पायी.
लेखक को याद है कि जब पहली बार उनके माता-पिता वोट देकर लौटे थे तो उंगलियों पर लगे निशान का अनुभव चर्चा का विषय था. उस स्याही को मिटाने की बहुतेरे कोशिशें उन्होंने देखी थी. सिद्दीक-इंक का दाग धुंधला जरूर हो जाए लेकिन दाग जाने वाला नहीं था. भारत विभाजन के तब केवल चार साल हुए थे. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाबजादा लियाकत अली खान ने सलीमुज्जमां सिद्दीकी से संपर्क किया. उन्हें पाकिस्तान आने का न्योता दिया. मुस्लिम लीग के नेता चौधरी खलीकुज्जमां के छोटे भाई सलीमुज्जमां नेहरू से परिचित थे. सलाह के लिए उनके पास गये. आम धारणा के विपरीत नेहरू ने उन्हें पाकिस्तान चले जाने की सलाह दी.
सुनंदा के दत्ता रे ने टेलीग्राफ में लिखा है कि कुछ लोग कहते हैं कि यह साउथ चाइना सी है जो मलेशिया के दक्षिण पूर्वी तट पर देसारू की रेत को छूता है. दावा यह भी है कि यह लहर हिंद-प्रशांत महासागर की है जो सुदूर अमेरिका तक फैली हुई है. यह बात भी निर्विवाद है कि कच्चाथिवू अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख और अन्य विवादित क्षेत्रों की तरह वृहत्तर भारत है. क्लेमेंट एटली की लेबर सरकार ने सर स्टैफोर्ड क्रिप्स और कैबिनेट मिशन को 1946 में भारत के नेताओं को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया था कि उन्हें स्वतंत्रता के बाद दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र की रक्षा करनी होगी.
भारत केवल अमेरिका, सिंगापुर और मालदीव को गाय का गोबर ही निर्यात नहीं करता यह जनशक्ति का भी अग्रणी निर्यातक है. 2022 में रिकॉर्ड 2.25 लाख लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ी. नई दिल्ली और तेल अवीव के बीच 3 नवंबर 2023 को “भारतीय श्रमिकों के अस्थायी रोजगार की सुविधा” पर समझौता हुआ. इजराइल ने जिन भारतीयों के वर्क परमिट रद्द किए हैं उससे पता चलता है कि आज का भारत ब्रिटिश राज की तुलना में जीवन के प्रति अधिक जागरूक नहीं है. दो विश्वयुद्धो में 1,47,000 भारतीयों की हत्या कर दी गयी थी.
सुनंदा दत्ता के रे दावा करते हैं कि 5 मई 2020 की भारत-चीन मुठभेड़ के बाद से लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर झड़पें और अतिक्रमण हुए हैं.
मोदी जिस ट्रेलर की बात कर रहे हैं वह हिंदुत्व के लक्ष्य की दिशा में बड़े कदम उठाएगा. सोनिया गांधी के पूर्व राजनीतिक सचिव अहमदभाई मोहम्मदभाई पटेल, राहुल गांधी के लिए शहजादा, कांग्रेस के साथ मुस्लिम लीग की पहचान चस्पां करने का सिलसिला सा रहा है. टुकड़े-टुकड़े गैंग, सनातन धर्म को कमजोर करने के आरोप, तुष्टिकरण की शिकायतें, धर्मनिरपेक्षता के लिए तिरस्कार लगातार परवान चढ़ते रहे हैं. वास्तविकता यह है कि असदुद्दीन ओवैसी और योगी आदित्यनाथ दोनों भारतीय परिदृश्य का उतना ही हिस्सा हैं जितना कि दो समुद्रों की लहरें जो मलेशियाई रेत से टकराती हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined