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संडे व्यू : राम मंदिर बन गया, रामराज कब आएगा? ये है BJP को हराने का फॉर्मूला

Sunday View: पढ़ें आज करन थापर, तवलीन सिंह, बरखा दत्त, आदिति फडणीस और पी चिदंबरम के विचारों का सार

क्विंट हिंदी
नजरिया
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<div class="paragraphs"><p>संडे व्यू में पढ़ें अखबारों में छपे  आर्टिकल का सार</p></div>
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संडे व्यू में पढ़ें अखबारों में छपे आर्टिकल का सार

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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इंडिया ब्लॉक के लिए बीजेपी को हराने का फॉर्मूला

करन थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि इंडिया ब्लॉक (INDIA Bloc) को यह तय कर लेना चाहिए कि वो बीजेपी को 272 की संख्या के नीचे लाना चाहता है या फिर अपने लिए सीटों की संख्या में विस्तार चाहता है. दोनों बातें अलग हैं और एक साथ नहीं हो सकतीं.

कांग्रेस को यूपी में लोकसभा में एक सीट मिली थी, जबकि विधानसभा में दो. इन दोनों चुनावों में क्रमपश: 6.4% और 2.4% वोट मिले थे. बंगाल में 2019 में लोकसभा की दो और 2021 के विधानसभा में कोई भी सीट नहीं मिली थी. वोट प्रतिशत क्रमश: 5.7% और 3.1% मिले थे. संदेश साफ है कि जितना अधिक सीटों पर कांग्रेस लड़ेगी, बीजेपी की संभावनाएं उतनी अधिक बढ़ जाएगी.

थापर लिखते हैं पंजाब में कांग्रेस ने 8 लोकसभा सीट और आप ने 1 जीती थी. विधानसभा में 92-18 के रूप में उलट स्थिति AAP के पक्ष में रही. दिल्ली में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सभी सीटों पर दूसरे नंबर पर आई, जबकि AAP ने विधानसभा में जबरदस्त जीत हासिल की. इन दोनों राज्यों में सीटें बांटना खासा मुश्किल काम है.

इंडिया ब्लॉक को 400 सीटों पर एक के मुकाबले एक उम्मीदवार देने पर फोकस करना चाहिए. इसके अलावा प्रधानवमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत आलोचना, गौतम अडानी और क्रोनी कैपिटलिज्म, चीन को जवाब देने में नाकामी या अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार जैसे मुद्दों को छोड़ना होगा. इसके नतीजे नहीं विपक्ष के पक्ष में नहीं निकलते.

महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य, नौकरी और गरीबी जैसे जनसामान्य के मुद्दे ही प्रभावशाली हो सकते हैं. वर्तमान में बीजेपी को 272 के आंकड़े से नीचे लाना लक्ष्य होना चाहिए. 2029 में कांग्रेस अपने लिए कोशिश कर सकती है.

मंदिर तो बन गया रामराज कब आएगा?

तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि राम मंदिर बन गया है. 22 जनवरी को रामलला की नयी प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है. लेकिन, हमारे देश में राम राज्य कब आगा?

दावोस में तवलीन सिंह महसूस कर रही हैं कि यहां हो रही वैश्विक चर्चा में भारत की गिनती विकसित देशों में हो ही नहीं रही है. न्यूयॉर्क टाइम्स ने पहले पन्ने पर भारत के न्यायालयों की गंभीर समस्याओं पर लेख छापा है- पांच करोड़ मामले भारत के न्यायलयों में लटके हुए हैं. जेलों में 80 फीसदी कैदी बगैर दोष सिद्धि के जेलों में हैं. अमेरिका में 10 लाख लोगों के लिए 150 न्यायाधीश हैं तो भारत में केवल 21. भारत में अदालतों तक पहुंचना भी महंगा है और आम लोगों का यहां पहुंचना मुश्किल है.

तवलीन सिंह लिखती हैं कि 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' में राहुल गांधी कभी न्याय की बात करते नहीं दिखते. उनकी मोहब्बत की दुकान में उन बच्चों के लिए भी जगह नहीं है, जो शिक्षा से दूर हैं. निजी क्षेत्रों में नौकरियां तो बहुत हैं लेकिन काबिलियत नहीं दिखती.

असली समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए राजनेता मस्जिद-मंदिर के झगड़े छेड़ देते हैं या जातियों की जनगणना को ऐसे उछालते हैं, जैसे एक बार ये हो जाए तो भारत में समृद्धि और संपन्नता अपने आप आ जाएगी.

एक तरफ ये लोग हैं तो दूसरी तरफ वे लोग हैं जो वादा करते हैं कि उनका मकसद है अयोध्या के बाद अब मथुरा और काशी का रुख करना, जहां से मस्जिदों को हटा कर भव्य मंदिर बनाना है. ऐसी बातों से आम मतदाता का ध्यान बेहाल जीवन की असली समस्याओं से भटक जाता है. लेखिका को लगता है कि दशकों तक राम राज आने की कोई संभावना नहीं है.

हिन्दुत्व बन चुका है मुद्दा

बरखा दत्त ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि आम चुनाव में हिन्दुत्व अहम मुद्दा होगा और इसके लिए स्वयं विपक्ष जिम्मेदार है. अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाने के कांग्रेस के फैसले ने बीजेपी को वर्चस्व का अवसर दिया है. कांग्रेस का फैसला नेहरू की धर्मनिरपेक्षता है तो शंकराचार्यों का समर्थन क्या है, जो हिन्दू राष्ट्र और वर्णव्यवस्था के समर्थक रहे हैं?

बरखा दत्त लिखती हैं कि कांग्रेस समर्थक और बीजेपी के आलोचक अलग-अलग लोग हो सकते हैं. ऐसे लोग कांग्रेस के फैसले को ‘गलत कारणों से सही मगर सही फैसला’ करार दे रहे हैं. लेकिन, अगर आप हिन्दुत्व की सियासत को खारिज करते हैं तो शंकराचार्य की आड़ में छिप नहीं सकते.

मंदिर मुद्दे ने इंडिया ब्लॉक में अव्यवस्था पैदा कर दी है. शिवसेना राम जन्मभूमि आंदोलन का खुद को कर्णधार बताती है तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सभी 70 विधानसभाओं में सुंदरकांड का पाठ पढ़ाने की व्यवस्था कर रहे हैं. उदयनिधि स्टालिन का रुख बिल्कुल अलग है. वे मस्जिद हटाकर मंदिर बनाने के खिलाफ हैं.

शरद पवार और अखिलेश का रुख 22 जनवरी के बाद कभी अयोध्या जाने का है. वहीं कांग्रेस नेता असमंजस में हैं. वे राजीव गांधी सरकार में शिलान्यास का श्रेय लें या फिर राम मंदिर समारोह से खुद को दूर रखें- उहापोह में हैं. इसमें भी संदेह नहीं कि समारोह में शामिल होने पर विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने दबा हुआ नजर आता.

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आंध्र प्रदेश कांग्रेस त्रिकोणात्मक संघर्ष में

अदिति फडणीस ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि ऐसे समय में जब मिलिंद देवरा जैसे नामी-गिरामी नेता कांग्रेस पार्टी छोड़ रहे ,हैं तब कांग्रेस के लिए यह खुशखबरी है कि वाईएस शर्मिला कांग्रेस का दामन थाम रही हैं.

कांग्रेस ने उन्हें आंध्र प्रदेश की बागडोर दे दी है. अब शर्मिला अपने ही भाई के मुकाबले सियासत में खड़ी होने को तैयार है. जगनमोहन रेड्डी को राजनीति में स्थापित करने का श्रेय शर्मिला को जाता है. जब कांग्रेस ने जगनमोहन को उनके पिता की जगह मुख्यमंत्री की कुर्सी देने से मना कर दिया था तो उन्होंने अलग राह चुन ली थी. तब आय से अधिक संपत्ति के मामले में जब जगन जेल गये तो प्रदेश भर में 3 हजार किमी की यात्रा करके शर्मिला ने ही जगनमोहन को खड़ा किया था.

आदिति लिखती हैं कि आंध्र प्रदेश कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है. सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक 2020-21 में आंध्र् प्रदेश ने हर महीने औसतन 9,226 करोड़ रुपये का कर्ज लिया है. मार्च 2023 तक राज्य की कुल देनदारी 4.28 लाख करोड़ रुपये है.

आंध्र प्रदेश में नारा लोकेश के नेतृत्व में टीडीपी और जगनमोहन के बीच कांग्रेस त्रिकोण बना रही है. बीजेपी मजबूत ताकत नहीं है जिसका नेतृत्व डी पुरंदेश्वरी कर रही हैं. वह प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष है. आंध्र प्रदेश में पवन कल्याण की पार्टी, टीडीपी और बीजेपी एक साथ आकर विकल्प देने की कोशिशो में लगी है.

देखना यह है कि शर्मिला क्या कांग्रेस को फिर से खड़ा कर पाती है. अगर शर्मिला सफल नहीं रहती हैं तो उनके लिए राजनीति में बहुत कुछ करने को रह नहीं जाएगा. यह शर्मिला और कांग्रेस दोनों के लिए ही निर्णायक घड़ी है.

‘समृद्ध भारत’ नहीं है भारत

पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि समृद्ध भारत (एफ्लुएंट इंडिया यानी एआई) पर मीडिया का फोकस है. समृद्ध भारत के अंतर्गत लोगों की वार्षिक आय 10 हजार अमेरिकी डॉलर या लगभग 8.40 लाख रुपये सालाना है.

गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट के अनुसार, 2026 तक समृद्ध भारत एआई का आकार 100 मिलियन (10 करोड़) होगा, जो भारत की आबादी का 7 फीसदी होगा. यह आबादी अगर एक अलग देश में होती तो दुनिया का 15वां सबसे बड़ा देश होता. जब एआई खरीदता है और उपभोग करता तो यह भ्रम पैदा करता है कि सभी भारतीय खरीदते हैं और उपभोग करते हैं. एआई पूरे भारत के लिए प्रवासी बन गया है. शेष 93 फीसदी मामूली आय अर्जित करते हैं.

चिदंबरम लिखते हैं कि समृद्ध भारत की सालाना आय 8.40 लाख रुपये है, जबकि औसत आय 3.87 लाख रुपये सालाना है. प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय आय 1.70 लाख रुपये सालना है. नीचे से 10 फीसदी की मासिक आय 6 हजार रुपये महीने और उससे ऊपर के 10 फीसदी लोगों की आय 12 हजार रुपये महीने है.

यूएनडीपी के बहायामी गरीबी सूचकांक के अनुसार 22.8 करोड़ लोग यानी 16 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे है. नीति आयोग यह आंकड़ा 16.8 करोड़ यानी 11.28 प्रतिशत बताता है. यह भी उल्लेखनीय है कि मनरेगा के तहत 15.4 करोड़ पंजीकृत श्रमिकों को 100 दिन के बजाए 49-51 दिन ही काम मिल पाया.

एलपीजी के अधिकांश लाभार्थी एक साल में औसतन केवल 3.7 सिलेंडर ही वहन कर सके हैं. औसत आय से कम कमाने वाले 21-50 फीसद लोग नीचे के 20 फीसद की तुलना में थोड़ा ही बेहतर हैं.

लेखक का मानना है कि भारत को सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र के विचार से दूर किया जा रहा है. विपक्षी दल और मीडिया भले ही सतर्क न हों लेकिन गरीब और मद्यम वर्ग देख रहे हैं और अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं.

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