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सुशांत केस: CBI-ED-कोर्ट, अब किसी की जरूरत नहीं, फैसला आ चुका है!

जिस दिन देश में 90 हजार कोरोना के मामले सामने आए उस दिन जिस ‘बहादुरी’ से संवाददाताओं ने रिया को घेरा, वो गौरतलब है.

संतोष कुमार
नजरिया
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इंसाफ की लड़ाई लड़नी है तो कोरोना का क्या खौफ? इस वक्त अगर कोई देश में इंसाफ की लड़ाई लड़ रहा है तो वो चंद न्यूज (व्यूज) चैनलों के रिपोर्टर, कैमरापर्सन और उनके हैंडलर हैं. जिस दिन देश में 90 हजार कोरोना के नए मामले सामने आए उस दिन जिस 'बहादुरी' से संवाददाताओं ने रिया को घेरा, वो गौरतलब है. एक रिया और चारों तरफ से टूट पड़ते रिपोर्टर और उनके 'असलहे'. कोई बाईं ओर से हमलावर तो कोई दाईं ओर से झपट्टा मारने को तैयार.

इन चैनलों, उनके संपादकों और उनके कारिंदों ने ऐलान कर दिया है हमें न मुंबई पुलिस की जरूरत है, न सीबीआई की और न ही ED की. कोर्ट तो इनकी गिनती में आते ही नहीं. इन्होंने फैसला कर लिया है-सुशांत केस में फैसला हम ही सुनाएंगे. तारीख पर तारीख भी नहीं कहेंगे. सड़क को कठघरा बनाएंगे. स्टूडियो में जिरह होगी. उसमें दूसरा पक्ष भी अपनी पसंद का बुलाएंगे और फिर उन्हें बोलने नहीं देंगे. कोर्ट का काम अब बस इनके फैसले पर मुहर लगाना रह गया है. देश क्या जानना चाहता है, इसका सबसे सटीक अंदाजा रखने वाले स्वामी ने सुप्रीम फैसला सुना दिया है-रिया कातिल है.

कुछ इस तरह से ‘टूट पड़े’ मीडियाकर्मी(Photo Courtesy: Viral Bhayani)
इंसाफ का कितना फायदा हुआ नहीं पता, लेकिन स्वामी जी के मनोरथ की होम डिलिवरी हो चुकी है. जिसकी कुर्सी हिली उसकी तो 'आता माझी सटकली', उसने कहा-अपनी खोई कुर्सी के लिए मंजूर है मुझे गाली.

अगर किसी को लगा हो कि ये लोग रिया के पीछे इसलिए पड़े हैं क्योंकि कोरोना, चीन और बिहार में चुनाव से पहले बाढ़ से बचाव में कमी के जरूरी मुद्दों को लाइमलाइट में आने देने से रोकना है तो लगता रहे. जो लोग चाहते हैं कि रिया नहीं, 'दुनिया में कोरोना के मामले में भारत नंबर दो पर आ गया', 'जीडीपी जमींदोज', 'चीन मान नहीं रहा', ये सब टीवी कवरेज और डिबेट के मुद्दे होने चाहिए, तो उन्हें गारंटी भी देनी पड़ेगी कि इन मुद्दों पर टीआरपी भी आएगी. दिखता वही है जो बिकता है. नेशन वांट्स टू नो, सो लो...

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(Photo Courtesy: Viral Bhayani)
भारतीय मीडिया ने पिछले केवल एक महीने में मुझे एक यंग एक्ट्रेस की निजी जिंदगी और WhatsApp चैट्स के बारे में इतना बता दिया है, जितना उन्होंने 6 सालों में कभी पब्लिक को बेरोजगारी, करोड़ों नौकरियां जाने और मोदी की नीतियों के जमीन पर प्रभाव के बारे में नहीं बताया.
जिग्नेश मेवाणी, नेता
रिया अपने खिलाफ चलाए गए एक क्रूर कैंपेन का शिकार बन रही हैं. इससे ज्यादा दुखद ये है कि टीवी मीडिया का एक बड़ा धड़ा भीड़ का हिस्सा है. अगली बार ये रिया को शायद खूंटी से बांधकर जला देना चाहेंगे. भारत, हमें खुद पर शर्म आनी चाहिए....
शेखर गुप्ता, पत्रकार
इंसाफ के नाम पर इन लोगों ने दोषी साबित होने से पहले ही एक इंसान को जीने के अधिकार से वंचित कर दिया. मैं प्रार्थना करती हूं कि कर्मा को इंसान के इस निचले स्तर के काम में शामिल हर शख्स का पता मिले, जिसके हम गवाह हैं.
तापसी पन्नु, एक्टर
भारतीय मीडिया का दोगलापन. इसी मीडिया के एंकर इस तरह के व्यवहार के लिए दूसरे चैनलों की आलोचना में व्यस्त हैं. यहां पुलिस को लाठीचार्ज करना चाहिए, शर्मनाक बर्ताव. मीडिया सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का उल्लंघन कर पुलिसवालों की जान खतरे में डाल रहा है.
ओनिर, डायरेक्टर
अगर किसी से प्यार करना अपराध है तो उसे अपने प्यार का परिणाम भुगतना होगा.
रिया के वकील मानेशिंदे

रिया के पिता रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल इंद्रजीत चक्रवर्ती ने कहा भी है - ''मुबारक मेरे देश, तुमने मेरे बेटे को गिरफ्तार कर लिया. मुझे यकीन है अब मेरी बेटी की बारी है. तुमने एक मिडिल क्लास परिवार को तबाह कर दिया. जाहिर है इंसाफ के लिए सब जायज है...जय हिंद''

कल को ED, CBI, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट रिया को बेगुनाह बता दे तो इन चैनलों पर चीखते चेहरों पर चीखिएगा मत, क्योंकि आज आपने ही इन चीखों, इस पागलपन पर मुहर लगाई है. और जो लोग इस शोर को चुप कराने के लिए कानून से नियुक्त हैं, उनकी चुप्पी की आंच कल उन्हीं के घर तक आए तो उनका चीखना भी अनसुना हो सकता है.

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Published: 06 Sep 2020,06:35 PM IST

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