मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019सुशील कुमार मोदी: बिहार के इकलौते नेता, जिनका विरोधी भी करते थे सम्मान

सुशील कुमार मोदी: बिहार के इकलौते नेता, जिनका विरोधी भी करते थे सम्मान

Sushil Kumar Modi Politics: सुशील मोदी के बिना बिहार में बीजेपी का कोई भी बड़ा कार्यक्रम नहीं होता था.

फैज़ान अहमद
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>सुशील कुमार मोदी: बिहार के इकलौते नेता, जिनका विरोधी भी करते थे सम्मान</p></div>
i

सुशील कुमार मोदी: बिहार के इकलौते नेता, जिनका विरोधी भी करते थे सम्मान

(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

बिहार (Bihar) के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) की 72 साल की उम्र में निधन से पूरे सूबे को झटका लगा है. कुछ महीनों से सुशील मोदी अपने इलाज के दौरान पटना और दिल्ली के बीच चक्कर लगा रहे थे.

लेकिन जब डॉक्टरों ने उनके फाइनल स्टेज कैंसर की जानकारी उन्हें दी तब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसकी जानकारी दी और राज्यसभा में अपने दूसरे कार्यकाल के लिए नामांकन स्वीकार करने से इनकार कर दिया. उन्होंने घोषणापत्र तैयार करने वाली समिति में शामिल होने में असमर्थता भी जताई.

प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को पटना में रोड शो किया और कई जगहों पर गए, लेकिन कई ऐसे लोग भी थे, जिन्होंने सुशील मोदी की अनुपस्थिति महसूस की. सुशील मोदी भागलपुर से लोकसभा के लिए चुने जाने से पहले पटना विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते थे. वह विधान परिषद और अंत में राज्यसभा के सदस्य बने.

बिहार बीजेपी का कोई भी कार्यक्रम अब तक सुशील मोदी के बगैर नहीं होता था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी संवेदना जाहिर करते हुए एक्स पर लिखा, "पार्टी में मेरे मूल्यवान साथी और दशकों तक मेरे दोस्त सुशील मोदी जी के असामयिक निधन से बहुत दुखी हूं. उन्होंने बिहार में बीजेपी के उदय और सफलता में अमूल्य भूमिका निभाई. उन्होंने एक प्रशासक के रूप में भी बहुत सराहनीय काम किया."

सुशील मोदी के सियासी करियर का स्नैपशॉट

बिहार के राजनेताओं में सुशील मोदी एक ऐसे बीजेपी नेता थे जिनका सभी सम्मान करते थे, और 40 वर्षों से अधिक के अपने करियर में उन्होंने विधानसभा और विधान परिषद के सदस्य के रूप में तीन-तीन कार्यकाल तक काम किया और लोकसभा और राज्यसभा में एक-एक कार्यकाल भी पूरा किया. वह नीतीश कुमार के साथ 12 वर्षों तक बिहार के उपमुख्यमंत्री भी रहे, और अंत में लगभग 12 वर्षों तक राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता रहे.

जब वह उपमुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने वित्त मंत्री का पद भी संभाला था और उन्हें जीएसटी (माल और सेवा कर) को लागू करने के लिए राज्य वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष के तौर पर नियुक्त किया गया था.

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के स्वयंसेवक के रूप में अपने करियर की शुरुआत करते हुए सुशील मोदी ने 1973 में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ में महासचिव पद के लिए चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसी दौरान लालू यादव के साथ उनके रिश्ते गहरे हो गए. 1973 में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में लालू यादव ने अध्यक्ष पद के लिए चुनाव जीता था.

हालांकि, दोनों अलग-अलग विचारधारा के थे, लालू समाजवादी युवजन सभा से जुड़े थे. दोनों ने अपना कार्यकाल पूरा किया और इंदिरा गांधी के खिलाफ जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाले आंदोलन में शामिल हो गए. इस आंदोलन ने सुशील मोदी और लालू दोनों के साथ-साथ नीतीश कुमार और उस समय के कई अन्य छात्र नेताओं के लिए लॉन्चिंग पैड के रूप में काम किया. सुशील मोदी के निधन की खबर सुनकर भावुक लालू ने कहा, सुशील एक योद्धा और समर्पित समाजसेवी भी थे.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

हालांकि, सुशील मोदी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आजीवन सदस्य थे, लेकिन उन्हें अपनी पार्टी के अन्य नेताओं से अलग एक उदारवादी और धर्मनिरपेक्ष बीजेपी नेता माना जाता था. वह नियमित रूप से इफ्तार पार्टियों का आयोजन करते थे, तब भी जब वह सिर्फ एक विधायक थे. उनके करीबी दोस्त और राष्ट्रीय जनता दल के नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने कहा, "वह इकलौते बीजेपी नेता थे जो बिना किसी देरी के इफ्तार पार्टियों की मेजबानी करते थे और व्यक्तिगत रूप से मुसलमानों को न्योता देते थे."

लोकप्रियता के बावजूद सुशील मोदी के लिए बीते कुछ साल मुश्किल भरे रहे

1986 में सुशील कुमार मोदी ने केरल की ईसाई धर्म को मानने वाली जेसी जॉर्ज से शादी की, जिनसे वह एक ट्रेन यात्रा के दौरान मिले थे, ठीक उसी तरह जैसे शत्रुघ्न सिन्हा को पूनम सिन्हा को ट्रेन के सफर के दौरान पहली नजर में मोहब्बत हो गई थी.

सुशील कुमार मोदी अपनी पत्नी जॉर्ज के साथ कभी-कभार चर्च जाते थे और उन्हें इसमें कोई हिचक नहीं होती थी. अटल बिहारी वाजपेयी उनकी शादी में शामिल हुए थे और उन्हें (उनकी पत्नी को) बीजेपी में शामिल होने का प्रस्ताव दिया था.

सुशील मोदी पत्रकारों के बीच भी रसूख रखते थे. वह न केवल अपने व्यापक नेटवर्क के लिए बल्कि मीडिया में अपने दोस्तों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखने के लिए भी जाने जाते थे. वह नियमित रूप से मीडिया को दस्तावेजी सबूतों के साथ 'ब्रेकिंग न्यूज' देते रहते थे. इनमें से अधिकांश खुलासे लालू यादव और उनके परिवार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से संबंधित थे, जिनमें चारा घोटाले से लेकर रेलवे में नौकरी के लिए भूमि घोटाले तक शामिल थे.

मजाक के तौर पर एक लोकप्रिय और कहीं न कहीं सही कही जाने वाली बात है कि कई पत्रकारों ने अपना करियर स्थापित किया, पहचान हासिल की और अपनी स्टोरी के लिए अपना नाम बनाया, जबकि असली श्रेय सुशील मोदी का था, जिन्होंने कई मौकों पर स्वीकार किया है कि अगर उन्होंने राजनीति में अपना करियर नहीं बनाया होता, तो वह पत्रकार बन गए होते.

देश में बहुत कम राजनेता सुशील मोदी की तरह सूझबूझ, मीडिया के अनुकूल, सुलभ, तकनीक-प्रेमी, सौम्य और मृदुभाषी थे, लेकिन ऊर्जावान भी थे. वह न केवल अपने शिष्टाचार और राजनीतिक व्यवहार में बल्कि अपने ड्रेसिंग सेंस और फूड हैबिट में भी अनुशासित थे. वह हमेशा आस्तीन ऊपर चढ़ा कुर्ता-पायजामा पहनते थे और एक गहरे रंग की बंडी कोट पहनते थे. इसके साथ उनकी ट्रेडमार्क मुस्कान भी होती थी.

अपने शैक्षणिक दिनों के दौरान विज्ञान के छात्र होने के नाते मोदी ने कभी अर्थशास्त्र या वाणिज्य नहीं सीखा. हालांकि, उन्होंने सहजता से पूरे राज्य के वित्त का प्रबंधन किया और राज्य के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले वित्त मंत्री रहते हुए, अपनी क्षमता में इसे सही रास्ते पर लेकर आए. उनके पुराने सहयोगी प्रेम कुमार मणि बताते हैं कि सुशील मोदी संबंधित विषयों पर विशेषज्ञों के साथ समय बिताकर वित्त की पेचीदगियों को सीखते थे.

इन सबके बावजूद, सुशील मोदी के जीवन के अंतिम कुछ वर्ष उनके उदारवादी और धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण की वजह से इतने सहज और आरामदायक नहीं थे. वह लालकृष्ण आडवाणी की तुलना में अटल बिहारी वाजपेयी के करीब थे. ऐसा कहा जाता है कि उन्हें उपमुख्यमंत्री के रूप में दो अन्य निचले स्तर के बीजेपी नेताओं द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था क्योंकि पार्टी के आलाकमान, जिसमें नरेंद्र मोदी और अमित शाह शामिल थे, उन्हें पसंद नहीं करते थे.

उन्हें दरकिनार कर दिया गया और 2020 में उपचुनाव के जरिए राज्यसभा भेजा गया. गुटबाजी से ग्रस्त बिहार बीजेपी ने उन पर नीतीश कुमार का मंडली बनने का आरोप लगाया और उन पर तथा उनके सहयोगियों पर जनता दल (यूनाइटेड) की बी-टीम होने का आरोप लगाया. जब एक बार लेखक द्वारा इस पर टिप्पणी मांगी गई, तो सुशील मोदी ने कहा कि उन्होंने केवल वही किया जो पार्टी नेतृत्व ने उन्हें करने के लिए कहा और वह जिम्मेदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना जारी रखेंगे.

(फैजान अहमद एक बहुभाषी पत्रकार हैं, जिन्होंने तीन दशकों के अनुभव के साथ अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू प्रकाशनों में काम किया है. पटना विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री के साथ, उन्होंने द टाइम्स ऑफ इंडिया, द टेलीग्राफ, द पायनियर, आउटलुक, संडे, तहलका और लोकमत टाइम्स के साथ काम किया है. यह एक ओपिनियन पीस है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT